तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष (Social and cultural aspects of ponds)


विश्व में मानव-संस्कृति का विकास भूतल के विभिन्न क्षेत्रों की पर्यावरणीय दशाओं एवं वहाँ के संसाधनों पर निर्भर करता है। मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है, जो अपने विवेक एवं कार्यकुशलता से अन्य साधन द्वारा प्राकृतिक परिवेश में निरंतर परिवर्तन करता रहता है। जिन स्थानों पर वह प्राकृतिक परिवेश में परिवर्तन करने में समर्थ नहीं होता है, वहाँ उसमें अनुकूलन करता है। इसी प्रकार के अनुकूलन से मनुष्य का सांस्कृतिक विकास भी होता है। अतः स्थान विशेष के भौतिक स्वरूप एवं संस्कृति को संसाधन के रूप में मान्यता प्राप्त है। संस्कृति मानव द्वारा प्रयुक्त वह प्रविधि एवं ढंग है, जिसके द्वारा संसाधनों का उपयोग मानवहित में किया जाता है।

अध्ययन क्षेत्र रायपुर जिला का भौतिक स्वरूप मैदानी, पर्यावरणीय स्वरूप मानसूनी तथा धान की कृषि संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ के निवासियों ने इस पर्यावरण के साथ अनुकूलन स्थापित करते हुए अपने समस्त आर्थिक एवं सामाजिक क्रियाकलापों को निर्धारित किया है। तालाबों का अस्तित्व मध्य उपशब्द प्रविधि की एवं मानसून पर्यावरण के अनुकूलन का परिणाम है।

तालाब एवं ग्राम्य जीवन


छत्तीसगढ़ी लोक-जीवन, लोक साहित्य, लोक-संस्कृति एवं लोकगीतों के अध्ययन कर्ताओं में वेरियर एलविन की फोक सांग्स ऑफ छत्तीसगढ़ एवं फोक टेल्स आॅफ महाकौशल, श्यामाचरण दुबे की छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का परिचय, प्यारेलाल गुप्त की छत्तीसगढ़ का लोक साहित्य से लेकर वर्तमान उपलब्ध लोक साहित्यों में तालाबों का महत्त्व परिलक्षित होता है। ग्राम्य जीवन में तालाबों की अनिवार्यता प्रत्येक सामाजिक संस्कारों एवं दैनिक जीवन में अपरिहार्य है। शुकलाल पाण्डे द्वारा रचित ‘तालाब के पानी’ शीर्षक की यह कविता निम्नानुसार है- (दयाशंकर शुक्ल 1969, पृ. 60)

गनती गनही तब तो इ हां सा छय सात तरिया हे।
फेर ओ सब मा बंधवा तरिया पानी एक पुरैया हे।
न्हावन धावन भंइसा-मांजन धोये ओढन चेंदरा के।
ते मां धोबनिन मन के मारे गतनइये वो बपुरा के।।
पानी नीचत घोघट घोंघन मिले खोहाजेमा हे।
पंडरा रंग गैधाइन महके, अऊ धराऊव ठोम्हा हे।
कम्हू जम्हू के साग अमरहा, झोरावतै लगवे रांधे।
तुरत गढा जाही रे भाई रेहन बेरून नई लागे।।


व्यक्तिगत सर्वेक्षण में प्रातःकालीन नित्य क्रिया मुख-मार्जन, स्नान, भोजन, पशुओं का स्थान, गृह निर्माण कार्य, इत्यादि अनेक कार्य हैं, जो तालाब के पानी में सम्पन्न होते हैं। निम्नांकित उपशीर्षकों में तालाबों की अनिवार्यता एवं अनुकूलन स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होता है।

