तीस साल बाद

2 Dec 2013
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भूजल प्रभावित इलाकों में जिंक, मैगनीज, कॉपर, पारा, क्रोमियम, सीसा, निकिल जैसी हानिकारक धातुओं की मात्रा मानक से अधिक मिली है। अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कहीं अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है। उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन भीतर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। भोपाल गैस त्रासदी को इस दिसंबर में 30 साल हो जाएंगे। इस बड़ी अवधि में मध्य प्रदेश और केन्द्र सरकार मिलकर भी यहां पड़े जहरीले कचरे का निपटान नहीं कर पाई हैं। हर साल बारिश के साथ इसका रिसाव भूमि में होता है और अब आशंका की जा रही है कि यह रिसाव लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में फैल गया है। तीन दिसंबर सन् 1984 को भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में हुई गैस त्रासदी के बाद के तीस वर्षों के दौरान यहां कई तरह के अध्ययन हुए हैं। अभी हाल ही में दिल्ली की संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा एक अध्ययन किया गया है। अध्ययन के बाद इस संस्था ने देश भर के विशेषज्ञों के साथ बैठकर इस घातक प्रदूषण से मुक्ति पाने की एक योजना बनाई ताकिवर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को इसका ख़ामियाज़ा न भुगतना पड़े। उस भयानक हादसे के बाद किसी संस्था ने पहली बार इस तरह के काम की सामूहिक पहल की है। दूसरी ओर तीस वर्षों से सतत संघर्षरत संगठनों ने भी कई बार सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया है कि इस घातक कचरे के कारण गैस पीड़ितों की जिदंगी से खिलवाड़ हो रहा है। इसके निपटान को गंभीरता से लिया जाए।

जिस गैस ने इतना ज्यादा संहार किया, उसे बनाने वाली चीजों का उतना ही जहरीला कचरा अभी भी, तीस साल बाद भी वहीं पड़ा है। इस अध्ययन को लेकर एकजुट हुए विशेषज्ञों ने साफ तौर पर कहा है कि यदि अगले पांच वर्षों में इस कचरे का निपटारा नहीं होता है तो पूरे इलाके में इसके घातक परिणाम सामने आएंगे। ज़मीन के भीतर इन जहरीले रसायनों के असर से खतरनाक संक्रमण बढ़ चला है। इस संस्था के उप निदेशक श्री चन्द्रभूषण ने बताया कि संयंत्र के बंद होनेके बाद सालों से पड़े इस कचरे से वहां की मिट्टी और भूजल संक्रमित होने लगा है। आसपास रहने वाले लोगों की सेहत पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

इस रिपोर्ट में पिछले 20 सालों में यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे पर हुए अन्य पंद्रह अध्ययनों की रिर्पोटों को भी शामिल किया है, जिन्हें गैर सरकारी संस्थाओं के अलावा कुछ सरकारी विभागों ने भी तैयार किया है। मौजूद जहरीले कचरे के रिसाव के कारण भूजल प्रदूषण का दायरा लगातार बढ़ रहा है। आने वाले दिनों में यह रिसाव कोई 10 किलोमीटर तक भी फैल सकता है। इस सबके बाद भी यदि सरकार कोई कदम न उठाए तो? सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट संस्था ने अपनी तरफ से एक योजना का प्रारूप तैयार किया है। श्री चंद्रभूषण का कहना है कि इस योजना में बताए गए उपायों से भूजल व मिट्टी के प्रदूषण को काफी हद तक दूर किया जा सकेगा। इस संस्था ने इस मसले पर जुटी सभी संस्थाओं के साथ दिल्ली में भी एक बैठक का आयोजन किया था। इसमें इस बात को ठीक से समझने वाले अनेक वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों के साथ यहां की मिट्टी और भूजल को कचरे से मुक्त करने और यहां के जहरीले कचरे को समाप्त करने और तब से बंद पड़े कारखाने के संयंत्रों और मशीनरी आदि पर विस्तार से चर्चा की गई थी। बैठक में विशेषज्ञों ने माना कि एक छोटी-सी जगह पर पड़ा 350 टन कचरा तो इस पूरे प्लांट में मौजूद कचरे का मामूली हिस्सा भर है। सबसे बड़ी चुनौती तो मिट्टी और भूजल को इस कचरे के घातक संक्रमण से मुक्त बनाना है।

नागरिकों द्वारा बनाई गई इस योजना में सभी तरह के उपायों को शामिल किया गया है। पहले चरण में कुछ तात्कालिक उपाय बताए गए हैं तो दूसरे चरण में मध्य और लंबी अवधि के उपाय बताए गए हैं। विभिन्न संगठनों द्वारा तैयार इन रिपोर्टों में कुछ असमानताएं ज़रूर हैं, किंतु सभी ने यहां की मिट्टी व पानी में भारी मात्रा में धातुओं को पाया है। पूरे क्षेत्र और यहां बने जलाशय को अधिग्रहण करके उसके चारों ओर तार की बागड़ लगाई जाए ताकि आसपास के मुहल्लों के लोग खासकर बच्चे इस क्षेत्र में नहीं आ सकें। जलाशय क्षेत्र में अभी चल रहे सभी कामों पर रोक लगाई जाए। इसके साथ ही ऐसे उपाय हों जिससे कि बरसात के दौरान बरसने वाला पानी वहां ज़मीन के भीतर नहीं जा पाए।

