सब्जियां उगाईए, जंगली पौधों की तरह

खरपतवार को नियंत्रित करने में सफेद बनमेथी को मैंने काफी उपयोगी पाया है। वह बहुत घनी फैलती है तथा वह ताकतवर खरपतवारों को भी पछाड़ देती है। यदि मेथी की सब्जियों के बीज मिलाकर बोया जाए तो वह उनके लिए खाद-मिट्टी का काम करती है। वह मिट्टी को उर्वर बनाती है तथा जमीन को नर्म रखते हुए उसमें हवा का आना-जाना जारी रखती है।

अब हम सब्जियां उगाने के बारे में बात करें। अपने रसोई-घर की पूर्ति के लिए सब्जियां उगाने के लिए आप या तो अपने पिछवाड़े के आंगन का उपयोग कर सकते हैं या उन्हें खुली, खाली जमीन पर भी उगा सकते हैं। पिछवाड़े के आंगन के बाग के बारे में तो सिर्फ इतना ही कहना काफी है कि आपको सही सब्जियां सही समय पर जैव तथा कूड़ा-खाद से तैयार की हुई मिट्टी पर उगानी चाहिए। पुराने जमाने के जापान में रसोई के लिए सब्जियां उगाने का काम प्राकृतिक जीवनशैली के साथ घुला-मिला हुआ था। बच्चे पीछे के आंगन में पेड़ों के नीचे खेलते थे। रसोई का बचा-खुचा खाते हुए सुअर भी वहां लोट लगाते थे। कुत्ते वहीं भौंकते-खेलते थे। सब्जियों के साथ ही केंचुएं और तरह-तरह के कीड़े भी पनपते थे। मुर्गियां इन केंचुओं को चुगती थीं, और बच्चों के लिए अंडे देती थीं। अभी बीस साल के कुछ पहले तक जापान के असली देहाती परिवार सब्जियां इसी ढंग से उगाते थे। पौधों को बीमारियां लगने से बचाने के लिए सही वक्त पर सही किस्म की सब्जियां उगाई जाती थीं। सारे बचे-खुचे जैव-पदार्थों को वापस जमीन को लौटा कर तथा फसलों को बदल-बदलकर उगा, उसकी उर्वरता को बनाए रखा जाता है।

हानिकारक कीड़ों को या तो हाथ से हटा दिया जाता था, या फिर उन्हें मुर्गियों चुग जाती थीं। दक्षिण के शिकोकू इलाके में एक खास तरह की मुर्गियां होती थीं, जो कीड़ो-मकौड़ों को, बगैर पौधों को खरोंचे या जड़ों को नुकसान पहुँचाए खा जाती थीं। कुछ लोगों को पशुओं तथा इंसानों के मल से बनी खाद का इस तरह उपयोग करना गंदा या पुराने ढंग का लग सकता है। आजकल लोगों को ‘स्वच्छ’ सब्जियां पसंद हैं, इसलिए वे उन्हें बगैर मिट्टी का उपयोग किए ‘ग्रीन-हाऊस’ में उगाना पसंद करते हैं। इधर कुछ दिनों से रेत-कृषि, कंकड़, तथा कृषि ज्यादा लोकप्रिय हो रही है। सब्जियां रासायनिक खुराकों तथा प्लास्टिक की जाली से छनकर आती धूप की मदद से उगाई जाती है। बड़ी अजीब बात है, कि रासायनिक ढंग से उगाई गई इन सब्जियों को ‘स्वच्छ’ तथा खाने में सुरक्षित मानते हैं। सब्जियां तो वही स्वच्छ तथा पौष्टिक होती हैं, जिन्हें केंचुओं-किड़ो, सूक्ष्म जीवाणुओं तथा सड़ती हुई प्राणी-खाद की क्रियाओं के द्वारा संतुलित मिट्टी में उगाया जाता है।

खाली जमीन नदी-तटों या खुले बंजर इलाकों का उपयोग करते हुए सब्जियों को अर्द्ध जंगली ढंग से उगाने के मेरे तरीके में सब्जियों के बीच बस यों ही उछाल दिए जाते हैं, और उन्हें अन्य खरपतवार के साथ ही उगने दिया जाता है। अपनी सब्जियां मैं पहाड़ियों पर नारंगी के वृक्षों के बीच की जगह में उगाता हूँ। सबसे जरूरी बात यह है, कि आपको बीज बोने का सही समय मालूम हो। वसंत में पकने वाली सब्जियों को बोने का सही समय वह है जब कि जाड़े में उगी खरपतवार फिर सूखने लगी हो तथा गर्मियों की खरपतवार के कल्ले फूटना अभी शूरू न हुए हों। पतझड़ की बोवनी के लिए बीज तभी बिखेरे जाने चाहिए जब गर्मियों की घास-पात मुरझाने लगी हो तथा जाड़े की पतवार में कल्ले ने फूटे हों।

