सालभर में 4.18 मीटर की कमी दर्ज

आगरा। जिले में अनियमित और अत्यधिक भूगर्भ जल निकासी के कारण स्थिति खतरनाक होती जा रही है। हरे क्षेत्रों के अथक कांक्रीटाइजेशन करने के लिए हालात और विकराल होते जा रहे हैं। जल निगम के आंकड़ों पर नजर डालें तो बीते वर्ष मानसून की तुलना में वर्ष-2014 में भूगर्भ जलस्तर में करीब 4.18 मीटर की कमी दर्ज की गई है। इतना ही नहीं जिले के 15 से 10 ब्लॉक अत्यधिक जल दोहन की श्रेणी में शामिल किए गए हैं। जिले में भूगर्भ जल स्तर तेजी से गिर रहा है। जल निगम और भूगर्भ विशेषज्ञों की मानें तो औसतन जिलों के 15 ब्लॉकों में 60 से लेकर 130 से.मी. तक भूगर्भ जलस्तर में कमी रिकार्ड की गई है।

जल दोहन के मामले में फतेहाबाद, एत्मादपुर, अछनेरा, फतेहपुर सीकरी और अकोला में सबसे आगे हैं। भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष-2013 के मानसून के बाद भूगर्भ जल स्तर 10.48 मीटर था, जबकि 2014 में मानसून की स्थिति अच्छी होने के बाद भी भूगर्भ जलस्तर 6.30 मीटर रह गया। जल वैज्ञानिकों का मत है कि ग्रामीण अंचल में बड़े स्तर पर ट्यूबवैल के लिए अवैध रूप से बोरिंग, घरों में पानी की पम्पों का प्रयोग, अंधाधुंध तरीके से वनों की कटाई, वर्षा जल संचयन के उपाय पार्को और शहरी क्षेत्र से गायब होती हरियाली मुख्य कारण है।

जल आपूर्ति और आवश्यकता पर नजर डाली जाए तो महानगर में 18 लाख की आबादी के लिए 310 मिलियन पानी चाहिए। इसके सापेक्ष में वाटर वर्क्‍स और सिकंदरा जल संस्थान से मात्र 210 एमएलडी पानी की आपूर्ति हो रही है। जल संस्थान के आंकड़ों के अनुसार ही शहर के एक तिहाई लोगों को पानी की सप्लाई नहीं दी जा रही है। इसके अतिरिक्त छावनी बोर्ड 30 नलकूपों के माध्यम से पानी सप्लाई करता है। महानगर में जल संस्थान भी 60 नलकूपों को संचालित करता है। जल निगम के सूत्रों का कहना है कि शहर में करीब 80 एमएलडी पानी का अवैध दोहन किया जा रहा है।

आधा शहर रहता है प्यासा
जलकल विभाग की महाप्रबंधक मन्जू रानी का कहना है कि यमुना में पानी की कमी के कारण पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा है। वैल बनाकर जितना पानी जुटाया जा रहा है, वह अत्यधिक प्रदूषित है। ऐसे में जल दोहन में भारी दिक्कत आ रही है। इसी का परिणाम है कि महानगर में केवल दो घण्टे की पानी की सप्लाई दी जा रही है। यदाकदा यमुना में पानी की स्तर और प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाने पर मशीनों को बन्द करना पड़ता है।

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