वर्षा जल संचयन से रोकिए बरसात का पानी

किसी क्षेत्र के ऊपर वर्षा के रूप में प्राप्त कुल जल उस क्षेत्र का वर्षाधन कहलाता है। इसमें से जल की वह मात्रा जिसका प्रभावी रूप से संचयन के लिए प्रयोग किया जा सकता है, जल संचयन क्षमता कहलाती है।लगातार बढ़ते तापमान और घटते जल-स्तर के कारण जल प्रबन्धन अब आम जनता की व्यापक भागीदारी के बिना सम्भव नहीं है। शहरों और गाँवों की अलग-अलग परिस्थितियों को देखते हुए पानी रोकने, जल संरक्षण और संवर्धन के अलग-अलग उपाय किए जा सकते हैं। बहुत से उपाय व्यक्तिगत स्तर पर किए जा सकते हैं और बहुत से उपाय ऐसे भी हैं, जिसके लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं की मदद ली जा सकती है।

घरों, दफ्तरों, सरकारी भवनों जैसे स्कूल, अस्पताल, छात्रावास आदि ऐसे स्थानों पर जहाँ अधिक खुली जमीन उपलब्ध नहीं है, वहाँ वर्षा जल संचयन ढाँचा बनाए जा सकते हैं। ये ढाँचे वर्षा जल को जमीन के भीतर ले जा सकते हैं और इस तरह भू-जल को रिचार्ज करने में उपयोगी हैं। इससे भू-जल का स्तर बढ़ाने में मदद मिलती है।

कितना पानी रोका जा सकता है वर्षा जल संचयन से : किसी क्षेत्र के ऊपर वर्षा के रूप में प्राप्त कुल जल उस क्षेत्र का वर्षाधन कहलाता है। इसमें से जल की वह मात्रा जिसका प्रभावी रूप से संचयन के लिए प्रयोग किया जा सकता है, जल संचयन क्षमता कहलाती है।

संचयन क्षमता से मतलब है किसी क्षेत्र में होने वाली बारिश के पानी की कितनी मात्रा का उपयोग संचयन के लिए किया जा सकता है, क्योंकि भाप बनने, बह जाने और पहली बारिश के पानी को संचयन क्षमता की गणना के समय निकाल दिया जाता है।

मान लीजिए किसी भवन की पक्की छत का क्षेत्रफल 1,000 फीट (92.90 वर्गमीटर) है। किसी एक राज्य की औसत वार्षिक वर्षा 1,200 मिलीमीटर है। अतः 1 वर्ष में इकट्ठा किया जा सकने वाला जल, 100 वर्गमीटर की छत पर 1,200 मिलीमीटर ऊँचाई तक जल का आयतन इस प्रकार नापा जा सकता है:

छत का क्षेत्रफल = 1,000 वर्गफीट (92.90 वर्गमीटर)
वर्षा जल की ऊँचाई = 1,200 मिलीमीटर = 1.2 मीटर
अतः छत पर एकत्रित जल = छत का क्षेत्रफल × वर्षा जल के आयतन की ऊँचाई
= 92.90 वर्गमीटर × 1.2 मीटर
= 111.48 घनमीटर
= 1,11,480 लीटर

इस तरह यह समझा जा सकता है कि वर्षा जल का 60 प्रतिशत ही प्रभावी रूप से संचयन के लिए उपयोग किया जा सकता है। 1,000 वर्गफीट की छत में वर्षा द्वारा एकत्रित जल से 66,888 लीटर जल संचयन के लिए वर्ष भर में एकत्रित किया जा सकता है। इतना पानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 100 लीटर खपत के आधार पर 5 सदस्यों के परिवार के लिए साढ़े 4 माह के लिए पर्याप्त हो सकता है। इस गणना से यह समझा जा सकता है कि हम वर्षा जल संचयन प्रक्रिया अपनाकर किस तरह अपनी जरूरत के पानी का इन्तजाम कर सकते हैं।

जमीन की संरचना के अनुरूप ही वर्षा जल संचयन की संरचना बनवाएँ : इस कार्य के लिए जमीन की संरचना को मुख्यतः 2 भागों में बाँटा जाता है। पहला शैल एवं सैंड स्टोन क्षेत्र और दूसरा लाईम स्टोन क्षेत्र। इन दोनों स्थानों के लिए अलग-अलग तरह की वर्षा जल संचयन प्रणाली अपनाई जा सकती है।

पहला : शैल एवं सैंड स्टोन क्षेत्र के लिए :

कुएँ द्वारा पुनर्भरण : यह विधि वहाँ उपयोगी है, जहाँ जमीन की उपलब्धता सीमित है। बारिश का पानी, छत में इकट्ठा होकर लगातार पहुँचने से बहाव द्वारा जमा होता है। यह पानी गाद मुक्त होना चाहिए। इस कूप को पानी की निकासी के लिए भी प्रयोग में लाया जा सकता है। यह उस क्षेत्र के लिए अधिक उपयोगी है जहाँ जल-स्तर नीचे हो तथा चिकनी मिट्टी की अधिकता हो। ऐसी संरचनाओं की संख्या इमारतों के चारों ओर के सीमित क्षेत्र तथा छत के ऊपर के क्षेत्रफल को ध्यान में रखते हुए निश्चित की जा सकती है।

