विश्व के समक्ष कड़ी चुनौती

5 Feb 2015
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वैश्विक तपन के कारण द्वीपीय राष्ट्रों एवं तटीय इलाकों के जलमग्न होने की आशंका बहुत पहले से ही व्यक्त की जा रही थी। लेकिन अब यह हकीकत बन कर सामने आने लगी है। आॅस्ट्रेलिया के पास अवस्थित पापुआ न्यू गिनी देश का कार्टरेट्स नामक द्वीप डूबने वाला है। इस द्वीप की पूरी आबादी दुनिया में ऐसा पहला समुदाय बन गई है, जिसे वैश्विक तपन के कारण विस्थापित होना पड़ रहा है। बढ़ते समुद्री जलस्तर और चक्रवाती तूफानों ने इस द्वीप के फलों को बर्बाद कर दिया है व पानी के स्रोतों को जहरीला बना दिया है।

आजकल वैश्विक तपन की समस्या पूरे विश्व के लिए चिन्ता का विषय बनी हुई है। ग्लोबल वार्मिंग मानवजनित समस्या है न कि प्रकृति जनित। पृथ्वी के वातावरण में जो कुछ भी घट रहा है, उसके लिए मानव जिम्मेदार है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु में आए अवांछित परिवर्तन ने पृथ्वी के जीवधारियों व वनस्पति जगत के समक्ष विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। कहीं असामान्य वर्षा हो रही है, तो कहीं असमय ओले पड़ रहे हैं, कहीं ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं, तो कहीं रेगिस्तान पसरता जा रहा है।

वैश्विक तपन के कारण द्वीपीय राष्ट्रों एवं तटीय इलाकों के जलमग्न होने की आशंका बहुत पहले से ही व्यक्त की जा रही थी। लेकिन अब यह हकीकत बन कर सामने आने लगी है। आॅस्ट्रेलिया के पास अवस्थित पापुआ न्यू गिनी देश का कार्टरेट्स नामक द्वीप डूबने वाला है। इस द्वीप की पूरी आबादी दुनिया में ऐसा पहला समुदाय बन गई है, जिसे वैश्विक तपन के कारण विस्थापित होना पड़ रहा है। बढ़ते समुद्री जलस्तर और चक्रवाती तूफानों ने इस द्वीप के फलों को बर्बाद कर दिया है व पानी के स्रोतों को जहरीला बना दिया है।

आॅस्ट्रेलिया के नेशनल टाइडफैसिलिटी सेण्टर के अनुसार, वैश्विक तपन के कारण इन द्वीपों के समुद्र की जलस्तर में प्रत्येक वर्ष 8.2 मिलीमीटर की वृद्धि हो रही है। अगर ग्लोबल वार्मिंग पर नियन्त्रण नहीं किया गया तो आने वाले समय में कई अन्य द्वीप भी इसी तरह डूब कर नष्ट हो जाएंगे।

वैश्विक तपन से सम्बन्धित मुख्य तथ्य


1. ग्लोबल वार्मिंग के कारण हुआ जलवायु परिवर्तन हुआ मानव इतिहास के आरम्भ से अब तक के परिवर्तनों की अपेक्षा अत्यन्त तीव्र गति से बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के लिए मानव गतिविधियाँ ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
2. विज्ञान एवं पर्यावरण विषयक पत्रिका साइंस की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, अगर विकसित एवं विकासशील देशों ने मिलकर ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए सार्थक कदम नहीं उठाए तो इस सदी के अन्त तक दुनिया की आधी आबादी भूखे रहने को मज़बूर हो जाएगी। इस रिपोर्ट के अनुसार न केवल पानी के स्रोत सूख जाएंगे बल्कि शीतोष्ण व समशीतोष्ण क्षेत्रों की अधिकांश उपजाऊ जमीन बंजर हो जाएगी। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा प्रभाव जिन क्षेत्रों पर पड़ेगा उनमें उत्तरी अर्जेंटीना, दक्षिणी ब्राजील, उत्तरी भारत, दक्षिणी चीन, दक्षिणी आॅस्ट्रेलिया एवं पूरा अफ्रीका शामिल है।
3. दुनियाभर में करीब 1.2 करोड़ लोग तटीय क्षेत्रों में रहते हैं। वैश्विक तपन के कारण इन्हें विस्थापित होना पड़ेगा।

4. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 15 लाख लोग कुपोषण का शिकार हो रहे हैं तथा 95 हजार लोग डायरिया और 55 हजार लोग मलेरिया से पीड़ित होकर अपनी जान गँवा रहे हैं।

5. आईयूसीएन के अनुसार कार्बन उत्सर्जन एवं वैश्विक तपन की वर्तमान गति के कारण जीवों एवं वनस्पतियों की 420 प्रजातियाँ 2020 तक विलुप्त हो जाएगी।
6. वैश्विक तपन के कारण गैर-ध्रुवीय ग्लेशियर अपनी जगह से पीछे खिसक रहे हैं।
7. विश्व कृषि संगठन के अनुसार अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो वर्षा पर निर्भर खेती के उत्पादन स्तर में 50 प्रतिशत कमी आ जाएगी।

