वनवासियों में जागरुकता का प्रसार

24 Mar 2015
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जनपद सोनभद्र में वनवासियों के विकास की मुख्य समस्या अशिक्षा है। शिक्षा के अभाव के कारण ही जनपद सोनभद्र का अधिकांश क्षेत्र विकास कार्यों में काफी पिछड़ा है। शिक्षा के अभाव के कारण ही यह क्षेत्र अज्ञानता, रूढ़िवादिता तथा अँधविश्वास के गढ़ बना हुआ है। इस क्षेत्र में निवास करने वाले अधिकांश लोग अशिक्षा के कारण ही सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं से अनभिज्ञ हैं। ये योजनायें निम्न हैं :

प्रत्येक शिक्षित नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि यदि उसे सरकार द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों की, योजनाओं की जानकारी है तो वह ग्राम के विकास के लिए उन अशिक्षित लोगों को योजनाओं के लाभ के बारे में बताए एवं इससे फायदा उठाने के लिए जागरूक करे।1. राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना
2. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
3. वृद्धावस्था पेंशन योजना
4. छात्रवृति योजना
5. रिक्शा मालिक बनाओ योजना
6. कनहर सिंचाई परियोजना
7. ग्रामीण आवास योजना
8. मत्स्य-पालन योजना
9. सड़क निर्माण योजना
10 स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना।

इन योजनाओं के बारे में लोग ठीक-ठीक जानकारी भी नहीं प्राप्त कर पाते हैं। इस वजह से वे इन योजनाओं का पूर्णरूप से लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। अतः प्रत्येक शिक्षित नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि यदि उसे सरकार द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों की, योजनाओं की जानकारी है तो वह ग्राम के विकास के लिए उन अशिक्षित लोगों को योजनाओं के लाभ के बारे में बताए एवं इससे फायदा उठाने के लिए जागरूक करे। इन योजनाओं के तौर-तरीकों, नियमों इत्यादि को विस्तारपूर्वक सरल रूप में बताएँ और उन्हें इन योजनाओं का पूर्णरूप से लाभ का फायदा उठाने के लिए अग्रसित करें। तभी उस क्षेत्र का पूर्ण विकास हो सकता है।

शिक्षा के बिना हर काम अधूरा है। इसके लिए सबको एक साथ मिलकर प्रयास करना होगा। सरकार को शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने के लिए जगह-जगह उचित स्थानों पर ग्राम के विकास के लिए पुस्तकालय बनवाने की जरूरत है। जिससे कि लोग पुस्तकालय से शिक्षा का फायदा उठा सकें और अपने शैक्षणिक स्तर को ऊँचा उठा सकें।

सोनभद्र उत्तर प्रदेश का एक अत्यन्त पिछड़ा जनपद है। यहाँ की भौगोलिक अवस्थिति के कारण अधिकांश आबादी पहाड़ों, जंगलों पर रहने को मजबूर है। कृषि योग्य भूमि की कमी है। अतः अधिकांश लोग मजदूरी कर अपना पेट पाल रहे हैं। ऐसे में सरकार द्वारा चलाई जाने वाली विकास योजनाओं की जानकारी उन तक नहीं पहुँच पाने के पीछे एक प्रमुख कारण समय से सूचना प्राप्त न होना भी है।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना


भारत सरकार द्वारा सितम्बर 2005 में संसद से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के माध्यम से प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का अकुशल श्रमिक के रूप में रोजगार प्रदान करने की गारण्टी दी गई। तदुपरान्त भारत सरकार द्वारा मार्ग निर्देशिका प्रसारित की गई और 2 फरवरी, 2006 से इसे देश के 200 जिलों में लागू किया गया। मई 2007 में इसे देश के 330 जिलों में विस्तारित किया गया और अप्रैल, 2008 से यह कार्यक्रम पूरे देश में लागू कर दिया गया। उत्तर प्रदेश में प्रथम चरण में 22 जिलों में यह योजना चलाई गई थी।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में अधिकांश मजदूर अशिक्षित व अनपढ़ हैं। फलस्वरूप कि वे अपना आवेदन स्वयं करने में असक्षम हैं। परिणाम यह होता है कि यहाँ के प्रधान व सचिव इनका गलत तौर-तरीके व नियमों से इनके कार्यों व मजदूरी का हरण कर लेते हैंयह अधिनियम पूर्व की तमाम योजनाओं से इसलिए भिन्न है कि अन्य योजनाएँ रोजगार के सन्दर्भ में किसी भी प्रकार का कानूनी हक नहीं प्रदान करती थीं और इसके लिए सम्बन्धित अधिकारी पर पूर्णरूप से जवाबदेही सुनिश्चित नही की जा सकती थी जबकि यह अधिनियम रोजगार को सुनिश्चित किए जाने का दायित्व न्यायिक रूप से स्थापित करता है। माना कि यह रोजगार गारण्टी वाला कोई नया कानून नहीं है। इस तरह का प्रयास 1976 में महाराष्ट्र सरकार कर चुकी है जो आज तक चल रहा है किन्तु तब से लेकर अब तक अन्य राज्यों में इस तरह के अधिनियम नहीं बनाए गए।

भारत सरकार का यह प्रयास भारत के सम्पूर्ण राज्यों में रोजगार गारण्टी अधिनियम में एकरूपता प्रदान करने और उसे समान रूप से लागू करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। रोजगार गारण्टी अधिनियम के अपेक्षित सामाजिक लाभ निम्न हैं :

1. रोजगार गारण्टी कानून गाँवों में उपयोगी परिसम्पत्तियों के निर्माण का अवसर प्रदान करता है।
2. रोजगार गारण्टी कानून ग्रामीण परिवारों को गरीबी तथा भुखमरी से बचाने में मदद करता है।
3. रोजगार गारण्टी कानून के द्वारा भारत के अधिकांश गरीब परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर उठने का मौका मिला।
4. अपेक्षानुसार इससे गाँव से शहरों की ओर रोजगार की तलाश में होने वाले पलायन में कमी आ रही है।
5. इससे मजदूरों को अपनी मजदूरी तय करने में मोल-भाव से मौका मिलेगा।
6. रोजगार गारण्टी कानून महिलाओं को सबल एवं स्वावलम्बी बनाएगा।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में अधिकांश मजदूर अशिक्षित व अनपढ़ हैं। फलस्वरूप कि वे अपना आवेदन स्वयं करने में असक्षम हैं। परिणाम यह होता है कि यहाँ के प्रधान व सचिव इनका गलत तौर-तरीके व नियमों से इनके कार्यों व मजदूरी का हरण कर लेते हैं तथा कार्य भी यहाँ के सचिव एवं प्रधान अपने लोगों से मनमाने ढंग से करवाते हैं। मजदूरों से अधिक दिन कार्य लिया जाता है परन्तु कार्य दिखाते कम हैं।

मजदूरों एवं ग्रामीणों का अपने अधिकरों के बारे में जानकारी न होने के कारण ही उनका हर स्तर पर शोषण होता है।मजदूरों एवं ग्रामीणों का अपने अधिकरों के बारे में जानकारी न होने के कारण ही उनका हर स्तर पर शोषण होता है। जैसे- न्यूनतम मजदूरी मजदूरों को न मिलना, कार्यस्थल पर कोई सुविधा न होना, जॉबकार्ड में गलत प्रविष्टि करना, जॉबकार्ड मजदूरों से 10 रुपए में खरीदना, मजदूरों को उनके द्वारा किए कार्यों की मजदूरी का कम पैसा देकर मजदूरों से ज्यादा पैसे की मजदूरी पर अंगूठा लगवाना, साल-साल भर तक मजदूरों के द्वारा किए गए कार्यों की मजदूरी न मिलना, मजदूरों के कार्य स्थल पर दुर्घटनाग्रस्त होने पर कुछ भी पैसा मुहैया नहीं कराया जाना इत्यादि।

