टैप वाटर से 42 सौ गुना महंगा है बोतलबंद पानी

23 Apr 2009
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देविंदर शर्मा
अगली बार जब आप बोतलबंद पानी खरीदें, तो थोड़ा रुककर सोचें, एक लीटर बोतलबंद पानी के लिए 15 रुपये खर्च करने में आपको कोई परेशानी नहीं है। लेकिन जो बात आप महसूस नहीं करते और इसीलिए आपको सोचने की जरूरत है कि एक लीटर टैप वाटर के मुकाबले बोतलबंद पानी पर आप 4200 गुना ज्यादा खर्च करते हैं। बोतलबंद पानी और पेय पदार्थ निर्माता कंपनियां एक हजार लीटर भूमिगत जल निकालने के एवज में सिर्फ 30 पैसे का उपकर चुका रही हैं। विडंबना देखिए कि मध्य वर्ग के वही लोग, जो बोतलबंद पानी खरीदते हैं, दिल्ली जल बोर्ड द्वारा पानी की कीमतों में सामान्य बढ़ोतरी का भी विरोध करते हैं। दिल्ली जल बोर्ड 1000 लीटर पानी के लिए साढ़े तीन रुपये चार्ज करता है। एक पैसे में तीन लीटर पानी। फिर भी लोगों को लगता है कि टैप वाटर की कीमत बढ़ाना उनके साथ अन्याय है। ऐसे लोग घर पर लगभग मुफ्त में पानी की सुविधा चाहते हैं। वे सोचते हैं कि यह उनका मूल अधिकार है और पानी की कीमतों में कोई इजाफा उनके इस अधिकार में हस्तक्षेप है। लेकिन घर से निकलते ही उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए जेब हलकी करनी पड़ती है। तामझाम वाले रेस्तरां में तो उन्हें बोतलबंद पानी की सामान्य से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। लेकिन कोई सवाल नहीं पूछता है। विरोध का तो सवाल ही नहीं पैदा होता है।

मैंने किसी को बोतलबंद पानी की अत्यधिक कीमत के औचित्य पर बहस करते नहीं देखा है। उपभोक्ताओं के लिए जब पानी की कीमत कोई मायने नहीं रखती है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके व्यवसाय में दिन-दूनी रात-चौगुनी प्रगति होना आश्चर्य की बात नहीं है। वर्ष 2004 में पूरी दुनिया में 154 अरब लीटर पानी की खपत हुई। इसमें हमारा हिस्सा 5.1 अरब लीटर था। बोतलबंद पानी का बाजार कितना बड़ा हो गया है, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि दिल्ली के आसपास बसे नोएडा और गाजियाबाद में एक दिन में 75 हजार लीटर पानी की खपत है, जिस पर 11.25 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। दिल्ली की ही तरह देश के दूसरे हिस्सों में भी बोतलबंद पानी की खपत तेजी से बढ़ रही है। सालाना 40 फीसदी की दर से बढ़ रहा 1800 करोड़ रुपये का यह व्यवसाय अप्रत्याशित बूम दिख रहा है। 1999 से 2004 के बीच पांच साल के अल्प समय में यहां बोतलबंद पानी की खपत में लगभग पांच गुनी बढ़ोतरी हुई है। इस मामले में हम अब दुनिया के पांच बड़े देशों में शामिल हैं।

कहना न होगा कि इसके लिए टैप वाटर की क्वालिटी जिम्मेदार है। हालांकि यह सच है कि हमारी नगरपालिकाओं के पास संसाधनों की भारी कमी है। लेकिन टैप वाटर की क्वालिटी को फिल्टर वाटर के समकक्ष लाया जा सकता है, बशर्ते उपभोक्ता उसके लिए ज्यादा कीमत चुकाने को तैयार हों। अगर हम तीन लीटर पानी के लिए एक पैसा खर्च कर रहे हैं, तो हमें टैप वाटर की क्वालिटी के बारे में शिकायत करने का कोई तुक नहीं है। पानी का प्रबंधन निजी हाथों में सौंपने के बजाय ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक निवेश करने की कोशिश होनी चाहिए। सुरक्षित टैप वाटर की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए आमदनी के स्तर के अनुसार पानी की कीमत वसूली जा सकती है।

