सौर ऊर्जा और भारत

Solar street light
Solar street light

ऑर्गेनिक सेल वाली बैटरी के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं किन्तु इनॉर्गेनिक सेल वाली लिथियम- आयन बैटरी के अपशिष्ट को बहुत ही सावधानी से नष्ट करना पड़ता है। यह विशेष व्यवस्थाओं द्वारा ही सम्भव है। अभी वनैडियम रीडोक्स फ्लो बैटरियाँ भी प्रचलन में आने लगी हैं। इनको बनाने के लिये वनैडियम, फ्लाई ऐश से लिया जा सकता है। फ्लाई ऐश थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाली कोयले की राख है। इससे बैटरी की कीमत भी तुलनात्मक रूप से कम हो जाती है। वर्ष भर में भारत में औसत 300 दिन सूर्य चमकता है। इस कारण यहाँ सौर ऊर्जा दोहन की प्रबल सम्भावनाएँ हैं। इससे रोजगार पैदा होने के साथ-साथ पेट्रोलियम आयात के भारी बोझ को कम करने में भी मदद मिलेगी। भारत को अपनी जरूरत के 70 प्रतिशत पेट्रोलियम पदार्थ का आयात करना पड़ता है। कार्बन उत्सर्जन में कमी ला कर इससे जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी जिम्मेदारी के निर्वहन में भी मदद मिलेगी।

भारत ने 2022 तक 100 गीगा वाट सौर ऊर्जा से बिजली बनाने का लक्ष्य रखा है। भारत के लिये स्वच्छ नवीकरणीय ऊर्जा का महत्त्व इसलिये और भी बढ़ जाता है क्योंकि देश में 30 करोड़ आबादी अभी भी बिजली सुविधा से वंचित है। 2 गीगा वाट सौर ऊर्जा उत्पादन से प्रतिवर्ष कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में 20 मिलियन टन की कमी आएगी। 3.6 मिलियन टन प्राकृतिक गैस की बचत होगी। यह भावी भारत के निर्माण की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।

विश्व बैंक समूह, भारत और फ्रांस के नेतृत्व में अन्तरराष्ट्रीय मैत्री गठबन्धन को आगे बढ़ाने को उत्सुक है। विश्व बैंक समूह इस वर्ष भारत को एक बिलियन डॉलर का ऋण देने के लिये तैयार है। घरों की छत पर सौर पैनल लगाकर उन्हें ग्रिड से जोड़ने के लिये 625 मिलियन डॉलर का ऋण स्वीकृत किया जा चुका है। मध्य प्रदेश के रेवा में 750 मेगावाट की विशाल सौर ऊर्जा परियोजना को, अन्तरराष्ट्रीय वित्त कारपोरेशन द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा है। हिमालयी राज्यों में भी दूर-दराज के क्षेत्रों में लघु सौर ऊर्जा परियोजनाओं की प्रबल सम्भावनाएँ हैं, जिनका दोहन होना चाहिए।

सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये राजस्थान के निर्जन क्षेत्र भी उपयुक्त स्थल हो सकते हैं। घरों की छत पर तो देश भर में सौर ऊर्जा उत्पादन किया जा सकता है। सौर ऊर्जा उत्पादन में मुख्य समस्या सौर ऊर्जा को संग्रह करना है। उपयुक्त बैटरी का चयन करके इस समस्या का समाधान सम्भव है। बैटरी क्षेत्र में कई तकनीकें उपलब्ध हैं।

लेड-एसिड बैटरियों का लम्बे समय से भरोसेमन्द उपयोग हो रहा है। इस तकनीक में बैटरी की प्लेटों को एसिड और इलेक्ट्रोलाइट में डूबाकर रखना होता है। जिसके लिये इलेक्ट्रोलाइट डालते रहना पड़ता है। लापरवाही होने पर बैटरी खराब हो जाती है और नई लगानी पड़ती है, जो महंगा काम है। इन बैटरियों में लेड और तेजाब होने के कारण इनके अपशिष्ट को ठिकाने लगाना खतरे से भरा है, पर्यावरण को इससे नुकसान होने की सम्भावना बनी रहती है। खतरे के स्तर तक हाइड्रोजन बैटरी में जमा होने का खतरा भी बना रहता है, जिससे हाइड्रोजन के आग पकड़ने का खतरा होता है।

