सागर झील को बचाने की कवायद

यह शर्म की बात है, क्योंकि इस तालाब के किनारे कई मन्दिर और पूजा स्थल हैं जो इसी जल का उपयोग करते हैं। आज भी बहुत सारे निवासी इसके जल से आचमन करते हैं।

सागर झीलभारत में लगभग सात करोड़ लोग दूषित जल के कारण बीमारियों से प्रभावित हैं और लगभग तीन लाख लोगों की बीमारी का कारण आर्सेनिकयुक्त जल हैं। इसी तरह एक लाख लोगों की मृत्यु का कारण दूषित जल है। दूषित पानी सिंचाई के लिए भी नुकसानदेह है। साथ ही मछली, सब्जियाँ, घास व जानवरों पर भी इस दूषित पानी का बुरा असर पड़ता है। दूषित पेयजल से जानवरों के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है, इस पर तो कोई अध्ययन भी नहीं हुआ है। 12 राज्यों के 96 जिले दूषित पानी से प्रभावित हैं।

मध्य प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। प्रदेश का हृदय स्थल सागर जिला, जिसकी पहचान और जिले का नाम ही जिस विशाल सरोवर के नाम पर है, आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। उसकी इस हालत के लिए जिम्मेदार वही लोग हैं, जिनकी यह सागर सैकड़ों सालों से प्यास बुझा रहा है। अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए पत्रकार दीपक तिवारी ने इसे पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने राष्ट्रीय हरित अधिकरण में एक जनहित याचिका दायर कर उसे बचाने की गुहार लगाई है। सरोकारी पत्रकारिता करने वाले तिवारी ने बताया कि वह इसी जिले के एक छोटे से गाँव धाना में पैदा हुए हैं।

उन्होंने कहा, कि शहर में पानी के स्रोत में से एक यह सागर झील उत्तरदाताओं की मिली-भगत के चलते सालों से प्रदूषित हो रही है। उत्तरदाताओं द्वारा पर्यावरण कानून और विशेष रूप से वायु (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981 का उल्लंघन कर रहे हैं, इसके साथ ही जल (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के प्रक्रिया का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है, जो सागर के लोगों के स्वास्थ पर गम्भीर असर डाल रहा है। उन्होंने कहा, कि एक बुद्धिजीवी होने के कारण मुझे लगा कि यह लड़ाई हम सड़कों पर नहीं लड़ सकते, पर सागरवासी होने के नाते इसे छोड़ भी नहीं सकते। इसीलिए इसको कानूनी रूप से लड़ने का तय किया गया है।

आज सागर की पहचान तालाब में पूरे शहर का मल-मूत्र मिलते हैं। यह शर्म की बात है, क्योंकि इस तालाब के किनारे कई मन्दिर और पूजा स्थल है जो इसी जल का उपयोग करते हैं। आज भी बहुत सारे निवासि इसके जल को आचमन के उपयोग में लेते हैं। जबकि यह जहरीला हो चुका है। तालाब के गन्दे होने के कारण सागर का भूमिगत जल प्रदूषित हो चुका है। इसी पानी को सागर के बहुत सारे लोग पीते हैं। सागर तालाब लोगों की आस्था और पहचान का विषय है, किन्तु निति-नियंताओं और सागर के कर्णधारों ने इसको केवल राजनीति का मुद्दा माना है। यह तालाब सागर के जनजीवन का केन्द्र है। अगर तालाब स्वच्छ रहेगा तो पूरा वातावरण ठीक रहेगा। तालाब रोजगार, तरक्की और प्रसन्नता का कारण बने इसी ध्येय को लेकर इस लड़ाई को शुरू किया है।

याचिका पर सुनवाई करते हुए न्याय मूर्ति दलीप सिंह की बैंच ने सागर नगर निगम को यह निर्देश दिए हैं कि झील में जो गन्दे नाले एवं शीवेज का पानी मिल रहा है उसे रोकने के लिए उपाय किए जाएँ। इसके लिए अगली पेशी 27 अगस्त को अधिकरण को पूरा प्लान बताये। इसके साथ ही झील के शुद्धिकरण के लिए प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को लघु एवं लम्बी अवधि के लिए प्लान बनाने को निर्देशित किया। झील में फेंकी जाने वाली गन्दगी पर अविलम्ब रोक लगाने, आटों और मन्दिरों से फेंकी जाने वाली गन्दगी के लिए तालाब के किनारे कचरे का डब्बा (डस्टबिन) इत्यादि की व्यवस्था करने के साथ ही सागर कलेक्टर को निर्देशित किया है कि झील में हो रही सिंघाड़े की खेती के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के साथ सुझाव प्रस्तुत करें। अधिकरण ने यह भी निर्देशित किया, कि सिंघाड़े खेती के लिए उर्वरकों का प्रयोग ना हो और खेती करने वाले लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार तालाब से ही तलाशा जाए। सागर नगर निगम को यह भी निर्देशित किया गया है कि झील के किनारों पर फेंका जाने वाला ठोस अपशिष्ट तत्काल बन्द किया जाए।

इस जनहित याचिका में छह अन्य प्रतिवादीगण को भी अधिकरण की ओर से मुख्य सचिव मध्य प्रदेश शासन, प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन, कलेक्टर सागर, सचिव प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, सागर और रीजनल डायरेक्टर, सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड, भोपाल को भी नोटिस भेजा गया है।

उल्लेखनीय है, कि प्राकृतिक तरीके से बना एक सरोवर है, जिसे बाद में किसी राजा या समुदाय ने जनता के लिए अधिक उपयोगी बनवाने के उद्देश्य से खुदवाकर विशाल झील का स्वरूप दे दिया था। ऊदनशाह ने जब 1660 में यहाँ पर काटा गाँव बसाया तो तालाब पहले से ही मौजूद था।

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