तालाब जल का सामाजिक पक्ष


विवाह संस्कार
अध्ययन क्षेत्र में निवास करने वाली विभिन्न जातियों में विवाह संस्कारों में समानताएँ मिलती हैं। विवाह संस्कार में जिस दिन वर या वधु को तेल चढनी होती है, उसके आठ दिन पूर्व ग्राम के बाहर स्थित किसी तालाब से स्त्रियाँ मिट्टी खोदकर लाती हैं। इस मिट्टी से चुल्हा बनाया जाता है। चूल्हा निर्माण के पश्चात तेलमाटी कार्यक्रम होता है। पाणिग्रहण के दिन शुभ मुर्हूत में स्त्रियाँ गीत गाती हुई तालाब जाती हैं तथा कुछ वैवाहिक संस्कार से जुड़ी हुई क्रियाएँ सम्पन्न करती हैं। दुल्हे के बारात जाने के पूर्व ‘नहडोरी संस्कार तथा बारात आने के पूर्व दुल्हन का नहडोरी संस्कार होता है। इसमें तालाब के जल का उपयोग किया जाता है।

बारात स्वागत के पश्चात बारातियों का गोड धोई संस्कार होता है तथा पैर धोने के लिये तालाब जल का उपयोग होता है। बारात जब घर लौटती है तो, बारातियों को घर में प्रवेश के समय स्त्रियों द्वारा दरवाजे पर तालाब का पानी डाला जाता है। कुछ जातियों में विवाह पश्चात मंडप की सामग्री के विसर्जन के लिये घर की स्त्रियों के साथ दुल्हा-दुल्हन तालाब जाते हैं।

मृत्यु संस्कार
प्रत्येक ग्रामीण अधिवास विभिन्न जातियों के व्यक्तियों से युक्त होता है। वनक्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के लोगों की प्रधानता है। अध्ययन क्षेत्र में आदिवासियों से लेकर विभिन्न जातियों में मृत्यु पश्चात शव संस्कार का कार्य होता है। शव संस्कार की दो प्रमुख विधियाँ प्रचलित हैं, प्रथम शवदाह तथा द्वितीय शव दफनाने का संस्कार। इन दोनों संस्कारों में परिवर्तन भी विभिन्न जातियों में दृष्टिगत होता है। प्रायः बच्चों में शवों को दफनाने की प्रथा प्रत्येक जाति में पायी जाती है। शव संस्कारों में विभिन्नता वयस्क व्यक्तियों में पाया जाता है। शव संस्कार की क्रिया प्रायः गाँव के बाहर स्थित तालाब के नजदीक नियत स्थान पर किया जाता है। मृत्यु संस्कार में प्रमुख कार्य शव को स्नान कराने के पश्चात उसे दफनाया या जलाया जाता है। स्नान कार्य समीपस्थल तालाब जल में सम्पन्न होता है। शव संस्कार में लगे व्यक्ति कार्य सम्पन्न करने के पश्चात तालाब-जल में स्नान करने के पश्चात ही शुद्ध होकर अपने निवास पर प्रवेश करते हैं। अगर व्यस्क हैं और शवदाह किया गया है तो शवदाह के तीसरे दिन अस्थि संग्रहण का कार्य सम्पन्न होता है। यहाँ भी तालाब जल अस्थि स्नान एवं बचे राख के विसर्जन हेतु उपयोग में लाया जाता है।

मृत्यु संस्कार का कुल कार्य अवधि 10 अथवा 12 दिनों में सम्पन्न होता है। दशगात्र एवं 12वें दिन का कार्यपूर्ण समारोह के साथ तालाब में ही सम्पन्न होता है। अगर मृतक पुरूष है तो मृतक की विधवा स्त्री को भी 10 दिन तक तालाब में स्नान करने की प्रथा है। मृतक संस्कार के पीछे मूल भावना मृतक को इस भौतिक धरातल से पूर्ण रूप से मुक्त करने की अवधारणा निहित है। मृतक संस्कार में तालाबों की अनिवार्यता स्पष्ट प्रतीत होता है।

