सागर की बदकिस्मती


ईंधन से भरा एक जहाज समुद्र के रास्ते इंडोनेशिया से गुजरात के लिये रवाना हुआ था। 4 अगस्त, 2011 को यह जहाज मुम्बई तट से लगभग 37 किलोमीटर दूर अरब सागर (भारतीय सीमा) में डूब गया था।

जहाज के डूबने से इसमें मौजूद ईंधन व तेल का धीरे-धीरे रिसाव होने लगा जिससे समुद्र की पारिस्थितिकी और मुम्बई तट के आसपास की जैवविविधता को नुकसान हुआ था।

इस नुकसान की भरपाई के लिये राष्ट्रीय हरित पंचाट (नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल) ने पनामा स्थित डेल्टा शिपिंग मरीन सर्विसेज और उसकी कतर स्थित दो सहयोगी कम्पनी डेल्टा नेविगेशन डब्ल्यूएलएल और डेल्टा ग्रुप इंटरनेशनल पर 100 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति लगाया है।

यही नहीं, हरित पंचाट ने अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड पर समुद्री तल में 60054 टन कोयला छोड़ देने के लिये बतौर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति 5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।

जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले दिनों ये आदेश दिये। लगभग 223 पृष्ठों में दिये गए इस आदेश में कमेटी बनाने की भी बात कही गई है जो यह देखेगी कि समुद्र तल में जमा 60054 कोयले को निकालने की जरूरत है कि नहीं। पर्यावरण क्षतिपूर्ति की राशि केन्द्रीय जहाजरानी मंत्रालय को दी जाएगी।

हरित पंचाट ने इन कम्पनियों को आड़े हाथ लेते हुए यह भी कह दिया है कि ये कम्पनियाँ समुद्री क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी को लेकर बिल्कुल ही लापरवाह हैं और सागर किनारे रहने वाली आबादी के लिये यह चिन्ता का विषय है। जुर्माने की राशि का उपयोग पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई करने पर किया जाएगा।

देखा जाये तो मुम्बई तट के पास सागर में किन्हीं वजहों से तेल का रिसाव अक्सर होता रहता है। वर्ष 2010 से वर्ष 2013 के दरमियान भारतीय महासागर के मुम्बई तट के पास का हिस्सा आधा दर्जन बार इस तरह की घटनाएँ झेल चुका है।

मुम्बई के समुद्र तट पर बिखरा पड़ा तेल की मोटी परत4 अगस्त 2011 से पहले और इसके बाद भी ऐसी घटनाएँ होती रही हैं। 7 अगस्त 2010 को दो जहाज आपस में टकरा गए थे जिस कारण सैकड़ों कारगो कन्टेनर समुद्र में समा गए थे। वर्ष 2013 में ओएनजीसी की एक पाइपलाइन से रिसाव हुआ था। मुम्बई प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अनुमान था कि पाइपलाइन से 1 हजार लीटर तेल का रिसाव हुआ था जो समुद्र के पानी में मिल गया था।

वर्ष 2011 में ही जनवरी महीने में ओएनजीसी का पाइप फट गया था जिसके चलते तेल का रिसाव हुआ था और समुद्र का पानी प्रदूषित हो गया था। अगस्त में जो जहाज डूबा था उसमें 60054 मीट्रिक टन कोयला, 290 टन ईंधन तेल और 50 टन डीजल थे। जहाज डूबने की वजह से समुद्र की पारिस्थितिकी को बहुत नुकसान हुआ था।

घटना के बाद मुम्बई प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने समुद्र और समुद्री पारिस्थितिकी को हुए नुकसान का आकलन किया था। मुम्बई प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार मुम्बई तट के आसपास के 14 तटीय इलाके प्रभावित हुए थे।

ईंधन तेल से समुद्री मछलियों, समुद्री जीवों और समुद्री पक्षियों के साथ ही मैंग्रोव के वनों को भारी नुकसान होता है। असल में ईंधन तेल पानी में घुलता नहीं बल्कि समुद्र में पानी के ऊपर मोटी परत के रूप में तैरता रहता है जिस कारण मछलियों को साँस लेने में दिक्कत होती है। इसके साथ ही दूसरे तरह की समस्याएँ भी होती हैं और मछलियाँ मर भी जाती हैं।

दूसरे ईंधन तेल पानी के साथ मछलियों के पेट में जाता है जिससे मछलियों का आकार बढ़ नहीं पाता है और वे खाने लायक भी नहीं रहती हैं। इस तरह मत्स्य कारोबार पर निर्भर मछुआरों की रोजीरोटी पर भी काफी दिनों तक आफत रहती है।

अगस्त 2011 में जो जहाज पलटी थी उसमें 60054 मीट्रिक टन कोयला था जो समुद्र की सतह में अब भी मौजूद है। विशेषज्ञों ने इस पर चिन्ता जताई है और कहा है कि इससे आने वाले दिनों में समुद्र में और प्रदूषण फैलेगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि कोयला में मर्करी, आर्सेनिक, एंटीमनी जैसे जहरीले तत्व पाये जाते हैं चुनांचे सम्भव है कि लम्बे समय तक पानी में रहने के कारण कोयले से ये जहरीले तत्व बाहर निकलकर समुद्र के पानी को जहरीला बना दे।

सोचने वाली बात यह है कि मुम्बई तट के निकट इतनी बार घटनाएँ हो चुकी हैं लेकिन इस दिशा में अब तक कठोर कदम नहीं उठाए गए हैं। अगस्त 2011 के मामले में ही राष्ट्रीय हरित पंचाट ने दोषी कम्पनियों पर जुर्माना ठोक दिया और काम खत्म।

