तबाही की दांस्ता....

26 Jun 2013
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भागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा और उनकी सहायक नदियों प्रमुख रूप से अस्सीगंगा, भिलंगना, बिरहीगंगा, मंदाकिनी, पिडंरगंगा नदियों के किनारे के होटल, दुकानें, घर आदि गिरे, पहाड़ दरके, सड़के टूटी जिससे हजारों की संख्या में वाहन बह गए कई स्थानों पर नदी में तेजी से गाद की मात्रा आई जो बाढ़ के साथ बस्तियों में घुसी, अनियंत्रित तरह से बनी पहाड़ी बस्तियां बही।

चूंकि केदारघाटी की चर्चा बहुत आ रही है। इसलिए वहां के बारे में यहां नहीं लिखा है।

अलकनंदागंगा से..


बद्रीनाथ के लगभग 55 किलोमीटर नीचे जोशीमठ से अलकनंदा में एक के बाद एक तमाम होटल बह गए, कारें बह गR गैस सिलैण्डर, टायर टयूब, गाड़ियां नदी में ऐसे बह रही थी जैसे की कागज के खिलौने। इस तरह जोशीमठ के पास में बहुत सारे होटल बह गए। कई-कई मंजिलों के होटल नदी में टूटकर बहते हुए नजर आए।

बांध कंपनियों के कारण भी काफी ज्यादा नुकसान हुआ। जैसे की जे0पी0 की विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना (जविप) के जलाशय के पानी के बहने के कारण लामबगड़ गांव का बाज़ार बह गया।

अपुष्ट समाचार तो यह भी है कि तपोवन विष्णुगाड जविप की निर्माणाधीन सुरंग में कार्यरत काफी मजदूर भी मारे गए हैं।

इसके बाद नीचे विष्णुगाड पीपलकोटी जविप में जो टेस्टिंग सुरंग बनाई गई थी, उसका समान पूरी तरह से बह गया और सुरंग के अंदर ढेर सारा पत्थर, मलबा रुक गया। इस तरह से सुरंग लगभग बंद हो गई। हरसारी गांव के लोग जोकि इस सुरंग के ऊपर रहते हैं महीनों से इस बात को कह रहे थे कि इस ओर विस्फोट की आवाजें आती है, हमारा रहना दूभर हो गया हैं।

रोज एस0डी0एम0 को, डी0एम0 को बांध कंपनी को चिट्ठी फोन होते थे, विश्व बैंक के अधिकारी और बांध कंपनी के अधिकारी को कितनी बार आ चुके थें। मगर कोई नतीजा नहीं निकला। अब गंगा ने नतीजा निकाल दिया।

रुद्रप्रयाग से लेकर केदारनाथ धाम तक पूरी केदार घाटी बादल फटने से भयानक तरह से बर्बाद हुई। जिसका आकलन करना और भरपाई करना मुश्किल है। और सरकार के अब तक आपदा प्रंबधन और लोगों के पुनर्वास के इतिहास को देखते हुए तो असंभव ही लगता है। नदी किनारे बसे अगस्तमुनि, चंद्रापुरी जैसे छोटे पहाड़ी बाजार और शहर समाप्त प्रायः हो गए। मंदाकिनी नदी पर फाटा-ब्योंग और सिंगोली भटवाड़ी जविप को काफी नुकसान हुआ है। केदारघाटी में अन्य जल विद्युत परियोजनाओं को भी नुकसान पहुंचा है।

पिंडरगंगा घाटी में 8 पैदल पुल बह गए है। चेपड़ो गांव में दलित बस्तियों में नुकसान सहित 12 के लगभग मकान दुकान बह गए। थराली तहसील से लेकर थराली बजार तक सड़क खत्म हो गई है। थराली पुल के पास की 10 दुकाने समाप्त हो गई और अन्य 25 से 30 दुकानें काम लायक नहीं बची है। थराली का मोटर पुल पैदल यात्रा के लायक भी नहीं बचा है। ज्ञातव्य है कि पिंडरगंगा में थराली प्रमुख बाजार है। पूरी पिडंरगंगा की सड़क बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है।

अलकनंदागंगा पर बनी श्रीनगर जविप के मलबे ने श्रीनगर शहर में कहर ढाया है। पर्यावरण व वन मंत्रालय ने इस मलबे पर कोई कदम नहीं उठाया था। सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में मामला है पर निर्णय सुरक्षित है। बांध बन गया किंतु नगर जरूर असुरक्षित हो गया। इस बारिश में 70 मकानों समेत सीमा सुरक्षा बल और अनेक अन्य इमारतों में मलबा जम गया है।

देवप्रयाग में निचले हिस्से में कुछ इमारतें बही हैं।

भागीरथीगंगा घाटी से..