तालाब एवं लोक-कथाएँ


लोक-कथाओं में भूगोल, इतिहास, समाज, आर्थिक सम्पन्नता एवं विपन्नता, देश-जाति, सभी का चित्रण मिलता है। संक्षिप्तता, सारगर्भिता, रमणीयता और सजीवता इनकी विशेषताएँ होती हैं। छत्तीसगढ़ का लोकजीवन उपलब्ध प्राकृतिक पर्यावरण में उत्पन्न आर्थिक विपन्नता, राजाओं के एश्वर्य की कामना, सामाजिक परम्पराओं का मिश्रण युक्त होते हैं। यहाँ की लोकथाओं को धर्मशास्त्र, लोक-गाथा एवं लोक कहानी के रूप में विभाजित किया जा सकता है।

अध्ययन क्षेत्र में प्रचलित लोक कथाओं में तालाब को केन्द्र में रखकर कही जाने वाली लोक कथाएँ अनेक हैं, लेकिन जिन लोककथाओं को लोग ज्यादा सुनते हैं उनमें अहिमन रानी, रेवा रानी, एवं फुलबासन की कथाएँ उल्लेखनीय है। इन कथाओं में उपरोक्त प्रमुख पात्रों के द्वारा तालाब से जुड़ी हुई घटनाओं से साक्षात्कार करते हुए सुखद अनुभूतियों का स्पष्ट विवरण मिलता है। (दयाशंकर शुक्ल 1969, पृ. 237-240)

स्पष्ट है कि तालाबों का अस्तित्व एक स्थल रूप में न होकर लोक मानस के जीवन का अविभाज्य अंग है। पूर्व के वर्षों में जल का प्रमुख स्रोत तालाब ही होते थे, तब तालाबों का परिरक्षण देव रूप मानकर किया जाता था। परिरक्षण के कार्य में समस्त लोक जीवन अपनी पूर्ण भागीदारी निभाता था। यह क्रम कमजोर हुआ जब नलकूप, नहर एवं कुआँ का विकास हुआ, लेकिन वर्तमान में शासकीय एवं ग्रामीण स्तर में पुनः तालाबों का स्थान महत्त्वपूर्ण हो गया है।

तलाब जल एवं धार्मिक परम्पराएँ


छत्तीसगढ़ की भौगोलिक रचना ने यहाँ के सामाजिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है। अपने जीवन के लिये ये मानसून की प्रकृति पर निर्भर होते हैं तथा प्रकृति से कृपा प्राप्त करने के लिये अपार शक्तियों, देवी-देवताओं आदि में श्रद्धा रखते हैं। इनसे उत्पन्न परम्पराओं ने धार्मिक परम्परा का रूप ले लिया है, जो इनके जीवन में विभिन्न पर्व, त्योहारों तथा धार्मिक क्रियाकलापों में दृष्टिगत होता है। उपरोक्त धार्मिक, सामाजिक एवं विशिष्ट जातियों की परम्पराओं का विवरण निम्न रूप में किया गया है।

तीज-त्योहार: तालाबों के जल का उपयोग तीज-त्योहार में किया जाता है। इस तीज त्योहार के अंतर्गत मुख्य पर्व जिसमें तालाब जल का उपयोग किया जाता है, उनमें हरियाली, पोला, गणेश चतुर्थी, दुर्गानवमी, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि एवं दीपावली हैं।

हरियाली पर्व: अध्ययन क्षेत्रों के ग्रामीण अंचल में हरियाली का पर्व आज भी लोग हर्ष पूर्वक मानते हैं। यह पर्व मुख्य रूप से कृषक एवं मजदूर का होता है। इसमें कृषक अपने कृषि औजारों को तालाब जल से साफ सफाई कर घर लाते हैं और उपयुक्त स्थान में रख कर पूजा पाठ करते हैं। अतः इस प्रकार के कार्यों में भी तालाब जल सहायक होते हैं।