क्षेत्र में जमा सारे कचरे को बाहर निकाला जाए। इस कचरे में मौजूद रसायनों को उनकी प्रकृति के अनुसार उपचारित किया जाए, उन्हें बुझाया जाए और फिर नष्ट किया जाए।

कारखाने में एक छोटी-सी जगह पर पड़े 350 टन कचरे की पहचान करके लोगों को बताया जाए कि उसमें कौन-कौन से जहरीले रसायन मिले हुए हैं। पीथमपुर में कचरे को नष्ट करने के काम के नतीजों के आधार पर इस कचरे को भी नष्ट किया जाए। यह काम केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या फिर किसी अन्य ऐसी ही संबंधित एजेंसी के निर्देशन में होना चाहिए। मध्य और लंबी अवधि के उपायों में पहला सुझाव है कि भूजल पर जहरीले रसायनों के असर को जानने के लिए वृहद अध्ययन किया जाए और फिर नमूनों की जांच किसी प्रामाणिक प्रयोगशाला में की जाए। इसके आधार पर इसे संक्रमण मुक्त करने के उपाय तलाशे जाएं।

बैंट, बैंट स्क्रबर, स्टोरेज टैंक और कंट्रोल रूप समेत पूरे एम.आई.सी. नामक गैस के संयंत्र को संरक्षित करके इस इलाके को जहरीले रसायनों से मुक्त करने के प्रयास होना चाहिए। जहरीले रसायनों से मुक्त करने के बाद इस पूरे परिसर को एक स्मारक की तरह सुरक्षित रखा जाए। इस जगह पर उद्योगों में हो सकने वाली ऐसी भयानक दुर्घटनाओं से बचने और उनके नियंत्रण निवारण का शास्त्र समझने, बनाने की एक संस्था भी खड़ी की जाए।

भूजल प्रभावित इलाकों में जिंक, मैगनीज, कॉपर, पारा, क्रोमियम, सीसा, निकिल जैसी हानिकारक धातुओं की मात्रा मानक से अधिक मिली है। अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कहीं अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है। उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन भीतर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। यहां तरह-तरह के विषैले पदार्थों से मिट्टी और पानी में संक्रमण बढ़ता जा रहा है। पीथमपुर स्थित राम की कंपनी के कर्मचारियों ने कारख़ानों से जहरीला कचरा उठाने की मात्रा औपचारिकता की है। परिसर में ही कई स्थानों पर जहरीले कचरे को निपटान के नाम पर ज़मीन में ही दबा दिया जाता था। यह अभी भी वहीं दबा पड़ा है। कारखाने के कोकयार्ड में ही कोई 350 टन जहरीला कचरा रखा हुआ है। इसे कारखाने की दस-बारह जगहों से उठाया गया है। इस कचरे में 164 टन मिट्टी है।

श्री चंद्रभूषण का कहना है कि अभी तक जो अध्ययन हुए हैं वे तीन किलोमीटर के दायरे में ही सिमटे रहे हैं। एक ही दिशा में बहने से पिछले 29 सालों में भूजल कहां से कहां तक पहुंच गया होगा, यह किसी को नहीं मालूम। इसका दायरा दस किलोमीटर फैलने की आशंका है। कारखाने से रिसी मिक गैस से प्रभावितों के स्वास्थ्य पर हुए असर के दूरगामी परिणाम पर भी लगातार शोध किया जा रहा है। यह इस साल के अंत में पूरा हो जाना चाहिए। इस दल में आठ वैज्ञानिक हैं। ये एक लाख बीस हजार लोगों पर अध्ययन कर रहे हैं। गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के श्री अब्दुल जब्बार का कहना है कि संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कारखाने को पूरी तरह से सील कर देना चाहिए तथा आसपास के लोगों का यहां आना-जाना रोक देना चाहिए। पानी व मिट्टी के संक्रमण को रोकने के लिए तत्काल उपाय किए जाना चाहिए। उनके अनुसार भूजल का प्रदूषण डेढ़ से दो किलोमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से फैल रहा है।

निराश्रित पेंशन भोगी महिला संगठन के श्री बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि इसके साथ ही हमें 32 एकड़ ज़मीन के कचरे के निपटान की बात करनी होगी। इस पूरे काम को बहुत ही पारदर्शिता के साथ करना चाहिए। भोपाल ग्रुप ऑफ इंफारमेशन एंड एक्शन नामक संस्था के श्री सतीनाथ षडंगी ने कहा कि यदि पांच साल के भीतर इस जहर को बुझाया नहीं जा सका तो इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत घातक होंगे। अब तक कचरे के निपटान की सिर्फ बातें हुई हैं। काम तो करो अब।

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