श्रृंखलाबद्ध तालाब पुनर्जीवन से सूखे का मुकाबला

सूखे से लड़ने में असफल पुरूष तो बाहर चला जाता है परंतु घर पर अकेली रह रही महिला को अनेक सामाजिक वंचनाओं एवं अपमानों का सामना करना पड़ता है। इसे संज्ञान में लेते हुए चरखारी में तालाबों को पुनर्जीवित किया गया।

संदर्भ


बुंदेलखंड की प्रचलित जल संरक्षण की परंपरागत विधियों में से मेड़, बंधी, पोखर, तालाब हैं। यहां तालाबों की क्षमता के अनुसार उन्हें सागर की संज्ञा भी दी गयी है। यहां के तालाबों की अपनी संस्कृति एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इसके साथ ही ये तालाब लाखों परिवारों के लिए आजीविका के स्रोत भी रहे हैं।

बुंदेलखंड बीते सात वर्षों से ऋतु असंतुलन व सूखा की चपेट में है। अनवरत अवर्षा, असमय वर्षा और स्थानीय पारंपरिक जल प्रबंधन की अपनी विधियों के साथ न्याय न होने से ये सभी जलस्रोत एक-एक कर मृतप्राय हो रहे हैं, जिनके बलबूते पर इस क्षेत्र के बाशिंदों ने बड़े से बड़े अकाल का सामना किया और अपनी जीवितता बनाये रखी है।

बुंदेलखंड क्षेत्र के जनपद महोबा के रियासत रहे कस्बा चरखारी में कमोबेश डेढ़ दर्जन छोटे-बड़े तालाब है, इसमें से 7 तालाब तो ऐसे हैं, जो आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। 400 वर्षों के अनुभवों को समेटे ये तालाब वर्ष 2007 के सूखे में अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में सूखने लगे। जब छोटे-बड़े सभी जलस्रोत दम तोड़ने लगे, पशु-पक्षी, जंगली जानवर आदि सभी प्यास से मरने लगे, तब लोगों की चिंता बढ़ी और इस समस्या से निपटने हेतु लोगों ने इनको पुनर्जीवित करने की दिशा में प्रयास किया और पानी पुनरुत्थान पहल के साथ एक अनूठी शुरुआत हुई।

पानी पुनरुत्थान पहल की प्रक्रिया


वर्ष 2007 में अखबारों में प्रकाशित एक खबर, जिसके मुताबिक पानी के बदले महिला को अपनी इज्जत का सौदा करना पड़ था, को पढ़कर कुछ उत्साही स्वयंसेवियों ने पानी एवं पानी के स्रोत बचाने की दिशा में कम बढ़ाया। इनका नेतृत्व किया बांदा के किसान एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री पुष्पेंद्र भाई ने। सर्वप्रथम इन्होंने तालाबों के बारे में विस्तृत ब्यौरा एकत्र कर नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष श्री अरविंद सिंह चौहान से मशविरा कर एक पत्र जन सामान्य के लिए जारी किया, जिसमें उक्त घटना का उल्लेख करते हुए तालाबों को पुनर्जीवन प्रदान करने का अनुरोध किया गया। इस पत्र ने सोई जनता को जगाने का कार्य किया और अप्रैल मई की भीषण चिलचिलाती धूप में हजारों-हजार लोगों ने जन सहभागिता से जय सागर तालाब के पुनर्जीवन हेतु श्रमदान अनुष्ठान में भाग लिया।

उल्लेखनीय है कि इस कार्य में सभी धर्मों, जातियों, समुदाय के बूढ़े, बच्चे, जवान, महिलाओं के साथ सरकारी, गैर सरकारी लोग शामिल हुए। यह वह समय था, जब सरकारी सहायता से मदन सागर की सिल्ट सफाई के लिए मज़दूरों का टोंटा था और जय सागर तालाब चूंकि लोगों की भावना से जुड़ गया था, इस लिए यहां श्रमदानियों का तांता लगा हुआ था। जिससे प्रेरित होकर सरकारी अधिकारियों, मंडलायुक्त, उ.प्र. के श्रम मंत्री श्री बादशाह सिंह के साथ ही देश भर के स्वैच्छिक संस्थाओं से जुड़े लोगों ने इस महा अनुष्ठान में भाग लिया।

यह श्रमदान 46 दिन तक चला, जिसमें लगभग 20 हजार श्रमदानियों का योगदान रहा। वर्तमान समय में यह तलाब मत्स्य पालन एवं सिंघाड़ा उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र है।

पानी पुनरुत्थान के प्रभाव


उत्तर प्रदेश सरकार ने नगर के तालाबों को संवारने के लिए आर्थिक मदद तो नहीं की, पर खेत-तालाब की आनन-फानन घोषणा कर अभियान चलाकर छोटे-छोटे तालाब बनवाये।