जनपद सोनभद्र के कई क्षेत्रों में कुछ कार्य मशीनों से कराया जा रहा है और उनका कार्य गलत तरीके से मजदूरों के जॉबकार्ड पर चढ़ाए जा रहे हैं और दूसरी बात यह है कि मटेरियल सप्लाई में भी सोनभद्र के अधिकांश क्षेत्रों में ठेकेदारी का कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता है। यहाँ मजदूरों का बनाया गया जॉबकार्ड भी मजदूरों को नहीं दिया जा रहा है। यहाँ के प्रधान व सचिव उनके जॉबकार्डों को वह खुद ही रख ले रहे हैं जिससे मजदूरों का शोषण हो रहा है। यहाँ प्रधान व सचिव मजदूरों को धमकाते व डराते भी हैं ताकि वे उनके द्वारा किए जा रहे गड़बड़ियों की कहीं और शिकायत न कर सकें। मजदूरों को कार्य पर आने की सूचना भी नहीं दी जा रही है।

सोनभद्र के क्षेत्रों में पंचायत मित्रों की भी एक बड़ी समस्या है। समस्या यह है कि पंचायत मित्रों को मानदेय नहीं दिया जा रहा है जिसकी वजह से अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

सोनभद्र के इलाके में प्रधान हमेशा मजदूरों तथा ग्रामीणों के सामने पैसे के लिए रोता रहता है तथा पैसे की कमी व समस्याएँ मजदूर को सुनाता रहता है जिसकी वजह से ग्रामीण व मजदूरों का कार्य करने का मनोबल दिन-प्रतिदिन टूटता नजर आ रहा है।

यहाँ के कई क्षेत्रों में योजना निर्माण का कार्य भी प्रधान व सचिव खुद ही मिल-जुलकर कर ले रहे हैं जिससे की ग्रामीणों को कुछ मालूम भी नहीं चल पा रहा है कि गाँव के विकास के लिए क्या-क्या होने वाला है।

यहाँ सोनभद्र के कई क्षेत्रों में निमार्ण कार्य में लगे मजदूरों के सामने प्रतिदिन नई समस्याएँ आती जा रही हैं। वे यह हैं कि यहाँ के प्रधान मजदूरों के जॉबकार्ड अपने पास जमा करवा ले रहे हैं और कारण पूछने पर कहा जा रहा है कि उस पर उच्च अधिकारियों के हस्ताक्षर होने हैं। पर कारण कुछ और ही प्रतीत होता है। ‘‘न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी’’, मतलब न लोगों के पास जॉबकार्ड होगा न वे बेरोजगारी भत्ते की माँग करेंगे। इन क्षेत्रो में लगे मजदूरों व ग्रमीणों से सुनने को मिलता है कि यदि वे प्रधान द्वारा जमा किए गए अपना जॉबकार्ड वापस माँगते हैं तो उन्हें अपमानजनक शब्द सुनने पड़ते हैं।

यहाँ के कुछ क्षेत्रों में मजदूरों की मजदूरी को लेकर भी कई समस्याएँ हैं। जैसे- कुछ स्थानों पर मजदूरों को मजदूरी कम मिली है तो कई स्थानों पर मजदूरी बकाया है।

उपरोक्त सभी समस्याओं व कार्य की स्थितियों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि यहाँ पर लोगों में ग्रामीणों व मजदूरों में जागरुकता फैलाने की जरूरत है तथा उनको अपने हक व अधिकार के लिए अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकेगा जिससे कि वे सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न प्रकार की योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित न रह सकें।

लोगों में जागरुकता का प्रकाश फैलाने से ही एक ग्राम, जिला, राज्य व देश का विकास हो सकता है अन्यथा नहीं। इसलिए आज हमें आज अपने राष्ट्र के विकास के लिए सभी को यह बताना होगा कि‘‘ सब पढ़ें और सब आगे बढे़ं ’’

(लेखक सोनभद्र, उत्तर प्रदेश स्थित ग्रामीण विकास परियोजना नामक स्वयंसेवी संगठन से सम्बद्ध हैं)

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