समुद्र का मरीन इको सिस्टम खतरे में

हिमालय के ग्लेशियर ही नहीं, बल्कि समुद्र की मरीन इकोलॉजी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। यह खतरा समुद्री मालवाहक जहाजों के घिट्टी पानी (ब्लास्ट वाटर) से आ रहे जीवाणुओं से हो रहा है जो एक महाद्वीप का पानी लेकर दूसरे में डाल रहे हैं। पानी के जहाजों के इस घिट्टी पानी के कारण जापान के समुद्र में फैले फुकुशिमा रिएक्टरों के रेडियो एक्टिव तत्व दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में पहुंचने का खतरा भी कायम है। हालांकि भारत ने इन खतरों से निपटने के लिए इको फ्रेंडली ब्लास्ट वाटर ट्रीटमेंट प्रौद्योगिकी विकसित कर ली है। देश के चार बड़े बंदरगाहों को इस वजह से निगरानी कार्य योजना के दायरे में रखा गया है।

घिट्टी पानी भारत ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समस्या बन गई है। इससे मुंबई में पहले भी अटलांटिक से एलगल ब्लूम नामक तथा विशाखापट्टनम और मुंबई में ब्लैक स्ट्राइप मशल दाखिल हो चुके थे। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एसी अनिल के अनुसार दूसरे महाद्वीपों के ये जीवाणु स्थानीय जीवाणु को खत्म कर उसकी जगह ले रहे हैं। इससे स्थानीय मरीन इको सिस्टम और समुद्री मछलियों समेत अन्य जीव जंतुओं की प्रजातियां भी खतरे में हैं।

ब्लास्ट वाटर वह पानी है जो समुद्र में संतुलन बनाने के लिए मालवाहक जहाजों में रखा जाता है। हजारों किलोमीटर दूर का यह पानी अपने साथ वहां के जीवाणु भी लाते हैं और जब जहाज का माल उतारा जाता है तो वह ब्लास्ट वाटर भी वहीं बंदरगाह पर फेंक दिया जाता है। भारतीय वैज्ञानिकों को आशंका है कि यदि जापान के फुकुशिमा क्षेत्र के समुद्र का ब्लास्ट वाटर लेकर चला जहाज भारत आकर उसे यहां के बंदरगाह में उड़ेल देता है तो उसमें रेडियो एक्टिव तत्व यहां भी पहुंच जाएंगे।

इन खतरों से निपटने के लिए राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ने ब्लास्ट वाटर ट्रीटमेंट प्रौद्योगिकी विकसित कर अमेरिका से पेटेंट भी करा ली है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री अश्वनी कुमार ने कहा कि जापान के परमाणु दुर्घटना के मद्देनजर यह प्रौद्योगिकी बहुत महत्वपूर्ण है, यह हमारे समुद्र को कई खतरों से बचाएगा। वर्ष 2011 के बाद अब बनने वाले जहाजों में ब्लास्ट वाटर ट्रीटमेंट प्रौद्योगिकी अनिवार्य कर दी गई है। इसके अलावा मुंबई के दोनों बंदरगाहों गोवा और विशाखापट्टनम में ब्लास्ट वाटर प्रबंधन कार्यक्रम लागू हो गया है। बाकी अन्य आठ प्रमुख बंदरगाहों को भी 2013 तक इसके दायरे में लाया जाएगा।

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