सागर जिले की जलप्रबन्धन व्यवस्था


सागर जिला में पथरीली टौरियाऊ, ऊँची-नीची, ढालू जमीन पर ही तालाब है, जहाँ काली कावर भूमि है। ऐसे क्षेत्रों में खेतों की मेंड़बन्दी कराई गई थी कि जिससे खेत का पानी खेत में भरा रहे। यहाँ के खेतों की मेंड़बन्दी से बंधियाँ, खेत आदि छोटे-छोटे तालाबों में बदल दिए गए थे। यह मेड़बन्दी 3 फुट ऊँची की गई थी और खेतों को कच्चे छोटे-छोटे तालाबों में बदल दिया गया था जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होने लगी थी।

सागर जिला दक्षिणी बुन्देलखण्ड का ऐसा जिला है जिसका अधिकांश भाग पहाड़ी, टौरियाऊ, ऊँचा-नीचा, ऊबड़-खाबड़ और ढालू है। केवल दक्षिणी भाग का खुरई क्षेत्र तथा देवरी और सागर नगर की पहाड़ियों के आस-पास की कुछ भूमि मौंटी है। मौंटी काली कावर भूमि की खेती को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसलिए सिंचाई के उद्देश्य से मौंटी भूमि वाले क्षेत्रों में तालाबों का निर्माण कम ही किया गया है। हाँ, ग्रामों में जन निस्तार के लिये छोटे तलैयों के आकार वाले मिट्टी के खुदौअल तालाब बना लिये जाते रहे हैं। परन्तु पहाड़ी ढालू, टौरियाऊ, पथरीली राँकड़ भूमि में कृषि सिंचाई और जन निस्तार हेतु तालाबों का निर्माण किया जाता रहा है। ऐसे तालाबों में पहाड़ियों, टौरियों एवं ऊँची भूमि का बरसाती धरातलीय जल नीचे को प्रवाहित होकर इकट्ठा होता रहता है जिसका उपयोग कृषि सिंचाई एवं ग्रामों के जन निस्तार में होता रहा है। कुछ बड़े-बड़े तालाब भी सागर जिले में हैं जिनसे जिले का प्राकृतिक सौन्दर्य एवं महत्ता दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। ऐसे सरोवर दर्शनीय भी हैं।

सागर झील, सागर- सागर झील नगर के दक्षिणी-पूर्वी भाग की पहाड़ियों के मध्य स्थित है, जो पश्चिमी पार्श्व में दक्षिणी-उत्तरी पहाड़ियों की पटार में एक छोटा-सा बाँध बनाकर तैयार की गई थी। इसका उबेला पूर्वी भाग में गोपालगंज की ओर था। वर्तमान में तालाब (झील) के चारों ओर की पहाड़ियों पर बस्ती बस चुकी है। वैसे सम्पूर्ण नगर झील के चारों ओर की पहाड़ियों, टौरियों पर बसा हुआ है। प्रत्येक मुहल्ला टौरी (टौरियों) पर बसा होने से टौरी नाम-शनीचरी टौरी, इतवारी टौरी, बुधवारी टौरी, परकोटा आदि से जाना जाता रहा है। ऊँची-नीची टौरियों की चढ़ाइयाँ चढ़ते-उतरते मुहल्ला दर मुहल्ला आते-जाते रहे हैं।

ऐसी लोक किंवदन्ती है कि सागर झील का निर्माण 13वीं सदी में बंजारों ने कराया था। एक प्रसिद्ध लाखा बंजारा अपने अन्य बंजारों के साथ लद्दू भैंसों, बैलों (टाड़ों) पर नमक और अन्य ग्राहस्थिक सामग्री लादकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में आते थे तथा घूम-घूमकर बड़े व्यापारिक कस्बों-गाँवों में वस्तुएँ बेचा करते थे। हजारों लद्दू मवेशियों के साथ उनके डेरे पड़ते थे। लद्दू मवेशियों (टाँड़ों) को पीने को भारी जल की आवश्यकता पड़ती थी। चलता-फिरता (टाड़ौं का) व्यवसाय बंजारा जाति का निरन्तर धन्धा होता था, जिस कारण वह वहीं डेरा डालते थे जहाँ पानी बहुलता में होता था। यदि उपलब्ध नहीं होता, तो बंजार व्यापारी अपने पैसे से तालाब अथवा बावड़ियाँ बनवा लेते थे।