बरसाती पानी शुद्ध होता है इसे उचित वर्षा जल संचयन संरचना के माध्यम से बचाना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। कुआँ सह नलकूप द्वारा पुनर्भरण : यह तकनीक उस क्षेत्र के लिए उपयोगी है जहाँ सतही मिट्टी में पानी रिसाव की क्षमता नहीं है या मिट्टी के पानी रिसाव की क्षमता (पारगम्य स्तर) भूमि सतह के 3 मीटर के अन्दर मौजूद है। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ अधिक मात्रा में छत से प्राप्त वर्षा जल या सतही बहाव काफी समय के अन्तर से भारी वर्षा के कारण उपलब्ध हो पाए। ऐसे में खाई/पिट बनाने में फिल्टर माध्यम से पानी पुनः भरा जाता है। 100 से 300 मिलीमीटर व्यास के पुनर्भरण कुएँ की डिजाइन इस तरह तैयार की जाती है कि कम से कम गहराई में काम चल जाए जिसमें छिछले व गहरे जल स्रोत के सामने छेददार पाइप डाला जाता है। पुनर्भरण की प्रक्रिया वाले कुएँ को मध्य में रखते हुए जल की उपलब्धता पर आधारित 1.5 से 3 मीटर चौड़ी तथा 10 से 30 मीटर लम्बी खाई का निर्माण किया जाता है। खाई में कुएँ की संख्या जल की उपलब्धता व क्षेत्र विशेष में चट्टानों की रिचार्जिंग क्षमता के आधार निर्धारित की जा सकती है। यदि जल-स्रोत 20 मीटर से ज्यादा गहराई पर उपलब्ध हो तब जल की उपलब्धता के आधार पर 2 से 5 मीटर व्यास व 3 से 5 मीटर गहरी छिछली शाट के अन्दर 100 से 300 मिलीमीटर व्यास का रिचार्ज कुआँ बनाया जाता है। पुनर्भरण कुओं को जाम होने से बचाने के लिए शाट के तल में फिल्टर पदार्थ भर दिया जाता है।

रिचार्ज ट्रेंच/शाट बोरवेल सहित : यह उन क्षेत्रों के लिए उचित है जहाँ जल रिसाव का स्तर अधिक गहराई पर होता है। इसमें एक ट्रेंच/शाट 1.5 मीटर से 3 मीटर चौड़ी तथा 10 मीटर से 30 मीटर लम्बी एवं 2.5 मीटर से 5 मीटर गहरी होती है इसके बीच में 1 या 2 बोरवेल 100 मिलीमीटर से 300 मिलीमीटर तक व्यास वाले जिसकी गहराई 30 से 40 मीटर (पारगम्य परत तक) होती है। बोरवेल के केसिंग पाइप में छेद होता है। शाट या खाई में फिल्टर पदार्थ कंकड़, पत्थर, कोयला तथा रेत आदि को भरा जाता है।

सीधे बोरवेल या ट्यूबवेल हैण्ड पम्प में : इस विधि से भवन की छत से इकट्ठा बरसाती पानी को फिल्टर करके सीधे ट्यूबवेल/बोरवेल में प्रवाहित किया जाता है।

फिल्टर के पूर्व एक सेफ्टी वाल्व लगाया जाना आवश्यक होता है, ताकि पहली बरसात के पानी को ट्यूबवेल अथवा बोर में जाने से पूर्व बाहर निकाला जा सके, क्योंकि पहली बरसात के पानी में छतों की गन्दगी साथ में रहती है, जिससे ट्यूबवेल का पानी गन्दा होने की सम्भावना होती है। यह विधि उन क्षेत्रों में उपयोगी है, जहाँ पर सूखे ट्यूबवेल अथवा कम जल-स्तर वाले ट्यूबवेल हैं।

दूसरा : लाइम स्टोन वाले क्षेत्र के लिए :

पुनर्भरण गड्ढा : इस विधि से भवनों की छत से वर्षा के पानी को पुनर्भरण गड्ढा में इकट्ठा किया जाता है। यह पुनर्भरण पिट 1.20 मीटर × 1.20 मीटर × 1.5 मीटर गहराई का खोदकर बनाया जाता है, जिसमें ईंटों की जुड़ाई से लाइनिंग कर उसमें कंकड़, पत्थर, कोयला और बजरी का उपयोग किया जाता है। छतों का पानी पाइपों के माध्यम से गड्ढे में आता है, जिससे आसपास के ट्यूबवेल, कुएँ इत्यादि का जल-स्तर बढ़ जाता है। इस गड्ढे से लगभग 1 लाख लीटर वर्षा जल हर साल भू-जल के रूप में एकत्रित किया जाता है।