श्रमदान अनुष्ठान में शामिल छतरपुर (म.प्र.) के अध्यक्ष सरदार श्री प्यारा सिंह ने संकल्प लिया और छतरपुर के कई तालाबों को गहरा कराकर उनके भरने के रास्ते खोले। महोबा, जैतपुर, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट आदि जनपदों में भी श्रमदान की श्रृंखला बढ़ी।

तालाबों की सफाई के क्षेत्र में काम प्रारम्भ हुआ।
तालाबों को बचाने के लिए सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ।
तालाबों पर से कब्ज़ा हटाने के लिए पहल शुरू की गई।
सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि जन प्रतिनिधियों और सरकार को तालाबों की उपयोगिता समझ में आई।

तालाबों के पुनर्जीवन से लाभ


तालाबों के पुनर्जीवन से निम्न लाभ देखे गये-

वर्षा जल संरक्षण
तालाब इलाकाई ज़मीन में पेयजल की उपलब्धता
निकटवर्ती खेतों में नमी
पड़ोसी वातावरण में शीतलता
पशु-पक्षी, जीव-जंतु, जानवर और आमजन के लिए पानी की स्वतंत्र पहुंच
मत्स्य पालन
सिंघाड़े की खेती
सिंचाई
नौका विहार, पर्यटकों के लिए आकर्षण का जरिया आदि

तालाबों का प्रबंधन


चरखारी नगर के सात तालाबों का प्रबंधन नगरपालिका द्वारा किया जाता है। नगरपालिका के पास आय का कोई अन्य स्रोत न होने के कारण इन तालाबों को अपनी आय अर्जन स्रोत के रूप में चिन्हित किया गया है। नगर पालिका द्वारा तीन तालाबों जय सागर, मलखान सागर, रपट सरोवर को एक में समन्वित कर मछली पालन हेतु मछुआरों को लीज पर दे दिया जाता है। यह लीज पांच वर्ष के लिए होती है और अमूमन 11 लाख 23 हजार रुपये में लीज पर दिया जाता है। इसके लिए निविदा निकाली जाती है। चूंकि क्षेत्र भी बड़ा होता है और अदा की जाने वाली राशि भी बड़ी होती है। अतः मछुआरों का एक समूह मिलकर इसे लेता है। नगर पालिका को लीज की राशि किस्तों में अदा की जाती है, जिनके नाम पर ली जाती है, वे आपस में अलग-अलग फसलों जैसे सिंघाड़ा, कमलगट्टा, मुरार के लिए तय राशि देते हैं। पूरे काम में 100 से 120 परिवारों का साझा होता है, जो अलग-अलग मौसम में अपनी-अपनी फसलें बेचते हैं और अधिकाधिक आय अर्जित करते हैं।

तालाब के पानी बंटवारे का नियम


नगरपालिका अध्यक्ष श्री अरविंद सिंह चौहान ने बताया कि तालाब के पानी का प्रयोग सिर्फ मत्स्य पालन, कमलगट्टा, भसीड़ (मुरार) आदि के लिए ही प्रयोग किया जाता है।

तालाब का उपयोग आम राहगीरों/परिवारों के लिए


नगर एवं निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्र के परिवार अपने पशुओं को पानी पिलाने, नहलाने एवं अनाज धोने के साथ-साथ शादी-व्याह में बारातियों, रिश्तेदारों के भ्रमण आदि के लिए उपयोग करते हैं। राहगीर भी अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए इस तालाब के पानी का उपयोग करते हैं।

तालाब का व्यवसायिक उपयोग


तालाबों पर नगर क्षेत्र के लगभग 2 दर्जन से अधिक परिवार कपड़े धुलाई करके अपना रोज़गार सृजित करते थे। बीच में सूखा पड़ने के दौरान इनकी आजीविका संकट में पड़ गयी थी। सूखा पड़ने के दौरान उनको अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा था। अब पर्याप्त पानी उपलब्धता होने के कारण प्रत्येक परिवार अपना धंधा आसानी से कर पा रहे हैं। इससे प्रति परिवार की मासिक आमदनी रु. 3000.00-5000.00 के बीच आंकी गयी है। यह भी बताना उचित होगा कि ये लोग साबुन, निरमा आदि का प्रयोग अलग स्थानों पर करके तब तालाब में लाकर धुलाई करते हैं, जिससे पानी दूषित होने की सम्भावना कम हो जाती है और जल प्रदूषण के कारण होने वाले नुकसान का प्रतिशत घट जाता है।

नोट : तालाब के पुनरुत्थान का सबसे बड़ा फायदा यह रहा कि नगर के सभी पेयजल स्रोतों का जलस्तर संतुलित हुआ है, जिस कारण अप्रत्यक्ष रूप से नगरवासी एवं किसान लाभान्वित हुए हैं।

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