वैश्विक तपन को रोकने के लिए किए गए प्रयास


1988 में संयुक्त राष्ट्र ने ग्लोबल वार्मिंग पर साक्ष्यों के संकलन एवं विश्लेशण हेतु जलवायु परिवर्तन पर अन्तरसरकारी पैनल (आईपीसीसी पैनल) का गठन किया था। 1990 में आईपीसीसी पैनल ने पहली बार अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें बताया गया कि मानवीय गतिविधियाँ ग्रीनहाउस गैसों के सांद्रण में वृद्धि के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अगले 10 वर्षों में वैश्विक तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी।

पृथ्वी के तापमान में लगातार हो रही वृद्धि को रोकने व इससे उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के संकट से बचने के लिए अब तक अन्तरराष्ट्रीय स्तर जो पर कुछ प्रयास किए गए हैं वे ये हैं :

कोपेनहेगन सम्मेलन


जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरियो में सम्पन्न ‘पृथ्वी सम्मेलन’ के दौरान पहला कदम उठाया गया। इस शिखर सम्मेलन में 192 देशों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर फ्रेमवर्क को स्वीकार किया था।

इस सन्धि में जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए अन्तराष्ट्रीय प्रयासों की बात कही गई थी। इसमें दुनिया के तापमान को 2 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक नहीं बढ़ने देने पर सभी देशों से कार्बन उत्सर्जन में स्वैच्छिक कटौती करने की बात कही।

विश्व में सालाना कार्बन उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर चीन दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है जबकि अमरीका दूसरे व भारत पाँचवें स्थान पर है। संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्रों को इसमें पार्टी या पक्ष के रूप में जाना जाता है। इसलिए 1995 के बाद इसके वार्षिक सम्मेलनों को ‘पार्टियों के सम्मेलन’ या ‘कोप’ (कांफ्रेंस आॅफ पार्टीज) या ‘कोपेनहेगन सम्मेलन’ के नाम से जाना जाता है।

हाल ही में 18 दिसम्बर, 2009 को 15वाँ कोपेनहेगन सम्मेलन डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में सम्पन्न हुआ।

क्योटो प्रोटोकाॅल


पृथ्वी को वैश्विक तपन की समस्या से बचाने के लिए दिसम्बर 1997 में जापान के क्योटो शहर में एक विश्वव्यापी सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में 159 देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन को ‘क्योटो सम्मेलन’ या ‘विश्व पर्यावरण सम्मेलन’ या ‘ग्रीन हाउस सम्मेलन’ के नाम से भी जाना जाता है।

इस सम्मेलन में ग्रीनहाउस प्रभाव के लिए जिम्मेदार 6 गैसों- कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस आॅक्साइड, हाइड्रोक्लोरो कार्बन, पर-लूरो कार्बन एवं सल्फर हेक्सा क्लोराइड के उत्सर्जन में कटौती की बात स्वीकार की गई है।

सम्मेलन में वर्ष 2012 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में इतनी कमी पर सहमति बनी है, जिससे ग्रीन हाउस उत्सर्जन वर्ष 1990 के स्तर से 5.2 प्रतिशत कम हो सके। समझौते के अनुसार यूरोपीय संघ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 8 प्रतिशत, अमरीका 7 प्रतिशत एवं जापान 6 प्रतिशत की कटौती करेगा।

इकोफ्रेंडली इमारतें


संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इमारतों को पर्यावरण अनुकूल बनाकर, इनसे होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 30 प्रतिशत तक, बिना किसी लागत के, कम किया जा सकता है।

गोसैट इबुकी


जापान के एयरोस्पेस एक्सप्लीरेशन एजेंसी ने 23 जनवरी, 2009 को विश्व का पहला ग्रीनहाउस गैस पर्यवेक्षण उपग्रह यानी गोसैट को एच2ए राॅकेट से प्रक्षेपित किया, जिसे एजेंसी के द्वारा ‘इबुकी’ नाम दिया गया।

जलवायु परिवर्तन की निगरानी के लिए समर्पित विश्व का यह पहला उपग्रह है। यह उपग्रह ग्रीनहाउस गैस पर निगरानी रखेगा। यह सौर स्थैतिक कक्षा में अगले पाँच वर्षों तक कार्बन डाइऑक्साइड एवं मिथेन गैस के उत्सर्जन केन्द्रों का अध्ययन करेगा ताकि क्योटो प्रोटोकाॅल के तहत् ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लक्ष्यों को प्राप्तकिया जा सके।

इबुकी वायुमण्डल में उत्सर्जित एवं वितरित ग्रीनहाउस गैसों का मानचित्रा तैयार करेगा तथा यह भी पता करेगा कि इनका संकेन्द्रण कहाँ-कहाँ है। इसमें ग्रीनहाउस गैस पर निगरानी रखने के लिए दो संवेदक लगे हैं:

