सापेक्षता का सिद्धांत

प्रकृति में सापेक्षता की दुनिया का अस्तित्व ही नहीं है। सापेक्षता के विचार द्वारा मानव के बुद्धिगत अनुभवों को एक ढांचा प्रदान कर दिया गया है। मानव जैसे प्राणी अ-विभाजित वास्तविकता के संसार में जीते हैं। बुद्धि के सापेक्ष संसार में, व्यक्ति जब तक रहता है वह उस काल व समय को नहीं महसूस कर सकता, जो समय तथा स्थान से भी परे की चीज है।

शरद ऋतु की खिली धूप में, बाहर का आसमान तथा आसपास के खेतों पर एक खोजी नजर डालते हुए मैं चकित रह गया। एक मेरे खेत को छोड़, हर खेत में कटाई की मशीनें या कम्बाइनें चल रही थीं। पिछले तीस बरस में इस गांव में इतना बदलाव आ गया है कि, उसे पहचाना ही नहीं जा सकता। जैसा कि उम्मीद की जा सकती है, पहाड़ी पर रहने वाले युवाओं को इस मेकेनाइजेशन से कोई शिकायत नजर नहीं आती। पुराने जमाने की हंसिया से शांति से फसल काटना उन्हें ज्यादा रुचिकर लगता है।

जब रात के समय हम रात का खाना खाने के बाद चाय पी रहे थे, तो मुझे याद आया कि बहुत पहले इस गांव में जब किसान लोग अपने खेतों को हाथों से जोतते थे। एक आदमी ने इसके लिए बैलों का उपयोग शुरू कर दिया। उसे इस बात पर बड़ा फर्क महसूस हुआ कि वह जोतने के परिश्रम का काम बहुत आसानी और तेजी से निपटा रहा था। बीस साल पहले जब पहली बार जुताई की मशीन का आगमन हुआ, तो किसानों ने मिलकर बड़ी गंभीरता से इस बात पर बहस की कि, बैल और मशीन में बेहतर क्या है। दो-तीन बरसों में ही उन्होंनें देख लिया कि मशीन से जुताई तेजी से होती है और समय की बचत और सुविधा के अलावा और कोई अन्य चीज पर विचार किए उन्होंने अपने खींचने वाले मवेशियों को छोड़ दिया। उनके लिए मतलब की बात सिर्फ इतनी ही थी कि, वे अपने पड़ोसी किसान से कितना पहले अपना काम निपटा लेते हैं।

हमारे किसान यह नहीं समझ पा रहे हैं कि, आधुनिक कृषि की गति और कुशलता की गणित में वे एक घटक बनकर रह गए हैं। उन्होंने सारा हिसाब-किताब लगाने का काम खेती-उपकरण विक्रेता पर छोड़ दिया है।

पहले लोग रात में तारों से भरे आकाश को देखे और इस विश्व की विराटता को देख दांतो तले उंगली दबा लेते थे। अब समय और स्थान संबंधी प्रश्नों पर विचार करने की जिम्मेदारी वैज्ञानिकों को सौंप दी गई है।

लोग कहते हैं कि - आइंस्टाइन को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार उनके सापेक्षता सिद्धांत की जटिलता के कारण दिया गया था। यदि उनके सिद्धांत ने सीधे स्पष्ट शब्दों में दुनिया की सापेक्षता की स्थिति को समझाकर मानवता को काल और स्थान के बंधनों से मुक्त कर, दुनिया को पहले से ज्यादा सुखद और शांतिप्रिय बना दिया होता तो, उसकी सराहना की जा सकती थी लेकिन उनकी व्याख्या इतनी हक्का-बक्का कर देने वाली थी और चूंकि उसके कारण लोग सोचने लगे कि, यह दुनिया इतनी जटिल है कि उसे समझा नहीं जा सकता। बेहतर तो यह होता हक उनके पुरस्कार के साथ दिए गए प्रशस्ती पत्र में यह लिखा जाता कि यह सम्मान उन्हें ‘मानव मन की शांति भंग करने’ के लिए दिया जा रहा है।

प्रकृति में सापेक्षता की दुनिया का अस्तित्व ही नहीं है। सापेक्षता के विचार द्वारा मानव के बुद्धिगत अनुभवों को एक ढांचा प्रदान कर दिया गया है। मानव जैसे प्राणी अ-विभाजित वास्तविकता के संसार में जीते हैं। बुद्धि के सापेक्ष संसार में, व्यक्ति जब तक रहता है वह उस काल व समय को नहीं महसूस कर सकता, जो समय तथा स्थान से भी परे की चीज है।

‘आप लोग शायद सोच रहे होंगे कि, आखिर मैं हमेशा वैज्ञानिकों के पीछे क्यों पड़ा रहता हूं।’ मैंने चाय की एक घूंट भरने के लिए रुकते हुए कहा। युवकों ने मुस्कुराते हुए ऊपर नजरें उठायीं, उनके चेहरे अलाव की आग की रोशनी में दमक रहे थे।’ यह इसलिए कि समाज में वैज्ञानिकों की भूमिका वही है जो कि आपके खुद के दिमागों में भेदभाव (वर्णभेद – जातिभेद) बरतने वालों की है।

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