उत्तराखंड बांध त्रासदी, भाग -3

17 Sep 2013
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आपदा प्रबंधन में लगी सरकार को फुर्सत कहां की वो नई आपदाओं को रोकने का सोचे। ठीक है नुकसान होगा तो नया पैसा आएगा। नए ठेके खुलेंगे। यही तो विकास है। कुछ लोग घर छोड़कर देहरादून गए हैं। कुछ नियति मान कर बैठ गए हैं। स्थानीय शासन ने सैकड़ों करोड़ का बजट भेजा है सुरक्षा दीवार बनाने के लिए। मजे की बात है कि नुकसान बांध कंपनी करे और भरपाई शासन करे? श्रीनगर जल विद्युत परियोजना, श्रीनगर शहर के नज़दीक उत्तराखंड में बन रही है, यह परियोजना पूर्व में 220 मेगावाट प्रस्तावित थी और इसको बिना किसी समुचित प्रक्रिया को अपनाए हुए 330 मेगावाट किया गया तथा ऊंचाई 60 मीटर से बढ़ाकर 95 मी. किया गया। इसकी निर्माणदायी कम्पनी जी.वी.के. है। 16/17 जून 2013 को भारी बरसात होने के कारण नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा तथा श्रीनगर क्षेत्र के ऊपर जिला चमोली व जिला रुद्रप्रयाग में बादल फटने की घटनाएँ हो रही थीं जिससे अलकनंदा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा था। जिला रुद्रप्रयाग में अलकनंदा में मंदाकिनी नदी मिलती है। जलस्तर बढ़ने की परिस्थितियों का फायदा उठाकर श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की निर्माणदायी कम्पनी जी.वी.के. के कुछ अधिकारियों द्वारा धारी देवी मंदिर को अपलिफ्ट कर ऊपर उठाने के आपराधिक षड़यंत्र रचा जो ज्योतिषीय कारणों से अगस्त 2013 में प्रस्तावित था। इस दौरान बांध के गेट जो पहले आधे खुले थे उनको पूरा बंद कर दिया गया जिससे बांध की झील का जलस्तर बढ़ गया और इसी दौरान जिला प्रशासन तथा जिलाधिकारी महोदय को यह आभास कराया गया कि यदि धारी देवी मंदिर को तुरंत ऊपर नहीं उठाया गया तो मंदिर डूब जाएगा और भारी जनाक्रोश पैदा होगा।

उक्त परिस्थितियों में धारी देवी बिना किसी पारंपरिक, ज्योतिषीय एवं यथोचित प्रक्रिया अपनाते हुए ऊपर कर दिया गया और इस सारी प्रक्रिया के दौरान लगातार बरसात व केदारनाथ में बादल फटने की घटना के बाद झील का जल स्तर तेजी से बढ़ा जो बांध पर दबाब डालने लगा तो बांध को टूटने से बचाने के लिए जी.वी.के. कम्पनी के द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के बांध के गेटों को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया और जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जी.वी.के. कम्पनी द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक भी बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। श्रीनगर शहर के शक्तिविहार, लोअर भक्तियाना, चौहान मौहल्ला, गैस गोदाम, खाद्यान्न गोदाम, एस.एस.बी., आई.टी.आई., रेशम फार्म, रोडवेज बस अड्डा, नर्सरी रोड, अलकेश्वर मंदिर, ग्राम सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती, श्रीयंत्र टापू रिसोर्ट आदि स्थानों की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक संपत्तियां बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुईं।