अब एजीएम और जेल-बैटरियाँ भी प्रचलित हो रही हैं। इनमें इलेक्ट्रोलाइट और डिस्टिल्ड वाटर डालने की कोई जरूरत नहीं होती है। ये अपने आप हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से पानी बना लेती हैं। इनमें रख-रखाव का कोई झंझट नहीं है। एक बार लगा दो तो अपनी पूरी आयु बैटरी चलेगी। इनके अपशिष्ट निपटारे की भी ज्यादा समस्या नहीं है।

लिथियम आयन बैटरी सबसे अधिक क्षमता वाली है, यह ठोस है और रख-रखाव का कोई खर्च नहीं है। बैटरी को न्यूनतम 30% और अधिकतम 80% चार्जिंग पर उपयोग करने से पूरी आयु देती है। पूरी तरह बैटरी के डिस्चार्ज हो जाने या ज्यादा चार्जिंग की सूरत में बैटरी की आयु कम हो जाती है। इसमें ऑर्गेनिक और इनॉर्गेनिक दोनों तरह के सेल प्रयोग हो सकते हैं।

ऑर्गेनिक सेल वाली बैटरी के कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं किन्तु इनॉर्गेनिक सेल वाली लिथियम- आयन बैटरी के अपशिष्ट को बहुत ही सावधानी से नष्ट करना पड़ता है। यह विशेष व्यवस्थाओं द्वारा ही सम्भव है। अभी वनैडियम रीडोक्स फ्लो बैटरियाँ भी प्रचलन में आने लगी हैं। इनको बनाने के लिये वनैडियम, फ्लाई ऐश से लिया जा सकता है। फ्लाई ऐश थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाली कोयले की राख है। इससे बैटरी की कीमत भी तुलनात्मक रूप से कम हो जाती है।

वनैडियम जहरीला भी नहीं है इसलिये इनके अपशिष्ट को ठिकाने लगाने का काम आसान और निरापद है। निकल- फैरस बैटरियाँ भी अच्छा विकल्प हैं। इनमें निकल और लोहे की प्लेटों का प्रयोग होता है। बैटरी में इलेक्ट्रोलाइट और डिस्टिल्ड वाटर डाला जाता है। इनमें कम या ज्यादा चार्जिंग होने पर भी बैटरी को कोई नुकसान होने की सम्भावना भी नहीं रहती है। पूरी तरह डिस्चार्ज हो जाने पर भी लम्बे समय तक इनके खराब होने का डर नहीं होता है। इनके अपशिष्ट का निपटारा भी आसान और निरापद है।

हिमाचल और उत्तराखण्ड में स्ट्रीट लाइट के तौर पर भी सौर ऊर्जा का सफल प्रयोग हुआ है। उससे कुछ सीख भी प्राप्त हुई है जिसका प्रयोग सौर ऊर्जा को छोटे स्तर पर सफल, स्वीकार्य बनाने व फैलाने में किया जा सकता है। पहली बात यह है कि सामुदायिक स्तर पर बिना रख-रखाव व्यवस्था खड़ा किये सौर ऊर्जा लाइट लगाने से उसका सफल संचालन सम्भव नहीं है।

दूसरी बात ध्यान देने योग्य यह कि उपयुक्त बैटरी का ही चयन हो। सार्वजनिक लाइट लगाने में जैल बैटरी का प्रयोग ठीक रहेगा क्योंकि इसके रख-रखाव का कोई झंझट नहीं, एक बार लगा दी तो अपनी आयु अनुसार चलेगी ही। पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाली बैटरियों से बचना होगा। सौर ऊर्जा के विकास और प्रसार के साथ-साथ मरम्मत सुविधा का भी विकास करना होगा। इससमय कितनी ही सौर लाइटें रख-रखाव और मरम्मत सुविधा न होने के कारण ही अपनी आयु पूरा किये बिना खराब पड़ी हैं। कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से ऐसा करना सम्भव है। इससे बड़ी मात्रा में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।

हमें यह याद रखना होगा कि सौर ऊर्जा स्वच्छ- अक्षय ऊर्जा है, इसका ज्यादा-से-ज्यादा दोहन देश के ऊर्जा क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने का काम करेगा। जिसका लाभ देश की तरक्की को अनेक क्षेत्रों में उपलब्ध होगा।

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