यमुना सफाई में जुटेगा मोरारका फाउन्डेशन

18 Sep 2009
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नई दिल्ली। घरों से निकलने वाला गंदा पानी अब जल स्त्रोतों के लिए प्रदूषण का कारण नहीं बनेगा, बल्कि इस गंदे पानी को इको फ्रेंडली तरीके से साफ कर पार्कों के फूलों को महकाया जाएगा। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर मोरारका फाउंडेशन ने उदयपुर की नगर परिषद के साथ मिलकर प्रतिदिन 50 हजार लीटर गंदे पानी को साफ करने वाला एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया है। फाउंडेशन अब केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी के साथ मिलकर दिल्ली सहित देश के 10 शहरों में ऐसे ही सीवेज प्लांट लगाने की योजना पर काम कर रहा है। अगर राजधानी में यह योजना लागू की गई तो मैली यमुना को साफ करने में काफी मदद मिलेगी।

फाउंडेशन के इगेक्युटिव डायरेक्टर मुकेश गुप्ता के मुताबिक, इस तकनीक के जरिए गंदे पानी को साफ करने में किसी केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खास बात यह है कि बिजली का इस्तेमाल भी बेहद कम होता है। 50 हजार लीटर गंदे पानी को साफ करने में सुबह और शाम 2-2 घंटे मोटर चलाने की जरूरत पड़ती है।

अगर इस तकनीक के आधार पर 50 हजार लीटर प्रतिदिन गंदे पानी को साफ करने वाला प्लांट लगाया जाए तो प्लांट के निर्माण पर सिर्फ 20 लाख रुपये का खर्च आता है। प्लांट के ऑपरेशन और मेंटिनेंस पर महीने में मात्र 10 हजार रुपये का खर्च आता है।

क्या है तकनीक


घरों से निकलने वाले सीवेज को पहले ड्रेन के जरिए सीवेज प्लांट तक लाया जाता है। सीवेज के बड़े कचरे को जालियों के जरिए बाहर ही रोक दिया जाता है। इसके बाद गंदे पानी को अंडरग्राउंड टैंक में लाया जाता है। वहां पानी को साफ करने की पहली प्रक्रिया शुरू होती है।

गंदे पानी में एरोबिक और अनएरोबिक दो तरह के बैक्टीरिया होते हैं। अनएरोबिक बैक्टीरिया मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी प्रदूषण व बदबू फैलाने वाली गैसों को छोड़ते हैं, जबकि एरोबिक ऑक्सिजन छोड़ते हैं।

अनएरोबिक बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए मोरारका फाउंडेशन की ओर से नेचर सुरक्षा लिक्विड डिकंपोजर (एनएसएलडी )नाम का एक सोल्यूशन बनाया गया है। यह सोल्यूशन केंचुए की ऊपरी खाल पर मौजूद चिपचिपे पदार्थ से बनाया जाता है। इस चिपचिपे पदार्थ में लाखों अच्छे माइक्रो आरगनिज्म होते हैं।

इस चिपचिपे पदार्थ में छाछ, गाय का दूध व गोबर जैसे 40 तत्व मिलाए जाते हैं। इस सोल्यूशन को अंडरग्राउंड टैंक में डाला जाता है। इससे सीवेज की 60-70 फीसदी तक बदबू दूर हो जाती है और एरोबिक बैक्टीरिया को अनएरोबिक बैक्टीरिया से लड़ने के लिए ऑक्सीजन मिलती है।

इसके बाद मोटर के जरिए गंदा पानी ओवरहेड टैंक तक पहुंचाया जाता है। इस पानी को फिल्टर करने के लिए फिजिकल टैंक में पहुंचाया जाता है। वहां चारकोल, एक्टिवेटेड चारकोल, कोयला नारियल का जूट व केंचुए की खाद डाली जाती है। फिर इस पानी को बॉयलॉजिकल फिल्टर में लाया जाता हैं जहां रेट ग्रास इस पानी को साफ करती है। इसके बाद यह पानी पूरी तरह साफ होकर पौधों की सिंचाई के लिए तैयार हो जाता है।

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