सूखे से सेहत पर असर


आजादी के समय देश भर में करीब 24 लाख तालाब थे, लेकिन आज इनकी संख्या 80 हजार तक सिमट कर रह गई है। प्रधानमंत्री अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में एक लाख तालाब और बनाने का ऐलान कर चुके हैं। मैं प्रधानमंत्री की बात का सम्मान करता हूँ लेकिन साथ ही मैं उनकी बात में एक और बात जोड़ना चाहता हूँ कि देश भर में आज हजारों की संख्या में नदियाँ और झीलें हैं, लेकिन वहाँ का पानी पूरी तरह से सूख चुका है। कुछ नदियाँ ऐसी भी हैं, जहाँ बहुत कम पानी बचा है। वक्त रहते उन पर ध्यान नहीं दिया गया तो इन नदियों के विलीन होने का खतरा पैदा हो जाएगा केन्द्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल 31 मार्च तक देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 39.651 अरब क्यूबिक पानी था। यह मात्रा पिछले दस वर्षों के औसत से 25 फीसद कम है। इससे देश के दस राज्य तो बुरी तरह प्रभावित हो गए हैं, लेकिन यह हालत बाकी राज्यों के लिये भी चिन्ता का विषय है। बुन्देलखण्ड में हैण्डपम्प करीब-करीब सूख चुके हैं।

इस क्षेत्र में इस साल सिर्फ 20 फीसद जमीन पर ही बुवाई हुई थी। वह भी पानी के न रहने से बर्बाद हो गई। फसल न होने से कृषि मजदूरों के पास काम नहीं है, जिससे लाखों की संख्या में वे दूसरे क्षेत्रों में पलायन कर चुके हैं। गाँवों में 25 निजी कुएँ बोर सूख चुके हैं। तालाब में पानी नहीं है।

इन्द्र देवता पिछले चार वर्षों से मौन साधे हुए हैं, जिससे यहाँ की वह भूमि पटती जा रही है, जहाँ कभी खेती हुआ करती थी। खुशहाली दिखाई देती थी। मगर अब पेड़-पौधे सूख चुके हैं। पालतू और दुधारू पशुओं को पालने के लिये चारा नहीं है, जिससे उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। इस इलाके में ज्यादातर लोगों ने पिछले कई महीनों से भरपेट भोजन तक नहीं किया है। इलाके के गाँव भुखमरी की स्थिति में हैं।

हालात इस कदर गम्भीर हो चुके हैं कि अगर कहीं आग लग जाये तो उसे बुझाने के लिये पानी नहीं है। एक घर में आग लगने का मतलब होगा, उसकी लपटें दूसरे घर तक पहुँचना और फिर तीसरे और फिर चौथे..ऐसा बुन्देलखण्ड में हो चुका है, जहाँ पिछले दिनों कई घरों का सामान तक जलकर राख हो गया था।

करीब 15 साल पहले 150 से 200 फुट नीचे पानी मिल जाता था। आज इसके लिये 500 फुट तक जमीन खोदनी पड़ती है। किसानों को केन्द्र सरकार से बिजली की सब्सिडी क्या मिली, उन्होंने खेतों के लिये जरूरत से ज्यादा पानी निकलने पर ध्यान केन्द्रित किया, जिससे समस्या और भी भयावह होती चली गई।

किसानों ने भी ज्यादा पानी का इस्तेमाल होने वाली फसलों को लगाने पर ध्यान केन्द्रित किया। मराठवाड़ा की समस्या इसीलिये गम्भीर हुई क्योंकि वहाँ बहुत कम बारिश होने के बावजूद गन्ने की फसल में पानी जुटाने के लिये जमीन का अति दोहन किया गया। बुन्देलखण्ड के ललितपुर जिला मुख्यालय में तो महिलाओं को आधी रात को पानी की लम्बी कतारों में देखा जा सकता है। दिन की तपन से बचने के लिये वे रात को घर से चार-पाँच किलोमीटर दूर पानी भरने जाती हैं, जिनमें से कइयों को निराश भी लौटना पड़ता है।

आगरा में हालात बेहद निराशाजनक


उधर, आगरा में भी यमुना नदी के सूखने से गम्भीर हालात बनते जा रहे हैं। धरती की कोख सूख चुकी है। यमुना में पानी निम्नतम स्तर पर बह रहा है। इलाके के 15 में से 11 जोन डार्क जोन यानी अति दोहन श्रेणी में घोषित किये जा चुके हैं। मथुरा के विश्राम घाट पर नदी के पानी में डिजाल्व ऑक्सीजन लेवल 2.8 मिलीग्राम प्रति लीटर के स्तर पर पहुँच गया है।

यह पानी जीव-जन्तुओं के लिये भी उपयुक्त नहीं है। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि जमीन के नीचे के जलस्तर में गिरावट के अलावा पानी में फ्लोराइड की मात्रा घातक स्तर पर पहुँच गई है। इसे पीने से हाथ-पैर की हड्डियाँ टेढ़ी हो सकती हैं, जिसे फ्लोरोसिस नामक बीमारी कहा जाता है।