सबसे अच्छा तो यह होगा, कि हम उस बारिश का इंतजार करें जो कई दिनों तक लगातार जारी रहे। खरपतवार के बीच एक कतार काटकर उसमें सब्जियों के बीज बो दें। उन्हें मिट्टी से ढंकने की कोई जरूरत नहीं है, सिर्फ जो खरपतवार आपने काटी है उसी से उन्हें ढंक दें। वही उन्हें अंकुरित होने तक पक्षियों और मुर्गियों से भी बचाएगी। तथा खाद-मिट्टी का काम भी करेगी। आमतौर से पतवार (वीड्स) को दो या तीन बार काटना पड़ता है, लेकिन कई बार एक बार में ही सब्जियों के बीज उनसे ज्यादा तेजीसे बढ़ जाते हैं। जहां पतवार (वीड्स) या मेथी का आवरण ज्यादा सघन नहीं है वहां आप बीजों को बस यों ही बिखेर दे सकते हैं। कुछ बीजों को मुर्गियां खा जा सकती हैं, लेकिन बहुत से अंकुरित हो जाएंगे। यदि आप उन्हें कतारबद्ध या हल-रेखा में बोते हैं तो इस बात की संभावना है कि बहुत से बीजों को कीड़े या गुबरैल खा जाएं। क्योंकि ये हमेशा सीधी रेखा में चलते हैं। साफ की हुई जमीन के टुकड़े पर मुर्गियों की नजर भी पड़ सकती है। और वे वहां उसे खरोचने के लिए आ-जा सकती है। मेरा तजुर्बा तो यही कहता है कि बीजों को इधर-उधर ही बिखेर देना चाहिए।

इस तरह से उगाई गई सब्जियां उससे ज्यादा पुष्ट होती हैं, जितनी कि उनके बारे में अधिकांश लोगों की धरणा होती है। यदि वे खरपतवार से पहले अंकुरित हो जाती हैं तो बाद में उनके बढ़ने के दौरान पिछड़ जाने का खतरा नहीं होगा। पालक और गाजर जैसी कुछ सब्जियां आसानी से अंकुरित नहीं होतीं। इस समस्या को, बीजों को एक दिन पानी में भिगोकर रखने तथा बाद में मिट्टी की गोलियों में लपेटकर फिर बोने से हल किया जा सकता है। जरा ज्यादा सघनता से बोने पर जापानी गाजर, चुकंदर तथा बहुतसी हरी-पत्तीदार जाड़ों की सब्जियां इतनी सशक्त होंगी कि वे जाड़े या शुरू वसंत की खरपतवारों से सफलतापूर्वक होड़ ले सकें। कुछ पौधे बिना काटे छोड़ दिए जाते हैं और वे सालों-साल अपने आप पुनर्जिवित होते जाते हैं। उनकी खुशबू अलग-अलग ही होगी तथा वे खाने में निराली लिज्जत देते हैं।

पहाड़ी पर यहां-वहां कई अज्ञात सब्जियों को भी फलते-फूलते देखना, बड़ा अद्भुत दृश्य उपस्थित करता है। जापानी गाजर तथा चुकंदर आधे जमीन में भीतर तथा आधे उसके ऊपर उगते हैं। गाजर और मूलियां कुछ ठिगनी और मोटी उगती हैं तथा उनमें रेशों के रूप में जड़े निकली रहती हैं। स्वाद उनका कुछ तीखा और कड़वाहट लिए होता है। जो कि शायद उनके जंगली पूर्वजों की देन है। लहसुन, जापानी मोतिया-प्याज, तथा चीनी-प्याज तो बिना बोए दर साल अपने आप उगते रहते हैं। फलियों और द्वि-दलों की खेती वसंत में सबसे अच्छी होती है। मोठ और सेम आसानी से उगती है। तथा अच्छी पैदावार देती हैं। मोठ, सेम, सोया, लाल अजुकी फलियों आदि के लिए उनका जल्दी अंकुरित होना जरूरी होता है। यदि बारिश जल्दी न हुई तो उन्हें अंकुरित होने में दिक्कत आएगी और उन्हें पक्षियों और कीड़ों से भी बचाना पड़ेगा। टमाटर तथा बैंगन जब छोटे रहते हैं तो उन्हें खरपतवार से होड़ लेने में कठिनाई होती है। इसलिए उन्हें पहले अलग क्यारी में बोकर फिर बाद में दुबारा रोपना चाहिए। टमाटरों को एक जगह एकत्र करने की बजाए पूरे खेत में फैलने देना चाहिए। मुख्य तने से निकलकर उनकी जड़े गठानों से नीचे जमीन में जाती हैं और उनमें से नए अंकुर फूट कर बाहर आते हैं तथा वे फल देते हैं।

