सोलर दिल्ली
दिल्ली में बिजली आपूर्ति शायद देश में सबसे अच्छी अवस्था में है। ऐसा इसलिए भी कि दिल्ली की राजधानी है और राजधानियों को बाकी देश के मुकाबले प्राथमिकता पर रखा ही जाता है। गर्मियों में प्रतिदिन पांच हजार मेगावाट तक की खपत करनेवाली दिल्ली को बिजली की किल्लत उतनी नहीं होती जितनी पूरे देश को होती है। फरवरी 2013 में देश में कुल ऊर्जा उत्पादन का औसत 2 लाख 14 हजार मेगावाट था। इसमें अगर अकेले 5 हजार मेगावाट दिल्ली के हिस्से आता है तो इसे दयनीय आपूर्ति नहीं कह सकते हैं। फिर भी, दिल्ली में बिजली मुद्दा है और इसीलिए अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में पानी के बजाय बिजली को अपना मुद्दा बनाया है।
पर क्या केजरीवाल की पार्टी इस मुद्दे को थोड़ा मोडिफाई कर सकती थी? मसलन, अगर केजरीवाल कनेक्शन जोड़ने-काटने के बजाय दिल्ली वासियों को वैकल्पिक ऊर्जा का रास्ता सुझाते तो कैसा रहता? आम आदमी पार्टी चाहे तो दिल्ली में वैकल्पिक ऊर्जा की भी एक मुहिम शुरू कर सकती है जिसके तहत मुफ्त की ऊर्जा आपूर्ति को मुद्दा बनाया जा सकता है। इस पार्टी का आरोप है कि शीला दीक्षित सरकार बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए लगातार बिजली का दाम बढ़ाती जा रही है और जानबूझकर कंपनियों को घाटे में बताया जाता है। हो सकता है ऐसा हो, लेकिन क्या इसका राजनीतिक जवाब यह नहीं हो सकता है कि दिल्ली के हर घर की छत को एक ऊर्जाघर के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए?
ऐसा किया जा सकता है और बखूबी किया जा सकता है। हो सकता है, राजनीतिक होने निकले केजरीवाल को ऊर्जा का वैकल्पिक समाधान वैकल्पिक ऊर्जा में न दिखाई दे रहा हो लेकिन दिल्ली के लिए सौर ऊर्जा से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता। दिल्ली के पास अपना पानी नहीं है। हवा है तो टरबाइन लगाने लायक जगह नहीं है। इसलिए तीसरा और सबसे बेहतर विकल्प है सौर ऊर्जा। दिल्ली विद्युत नियामक प्राधिकरण भी यही मानता है कि वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में दिल्ली में सिर्फ सौर ऊर्जा का ही विकल्प सबसे बेहतर विकल्प है। अगर देश दो साल में 20 मेगावाट से 1,000 मेगावाट वैकल्पिक ऊर्जा का उत्पादन करने लगता है तो दिल्ली इसमें पीछे क्यों रहे?