तीजा-पोल-पर्व: ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ आज भी तीजा की व्रत रखती हैं। इस पर्व का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन महिलाएँ विशेष रूप से तालाबों में स्नान कर तालाबों में स्थित शिव जी के मंदिर में तालाब-जल अर्पण कर बाल-बच्चों की सुख-शांति के लिये ईश्वर से दुआयें माँगती है। साथ ही पोला पर्व में लोग भोजली दाई की पूजा पाठ कर उसे तालाब-जल में विसर्जन कर देते हैं। इस प्रकार के धार्मिक कार्यों में उपयुक्त तालाब जल ही होता है।

गणेश चतुर्थी: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गणेश चतुर्थी व्रत को भी बड़े धूम धाम से मनाते हैं इसमें श्री गणेशजी की पूजा नौ से दस दिन तक करने के बाद बड़े धूम धाम एवं गाजे बाजे के साथ तालाब ले जाकर पूजा अर्चना कर इसकी प्रतिमा को तालाब जल में विसर्जन कर देते हैं। अतः तालाब जल गणेश चतुर्थी-पर्व के लिये भी उपयोगी है।

दुर्गानवमी: जिस प्रकार लोग गणेश चतुर्थी को मनाते हैं, ठीक उसी प्रकार दुर्गानवमी को भी मनाते हैं। दुर्गानवमी में माँ दुर्गा की प्रतिमा की आठ दिनों तक पूजा पाठ की जाती है, तत्पश्चात नौवें दिन माँ भगवती की प्रतिमा को हर्ष उल्लास के साथ तालाब-जल में विसर्जन कर देते हैं और माँ की प्रतिमा तालाब जल में डूब जाती है।

कार्तिक-पूर्णिमा व्रत: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कार्तिक पूर्णिमा के व्रत को आज भी मनाते हैं। इसमें भगवान कार्तिक की स्तुति की जाती है। इस समय लोग भोर के पहले तालाब जल में स्नान करते हैं और पूजा अर्चना कर दीप जलाते हैं। दीप को कार्तिक देव की मनन कर तालाब जल में विसर्जन कर देते हैं। अतः धार्मिक कार्यों में भी तालाब जल की उपयोगिता महत्त्वपूर्ण होती है।

तालाब की मेंड पर बने प्रतिरूपों का अध्ययन:ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित तालाबों की मेंडों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिरूपों यथा मकान, मंदिर, मठ एवं घाट पचरी पाया गया है। ये सभी प्रतिरूप प्रकृति द्वारा निर्मित न होकर मानव निर्मित प्रतिरूप होते हैं। ये सभी प्रतिरूप तालाबों में सुंदरता प्रदान करती है, जिससे तालाब मनमोहक प्रतीत होता है।

अतः अध्ययन क्षेत्र के चयनित ग्रामीण क्षेत्रों में चयनित तालाबों की मेंड पर बने प्रतिरूपों को विकासखंडानुसार सारणी 5.1 में विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया है।

 

सारणी 5.1

तालाब की मेंड पर बने प्रतिरूप

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

तालाब के मेंड पर बने प्रतिरूप

मकान

मंदिर

मठ

घाट

पचरी

1

आरंग

05

29

08

17

05

24

22

2.

अभनपुर

05

24

11

19

03

22

18

3.

बलौदाबाजार

04

21

07

15

06

20

12

4.

भाटापारा

04

33

13

22

08

30

25

5.

बिलाईगढ़

04

24

08

19

04

20

18

6.

छुरा

04

21

06

14

02

20

13

7.

देवभाग

04

18

09

14

03

15

14

8.

धरसीवां

04

20

11

19

02

18

14

9.

गरियाबंद

04

21

09

14

03

15

16

10.

कसडोल

04

17

06

11

02

14

15

11.

मैनपुर

04

20

08

12

02

15

15

12.

पलारी

04

14

05

12

03

12

10

13.

राजिम

02

06

02

04

01

10

08

14.

सिमगा

02

06

03

05

02

14

06

15.

तिल्दा

03

11

04

08

08

17

11

 

कुल

57

285

110

205

48

266

217

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा

 

सारणी 5.1 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्र में चयनित तालाबों में पाये गये प्रतिरूपों की संख्या विकासखंडानुसार चयनित ग्रामों की एवं चयनित तालाबों की संख्यानुसार प्रस्तुत है। मकान 110 (38.60 प्रतिशत), मंदिर वाले तालाब 205 (71.93 प्रतिशत), मठ 48 (16.84 प्रतिशत), घाट 266 (93.33 प्रतिशत) एवं पचरी 217 (76.14 प्रतिशत) तालाबों में पाये गये हैं।

तालाबों की मेंड पर मकान: तालाबों की मेंडों में मकान भी पाये गये हैं। ये मकान तालाब की मेंड या मेंड के समीप बने हुए होते हैं। इन मकानों का निर्माण सामाजिक एवं सामूहिक रूप से किया जाता है जिनका उपयोग विशेषतः सामाजिक एवं सांस्कृतिक या धार्मिक कार्यों में किया जाता है। साथ ही तालाबों में मत्स्य पालन की रख-रखाव के कार्यों में उपयोग किया जाता है। ये मकान निजी तालाबों में निजी भू-स्वामी द्वारा भी बनाये जाते हैं। अतः अध्ययन क्षेत्रों के चयनित तालाबों में पाये गये मकानों की संख्या चयनित ग्रामीण क्षेत्रों की संख्या एवं तालाबों की संख्या विकासखंडानुसार सारणी क्र. 5.2 में प्रस्तुत किया गया है।

तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष

 

सारणी 5.2

चयनित तालाबों की मेंड पर मकान

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

तालाब की मेंड पर मकान

मकान

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

08

2.80

2.

अभनपुर

05

24

11

3.85

3.

बलौदाबाजार

04

21

07

2.45

4.

भाटापारा

04

33

13

4.56

5.

बिलाईगढ़

04

24

08

2.80

6.

छुरा

04

21

06

2.10

7.

देवभोग

04

18

09

3.15

8.

धरसीवां

04

20

11

3.85

9.

गरियाबंद

04

21

09

3.15

10.

कसडोल

04

17

06

2.10

11.

मैनपुर

04

20

08

2.80

12.

पलारी

04

14

05

1.75

13.

राजिम

02

06

02

0.70

14.

सिमगा

02

06

03

1.05

15.

तिल्दा

03

11

04

1.40

 

कुल

57

285

110

38.60

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा।

 

उपरोक्त सारणी 5.2 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्रों में चयनित 285 तालाबों में से तालाब की मेंड पर बने मकान वाले तालाबों की संख्या 110 (38.60 प्रतिशत) पाये गये हैं।

सर्वाधिक मकान वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, बिलाईगढ़, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, मैनपुर, अंतर्गत 77 (27.02 प्रतिशत) बलौदाबाजार, छुरा, कसडोल, पलारी अंतर्गत 24 (8.42 प्रतिशत) एवं राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत तालाबों पर निर्मित मकानों की संख्या 09 (3.16 प्रतिशत) पाये गये हैं।

तालाबों की मेंडों पर मंदिर: तालाबों की मेंड पर अधिकांशतः मंदिर पाये गये हैं। मंदिरों का निर्माण पूजा पाठ के कार्यों को सम्पन्न करने के लिये किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले अधिकतर लोग देवी देवताओं की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। चयनित तालाबों में पाये गये मंदिरों में शिवजी, शीतलामाता एवं हनुमान जी के मंदिर प्रमुख हैं। अतः चयनित तालाबों में पाये गये मंदिरों की संख्या विकासखंडानुसार चयनित ग्रामों एवं चयनित तालाबों की संख्यानुसार सारणी 5.3 में प्रस्तुत किया गया है।

 

सारणी 5.3

चयनित तालाब के मेंड पर बने मंदिर

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

चयनित तालाबों में मंदिर

शिव

प्रतिशत

शीतला

प्रतिशत

हनुमान

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

12

4.21

04

1.40

01

0.35

2.

अभनपुर

05

24

10

3.50

06

2.10

03

1.05

3.

बलौदाबाजार

04

21

06

2.10

04

1.40

05

1.75

4.

भाटापारा

04

33

14

4.91

06

2.10

02

0.70

5.

बिलाईगढ़

04

24

08

2.80

04

1.40

07

2.45

6.

छुरा

04

21

11

3.85

02

0.70

01

0.35

7.

देवभोग

04

18

09

3.15

03

1.05

02

0.70

8.

धरसीवां

04

20

14

4.91

03

1.05

02

0.70

9.

गरियाबंद

04

21

10

3.50

02

0.70

02

0.70

10.

कसडोल

04

17

05

1.75

06

2.10

-

-

11.

मैनपुर

04

20

08

2.80

03

1.05

01

0.35

12.

पलारी

04

14

06

2.10

04

1.40

02

0.70

13.

राजिम

02

06

03

1.05

01

0.35

-

-

14.

सिमगा

02

06

02

0.70

02

0.70

01

0.35

15.

तिल्दा

03

11

04

1.40

02

0.70

02

0.70

 

कुल

57

285

122

42.81

52

18.24

31

10.88

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा

 

सारणी 5.3 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्र के तालाबों में मंदिरों की संख्या क्रमशः इस प्रकार है, शिव मंदिर वाले तालाबों की संख्या 122 (42.81 प्रतिशत), शीतला मंदिर वाले तालाबों की संख्या 52 (18.24 प्रतिशत) एवं हनुमानजी के मंदिर वाले तालाबों की संख्या 31 (10.88 प्रतिशत) पाये गये हैं।

चयनित 285 तालाबों में विकासखंडानुसार सर्वाधिक शिवजी मंदिर वाले तालाबों की संख्या आरंग अभनपुर, भाटापारा, छुरा, देवभोग, धरसीवां, पलारी विकासखंड अंतर्गत 17 (5.96 प्रतिशत) एवं राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में 9 (3.16 प्रतिशत) शिवजी के मंदिर पाये गये हैं।

चयनित 285 तालाबों में विकासखंडानुसार सर्वाधिक शीतला मंदिर वाले तालाबों की संख्या आरंग, अभनपुर, भाटापारा, छुरा, देवभोग, धरसींवा, पलारी विकासखंड अंतर्गत 17 (5.96 प्रतिशत) एवं राजिम विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में मंदिरों की संख्या 01 (0.35 प्रतिशत) पाये गये हैं।

तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षचयनित 285 तालाबों में विकासखंडानुसार सर्वाधिक हनुमान मंदिर वाले तालाबों की संख्या अभनपुर, भाटापारा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, पलारी एवं तिल्दा में 15 (5.26 प्रतिशत) बलौदाबाजार, बिलाईगढ़ अंतर्गत विकासखंडों में चयनित तालाबों की संख्या 12 (4.21 प्रतिशत) एवं आरंग, छुरा, कसडोल, मैनपुर, राजिम, सिमगा अंतर्गत 04 (1.40 प्रतिशत) मंदिर निर्मित पाये गये हैं।

अतः अध्ययन क्षेत्र के चयनित तालाबों में पाये गये मंदिरों में सर्वाधिक मंदिर शिवजी के 122 (42.81 प्रतिशत) एवं न्यूनतम हनुमान जी के मंदिर वाले तालाबों की संख्या 31 (10.88 प्रतिशत) पाये गये हैं।

तालाब में मठ: अध्ययन क्षेत्र में चयनित तालाबों की मेंड या मेंड के समीप मठ भी अध्ययन के दौरान पाये गये हैं। इस प्रकार के प्रतिरूप ग्रामीण क्षेत्रों में निर्मित तालाबों में देखे गये। साथ ही यह प्रतिरूप शासकीयकृत तालाबों की अपेक्षा निजी भूस्वामी की तालाबों में पाया गया है। चयनित 285 तालाबों में मठ पाये गये तालाबों की संख्या विकासखंडानुसार सारणी 5.4 में प्रस्तुत है।

 

सारणी 5.4

चयनित तालाबों के मेंडों पर मठ

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

मठ वाले/नहीं मठ वाले तालाबों की संख्या

मठ वाले तालाब

प्रतिशत

नहीं मठ वाले तालाब

प्रतिशत

1

आरंग

05

29

05

1.75

24

8.24

2.