उत्तराखंड में आई भीषण तबाही के बाद की स्थितिइस पूरी विनाशलीला के लिए जी.वी.के. कम्पनी ही उत्तरदायी है क्योंकि जी.वी.के. कम्पनी द्वारा नदी की तीन किनारों पर मक डाली गई उसमें पर्यावरणीय मानकों का सीधा उल्लंघन था। मक को नदी में बहने से बचाने के लिए सुरक्षा दीवारों का निर्माण भी जानबूझकर नहीं किया गया। स्टेट चीफ़ कंजरवेटर ऑफ फर्म, फॉरेस्ट एडवायजरी कमेटी ऑफ एम.ओ.इ.एफ., सेन्ट्रल इम्पॉवर्ड कमेटी और आई.आई.टी. रुड़की द्वारा ‘मक डिस्पोजल प्लान’ पर प्रभावी कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई। बल्कि उचित रीति-नीति से मक ना डालने के कारण मिट्टी बाढ़ के पानी के साथ नीचे के स्थानों पर जमा हो गई। जी.वी.के. कम्पनी द्वारा मिट्टी डालने की तीन साइटों पर चुनाव नदी के अधिकतम बाढ़ स्तर से नहीं किया गया। मक को नदी से एकदम सटकर डाला गया। जिस कारण वह मक बाढ़ में पानी के साथ बही। ऐसा करने में जी.वी.के. कम्पनी का यह उद्देश्य था कि इन स्थानों से मक धीरे-धीरे नदी के पानी के साथ बह जाएगा। यह बात महत्वपूर्ण है कि बांध क्षेत्र में कई स्थान ऐसे थे जिनका चयन बांध का मक डालने हेतु उपयोग में लाया जा सकता था और उक्त स्थान बांध स्थल से ज्यादा दूर नहीं थे परन्तु जी.वी.के. कम्पनी ने पैसा बचाने के लिए नदी के तीन किनारे चुने जहां मक डाली गई।

यहां यह तथ्य याद रखना होगा की जी.वी.के. कम्पनी को यह ज्ञान था कि पूर्व में सन् 2010 में अलकनंदा नदी के किनारे डाली गई टनों मिट्टी बाढ़ के कारण नदी में बह गई थी। इसके उपरान्त भी जी.वी.के. कम्पनी द्वारा कोई सम्यक सर्तकता और सावधानी बांध की मक पुनः डालने में नहीं बरती गई। यदि कम्पनी द्वारा ऐसी लापरवाही से मिट्टी डंप नहीं कि गई होती तो नदी का केवल पानी ही घरों एंव अन्य जगहों पर आता मलबा नहीं, और न ही लोग महीनों पश्चात भी मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक रूप से परेशान एवं अस्त-व्यस्त होते।

उत्तराखंड में आई भीषण तबाही के बाद की स्थितिउक्त बांध निर्माण में पूर्व से ही काफी कमियाँ रही हैं तथा इसके पर्यावरणीय पहलुओं पर प्रश्न उठते रहे हैं, जी.वी.के. कम्पनी पर मुकदमें भी हुए, जिनमें से कुछ अभी भी चल रहे हैं। जी.वी.के. कम्पनी की लापरवाही मीडिया व कई व्यक्तियों द्वारा प्रश्न उठाए गए जो आज सच साबित हुए हैं तथा इसी कारण जी.वी.के. कम्पनी द्वारा प्रशासन के साथ मिलकर हमारे प्रभावित क्षेत्रों में घुसी मिट्टी अपने बांध निर्माण की मिट्टी हटाने का कार्य किया गया है तथा प्रिंट मिडिया के माध्यम से यह सब आम जनता को बताने का प्रयास किया है कि वे जनहित में कार्य कर रहे हैं जिससे आमजन उसकी लापरवाही के कारण हुए नुकसान को न समझ सके। और कुछ व्यक्तियों को माध्यम बनाकर जबरन यह कोशिश की जा रही है कि जी.वी.के. के खिलाफ कोई भी जन आंदोलन न उभर पाए।

दिनांक 06/08/2013 को जी.वी.के. कम्पनी के सीईओ प्रसन्ना रेड्डी एवं उनके अन्य अधिकारियों के साथ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की उपजिलाधिकारी की मध्यस्थता में बैठक हो पाई। जिसमें जी.वी.के. कम्पनी के सीईओ प्रसन्ना रेड्डी ने स्वीकार किया कि बांध की मिट्टी के कारण ही उपरोक्त नुकसान हुआ है। संबंधित मंत्रालयों को पत्र भेजा किंतु कोई उत्तर नहीं। आपदा प्रबंधन में लगी सरकार को फुर्सत कहां की वो नई आपदाओं को रोकने का सोचे। ठीक है नुकसान होगा तो नया पैसा आएगा। नए ठेके खुलेंगे। यही तो विकास है। कुछ लोग घर छोड़कर देहरादून गए हैं। कुछ नियति मान कर बैठ गए हैं। स्थानीय शासन ने सैकड़ों करोड़ का बजट भेजा है सुरक्षा दीवार बनाने के लिए। मजे की बात है कि नुकसान बांध कंपनी करे और भरपाई शासन करे? वाह रे विकास! वाह रे उत्तराखंड को कमाई देने वाले बांध! एक हाथ से एक दे और दूसरे हाथ से पांच ले।

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