बंजारा जाति व्यवसाय (बंजी, बंज) करने के कारण ही एक जाति के रूप में प्रसिद्ध हो गई थी। सागर में भी इनके डेरा लगा करते थे, परन्तु वहाँ लद्दू-मवेशियों (टाँड़ों) को पीने के पानी की कमी पड़ती रहती थी, जिसकी आपूर्ति के लिये बंजारों ने दो पहाड़ियों के मध्य छोटी दौर का परन्तु चौड़ा सुदृढ़ बाँध बनवाकर विशाल सागर (तालाब) का निर्माण करवा दिया था। चारों ओर ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ जिनके मध्य में विशाल सागर (झील जैसा तालाब) बन गया था। इसी सागर (झील) के नाम से दांगियों, अहीरों एवं गौडों की टौरियों (टौरी) पर बसी बस्ती ‘सागर’ तालाब के नाम से ही प्रसिद्ध हो गई थी। वर्तमान में सागर बस्ती तालाब के चारों ओर की पहाड़ियों, टौरियों पर एवं उनके पिछवाड़ों की नीची समतल भूमि पर बसी हुई है। झील बस्ती के मध्य में हो गई है। झील निर्माण के पहले टौरियों पर अहीर जाति के लोग रहते थे जिन्हें चरागाहें भी प्राप्त थीं। झील का पानी मिला तो पशु संवर्द्धन बढ़ा। लोगों में सम्पन्नता आई।

कालान्तर में सदन शाह दांगी ने सागर परिक्षेत्र पर अधिकार कर वहाँ से अहीरों को हटाकर पहाड़ी पर किला एवं विशाल परकोटा निर्मित कर लिया था। इस प्रकार सागर में दांगियों की राजसत्ता स्थापित हो गई थी। दांगियों की राजसत्ता कमजोर होने पर सागर पर कुरबोई के नवाब का अधिकार हो गया था। उसके पश्चात यहाँ मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम का आधिपत्य हुआ, जिसकी तरफ से सागर में मामलतदार गोविन्द राव खैर उर्फ गोविन्द बुन्देला रहने लगे थे जिन्होंने सागर को मराठी मामलतदारी का सशक्त केन्द्र बना लिया था कि यहाँ से समूचे मराठी मामलतदारी क्षेत्र की व्यवस्था का संचालन होने लगा था। कालान्तर में सन 1818 ई. में मामलतदार प्रबन्धक बलवन्त राव उर्फ बाबा साहब से अंग्रेजों ने सागर क्षेत्र छीनकर अपने सागर नर्मदा टैरीटरीज प्रान्त में विलय कर लिया था।

धामौनी तालाब- सागर के उत्तर में सागर-महरौनी बस मार्ग पर 30 किलो मीटर की दूरी पर धामौनी है। यह प्राचीन नगर था, जो गौडों, बुन्देलों एवं अंग्रेजों के अधिकार में रहता रहा। यहाँ का किला बुन्देलखण्ड के किलों में से एक प्रसिद्ध और विशाल किला है। इस किले के दक्षिणी पार्श्व में प्राचीन बुन्देल शासनकालीन सुन्दर तालाब है, जो किला से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है। इस तालाब से किले के अन्दर जलापूर्ति के लिये मिट्टी के पाइप डले हुए हैं। किले के चारों ओर बनी पक्की खाई भी इसी तालाब के झिरते पानी से भरी रहती थी। किले के हम्मामों, स्नानागारों में भी इसी तालाब का पानी जाता रहता था।

