विदेशी है संरक्षण का तरीका

अलबत्ता टाइगर टास्क फोर्स की रिपोर्ट का महत्व इस बात में है कि उसने गंभीरता से पहली बार वन्यप्राणी संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को रेखांकित किया। इसे कैसे क्रियान्वित किया जाएगा, यह सरकारों, नागरिकों, एवं विभिन्न एजेंसियों पर निर्भर करेगा। हमारे देश में वन्यप्राणियों को लेकर बहुत दर्द, सरोकार है, लेकिन उन्हें बचाने के लगभग सभी तरीके विदेशी हैं। विकसित देशों में विस्तार से ज़मीन उपलब्ध है जहां रहवासियों का पुनर्वास करके वन्यप्राणियों को सुरक्षित किया जा सकता है, लेकिन हम यह नहीं कर सकते। हमारे यहां जिस जंगल में जानवर बसता है, उसी में इंसान। पश्चिमी देशों में जंगल के लिए एक प्रचलित शब्द है विल्डरनेस यानी मानव रहित सूनापन, लेकिन हमारे यहां ऐसी कोई अभिव्यक्ति नहीं है। यहां वन सूनेपन की बजाय एक बसाहट की तरह जाने जाते हैं। शायद इसीलिए हम विल्डरनेस की जगह हैबीटॉट का उपयोग करते हैं।

आज की परिस्थिति में वन या वन्यप्राणी संरक्षण को लेकर दो स्पष्ट धाराएं सक्रिय हैं। कुछ लोगों के मुताबिक वन में केवल वन्यप्राणी रहने चाहिए और ‘गन व गार्ड’ लगाकर उनके रहवास को सुरक्षित किया जाना चाहिए। दरअसल देश का वन विभाग करीब डेढ़ सौ साल के अपने इतिहास में इसी तरीके से वन्यप्राणी संरक्षण करता रहा है। अलबत्ता इस पद्धति से वन्यप्राणी संरक्षण नहीं हो सका और आज इसी के चलते स्थानीय समाज और वन के बीच में भारी तनाव बना हुआ है। दूसरी तरफ अनेक लोग मानते हैं कि जंगल आदिवासियों, वनवासियों का है और जाहिर है, इसकी प्राथमिक मिल्कियत भी उन्हीं की होनी चाहिए। इन दो विचारों ने समुदायों को भी बांट दिया है। भारत जैसे देश में संरक्षण के लिए वन्यप्राणी और इंसानों को साथ-साथ रहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। वन्यप्राणी संरक्षण स्थानीय समाज की भागीदारी के बिना संभव नहीं है। केरल के पेरियार राष्ट्रीय उद्यान में इस सहजीवन के प्रयोग हुए हैं और सकारात्मक नतीजे भी आए हैं। इंसान और वन्यप्राणियों के सहजीवन को देखते हुए भारत में वन्यप्राणी संरक्षण के भी नए तरीके खोजने होंगे। ये तरीके क्या, होंगे यह एक पेचीदा सवाल है।

दो साल पहले प्रधानमंत्री की पहल पर बनी टाइगर टास्क फोर्स की रिपोर्ट आने के बाद इस सहजीवन पर गंभीरता से बातचीत शुरू हुई है। पहले वन्यप्राणी संरक्षण के तौर-तरीकों में स्थानीय आबादी की कोई भूमिका नहीं होती थी, लेकिन आज यह एक केंद्रीय मुद्दा बन गया है। टास्क फोर्स रिपोर्ट में जरूरी होने पर वन्यप्राणियों के लिए सुरक्षित आवास का सुझाव दिया गया था, लेकिन साथ ही वहां से हटाए जाने वाले परिवारों के बेहतर पुनर्वास की शर्त भी रखी गई थी।

जंगलों के आसपास रहने वाले लोगों को ही संरक्षण के काम में लगाने का सुझाव भी टास्क फोर्स ने दिया था। केंद्र सरकार ने टास्क फोर्स की रिपोर्ट की सिफारिश पर पिछले सप्ताह हरेक गांव के विस्थापन पर खर्च होने वाले एक लाख रुपयों को बढ़ाकर दस लाख रुपए कर दिया है। वन्यप्राणी रहवासी के लिहाज से ऐसे संवेदनशील गाँवों की सूची बन रही है जिन्हें हटाना जरूरी होगा। वन्यप्राणी अपराध ब्यूरो का गठन हो रहा है। बाघ की गणना का काम भी इस वर्ष के अंत तक समाप्त हो जाएगा। अलबत्ता टाइगर टास्क फोर्स की रिपोर्ट का महत्व इस बात में है कि उसने गंभीरता से पहली बार वन्यप्राणी संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को रेखांकित किया। इसे कैसे क्रियान्वित किया जाएगा, यह सरकारों, नागरिकों, एवं विभिन्न एजेंसियों पर निर्भर करेगा।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading