वेटलैण्ड: क्या और क्यों

आज के विकसित व आधुनिक युग में हमें स्वीकार करना चाहिए कि इस धरती पर सिर्फ हमारा ही अधिकार नहीं है अपितु इसके विभिन्न भागों मे विद्यमान करोडों प्रजातियों का भी इस पर उतना ही अधिकार है जितना हमारा। धरती पर हमारे अस्तित्व को बचाए रखने में समस्त प्रकार की जैव विविधता को बनाए रखना अपरिहार्य है। वेटलैंड एक विशिष्ट प्रकार का पारिस्थितिकीय तंत्र है तथा जैवविविधता का महत्वपूर्ण अंग है। भू-जल क्षेत्र का मिलन स्थल होने के कारण यहाँ वन्य प्राणी प्रजातियों व वनस्पतियों की प्रचुरता होने से वेटलैंड समृ़द्ध पारिस्थतिकीय तंत्र है।

सामान्य भाषा में वेटलैंड ताल, झील, पोखर, जलाशय दलदल इत्यादि के नाम से जाने जाते हैं। सामन्यतया वर्षा ऋतु में यह पूर्ण रूप से जलप्लावित हो जाते हैं। कई वेटलैंड वर्ष भर जलप्लावित रहते है। जबकि कई वेटलैंड ग्रीष्म ऋतु में सूख जाते हैं । वेटलैंड का जलस्तर परिवर्तित होता रहता है।

वेटलैंड अत्यंत उत्पादक जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र है। वेटलैंड न केवल जल भंडारण कार्य करते हैं, अपितु बाढ़ के अतिरिक्त जल को अपने में समेट कर बाढ़ की विभीषिका को कम करते हैं। ये पर्यावर्णीय संतूलन में मनुष्य के सहायक हैं। वेटलैंडस में नाना प्रकार के जीव-जंतु एक कोषकीय से कषेरू की जीव तक पाए जाते हैं। जो एक समृद्ध जलीय जैववविविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

वेटलैंड का महत्व

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1. वेटलैंड को बायोलॉजिकल सुपर मार्केट कहा जाता है। ये विस्तृत भोज्य जाल को उत्पन्न करते हैं।
2. वेटलैंड को, किडनीज आफ दि लैण्डस्कोप’(भू -दृष्य के गुर्दे) कहा जाता है- क्योकिं इनका तंत्र जलचक्र द्वारा जल को शुद्ध करता है और प्रदूषण अव्यवों को निकाल देता है।
3. वेटलैंड प्रत्यक्ष तौर पर मछलियां, खाने योग्य वनस्पतियां लकडी छप्पर बनाने व ईंधन में उपयोगी वनस्पतियां एवं औषधीय पौधे के उत्पादन मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
4. वेटलैंड सिंचाई अन्य घरेलू कार्यो व पीने योग्य पानी की आपूर्ति करते हैं।
5. वेटलैंड के पास रहने वाले लोगों को जीविका बहुत हद तक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इन पर निर्भर होती है।
6. वेटलैंड्स एक अति महत्वपूर्ण इको सिस्टम है। ये प्राचीन काल से ही समाज में सहायक है। आज भी वेटलैंड्स विश्व मे बहुत अधिक व्यक्तियों को भोजन मछली व चावल, प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। समय-समय पर समस्त मानव सभ्यता का विकास जल स्रोतों के किनारे होते आया है।
7. वेटलैंड पारिस्थितिकीय तंत्र, बाढ व सूखे में कमी कार्बन अवषेशण व भू-गर्भ जल स्तर मे वृद्धि जैसी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर पर्यावरण संरक्षण में योगदान देते है।

उत्तर प्रदेश के वेटलैंड्स


1. उत्तर प्रदेश में पाये जाने वाले वेटलैंड आक्स बो लेक्स
2. झील व पोखर
3. दलदली व नम भूमि
4. ऋतुवार वाटरलैंड भूमि
5. मानव निर्मित जलाशय
6. शाश्वत वाटर लाग्ड (जलाच्छादित) भूमि
7. टैंक्स
8. प्रदेश के तराई क्षेत्रों में पाए जाने वाले वेटलैंड्स मे प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले नम व दलदली वेटलैंड्स, गांगेय मैदानो में पाये जाने वाले आक्स-बो-लेक्स एवं दक्षिणी विंध्य क्षेत्र व बुंदेलखण्ड क्षेत्रों मे पाये जाने वाले मानव निर्मित जलाशय शामिल है।

उत्तर प्रदेश के 13 वेटलैंड, नबाबगंज, समसपुर, लाखबहोसी, साण्डीबखीरा, ओखला, समान, पार्वती अरगा, विजय सागर, पटना, सुरहाताल, सूर सरोवर एवं डा. भीमराव अम्बेडकर पक्षी विहार के रूप में जाने जाते हैं।

पूर्व निर्धारित योजना- राषट्रीय वेटलैंड के अंतर्गत प्रदेश के 13 वेटलैंड्स- समसपुर (रायबरेली), लाख बहोसी कन्नौज, साण्डी, (हरदोई), नबाबगंज, (उन्नाव), शेखा झील, अलीगढ, कीठम झील सूर सरोवर-चम्बल, आगरा, पटनाझील, (इटावा), चन्दोताल, (बस्ती), बघेल वेटलैण्ड(श्रावस्ती),सरसईनावर (इटावा), समान, (मैनपुरी), नगरिया व सेमरई (लखीमपुर-खीरी), की सुरक्षा, प्राकृतवास सुधार, कैचमेण्ट एरिया ट्रीटमेंट, स्थानीय समुदायों के साथ भागीदार प्रबंध एवं जल गुणवत्ता आदि कार्यो हेतु सहायता पहॅुचाई जा रही है।

वेटलैंड्स के क्षरण हेतु उत्तरदायी घटक हैः
1. जलराशि मे बदलाव (हाड्रोलॉजिकल आल्ट्रेशन)
2. बंधायुक्त जलाशय बनाकर इन्हे आप्लावित करना
3. अत्यधिक चराई व वेटलैंड उत्पादों का अति विदोहन
4. जलागम क्षेत्र अति संकुचित होना
5. घरेलू कृषि व व्यवसायिक कार्यो के लिए जल की माँग व डाइर्वजन कार्य
6. प्रदूषण व सिल्टेशन
7-. भू जल का ह्रास
8-. वेटलैंड्स में अवांछनीय वनस्पतियों व हानिकारक खरपतवार एकत्रित हो जाना।

प्रदेश के वन क्षेत्रों में स्थित महत्वपूर्ण वेटलैंड्स


पीलीभीत वन प्रभाग
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान लखीमपुर।
कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग बहराइच।
सोहागीबरवा वन्य जीव प्रभाग महराजगंज
राष्ट्रीय चंबल वन्य जीव विहार एवं कछुवा वन्य जीव अभ्यारण्य, वाराणसी में स्थित इन क्षेत्रों में महत्वपूण वेटलैंड पाए जाते हैं।

प्रदेश के वेटलैंड्स में पाए जाने वाले प्रमुख वन्य प्राणी व वनस्पतियाँ:


1. स्तनधारी गैंडा, खरगोश (हिस्पिड हेयर हिरण) ऊदविलाव, गांगेय डाल्फिन वारहसिंघा।
2. पक्षी प्रवासी व स्थानीय पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां व अन्य लुप्त प्राय प्रजातियां जिनमें आर्द घास के मैदानों में देखा जाने वाला बंगाल पलोरीकन, सारस, ककेर स्वांम्प पाट्रीज प्रमुख है।
3. सरीसृप, घड़ियाल, मगर, फ्रेशवाटर टर्टल्स की 12 प्रजातियां व तराई की वेटलैण्ड तक सीमित रहने वाली अन्य कई प्रजातियां ।
4.सरपत, मूंज, नरकुल सेवार, तिन्नाधान, कसेरू, जामुन, कमलगट्टा, सिंघाड़ा

रामसर वेट लैंड


2 फरवरी 1971 को ईरान में रामसर मे वेटलैंड पर सम्मेलन आयोजित किया गया। वेटलैण्डस के सम्बन्ध में अद्यावधिक मानक रामसर परिपाटी (सम्मेलन) से आच्छादित है। जिसमें वेटलैंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मान्यता देने के पूर्व प्राणि विज्ञान, पारिस्थितिकीय, सरोवर विज्ञान व जलीय महत्व पर आधारित मानकों का चिन्हीकरण किया जाता है। वर्तमान में 160 देशों / संविदा समूहों में रामसर परिपाटी स्वीकार कर ली है। भारत में अब तक अंतरराष्ट्रीय महत्व के मात्र पच्चीस वेटलैंड चिन्हित व नामित है। जिनका कुल क्षेत्रफल 6,77,131 हेक्टेयर है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में मात्र एक वेटलैंड ऊपरी गंगा का बृजघाट से नरोरा तक का भाग क्षॆत्रफल 26570 हैक्टर को रामसर साइट के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। गंगा नदी डाल्फिन घडियाल, मगर, टर्टिल की छः प्रजातियों, मछलियों, की 82 प्रजातियों और सौ से अधिक प्रजातियों के पक्षियों के प्राकृतिक वास का यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सूची में 8-11-2005 को प्रविष्ट हुआ ।