जहां तक ककड़ी का सवाल है, जमीन पर रेंगने वाली किस्म सबसे अच्छी होती है। शुरू में पौधे को जरा संभालना पड़ता है तथा कभी-कभी खरपतवार छांटनी पड़ती है लेकिन बाद में पौधा मजबूत हो जाता है। किसी पेड़ की शाखें या बांस खोंस देने पर ककड़ी की बेल उससे लिपट जाती है। इससे शाखाएं फलों को जमीन से ऊपर उठाए रखती हैं और वे सड़ती नहीं हैं। ककड़ी उगाने का यही तरीका तरबूजों और कुमढ़ों के लिए भी अपनाया जा सकता है। आलू और अरबी के पौधे मजबूत होते हैं। एक बार उग जाने पर वे उसी जगह हर साल उगते रहते हैं और उन पर खरपतवार हावी नहीं होती। फसल काटते समय कुछ को जमीन में ही रहने देना चाहिए। यदि जमीन सख्त हो तो पहले जापानी मूलियां उगानी चाहिए। ज्यों-ज्यों उनकी जड़ें फैलती जाती हैं त्यों-त्यों जमीन नर्म होती जाती है और कुछ मौसमों के बाद वहां आलू बोए जा सकते हैं।

खरपतवार को नियंत्रित करने में सफेद बनमेथी को मैंने काफी उपयोगी पाया है। वह बहुत घनी फैलती है तथा वह ताकतवर खरपतवारों को भी पछाड़ देती है। यदि मेथी की सब्जियों के बीज मिलाकर बोया जाए तो वह उनके लिए खाद-मिट्टी का काम करती है। वह मिट्टी को उर्वर बनाती है तथा जमीन को नर्म रखते हुए उसमें हवा का आना-जाना जारी रखती है। सब्जियों की तरह ही मेथी बोने के लिए भी वक्त सही चुना जाना चाहिए। सबसे अच्छा समय गर्मियों का अंत तथा पतझड़ का मौसम होगा। सर्दियों के दौरान जड़ें विकसित हो जाती हैं। जिससे मेथी वसंत में उगने वाली वार्षिक घासों से अधिक तेजी से बढ़ती है। वसंत के प्रारम्भ में ही बो देने से मेथी अच्छी पनपती है। उसे आप यों ही बिखेर भी सकते हैं, और बारह इंच का फासला रखते हुए कतार में भी बो सकते हैं। एक बार जम जाने के बाद मेथी को पांच-छह वर्ष तक फिर से बोने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

सब्जियों को इस अर्ध-जंगली ढंग से उगाने का उद्देश्य यही है कि फसलों को जमीन पर यथासंभव प्राकृतिक ढंग से बढ़ने दिया जाए तो वे वैसी बढ़ती ही रह जाती हैं। इस जमीन पर यदि आप सुधरी हुई तकनीकों का उपयोग करते हैं, और अधिक पैदावार लेने का प्रयास करते हैं, तो आपकी यह कोशिश असफल रहेगी। अधिकांश मामलों में असफलता का कारण बीमारियां या कीड़े होंगे। यदि विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां या सब्जियां मिलाकर तथा प्राकृतिक वनस्पतियों के बीच उगाई जाती हैं, तो कीड़ों औरबीमारियों से होने वाली हानि कम-से-कम होगी, और न तो दवाईयों का छिड़काव करना होगा, न कीड़ों को हाथ से बीन-बीन कर हटाना होगा। आप सब्जियां जहां भी उगाएंगे, खरपतवार की वृद्धि जोरदार तथा विविध किस्म की होगी। यह बहुत जरूरी है कि आप घास तथा पतवार (वीड्स) के वार्षिक चक्र तथा उगने के ढंग से सुपरिचित हो जाएं। किसी खास इलाके की खरपतवार तथा घासों की विविधता तथा आकार देखकर आप बतला सकते हैं कि वहां की मिट्टी कैसी है और उसमें किस प्रकार की कमी है या नहीं। अपने बाग में मैं टमाटर, गाजर, सरसों, फलियां, चुकंदर तथा कई अन्य प्रकार की सब्जियों और जड़ियां इसी अर्ध-जंगली ढंग से उगाता हूं।

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