बंडा का तालाब- बंडा नगर, सागर-शाहगढ़ बस मार्ग पर सागर से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। बंडा नगर के पूर्वी पार्श्व में एक छोटा तालाब है, जो निस्तारी तालाब है। इस तालाब के पास अनेक जैन मन्दिर हैं। एक दूसरा तालाब मरघटा तालाब भी बंडा में है।

विनायिका का तालाब- विनायिका ग्राम सागर के प्रबन्धक विनायक राव मराठा ने बसाया था। विनायक राव इसी विनायक कस्बा में रहा करते थे। यह बंडा से पश्चिमोत्तर दिशा में 18 किमी. की दूरी पर धसान नदी के किनारे स्थित है। यहाँ विनायक राव द्वारा बनवाया हुआ एक अति सुन्दर निस्तारी तालाब है। सन 1897-1900 ई. के मध्य इसका जीर्णोद्धार कराया गया था।

गढ़पहरा का तालाब- गढ़पहरा कस्बा सागर के उत्तर-पूर्व में 9 किमी. की दूरी पर स्थित है। प्राचीन काल में यह गोंडवाना राज्य के अन्तर्गत था, परन्तु कालान्तर में गढ़पहरा को दांगियों ने अपने अधिकार में लेकर, इसे अपनी राजधानी बना लिया था। यहाँ पहाड़ी पर सुन्दर किला है। किला के नीचे उत्तरी-पूर्वी किनारे एक तालाब है जिसे मोती सागर कहा जाता है। यहाँ किला पहाड़ी पर स्थित हनुमान जी एवं तालाब के सौन्दर्य दर्शन हेतु पर्यटक निरन्तर आते-जाते रहते हैं। किले से तालाब का दृश्य बड़ा मनोरम लगता है।

गढ़ोला तालाब- गढ़ोला खुरई परिक्षेत्रान्तर्गत, सागर से 34 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ एक बड़ा तालाब है। यह लगभग 75 एकड़ क्षेत्र में फैला है, जो दांगियों का बनवाया हुआ है। यह खुरई क्षेत्र का बड़ा तालाब है। इसके जल का उपयोग जन निस्तार एवं गेहूँ, चना तथा केला के खेतों की सिंचाई में किया जाता है।

हीरापुर का तालाब- हीरापुर कस्बा शाहगढ़ के उत्तर-पूर्व में शाहगढ़-छतरपुर एवं छतरपुर-दमोह मार्गों के तिगैला स्थल पर स्थित है। हीरापुर प्राचीन कस्बा है जो रियासती जमाने में चरखारी रियासत का था, जिसे 1857 ई. में विप्लव पश्चात अंग्रेजों ने ले लिया था। हीरापुर में एक चन्देल युगीन तालाब था जो फूट गया था। बाद में अंग्रेजी सरकार ने सन 1900 में सात हजार रुपया खर्च कर उसका जीर्णोद्धार कराया था। यह हीरापुर कस्बा का जन निस्तारी तालाब है।

जैसी नगर तालाब- यह तालाब सागर जिला मुख्यालय के दक्षिण-पश्चिम दिशा में 32 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम जयसिंह नगर में स्थित है। यह जयसिंह नगर गढ़पहरा के दांगी राजा जयसिंह ने बसाया था। उन्हीं दांगी राजा जयसिंह ने यह तालाब गाँव के जन निस्तार हेतु बनवाया था। सन 1896-97 ई. में अंग्रेजी सरकार ने इस तालाब की मरम्मत कराकर तालाब की जल भराव क्षमता बढ़ाई थी।

पिठौरिया का तालाब- पिठौरिया ग्राम सागर के उत्तर-पश्चिम में 18 किलो मीटर की दूरी पर है। यह कलचुरि-युगीन ग्राम है तथा उसी युग का यह जननिस्तारी सुन्दर तालाब है। तालाब के बाँध पर गणेश जी एवं शिवजी के मन्दिर बने हुए हैं।