आजादी के समय देश भर में करीब 24 लाख तालाब थे, लेकिन आज इनकी संख्या 80 हज़ार तक सिमट तक रह गई है। प्रधानमंत्री मन की बात कार्यक्रम में और एक लाख तालाब बनाने का ऐलान कर चुके हैं। मैं प्रधानमंत्री जी की बात का सम्मान करता हूँ लेकिन साथ ही मैं उनकी बात में एक और बात जोड़ना चाहता हूँ कि देश भर में आज हजारों की संख्या में नदियाँ और झीलें हैं, लेकिन वहाँ का पानी पूरी तरह से सूख चुका है। कुछ नदियाँ ऐसी भी हैं, जहाँ बहुत कम पानी बचा है।

वक्त रहते उन पर ध्यान नहीं दिया गया तो इन नदियों के विलीन होने का खतरा पैदा हो जाएगा। मेरे संसदीय क्षेत्र कैसरगंज और उसके आसपास टेढ़ी, सरयू, मनोवर और रावती नदियाँ बहती हैं। साथ ही, यहाँ आरंगा-पार्वती, कोणर और पथरी नाम की झीलें थीं। सरयू नदी का स्थानीय संगम मेला काफी मशहूर हुआ करता था। इसी तरह विशाल पोखरा के उद्गम स्थल से निकलकर मनोवर नदी बस्ती जनपद के भखौला स्थान तक पहुँचती है।

कभी अयोध्या के राजा दशरथ ने इसी मनोवर नदी के तट पर पुत्रेश यज्ञ किया था, लेकिन आज ये नदियाँ और झीलें बुरी तरह से पट चुकी हैं। इनमें अब नाम मात्र का जल बचा है, वह भी काफी गन्दा। इनकी खुदाई करके इन्हें और गहरा किया जा सकता है। आसपास वृक्षारोपण करने से इस इलाके को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा सकता है, लेकिन अभी तक यह इलाका हाशिए पर ही रहा है।

देश में कई तालाबों पर कब्जे की घटनाएँ सामने आई हैं। कहीं गन्दगी है, तो कहीं तकनीकी ज्ञान की कमी से वे सिमटते जा रहे हैं। ये तालाब आम आदमी की प्यास बुझाने के अलावा मछली पालन, सिंघाड़ा, कुम्हार के लिये चिकनी मिट्टी आदि क्षेत्रों में भी सक्रिय थे और देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देते थे। देश में कितनी ही नदियों और झीलों में यही स्थिति है, जिसे भविष्य के लिये अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता।

महाराष्ट्र में बाहर से लाए गए पानी का वितरण करने के बजाय उसे पहले कुओं में डाला गया। फिर बच्चों ने कुएँ में घुसकर पानी निकाला। साढ़े तीन सौ रुपए का टैंकर 1500 रुपए तक बिका। यह उस राज्य की हालत है, जहाँ देश में सबसे ज्यादा 1853 बाँध हैं। अकेले लातूर की आबादी 25 लाख के आसपास है। अगर 50 लाख लीटर पानी टैंकरों से वहाँ पहुँचता है, तो प्रति व्यक्ति दो लीटर पानी ही नसीब हो पाता है। यानी टैंकरों की नियमित आवाजाही होते रहना जरूरी है।

इन समस्याओं से निपटने में स्थानीय प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा है। इस राज्य में सिंचाई और बाँध के नाम पर करोड़ों की लूट देखने को मिली है। बुन्देलखण्ड में राज्य सरकार किस दिशा में काम कर रही है, वही जाने। अगर भविष्य में पानी के संचय पर ध्यान नहीं दिया गया तो बुन्देलखण्ड को लातूर बनते देर नहीं लगेगी।

लातूर न बने बुन्देलखण्ड


1. कभी अयोध्या के राजा दशरथ ने मनोवर नदी के तट पर पुत्रेश यज्ञ किया था, लेकिन आज ये नदियाँ और झीलें बुरी तरह से पट चुकी हैं। इनमें अब नाम मात्र का जल बचा है, वह भी काफी गन्दा। अगर भविष्य में पानी के संचय पर ध्यान नहीं दिया गया तो बुन्देलखण्ड को लातूर बनते देर नहीं लगेगी

2. गाँवों में 25 निजी कुएँ बोर सूख चुके हैं। तालाब में पानी नहीं है। इन्द्र देवता पिछले चार वर्षो से मौन साधे हुए हैं, जिससे यहाँ की वह भूमि पटती जा रही है, जहाँ कभी खेती हुआ करती थी। खुशहाली दिखाई देती थी। मगर अब पेड़-पौधे सूख चुके हैं। पालतू और दुधारू पशुओं को पालने के लिये चारा नहीं है
3. करीब 15 साल पहले 150 से 200 फुट नीचे पानी मिल जाता था। आज इसके लिये 500 फुट तक जमीन खोदनी पड़ती है। बुन्देलखण्ड में हैण्डपम्प करीब-करीब सूख चुके हैं।

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