सूखे ने किया पलायन को मजबूर


महर्षि बाल्मीकि रचित रामायण में एक वाक्य है -
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी !!

इस वाक्य का अर्थ है-जननी अर्थात माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी प्रिय होती है। सूखा प्रभावित हजारों लोगों के लिये यह वाक्य आज बेमानी हो गया है। सूखे की मार और सरकारी उदासीनता ने इन लोगों को इतना मजबूर कर दिया है कि दो वक्त की रोटी के लिये वे अपने पुश्तैनी घर और अपने खेत को परती छोड़कर शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। अधनंगे बच्चे, मैले-कुचैले कपड़े पहने बूढ़े व औरतें, बोरियों में भरे बर्तन और सामान तथा सूखे चेहरे उनकी करुण कहानी बयाँ कर रहे हैं।

सूखा प्रभावित क्षेत्रों की तरफ से आने वाली बसों व ट्रेनों के जनरल डिब्बों में ऐसे चेहरे आसानी से देखे जा सकते हैं। जिन शहरों की ओर इनका पलायन हो रहा है उनमें दिल्ली भी एक है। देश की राजधानी होने के नाते बड़ी उम्मीद लेकर लोग यहाँ आ रहे हैं।

सराय काले खाँ बस अड्डे के निकट फ्लाईओवर के नीचे बैठे 53 वर्षीय जगदीश वर्मा दो दिन पहले ही आये हैं पूरे परिवार के साथ। वे मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के महाराजपुर गाँव के रहने वाले हैं। गाँव में इनकी 5 बीघा जमीन है। जगदीश वर्मा कहते हैं, ‘5 बीघा जमीन होने के बावजूद मैं पूरे परिवार के साथ फ्लाईओवर के नीचे दिन गुजार रहा हूँ इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी। सूखा पड़ा है हमारे यहाँ, फिर खेत का क्या करें हम।’

महाराजपुर गाँव की आबादी लगभग 25 से 30 हजार है और यहाँ पान की खेती बहुत होती है। वर्मा कहते हैं, ‘हमारे यहाँ से पान देश के कई हिस्सों में भेजे जाते हैं। यह बारहों महीने पत्ते देती है इसलिये लोग इसकी खेती करना पसन्द करते हैं लेकिन पान तो पानी से ही होता है। पानी नहीं होगा तो पान कहाँ से होगा? दिल्ली में कम-से-कम खरीदकर पानी तो पी सकते हैं लेकिन गाँव में तो यह भी मयस्सर नहीं है। ट्यूबवेल सूख गए हैं। गाँव में तीन बड़े तालाब हैं एक नदी भी है लेकिन उनमें भी पानी की एक बूँद नहीं।

दिल्ली में भी सूखा प्रभावितों को राहत नहींफ्लाईओवर के नीचे सुस्ता रहे मध्य प्रदेश के सागर जिले से आये 42 वर्षीय राजेश शर्मा भी काम की तलाश में कल आये हैं। शर्मा कहते हैं, ‘पिछले 3-4 सालों से हमारे गाँव में सूखा पड़ रहा है और हर साल मुझे घर-बार छोड़कर यहाँ आना पड़ता है कमाई कर खेती के लिये लिया गया कर्ज चुका सकूँ।’ गाँव में शर्मा की 2 बीघा जमीन है। सूूखा पड़ने के कारण फसलें नहीं उगा पा रहे हैं। वे मायुस होकर कहते हैं, एक ओर प्रकृति हमारे साथ खिलवाड़ करती है और दूसरी ओर सरकार। सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है, साहब!

टीकमगढ़ से सपरिवार आये राजू की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। उसके पास खेत तो नहींं हैं लेकिन दूसरों के खेत में मजदूरी कर अपना गुजारा करता है लेकिन इस सूखे की वजह से खेतों में फसलें ही नहीं बोई गई तो रोजगार कैसे मिलता। लिहाजा वह दिल्ली आ गया। फ्लाईओवर के नीचे उसने भी अपना आशियाना बनाया है।

विडम्बना यह है कि रोजी-रोजगार की तलाश में यहाँ आये अधिकांश लोग अब भी फांके में दिन बिता रहे हैं। कंस्ट्रक्शन से जुड़े ठेकेदार यहाँ आते भी हैं तो मजबूरी का फायदा उठाकर औना-पौना मजदूरी देने की पेशकश करते हैं। राजेश शर्मा बताते हैं, ‘यहाँ मजदूरी तरीके की मिल नहीं रही है, इसलिये यहाँ भी बेरोजगार बैठे हुए हैं।’ जब कोई टीवी चैनल वाला इनकी कहानी बताने के लिये सराय काले खाँ बस अड्डा पहुँचता हैै और इनकी तस्वीरें लेता है तो इनमें उम्मीद जाग जाती है कि शायद सरकार उनके लिये कोई व्यवस्था करेगी लेकिन दूसरे ही पल वे मायूस हो जाते हैं और दो टूक शब्दों में कहते हैं-कछु नहीं मिलैगो (कुछ नहीं मिलेगा)।

सराय काले खाँ स्टेशन ही घर बन गया हैइस पलायन की सबसे बड़ी कीमत बच्चों को चुकानी पड़ रही है क्योंकि इनकी पढ़ाई-लिखाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। राजेश शर्मा का तीन बेटी और 1 बेटा है। चारों पढ़ते हैं। उन्होंने कहा, मेरा पूरा परिवार यहाँ आ गया है और कम-से-कम 6 महीने तक हम गाँव नहीं जाने वाले हैं। ऐसे में इन बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा? इस सवाल पर वे कहते हैं, बच्चों को जिन्दा रखें कि पढ़ाएँ?

सूखा प्रभावित इन लोगों को शनिवार को सामाजिक संगठन ट्री और बुन्देलखण्ड वाटर फोरम तथा सेज प्रोडक्शंस की तरफ से राहत सामग्रियाँ मुहैया करवाई गईं। प्रोफेसर अभय चावला के नेतृत्व में अमरनाथ झा, संजय तिवारी, अजय तिवारी, रीना राय, अंतरा कलवर और आशीष शर्मा ने राहत सामग्री वितरित की।

पिछले दिनों सूखे को लेकर स्वराज अभियान की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी. ए. नरसिन्हा ने आँकड़ा पेश करते हुए कहा था कि भारत के 2,55,923 गाँवों के 33 करोड़ लोग सूखे से प्रभावित हैं। इन 33 करोड़ लोगों में से जगदीश वर्मा, राजू, राजेश शर्मा और इन जैसे हजारों लोग हालात से तंग आकर शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं लेकिन लाखों लोग ऐसे भी हैं जिनके पास पलायन का भी विकल्प नहीं है, ऐसे लोग किन हालातों में जी रहे हैं, इसकी कल्पना मात्र से रूह काँप उठती है।

18 June 2016, Gift a Joy to Migrants from Bundelkhand.स्वराज अभियान के मुखिया योगेंद्र यादव ने बीते दिनों एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने सूखा प्रभावितों को राहत पहुँचाने के लिये केन्द्र सरकार को कई कदम उठाने को कहा था लेकिन आदेश के एक महीने गुजर जाने के बावजूद केन्द्र सरकार की तरफ से कारगर कदम नहीं उठाए गए हैं।

योगेंद्र यादव के ये दावे अगर सही हैं तो आने वाला वक्त सूखा पीड़ितों के लिये और तकलीफें लेकर आएगा।
 

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