राज्य पक्षी: सारस
सारस भारतीय सारस क्रेन उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी है। यह विश्व के उडने वाले पक्षियों में सबसे ऊँचा बड़ा पक्षी है। वयस्क नर की ऊचांई लगभग 156-180 से.मी. तक होती है। नर एवं मादा देखने में एक समान होते हैं। यह अकेला क्रेन है जो हिमालय के दक्षिणी भाग में प्रजनन करता है। पर्यावरण संतुलन में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

सारस उत्तर प्रदेश के समस्त मैदानी क्षेत्रों में देखा जाता है। किंतु इटावा, मैनपुरी, औरेया, एटा, अलीगढ़, शाहजहांपुर आदि जिलों में बडे़-बड़े जलीय एवं दलदली क्षेत्र वेटलैंड होने के कारण वहाँ इसके अपेक्षाकृत बड़े झुंड दिखाई पड़ते हैं। वर्ष 2010 में राज्य पक्षी सारस की प्रगणना टोटल बर्ड काउंट विधि का उपयोग करते हुए 20-06-2010 को करवाई गई । समस्त 84 वन प्रभागों में इनकी संख्या 11,905 पाई गई। प्रदेश के 5 जनपदों में 500 से अधिक सारस पाए गए । मैनपुरी में 2180 इटावा में 1512, औरैया में 652, एटा में 828 व कानपुर देहात में 580 सारस पाए गये। 23 जनपदों में 101 से 500 के मध्य 6 जनपदों में 51 से 100 के मध्य व 21 जनपदों में 01 से 50 के मध्य सारस पाए गये। किसी भी जलीय एवं दलदली क्षेत्र में सारसों का पाया जाना उस क्षेत्र के स्वस्थ पर्यावरण का सूचक है। जिस पर इनका अस्तित्व निर्भर करता है।

सारस सारस क्रेन(grusantigon)ग्रूडडी (gruidae) कुल का सदस्य है। भारत में इस कुल के चार अन्य क्रेन सदस्य भी पाए जाते हैं। साइबेरियन क्रेन(grusleucogeranus)कांमन क्रेन (grus grus), अंतरराष्ट्रीय डेमायसेल क्रेन(grusvign) ब्लैकनेक्ट क्रेन (grusnigricollis) परंतु यह सभी शीतकालीन प्रवास हेतु ही हमारे देश के अपेक्षाकृत गर्म भागों की झीलों व तालाबों के पास आते हैं। इनमें से लद्दाख में पाया जाने वाला ब्लैकनेक्ड क्रेन उत्तर पूर्वी भागों में प्रवास हेतु जाता है।

पहचान
सारस सलेटी रंग का क्रोच हैं जिसके पैर व चोंच लाल होते हैं। तथा गर्दन व सिर सुर्ख लाल व टोपी सिलेटी - हरी होती है। इसके बच्चे भूरे रंग के होते हैं परन्तु बडे होने पर सिलेटी हो जाते है। पर उनकी गर्दन व सिर भूरे लाल होते है। देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में पाई जाने वाली सारस की दूसरी उप प्रजाति (grusantigonesharpii) अधिक गहरे सिलेटी रंग की होती है।

व्यवहार- प्रायः जोड़े में या परिवार में देखे जाते है। पर कभी -कभी बडे समूहों में भी दिखाई देते हैं। गांवो में खेतों के समीप निर्भय होकर विचरण करते हैं। परंतु बहुत अधिक समीप जाने पर उड़ जाते हैं। शाम को विश्राम स्थलों पर जमा होती है।

प्राकृतवासः-
खुला कृषि क्षेत्र, दलदली भूमि, झील, तालाब, नहर व नदी का किनारा आदि मुख्य प्राकृतवास है।

भोजनः
जलीय पौधों की जड़ व स्कंध मुख्य फसलों के दाने, मेढक,मछली, छिपकली, सांप व कीड़े- मकोड़े।-

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