तबाही का तांडव रचते-रचते रह गया वरदा

13 Dec 2016
0 mins read
cyclone
cyclone

ये प्राकृतिक प्रकोप संकेत दे रहे हैं कि मौसम का क्रूर बदलाव ब्रह्माण्ड की कोख में अंगड़ाई ले रहा है। यूरोप के कई देशों में तापमान असमान ढंग से गिरते व चढ़ते हुए रिकॉर्ड किया जा रहा है। शून्य से 15 डिग्री नीचे खिसका तापमान और हिमालय व अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में 14 डिग्री सेल्सियस तक चढ़े ताप के जो आँकड़े मौसम विज्ञानियों ने दर्ज किये हैं, वे इस बात के साफ संकेत हैं कि जलवायु परिवर्तन की आहट सुनाई देने लगी है। चक्रवाती तूफान ने तमिलनाडु में आकर अपनी पूरी ताकत तो दिखाई लेकिन मौसम विभाग की पूर्व सूचना और तमिलनाडु सरकार ने दस दिन पहले ही तूफानी चेतावनी प्रभावित इलाकों में प्रचारित कर ज्यादा नुकसान होने से लोगों को बचा लिया। इस तूफान ने चेन्नई के अलावा तिरुवल्लुअर और कांचीपुरम में अपना असर दिखाया। रेल, बस और हवाई सेवाएँ बन्द करनी पड़ी।

चेन्नई से चलने वाली 17 से ज्यादा रेलें रद्द की गईं। 224 सड़कों पर आवागमन बन्द रहा, तूफान से 260 पेड़, 37 बिजली के खम्भे व 24 घर गिर गए। 4 लोगों की मौतें भी हुईं। लेकिन सूचना मिलने के बाद सरकार ने 95 राहत शिविर रातों-रात लगाकर 9000 से भी ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाकर अपनी जिम्मेदारी निभाई।

इस तूफान की रफ्तार इतनी तेज थी कि इसका असर सोमवार की रात और मंगलवार के दिन मध्य प्रदेश के बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी और बालाघाट में भी दिखा। यहाँ बादल एवं कोहरा छाए रहे और बारिश भी हुई। इस तूफान के बाद तमिलनाडु में भू-स्खलन का खतरा भी बताया गया।

तूफान की सूचना मिलने के बाद एनडीआरएफ, सेना और कोस्ट गार्ड ने भी तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश के तटीय हिस्सों में बचाव कार्यों के लिये अहम भूमिका निभाई। अभी भी चार बड़े जहाज और छह पेट्रोलिंग जहाजों के साथ कोस्ट गार्ड हालात पर नजर रखे हुए हैं। एयरक्रॉफ्ट भी हर विपरीत स्थिति पर नजर रखे हुए है।

यह सतर्कता इसलिये बरती जा रही है, जिससे मछुआरों के चक्रवात में फँसे होने की जानकारी मिलने पर उन्हें बचाया जा सके। इस हेतु आईसीजी जहाज भी तैनात किये गए हैं। यदि सरकार इतने एहतियात नहीं बरतती तो बड़ी जन व पशुहानि हो सकती थी। मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम की इस प्रशासनिक व्यवस्था को दाद देनी होगी कि उन्होंने तमिलनाडु में जयललिता की मृत्यु के बाद चल रही शोक लहर में भी तूफान की गति को नियंत्रित करने में प्रबन्धन की शानदार मिशाल पेश की।

इस सबके बावजूद नीति नियंत्रकों को यह समझने की जरूरत है कि भारत समेत पूरी दुनिया में तूफान, भूकम्प और अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला जारी है। उत्तराखण्ड और कश्मीर में बाढ़ की यह तबाही हम देख चुके हैं। नेपाल में भूकम्प ने हाल ही में भयंकर तबाही मचाई थी। चीन ने भी इस साल भयंकर बारिश का कहर झेला।

अब इन प्राकृतिक प्रकोपों को क्या मानें, बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण, जलवायु परिवर्तन का संकेत अथवा यह रौद्र रूप प्रकृति के कालचक्र की स्वाभाविक प्रक्रिया है या मनुष्य द्वारा प्रकृति से किये गए अतिरिक्त खिलवाड़ का दुष्परिणाम! इसके बीच एकाएक कोई विभाजक रेखा खींचना मुश्किल है। लेकिन बीते चार-पाँच साल के भीतर अमेरिका, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस, हैती और श्रीलंका में जिस तरह से तूफान, बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन, धूल के बवंडर और कोहरे के जो भयावह मंजर देखने में आ रहे हैं, इनकी पृष्ठभूमि में प्रकृति से किया गया कोई-न-कोई तो अन्याय जरूर अन्तर्निहित है।

इस भयावहता का आकलन करने वाले जलवायु विशेषज्ञों का तो यहाँ तक कहना है कि आपदाओं के ये तांडव यूरोप, एशिया और अफ्रीका के एक बड़े भू-भाग की मानव आबादियों को रहने लायक ही नहीं रहने देंगे। लिहाजा अपने मूल निवास स्थलों से इतनी बड़ी तादाद में विस्थापन व पलायन होगा कि एक नई वैश्विक समस्या ‘पर्यावरण शरणार्थी’ के खड़ी होने की आशंका है। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में इंसानी बस्तियों को प्राकृतिक आपदाओं के चलते एक साथ उजड़ना नहीं पड़ा है। यह संकट शहरीकरण की देन भी माना जा रहा है।