राहतगढ़ तालाब- राहतगढ़, सागर से पश्चिम में भोपाल बस मार्ग पर 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ बीना नदी के किनारे पहाड़ी पर विशाल सुन्दर किला निर्मित है। किले के अंदर पहाड़ के पत्थर को काटकर एक गहरा बड़ा तालाब बना हुआ है जिसमें उतरने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। बरसात में यह तालाब जल से भरा रहता है, यह आकर्षक एवं मनोहारी लगता है।

मदन सागर तालाब शाहगढ़- शाहगढ़ नगर के उत्तर-पूर्व में पहाड़ियों के मध्य सुन्दर तालाब है। इस तालाब का निर्माण शाहगढ़-गड़ाकोटा के राजा मर्दन सिंह ने करवाया था। यह दर्शनीय तालाब है।

शाहगढ़ दुर्ग से संलग्न पूर्वी पार्श्व में कुआँ से लगा हुआ एक छोटा तालाब था जो वर्तमान में मिट्टी से भर चुका है। केवल बाँध की ऊपरी सीढ़ियाँ ही तालाब की आकृति स्मृति स्वरूप दृष्टव्य हैं।

खुरई का तालाब- सागर जिला मुख्यालय से दक्षिण दिशा की ओर 50 किलोमीटर की दूरी पर खुरई कस्बा स्थित है। यह सागर वीना रेलवे का एक स्टेशन है। सागर जिला की तहसील खुरई का मुख्यालय है। इसका विकास मराठा मामलतदारी के समय से हुआ। सागर के मराठा मामलतदार गोविन्द वल्लाल खैर से खुरई क्षेत्र पर कब्जा कर यहाँ किला बनवाया और किला से संलग्न पूर्वी पार्श्व में एक सुन्दर सरोवर कर निर्माण कराया था। इस तालाब का बाँध दक्षिण की ओर है तथा भराव किला के समानांतर परकोटा से संलग्न उत्तरी पूर्वी भाग को है। बाँध में सुन्दर घाट निर्मित कराये थे। किला परकोटा से संलग्न भी सुन्दर घाट एवं मन्दिर निर्मित हैं जो राजसी घाट एवं मन्दिर रहे थे। खुरई का तालाब सुन्दर दर्शनीय मनोरम जननिस्तारी तालाब है।

मालथौन का तालाब- मालथौन सागर से पश्चिम में सागर-ललितपुर बस मार्ग पर मालथौन घाटी का गाँव है जो पहाड़ के शीर्ष पर ही बसा हुआ है। यहाँ गाँव के बाहर पूर्वी पार्श्व में ईदगाह के पास एक प्राचीन गौंडवानी युगीन तालाब है, जो सुरक्षा-सफाई एवं मरम्मत की व्यवस्था के अभाव में बीहड़ हो रहा है।

बलेह तालाब- बलेह तालाब, सागर जिला की रेहली तहसील मुख्यालय से 16 किलोमीटर की दूरी पर बलेह ग्राम में स्थित है। बलेह प्राचीन काल के गौंड़ राज्य शासनकाल में पिथैरा के गौंड परिवार के जागीर का बड़ा समुन्नत सम्पन्न ग्राम था। यहाँ उसी युग का एक बड़ा सुन्दर तालाब है। बाँध पर चंडिका देवी का मन्दिर है।

सागर जिला में पथरीली टौरियाऊ, ऊँची-नीची, ढालू जमीन पर ही तालाब है, जहाँ काली कावर भूमि है। ऐसे क्षेत्रों में खेतों की मेंड़बन्दी कराई गई थी कि जिससे खेत का पानी खेत में भरा रहे। यहाँ के खेतों की मेंड़बन्दी से बंधियाँ, खेत आदि छोटे-छोटे तालाबों में बदल दिए गए थे। यह मेड़बन्दी 3 फुट ऊँची की गई थी और खेतों को कच्चे छोटे-छोटे तालाबों में बदल दिया गया था जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होने लगी थी।