1. तांसो एफटीएस
2. तांसो सीएआई

कार्बन डाइऑक्साइड स्क्रेपर


वैश्विक तपन को रोकने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड स्क्रेपर उस तकनीक का नाम है जो खतरनाक प्रदूषकों को सोखने के साथ-साथ वातावरण के तापमान में भी कमी लाने का प्रयास करेगी। इस तकनीक के अन्तर्गत बड़े-बड़े शहरों में बहुमंजिला इमारतों में कंक्रीट के बने कार्बन डाइऑक्साइड स्क्रेपर में, बड़े आकार के पेड़ लगाकर इन्हें कार्बन डाइऑक्साइड के शोषक के रूप में स्थापित किया जाएगा। वैश्विक तपन को रोकने की यह तकनीक अभी शुरुआती दौर में ही है।

समुद्री बादल


ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग को घटाने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने एक ऐसा जहाज तैयार किया है जो समुद्र के पानी का हवा में छिड़काव कर बादल तैयार करता है। इस तकनीक को ‘मरीन क्लाउड’ नाम दिया गया है।

इसे वर्तमान में प्रशान्त महासागर में चलाया जा रहा है। हवा से चलने वाले दो हजार जहाजों का यह संयुक्त बेड़ा समुद्र में इधर-उधर घूमता रहता है। इस तकनीक के द्वारा एक प्रशीतक प्रभाव तैयार किया जाता है जो धरती पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी को अन्तरिक्ष में भेजने का कार्य करता है।

कृत्रिम वृक्षों की परिकल्पना


1975 में पहली बार वैश्विक तपन शब्द का प्रयोग करने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक वाॅलेस ब्रुकर ने वैश्विक तपन से निपटने के लिए कृत्रिम वृक्षों की अवधारणा पर काम करना प्रारम्भ किया है। वाॅलेस ब्रुकर के अनुसार स्टील के बने ये वृक्ष 50 फुट लम्बे व 8 फुट चौड़े होंगे तथा वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित करने के लिए इन वृक्षों में विशेष प्रकार की प्लास्टिक की जालियाँ लगी होंगी। यह अवशोषित गैस बाद में तरल रूप में जमीन के अन्दर पम्प कर दी जाएगी।

वैश्विक तपन को रोकने हेतु सुझाव


1. माध्यमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के शैक्षिक पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से ऐसे अध्यायों को सम्मिलित किया जाना चाहिए, जिनसे छात्रों को जलवायु परिवर्तन के बारे में सामान्य जानकारी प्राप्त हो सके तथा छात्र पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक होकर वैश्विक तपन को कम करने में सहयोग कर सकें।

2. विद्यालय स्तर पर शिक्षकों व विद्यार्थियों के द्वारा समय-समय पर जलवायु परिवर्तन विषय पर चर्चा-परिचर्चा की जानी चाहिए तथा शिक्षकों को विद्यार्थियों को वैश्विक तपन के कारण भविष्य में होने वाले भयावह परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए व साथ ही उसको कम करने के सुझावों को बताना चाहिए। ताकि भविष्य में वे जागरूक नागरिक बन सकें व ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में योगदान कर सकें।

3. विश्वविद्यालय स्तर पर समय-समय पर वैश्विक तपन व जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार/कार्यशाला का आयोजन कराया जाना चाहिए।

4. शैक्षिक रेडियो के माध्यम से समय-समय पर वैश्विक तपन को कम करने के सुझावों से सम्बन्धित कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाना चाहिए।

5. शैक्षिक दूरदर्शन पर वैश्विक तपन के कारण निकट भविष्य में उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के संकट व उन संकटों से बचाव करने के सुझावों से सम्बन्धित लघु नाटिका व वृत्तचित्र का प्रसारण किया जाना चाहिए।

6. विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में प्रत्येक वर्ष, पर्यावरण को सुरक्षित रखने के प्रति जागरूक शिक्षकों व विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए ताकि अन्य लोग भी जागरूक हो सकें।

7. कोयले से बनने वाली बिजली के स्थान पर पवन ऊर्जा या सौर ऊर्जा के द्वारा बिजली का उत्पादन किया जाना चाहिए, तभी इसके द्वारा वैश्विक तपन में कमी लाई जा सकेगी।

8. वैश्विक तपन को कम करने के लिए मुख्य रूप से फ्रिज, एसी और दूसरी कूलिंग मशीनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

9. अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए जाने चाहिए क्योंकि वृक्ष हवा से मुख्य ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेते हैं।

10. हम जब भी बिजली का प्रयोग करते हैं तो ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ावा देते हैं, अतः काम खत्म होने के बाद टेलीविजन, कम्प्यूटर, लाइट, पंखे, एयर कम्डीशनर को बन्द कर देना चाहिए।

लेखिका बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में शोधछात्रा हैं।
ई-मेल: kanaksharma3@gmail.com

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