अगर आप सोचते हैं कि एक लीटर पानी के लिए 15 रुपये खर्च कर आप सुरक्षित हैं, तो इस पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। अमेरिका में भी फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के कड़े मानकों के बावजूद 40 फीसदी बोतलबंद पानी असुरक्षित होता है। यहां भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि अकसर बोतलबंद पानी निर्धारित मानकों पर खरे नहीं उतरता है। अमेरिका में कई राज्यों में बोतलबंद पानी के लिए कोई कानून ही नहीं है। यहां भी भारतीय मानक ब्यूरो के पास बोतलबंद पानी की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। अमेरिका हो या भारत, क्वालिटी और शुद्धता के नाम पर आप जो कुछ भी खरीद रहे हैं, वह सिर्फ अपना भरोसा है। इससे भी ज्यादा दुखद यह है कि एक ऐसे समय में जब पानी एक राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है और कई लोगों का मानना है कि अगला विश्व युद्ध पानी की खातिर लड़ा जाएगा, बोतलबंद पानी उद्योग तेजी से हमें उस ओर ले जा रहा है।

एक लीटर बोतलबंद पानी तैयार करने में पांच लीटर पानी खर्च होता है। इस तरह 2004 में 154 अरब लीटर बोतलबंद पानी के लिए 770 अरब लीटर पानी का उपयोग किया गया था। अपने देश में इस प्रक्रिया में 25.5 अरब लीटर पानी व्यर्थ में बहा दिया गया। किसी भी नजरिए से देखा जाए, तो यह पानी की भारी बरबादी है। इसकी वजह से कई जगह भूमिगत जल चिंताजनक स्तर तक नीचे चला गया है। केरल के प्लाचीमाड़ा गांव के निवासियों द्वारा भूमिगत जल के अंधाधुंध दोहन के खिलाफ चलाए गए आंदोलन से प्रेरित होकर देश के कई इलाकों में इस तरह के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भूमिगत जल का दोहन विस्फोटक मसला बनता जा रहा है। बोतलबंद पानी के कारण पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। कैलिफोर्निया स्थित पेसिफिक इंस्टीटच्यूट के अनुसार 2004 में अमेरिका में 26 अरब लीटर पानी की पैकिंग के लिए प्लास्टिक की बोतलें बनाने के लिए दो करोड़ बैरल तेल का इस्तेमाल किया गया। प्लास्टिक की वही बोतलें कूड़े के ढेर पर पहुंचती हैं, तो भूमिगत जल को प्रदूषित करने के साथ ग्लोबल वार्मिंग का भी सबब बनती हैं।

क्या उम्मीद की कोई किरण नजर आ रही है? क्या लोग बोतलबंद पानी के कारण हो रहे नुकसान के प्रति सचेत हो रहे हैं? हां, ज्यादा से ज्यादा लोग जागरूक हो रहे हैं। अमेरिका में कई रेस्तराओं और होटलों में फिल्टर किए गए पानी की सप्लाई की जा रही है। उनमें से कइयों ने तो बोतलबंद पानी रखना ही छोड़ दिया है। हमारे देश के बड़े रेस्तराओं और पांचसितारा होटलों को भी यह काम शुरू कर देना चाहिए। शहरी संस्थाएं भी जाग रही हैं। सान फ्रांसिस्को के मेयर गेविन न्यूसम ने हाल ही में आदेश जारी किया है कि टैप वाटर उपलब्ध होने की स्थिति में बोतलबंद पानी का इस्तेमाल न किया जाए। उनकी दलील यह है कि एक लीटर बोतलबंद पानी की कीमत पर आप 1000 लीटर टैप वाटर खरीद सकते हैं। इससे पहले साल्ट लेक सिटी के मेयर भी ऐसा ही आदेश जारी कर चुके हैं। क्या भारत में भी ऐसा ही अभियान चलाए जाने का समय नहीं आ गया है? (लेखक खाद्य नीति के विशेषज्ञ हैं)
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