इस बदलाव के व्यापक असर के चलते खाद्यान्न उत्पादन में भी कमी आएगी। अकेले एशिया में बदहाल हो जाने वाली कृषि को बहाल करने के लिये हरेक साल करीब पाँच अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा। बावजूद दुनिया के करोड़ों स्त्री, पुरुष और बच्चों को भूख व कुपोषण का अभिशाप झेलना होगा। फिलहाल तूफान के कहर ने हैती में ऐसे ही हालात बना दिये हैं।

ये प्राकृतिक प्रकोप संकेत दे रहे हैं कि मौसम का क्रूर बदलाव ब्रह्माण्ड की कोख में अंगड़ाई ले रहा है। यूरोप के कई देशों में तापमान असमान ढंग से गिरते व चढ़ते हुए रिकॉर्ड किया जा रहा है। शून्य से 15 डिग्री नीचे खिसका तापमान और हिमालय व अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में 14 डिग्री सेल्सियस तक चढ़े ताप के जो आँकड़े मौसम विज्ञानियों ने दर्ज किये हैं, वे इस बात के साफ संकेत हैं कि जलवायु परिवर्तन की आहट सुनाई देने लगी है।

इसी आहट के आधार पर वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि 2055 से 2060 के बीच में हिमयुग आ सकता है, जो 45 से 65 साल तक वजूद में रहेगा। 1645 में भी हिमयुग की मार दुनिया झेल चुकी है। ऐसा हुआ तो सूरज की तपिश कम हो जाएगी। पारा गिरने लगेगा। सूरज की यह स्थिति भी जलवायु में बड़े परिवर्तन का कारण बन सकती है। हालांकि सौर चक्र 70 साल का होता है। इस कारण इस बदली स्थिति का आकलन एकाएक करना नामुमकिन है।

यदि ये बदलाव होते हैं तो करोड़ों की तादाद में लोग बेघर होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया भर में 2050 तक 25 करोड़ लोगों को अपने मूल निवास स्थलों से पलायन करने के लिये मजबूर होना पड़ सकता है। बदलाव की यह मार मालदीव और प्रशान्त महासागर क्षेत्र के कई द्वीपों के वजूद पूरी तरह लील लेगी।

इन्हीं आशंकाओं के चलते मालदीव की सरकार ने कुछ साल पहले समुद्र की तलहटी में पर्यावरण संरक्षण के लिये एक सम्मेलन आयोजित किया था। जिससे औद्योगिक देश कार्बन उत्सर्जन में कटौती कर दुनिया को बचाएँ। अन्यथा प्रदूषण और विस्थापन के संकट को झेलना मुश्किल होगा। साथ ही सुरक्षित आबादी के सामने इनके पुनर्वास की चिन्ता तो होगी ही, खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा भी अहम होगी। क्योंकि इस बदलाव का असर कृषि पर भी पड़ेगा। खाद्यान्न उत्पादन में भारी कमी आएगी।

अन्तरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान ने यूरोपीय देशों में आई प्राकृतिक आपदाओं का आकलन करते हुए कहा है कि ऐसे ही हालात रहे तो करीब तीन करोड़ लोगों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। भारत के विश्व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन का कहना है, यदि धरती के तापमान में महज एक डिग्री सेल्सियस की ही वृद्धि हो जाती है तो गेहूँ का उत्पादन 70 लाख टन घट सकता है।

हालांकि वैज्ञानिक इस विकटतम स्थिति में भी निराश नहीं हैं। मानव समुदायों को विपरीत हालातों में भी प्राकृतिक परिवेश हासिल करा देने की दृष्टि से प्रयत्नशील हैं। क्योंकि वैज्ञानिकों ने हाल के अनुसन्धानों में पाया है कि उच्चतम ताप व निम्नतम जाड़ा झेलने के बावजूद जीवन की प्रक्रिया का क्रम जारी है। दरअसल जीव वैज्ञानिकों ने 70 डिग्री तक चढ़े पारे और 70 डिग्री सेल्सियस तक ही नीचे गिरे पारे के बीच सूक्ष्म जीवों की आश्चर्यजनक पड़ताल की है।

अब वे इस अनुसन्धान में लगे हैं कि इन जीवों में ऐसे कौन से विलक्षण तत्व हैं, जो इतने विपरीत परिवेश में भी जीवन को गतिशील बनाए रखते हैं। लेकिन जीवन के इस रहस्य की पड़ताल कर भी ली जाये तो इसे बड़ी मानव आबादियों तक पहुँचाना कठिन है। लिहाजा ‘वरदा’ का शैतानी तांडव देखने के बाद जरूरी हो गया है कि प्रकृति के अन्धाधुन्ध दोहन और औद्योगिक विकास पर अंकुश लगाने के उपायों को तरजीह दी जाये।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading