तेजी से सूख रहे हैं कुएं

हम एक ऐसी पीढ़ी बन चुके हैं जिसने अपनी नदियां खो दी हैं और परेशान करने वाली बात यह है कि हम अपने तरीके नहीं बदल रहे हैं। सोचे-समझे ढंग से हम और ज्यादा नदियों, झीलों, कुओं और ताल-तलैयों को मारेंगे। हम फिर ऐसी पीढ़ी बन जाएंगे, जिसने सिर्फ अपनी नदियां ही नहीं खोईं, बल्कि जल-संहार किया है।
- सुनीता नारायण, निदेशक, सीएसई
केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने जल संसाधन मंत्रालय को यह जानकारी दी है कि देश के 56 फीसदी कुएं के जल स्तर में वर्ष 2003-12 की तुलना में 2013 में कमी दर्ज की गई है। सीजीडब्ल्यूबी एक सरकारी संगठन है जो देश के अलग-अलग इलाकों में भूजल की उपलब्धता के बारे में पता लगाता रहता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, भूजल के रिचार्ज की गति में भी कमी आई है। सीजीडब्ल्यूबी ने देश के अलग-अलग इलाकों के 10,219 कुएं के जल स्तर का मूल्यांकन किया, जिसमें से 5,699 कुएं के जलस्तर में बहुत भारी गिरावट दर्ज की गई। पानी का उपयोग सिंचाई, कल-कारखानों और तेजी से बढ़ रही आबादी के लिए पेयजल की बढ़ती जरूरतों के चलते भूजल में कमी आ रही है।

तमिलनाडु, पंजाब, केरल, कर्नाटक, मेघालय, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और दिल्ली के कुएं के जलस्तर में क्रमशः 76, 72, 71, 69, 66, 65, 64 और 62 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। आश्चर्य यह है कि इन राज्यों में एक-दो राज्यों को छोड़कर पर्याप्त वर्षा होती है। वहीं दूसरे और कुछ ऐसे राज्यों के कुएं के जल स्तर में बढ़ोतरी दर्ज की गई। इन राज्यों में दादर व नागर हवेली (80), अरुणाचल प्रदेश (66), जम्मू व कश्मीर (62, मध्य प्रदेश (58), पुड्डूचेरी (57), छत्तीसगढ़ (55), असम (54) और राजस्थान (51) के कुएं के जलस्तर में पिछली अवधि के मुकाबले सुधार दर्ज किया गया है।

पानी खपत के मामले में खेती-किसानी सबसे ऊपर है। जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर घरेलू उपयोग और औद्योगिक उपयोग आता है। भूजल के स्तर में लगातार गिरावट को लेकर लोकसभा के वर्तमान मानसून सत्र में जल संसाधन राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने कहा, ‘राज्य सरकारों को भूजल में आ रही कमी के मद्देनजर उसे दूर करने के लिए आगाह किया गया है। राज्यों से पानी के दुरुपयोग पर नियंत्रण लगाने और जलाशयों को रिचार्ज की गति बनाए रखने के उपायों पर गौर करने को कहा गया है।’

देश में उपयोग में लाए जा सकने वाले पानी की सालाना उपलब्धता 1,123 अरब घनमीटर (बीसीएम) है, जिसमें से 690 बीसीएम ताल-तलैया से उपलब्ध हो पाता है जबकि 433 बीसीएम कुएं और नलकूपों से उपलब्ध हो पाता है। भारत की आबादी दुनिया की कुल आबादी का 18 फीसदी है, जबकि दुनिया में कुल पानी के स्रोतों का सिर्फ चार फीसदी ही अपने यहां उपलब्ध है।

कुआंएक अनुमान के अनुसार देश की जनसंख्या जिस गति से बढ़ रही है उसके हिसाब से 2050 तक पानी की सलाना जरूरत बढ़कर 1,180 बीसीएम हो जाएगी। देश में जल संसाधनों के अलग-अलग स्रोतों की तबाही को लेकर चिंतित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरन्मेंट (सीएसई) की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है, ‘हम अपनी नदियों से पीने के लिए, सिंचाई के लिए और जलविद्युत परियोनजाओं को चलाने के लिए पानी उठाते हैं। पानी लेकर हम उन्हें कचरा वापस करते हैं। नदी में पानी जैसा कुछ बचता ही नहीं है। मल-मूत्र और औद्योगिक कचरे के बोझ से वह अदृश्य हो जाती है। हम एस ऐसी पीढ़ी बन चुके हैं जिसने अपनी नदियां खो दी हैं और परेशान करने वाली बात यह है कि हम अपने तरीके नहीं बदल रहे हैं। सोचे-समझे ढंग से हम और ज्यादा नदियों, झीलों, कुओं और ताल-तलैयों को मारेंगे। हम फिर ऐसी पीढ़ी बन जाएंगे जिसने सिर्फ अपनी नदियां नहीं खोईं, बल्कि जल-संहार भी किया है। क्या पता, एक समय ऐसा भी आएगा जब हमारे बच्चे भूल जाएंगे कि यमुना, कावेरी और दामोदर नदियां थीं। वे उन्हें नालों के रूप में ही जानेंगे।’

 

कुएं के जल स्तर में गिरावट (प्रतिशत में)

तमिलनाडु

76

पंजाब

72

केरल

71

कर्नाटक

69

मेघालय

66

हरियाणा

65

प.बंगाल

64

दिल्ली

62

 



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