अभनपुर

05

24

03

1.05

21

7.37

3.

बलौदाबाजार

04

21

06

2.10

15

5.26

4.

भाटापारा

04

33

08

2.81

25

8.77

5.

बिलाईगढ़

04

24

04

1.40

20

7.02

6.

छुरा

04

21

02

0.70

19

6.66

7.

देवभोग

04

18

03

1.05

15

5.26

8.

धरसीवां

04

20

02

0.70

18

6.31

9.

गरियाबंद

04

21

03

1.05

18

6.31

10.

कसडोल

04

17

02

0.70

15

5.26

11.

मैनपुर

04

20

02

0.70

18

6.31

12.

पलारी

04

14

03

1.05

11

3.86

13.

राजिम

02

06

01

0.35

05

1.75

14.

सिमगा

02

06

02

0.70

04

1.40

15.

तिल्दा

03

11

02

0.70

09

3.16

 

कुल

57

285

48

16.84

237

83.16

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा।

 

सारणी 5.4 से स्पष्ट है कि अध्ययन क्षेत्र में चयनित 285 तालाबों में मठ पाये गये तालाबों की संख्या 48 (16.84 प्रतिशत) एवं जिन तलााबों में मठ नहीं पाये गये, उनकी संख्या 237 (83.16 प्रतिशत) पाये गये हैं। मठ वाले तालाबों की सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बिलाईगढ़, देवभोग, गरियाबंद, पलारी अंतर्गत 21 (7.37 प्रतिशत) बलौदाबाजार, भाटापारा, विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में मठ वाले तालाबों की संख्या 14 (4.91 प्रतिषत) एवं छुरा, धरसीवां, कसडोल, मैनपुर, राजिम, सिमगा, तिल्दा अंतर्गत 13 (4.56) तालाब पाये गये हैं।

तालाब में घाट/पचरी का प्रतिरूपः अध्ययन क्षेत्र में चयनित तालाबों में घाट/पचरी का प्रतिरूप भी पाये गये हैं। तालाब में उपस्थित अन्य प्रतिरूपों की अपेक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतिरूप घाट-पचरी का होता है, बिना घाट-पचरी के तालाब नहीं बनाया जा सकता। इस प्रतिरूप का उपयोग मुख्य रूप से नहाने धाने- साफ-सफाई के कार्यों में किया जाता है। इनका निर्माण शासकीय एवं पंचायत द्वारा किया जाता है। अतः अध्ययन क्षेत्रों के चयनित तालाब में घाट/पचरी वाले तालाबों की संख्या विकासखंडानुसार सारणी 5.5 में प्रस्तुत किया गया है।

सारणी 5.5

चयनित तालाबों में घाट/पचरी

क्र.

विकासखंड

चयनित ग्रामों की संख्या

चयनित तालाबों की संख्या

चयनित तालाबों में घाट/पचरी

घाट

प्रतिशत

पचरी      

प्रतिशत

1.

आरंग

05

29

24

8.42

22

7.72

2.

अभनपुर

05

24

22

7.72

18

6.31

3.

बलौदाबाजार

04

21

20

7.02

12

4.21

4.

भाटापारा

04

33

30

10.53

25

8.72

5.

बिलाईगढ़

04

24

20

7.02

18

6.31

6.

छुरा

04

21

20

7.02

13

6.46

7.

देवभोग

04

18

15

5.26

14

4.91

8.

धरसीवां

04

20

18

6.31

14

4.91

9.

गरियाबंद

04

21

15

5.26

16

5.61

10.

कसडोल

04

17

14

4.91

15

5.26

11.

मैनपुर

04

20

15

5.26

15

5.26

12.

पलारी

04

14

12

4.21

10

3.51

13.

राजिम

02

06

10

3.51

08

2.80

14.

सिमगा

02

06

14

4.91

06

2.10

15.

तिल्दा

03

11

17

5.96

11

3.86

कुल

57

285

266

93.33

217

76.14

स्रोत: व्यक्तिगत सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त आंकड़ा।

 

सारणी 5.5 से स्पष्ट है कि तालाबों में घाट वाले तालाबों की संख्या 266 (93.33 प्रतिशत) एवं पचरी निर्मित वाले तालाबों की संख्या 217 (76.14 प्रतिशत) पाये गये हैं। जिनमें सर्वाधिक घाट वाले तालाबों की संख्या एवं न्यूनतम पचरी वाले तालाब पाये गये हैं।

तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षतालाब में घाट वाले प्रतिरूपों का अध्ययन: तालाबों में घाट महत्त्वपूर्ण प्रतिरूप होते हैं। प्रत्येक तालाब में इसकी संख्या दो से चार तक पायी जाती है। घाट का निर्माण तालाबों की मेंड (पार) के ऊपर या नीचे पत्थर रखकर किया जाता है, जैसे-जैसे जलस्तर घटता जाता है, उसी क्रम में घाट के स्थान में परिवर्तन होते जाते हैं। अतः अध्ययन क्षेत्र के चयनित तालाबों में घाट वाले तालाबों की संख्या विकासखंडानुसार सर्वाधिक आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, धरसीवां गरियाबंद, मैनपुर, तिल्दा अंतर्गत चयनित तालाबों में 186 (65.26 प्रतिशत), पलारी, राजिम, सिमगा, अंतर्गत 50 (17.54 प्रतिशत) एवं भाटापारा विकासखंड अंतर्गत घाट वाले तालाबों की संख्या 30 (10.53 प्रतिशत) पाये गये हैं।

तालाब में पचरी वाले प्रतिरूपों का अध्ययन: घाट का विस्तृत रूप पचरी कहलाती है। पचरी तालाबों की मेंड पर सीढ़ीदार श्रेणी में निर्मित की जाती है। यह तालाब में स्थाई प्रतिरूप होता है। इसका निर्माण शासकीय या ग्राम पंचायत के द्वारा किया जाता है। चयनित ग्रामीण क्षेत्रों के चयनित तालाबों में पचरी की संख्या दो से तीन तक पायी जाती है, कहीं-कहीं इनकी संख्या में वृद्धि होते पाये गये। ये महिला एवं पुरूषों के लिये अलग-अलग बनाया जाता है, उसी के अनुसार उपयोग करते हैं। अध्ययनरत तालाबों में पचरी वाले तालाबों की विकासखंडानुसार सर्वाधिक संख्या आरंग, अभनपुर, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, छुरा, देवभोग, धरसीवां, गरियाबंद, कसडोल, मैनपुर अंतर्गत 157 (55.09 प्रतिशत), पलारी, राजिम, सिमगा, तिल्दा विकासखंड अंतर्गत 35 (12.28 प्रतिशत) एंव भाटापारा विकासखंड अंतर्गत चयनित तालाबों में 25 (8.77 प्रतिशत) पचरी पाये गये हैं।

 

शोधगंगा

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन (A Geographical Study of Tank in Rural Raipur District)

2

रायपुर जिले में तालाब (Ponds in Raipur District)

3

तालाबों का आकारिकीय स्वरूप एवं जल-ग्रहण क्षमता (Morphology and Water-catchment capacity of the Ponds)

4

तालाब जल का उपयोग (Use of pond water)

5

तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष (Social and cultural aspects of ponds)

6

तालाब जल में जैव विविधता (Biodiversity in pond water)

7

तालाब जल कीतालाब जल की गुणवत्ता एवं जल-जन्य बीमारियाँ (Pond water quality and water borne diseases)

8

रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन : सारांश

 

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