भागीरथीगंगा में गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक के रास्ते पहले टूटे हुए थे अब और भी खत्म हो गए है। भटवाड़ीगांव पहले भूस्खलन की चपेट में आ चुका था। वहां का पूरा बाजार समाप्त हो गया था। उनका पुनर्वास आजतक नहीं हो पाया है।

गंगोत्री से हर्षिल तक पैदल रास्ता बचा है, वहां से लोंगो को हैलिकॉप्टर से चिन्याली सौड़ तक हैलिकॉप्टर और उसके बाद सड़क मार्ग से नीचे रास्ता खुला है। हर्षिल से ऊपर जालन्ध्री गाड और तपोड़ा गाड में बहुत तेजी से पानी आया जिससे वहां लक्ष्मी नारायण मंदिर के पीछे 30 मिनट की झील बनी और फिर पानी बहा जिससे हर्षिल में दो चार मकान बह गए।

झाला गाँव के पास पानी बहुत तेजी से बड़ा जसपुर व पुरोला की सड़क वह गई सुक्की गाँव से पहले की सड़क कई किलोमीटर ध्वस्त हो गई। डबराणी से गंगनानीए सुनगरए भटवाड़ी रोड पूरी तरह ध्वस्त हो गया, चंडेती बाजार में दुकानें व भटवाड़ीगांव के निचे का हिस्सा बह गया। मल्ला, लता, सेज, गाँव के रास्ते पूरी तरह ध्वस्त हुए हैं। सेज गाँव के नीचे नदी किनारे दिल्ली वालों की धर्मशाला बह गई। नालोड़ा और डीडसारी का पुल बह गया।

उतरकाशी में राशन की कमी है क्योंकि बहुत सारी दुकानें वह गईं लोगों ने भविष्य की आशंका को देखते हुये राशन कुछ राशन ज्यादा खरीद लिया

उत्तरकाशी के बाईं तरफ स्थित जोशियाड़ा क्षेत्र में लगभग 400 मीटर से ज्यादा सड़क से नदी के बीच की सभी इमारतें भागीरथीगंगा में प्रवाहित हो गई। शेष बचे क्षेत्र में लोगों को मकान खाली करके भागना पड़ा है। जोशियाड़ा क्षेत्र की तबाही की ज्यादा जिम्मेदारी मनेरी-भाली चरण दो जविप की है। जिसके जलाशय के किनारों पर समय रहते कोई सुरक्षा दिवार नहीं बनाई गई थी। (3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा में आई बाढ़ के कारण हुये नुकसानों के संदर्भ में भी माटू जनसंगठन ने जो रिपोर्ट ‘आपदा में फायदा’ निकाली थी उसमें यह चेतावनी दी थी कि अगले मानसून में उत्तरकाशी में फिर नुकसान हो सकता है, जिसकी जिम्मेदार उत्तराखंड जलविद्युत निगम होगी। किंतु सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। अब यह नुकसान हो गया।)

धरासू तक का सारा मलबा टिहरी बांध की झील में समा गया है जिसका जलाशय स्तर 18 जून को 740 मीटर तक पंहुच गया था। पूर्ण जलाशय स्तर 835 मीटर है। मुख्यमंत्री ने टिहरी बांध से बाढ़ रोकने की खुशी प्रकट की। वे यह भूल गए की अभी 3 महीने मानसून और है तथा 2010 में सितंबर में बाढ़ आई थी तब टिहरी बांध का जलाशय केंद्रीय जल आयोग के मापदंडो को दरकिनार करके पूरा भरा हुआ था। कोटेश्वर बांध निर्माण का मलबा जरूर इस बाढ़ ने बहा दिया।

पूरी गंगा घाटी और यमुना घाटी में तेज वर्षा के कारण किसानों के काफी खेत बहे हैं। यह मौसम धान की रोपाई का था। धान की रोपाई के लिए तैयार किया जाने वाला बीज भी कही-कहीं बह गया है। और कहीं-कहीं खेतों में साल भर से इकट्ठी की गई गोबर की खाद बह गई है। जिससे उनकी साल भर के लिए चावल की फसल समाप्त हो गई है।

यमुना घाटी की खबरें ज्यादा नहीं आ पाई है। नुकसान भले की गंगाघाटी के मुकाबले बहुत कम हुआ है। किंतु काफी लोग वहां भी बेघर हुए हैं।

प्रस्तावित लखवार बांध के क्षेत्र में उफनती यमुना को मिलने वाली अगलाड़ नदी में तीन दिन की वर्षा ने पैदल पुल को बहा दिया है।

भागीरथीगंगा, अलकनंदागंगा व यमुनाघाटी से


पूरण सिंह राणा, प्रकाश रावत, सीताराम बहुगुणा, बस्सीलाल, बृहषराज तड़ियाल, रमेश, बलवंत आगरी, सुदर्शनसाह असवाल और विमलभाई।

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