उबाल कर पीएं पानी

गांवों में जलजनित बीमारी बड़ी समस्या बन कर उभरी है। पेट की बीमारी और पीलिया रोग से बड़ी संख्या में लोग ग्रसित हो रहे हैं। इसकी एक वजह तो दूषित पानी की आपूर्ति और गांवों में साफ-सफाई की अनदेखी है। जलजमाव, गंदगी, दूषित जल और मच्छरों की वजह से ही जलजनित इंटरो वायरस और गैर पोलियो फालिज वायरस पनप रहे हैं। दोनों एक-दूसरे को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं और गरीबी, गंदगी, अशिक्षा, अभाव के कारण तेजी से अपनी गिरफ्त में गरीबों को ले रहे हैं। राज्य के कुछ जिलों में पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा होने से वहां के लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। कम लेयर पर बोरिंग किये हुए चापाकल के पानी से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

जलजनित बीमारी


दूषित पानी पीने से कई बीमारियां चपेट में ले सकती हैं। ये बीमारियां गंदे पानी में रहनेवाले छोटे-छोटे जीवाणुओं के कारण होती हैं, जो गंदे पानी के साथ से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ऐसे पानी की वजह से होनेवाली बीमारियों के कई कारक हो सकते हैं, जिनमें वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और पेट में होने वाले रिएक्शन प्रमुख हैं। गंदा पानी पीने से बैक्टीरियल इंफेक्शन हो सकता है, जिसकी वजह से हैजा, टाइफाइड, पेचिश जैसी बीमारियां अपना शिकार बना सकती हैं। गंदा पानी पीने से वायरल इंफेक्शन हो सकता है, जिससे हेपेटाइिटस ए, फ्लू, कॉलरा, टायफाइड और पीलिया जैसी खतरनाक बीमारियां होती हैं।

बचाव


जलजनित बीमारियों से बचने का सबसे सरल उपाय यह है कि पानी को उबाल कर पीएं।
जलस्रोतों के इर्द-गिर्द गंदगी न फैलने दें।

केस स्टडी-एक


रोहतास जिले के शिवसागर के बड़ुआ गांव में पानी में 120 प्रतिशत फ्लोराइड की मात्रा बतायी जाती है। इसे पीते ही लोगों की जीभ ऐंठने लगती है। गांव में 62 लाख रुपये की लागत से पीएचइडी द्वारा लगा फ्लोराइड ट्रीटमेंट प्लांट भी बेकार साबित हुआ है। बड़ुआ, बरेवां, कुशहार, करूप समेत कई गांवों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा पायी गयी है। लेकिन, बड़ुआ गांव में कोई पैर से विकलांग है, तो कोई हाथ से। किसी का मुंह टेढ़ा है, तो किसी की आंखें टेढ़ी।

कहते हैं सीएस


रोहतास के दो दर्जन से अधिक गांवों के पानी में फ्लोराइड की शिकायते हैं। फ्लोराइडयुक्त पानी तीखा अधिक होता है, जिसे पीने से लोग शारीरिक रूप से विकलांग होते हैं। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग, पीएचइडी व जिला प्रशासन संयुक्त रूप से प्रयास कर रहा है। बड़ुआ गांव में फ्लोराइड की मात्रा 110 से 120 प्रतिशत पायी गयी है। स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर गांव में चिकित्सकों की टीम को भेज ग्रामीणों का स्वास्थ्य परीक्षण कराता है।
डॉ रामजी सिंह, सिविल सर्जन, रोहतास

केस स्टडी-दो


भागलपुर के भूवालपुर व रन्नूचक के 90 फीसदी हैंडपंपों से निकला पानी दो-से-चार घंटे में ही पीला हो जाता है। उसमें छाली बैठ जाती है, पीने में अजीब लगता है। तीन साल पहले यहां यूनिसेफ की टीम आयी थी। कई हैंडपंपों पर लाल और नीला निशान भी लगा कर गयी थी। लेकिन, लोगों के पास विकल्प नहीं है। वे इन्हीं हैंडपंपों का पानी पीने को मजबूर हैं।

भूवालपुर पंचायत के फतेहपुर और भुवालपुर गांव में लगभग छह हजार तथा पुरानी सराय गांव में लगभग पांच हजार लोग आर्सेनिक और फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। यहां की 11 हजार से अधिक आबादी बीमारी की चपेट में है, जबकि रन्नूचक के मकंदपुर, दोगच्छी, रामचंद्रपुर नवटोलिया गांव में लगभग दस हजार लोग पीड़ित हैं। सबसे ज्यादा पीड़ित गांव भूवालपुर पंचायत की पुरानी सराय है। यहां पांच हजार की आबादी में से 50 फीसदी लोग बीमारी की चपेट में हैं। पुरानी सराय गांव में लगभग 30, भूवालपुर फतेहपुर गांव में 35 व मकंदपुर में दस आदमी इस पानी की वजह से नि:शक्त हो गये हैं।

डॉक्टर कहते हैं कि आर्सेनिक युक्त पानी ज्यादा पीने से धमनियों से संबंधित बीमारियां ज्यादा होती हैं। इससे हार्ट अटैक और पैरालाइिसस (पक्षाघात) का खतरा बढ़ जाता है।

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