सागर जिले में अंग्रेजी काल में कृषि विकास हेतु यथेष्ट प्रयत्न किए गए थे। सन 1913-16 के मध्य नारायणपुर तालाब का निर्माण किया गया था, जिसके बाँध की लम्बाई 1200 मीटर एवं ऊँचाई 12 मीटर है। इस तालाब का भराव क्षेत्र 4 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र का है। नरयावली एवं सुरखी में भी अच्छे बड़े तालाब हैं। इन तालाबों के अतिरिक्त क्षेत्र में टीला, तालाब, रजवार बघौना, पगारा तालाब सागर क्षेत्र में, गदौला तालाब, गुलई लोहारा, ख्वाजा खेड़ी खुरई परिक्षेत्र तथा चंदिया तालाब तहसील बंडा में सन 1921 में बनवाया गया था। इसी समय रतौना तालाब बना था। अनेक रेग्यूलेटर एवं ऐनीकट भी कृषि विकास हेतु बनाए गए थे, जिनमें तिगोड़ा (बंडा) ऐनीकट, बंडा रेग्यूलेटर, सागर लेक रेग्यूलेटर सागर, खोड़ा, सिमिरिया रेहली पखसरी ऐनीकट रेहली, सानौधा सागर रसूल्ला ऐनीकट खुरई, खिमलासा ऐनीकट, नूना नाला ऐनीकट रेहली, सिमिरिया नाला रेग्यूलेटर, सागर नाला रेग्यूलेटर, मोहिया नाला रेग्यूलेटर, खैराना रेग्यूलेटर रेहली, लिधौरा रेग्यूलेटर, विलहरा रेग्यूलेटर, धनौरा नाला रेग्यूलेटर एवं बीला बाँध दुलचीपुर (शाहगढ़) में बना था, जिसकी ऊँचाई 104 फुट, जलभराव क्षेत्र 148 वर्ग किमी., बाँध की लम्बाई 585 मीटर है, जिससे 12950 हेक्टेयर में सिंचाई होती है।

उपरोक्त तालाबों, रेग्यूलेटर्स एवं ऐनीकट्स के अतिरिक्त भी निम्नांकित तालाब सागर जिले में हैं-

रतौना तालाब, मोहारी तालाब, नयाखेरा, तालाब, बाछलौन तालाब, पड़रई तालाब, हीरापुर, तालाब, छेजला तालाब, मछरया तालाब, टड़ा तालाब, गंगा सागर, खैराना तालाब, महुआ खेड़ा तालाब, बंदिया तालाब, नारायणपुर तालाब, बरायटा तालाब, तिगोड़ा तालाब, इन्दौरा तालाब, विनैका तालाब, बादरीं तालाब, गूंगरा खुर्द तालाब, हिनौता खरमऊ तालाब, कीरत सागर तालाब, पनिया तालाब, दलीपुर तालाब, मड़ैया गौंड तालाब एवं महेरी तालाब।

इन सभी तालाबों में गौंड़र (गाद) भर गई है। लोग तालाबों के भराव क्षेत्र में कृषि करने लगे हैं। बाँधों में रिसन होती है। शासकीय उपेक्षा, अनदेखी एवं मरम्मत के अभाव में तालाब दुर्दशाग्रस्त हो गए हैं।


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बुन्देलखण्ड के

तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

बुन्देलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबन्धन का इतिहास

2

टीकमगढ़ जिले के तालाब एवं जल प्रबन्धन व्यवस्था

3

छतरपुर जिले के तालाब

4

पन्ना जिले के तालाब

5

दमोह जिले के तालाब

6

सागर जिले की जलप्रबन्धन व्यवस्था

7

ललितपुर जिले के तालाब

8

चन्देरी नगर की जल प्रबन्धन व्यवस्था

9

झांसी जिले के तालाब

10

शिवपुरी जिले के तालाब

11

दतिया जिले के तालाब

12

जालौन (उरई) जिले के तालाब

13

हमीरपुर जिले के तालाब

14

महोबा जिले के तालाब

15

बांदा जिले के तालाब

16

बुन्देलखण्ड के घोंघे प्यासे क्यों

 

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