राष्ट्रीय हरित पंचाट के आदेश के अध्ययन से पता चलता है कि उक्त जहाज में तकनीकी खामियाँ थीं, यह कम्पनियों को पता था लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। 223 पृष्ठों के हरित पंचाट के आदेश की कॉपी के पेज नं. 214 में पंचाट कहता है, 4 अगस्त 2014 के घटना से डेल्टा शिपिंग को पता था कि जहाज की स्थिति कैसी है लेकिन उन्होंने जहाज के चालक को कोई मदद नहीं दी।

मुम्बई तेल रिसाव से मैंग्रोव वन पर भी खतराजहाज की रवानगी से पहले उसकी जाँच के लिये उनके पास काफी वक्त था लेकिन जहाज की जाँच नहीं की गई। कोलम्बो और सिंगापुर में जहाज में तकनीकी खामियाँ आ गई थीं और जहाज के चालक ने कम्पनी को इसकी सूचना दी थी लेकिन मौजूद रिकॉर्ड बताते हैं कि कम्पनी की तरफ से कोई मदद मुहैया नहीं करवाई गई। रिकॉर्ड यह भी बताता है कि जहाज को रोकने के लिये कई बार अपील की गई।

जहाज में मौजूद एक जेनरेटर और एक पम्प ने काम करना बन्द कर दिया था इसके बावजूद जहाज के मालिक और अन्य लगातार जहाज के चालक को सफर जारी रखने का आदेश देते रहे। इससे साफ होता है कि असावधानी, लापरवाही और गलत डिजाइन के चलते यह घटना हुई और इसके लिये किसी भी तरह के सबूत की जरूरत नहीं है।

पूरे मामले पर गहराई से विमर्श करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण, नुकसान और इसके स्तर में गिरावट के लिये डेल्टा शिपिंग, डेल्टा नेविगेशन और डेल्टा ग्रुप इंटरनेशनल जिम्मेवार है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तरह का आदेश इन गभीर समस्याओं का हल नहीं है। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि इस तरह की कम्पनियाँ ऐसी लापरवाही करने से पहले दस बार सोचें।

साउथ एशिया नेटवर्क अॉन डैम्स, रीवर्स एंड पीपल (सैनड्रप) के को-अॉर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर कहते हैं, ‘राष्ट्रीय हरित पंचाट केवल यह देखता है कि नियम का उल्लंघन हुआ है कि नहीं। अगर हुआ है तो वह जुर्माना लगाता है। इससे ज्यादा पंचाट का अधिकार नहीं है इसलिये हम कोर्ट को कोई दोष नहीं दे रहे हैं।’

ठक्कर कहते हैं, ‘जुर्माना लगाना इसका समाधान भी नहीं है। इसके लिये सरकार को संस्थानिक तंत्र तैयार करना होगा लेकिन इस दिशा में सरकार की ओर से किसी तरह की सक्रियता नहीं दिख रही है।’

हिमांशु ठक्करहिमांशु ठक्करहिमांशु ठक्कर के अनुसार, ‘जहाज डूबने से समुद्री पर्यावरण के नुकसान के अलावा समुद्री जीव-जन्तुओं को भी क्षति पहुँची है। समुद्री मछलियों पर आश्रित मछुआरों को भी इससे नुकसान हुआ है। इस दुर्घटना से बड़े पैमान पर नुकसान हुआ है लेकिन उस पैमाने पर शोध नहीं किया गया है।’

वे आगे कहते हैं, ‘हमारे देश में 42 वर्षों से वाटर पल्यूशन (प्रीवेंशन) एक्ट है लेकिन व्यापक पैमाने पर पानी को प्रदूषित किया जा रहा है। कोर्ट की ओर से इन पर कड़ा फैसला नहीं आता है।’

लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरमेंट (लाइफ) पर्यावरण से जुड़े मामलों में कानूनी मदद मुहैया करवाता है। इससे जुड़े राहुल चौधरी कहते हैं, ‘यह सच है कि दुर्घटना से पर्यावरण को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती है। अलबत्ता जुर्माने की राशि समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा पर खर्च की जाएगी।’

सनद रहे कि मुम्बई के रहने वाले समीर मेहता ने ही इस घटना को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल में मामला दायर किया था। समीर मेहता इंटरनेशनल रीवर्स नाम के एक संगठन से भी जुड़े हुए हैं।

वे कहते हैं, ‘मैंने व्यक्तिगत तौर पर इस मामले को उठाया था। इससे पूर्व जब ओनएनजीसी का पाइपलाइन लीक हुआ था, तब भी मैंने बहुत कोशिश की थी कि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई हो। उस वक्त एनजीटी नहीं था इसलिये मामला ठंडे बस्ते में चला गया।’

समीर मेहतासमीर मेहतासमीर मेहता भी मानते हैं कि केवल जुर्माने से बहुत फायदा नहीं होने वाला है। वे हिमांशु ठक्कर के सुर में सुर मिलाते हुए कहते हैं, ‘इस तरह की लापरवाही भरी घटनाअों पर अंकुश लगाने के लिये संस्थानिक तंत्र की जरूरत है।’

मेहता ने पर्यावरणीय नुकसान को पैसे से तौलने की सख्त खिलाफत की और कहा कि पर्यावकरण को जो नुकसान होता है उसकी भरपाई पैसे से नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘जब ऐसा किया जाता है तो लोग पर्यावरणीय क्षति को गम्भीरता से नहीं लेते हैं। उन्हें लगता है कि जुर्माना देकर वे फारिग हो जाएँगे। यह ठीक नहीं है। पर्यावरणीय नुकसान के लिये कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। मैं तो कहूँगा कि समुद्र की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाने वाली कम्पनियों को बन्द करवा दिया जाना चाहिए।’
 

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