जलोढ़ क्षेत्र में जहाँ रिसन क्षमता वाली चट्टानें या तो जमीन की सतह पर या बहुत छिछली गहराई पर हों वहाँ छत से प्राप्त बरसाती पानी जमा करने का काम पुनर्भरण गड्ढे के माध्यम से किया जा सकता है। यह तकनीक लगभग 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल वाली छत के लिए उपयुक्त है व इसका निर्माण छिछले जल-स्रोत को पुनः भरने के लिए होता है। छत से जल निकासी के स्थान पर जाली लगानी चाहिए ताकि पेड़ों के पत्ते, डण्ठल या किसी अन्य ठोस पदार्थ को गड्ढे में जाने से रोका जा सके व जमीन पर एक गाद निस्तारण के लिए कक्ष बनाया जाना चाहिए जो महीन कण वाले पदार्थों को पुनर्भरण गड्ढे की तरफ बहने से रोक सके। पुनर्भरण की प्रक्रिया की गति को बनाए रखने के लिए ऊपरी रेत की परत को समय-समय पर साफ करना चाहिए। जल इकट्ठा करने वाले कक्ष से पहले बरसाती पानी को बाहर जाने देने के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए।

पुनर्भरण खाई : पुनर्भरण खाई 200-300 वर्गमीटर क्षेत्रफल वाली छत के भवन के लिए तथा जहाँ जल-स्तर छिछली गहराई में उपलब्ध होता है उसके लिए उपयुक्त है पुनर्भरण करने योग्य जल की उपलब्धता के आधार पर खाई 0.5 से 1 मीटर चौड़ी, 1 से 1.5 मीटर गहरी तथा 10 से 20 मीटर लम्बी हो सकती है। यह शिलाखण्ड (5 से 20 से.मी.), बजरी (5 से 10 मिलीमीटर) एवं मोटी रेत (1.5 से 2 मिलीमीटर) से क्रमानुसार भरा होता है ताकि बहाव के साथ जाने वाली गाद मोटी रेत पर जमा हो जाए जिसे आसानी से हटाया जा सके। जाली छत से जल निकलने वाले पाइप पर लगाई जानी चाहिए ताकि पेड़ों के पत्ते या अन्य ठोस पदार्थों को खाई में जाने से रोका जा सके एवं सूक्ष्म पदार्थों को खाई में रोकने के लिए गाद निकासी कक्ष या संग्रहण कक्ष जमीन पर बनाया जाना चाहिए। पहली बरसात का पानी संग्रहण कक्ष में जाने से रोकने के लिए कक्ष से पहले एक दूसरे रास्ते की व्यवस्था की जानी चाहिए। पुनर्भरण प्रक्रिया दर को बनाए रखने के लिए रेत की ऊपरी सतह की सफाई समय-समय पर की जानी चाहिए।

छोटा पुनर्भरण कुआँ : यह विधि उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहाँ पर पानी रिसाव करने वाली संरचनाएँ जमीन की सतह पर रहती हैं, जिनमें पानी रिस नहीं पाता है। ऐसे स्थानों पर छतों का पानी इकट्ठा कर छोटे पुनर्भरण कुएँ में पहुँचाया जाता है। इस विधि में 2.5 फीट व्यास की जमीन को 10 से 12 फीट गहराई तक कुआँनुमा खोदकर उसकी लाइनिंग सीमेण्ट कंक्रीट से की जाती है तथा पुनर्भरण कुएँ में पानी को छानने वाली सामग्री भरी जाती है। इसे ऊपर से ढक्कन लगाकर बन्द कर देते हैं। इस विधि में लगभग 5 लाख लीटर वर्षा जल इकट्ठा किया जा सकता है। यह विधि उन क्षेत्रों में सबसे अधिक उपयोगी है, जहाँ पर पीली एवं काली मिट्टी है।

परकोलेशन गड्ढा : इसमें 30 से.मी. व्यास का बोर खोदा जाता है जो 3 से 10 मीटर गहरा होता है। इसके लिए हाथ से चलाने वाले आगर का इस्तेमाल तब तक किया जाता है जब तक ऊपरी सतह वाली कठोर चट्टान प्राप्त न हो जाए। बोर में यदि कठोर मिट्टी, जैसे क्ले है तो इसमें सीधे पानी छानने वाली सामग्री जैसे कंकड, पत्थर, कोयला, रेत डाल दिया जाता है। इस पाइप में छेद होना चाहिए, जिसमें किनारों से जल का रिसाव हो सके।

सरकार सख्त हो : बरसाती पानी शुद्ध होता है इसे उचित वर्षा जल संचयन संरचना के माध्यम से बचाना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। स्थानीय शासन को चाहिए कि नया मकान बनाने वालों को बिना वर्षा जल संचयन संरचना के प्रावधान किए उनका नक्शा पास न करे और मकान बनाने के बाद बिजली कनेक्शन वगैरह लेने के पहले भी उपयुक्त संरचना के निर्माण की जाँच की जाए।

(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)
ई-मेल : narendra_khr@rediffmail.com

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