योजनाएं तो यहां बहुत हैं बस लाभ लेने की जरूरत

आपदा से बिहार का रिश्ता युगों पुराना है। राज्य में नदियों का जाल है। बाढ़ और उससे आने वाली तबाही यहां की पहचान है। अब भी राज्य के बहुत बड़े शहरी इलाकों में लोग बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए बच्चे मकानों में रहते हैं। गंगा की सहायक नदियां शोक का प्रतीक बन गई है। प्राकृतिक आपदाओं का दायरा बहुत बड़ा है। हर मौसम के साथ इसके खतरों की प्रकृति भी बदलती है, मगर किसी का पीछा नहीं छोड़ती। बाढ़, आग, सुखाड़, ठंड, वज्रपात जैसे इसके कई रूप हैं। इन सब स्थिति से निबटने के लिए राज्य में प्राकृतिक आपदा प्रबंधन विभाग है। इसके पास करीब ग्यारह योजनाएं हैं। उन योजनाओं पर बजट में खर्च का प्रावधान भी किया गया है। यहां उन योजनाओं की जानकारी दे रहे हैं आरके नीरद।

आपदा प्रबंधन विभाग की योजनाएं

बाढ़ प्रभावित जिलों में मोटर बोट आदि की खरीद

0.34

राज्य आपदा रिस्पांस फोर्स की स्थापना

16.00

वेयर हाउस का निर्माण

0.50

इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर की स्थापना

8.45

बाढ़ प्रभावित जिलों के लिए लाइफ जैकेट, महाजाल, टेंट आदि की खरीद

2.00

संचार उपकरणों की खरीद एवं उनका रख-रखाव

2.00

आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना

0.50

आपदा कम करने के लिए हित धारक क्षमता विस्तार

17.00

जागरूकता का प्रसार

1.00

राज्य आपदा प्रबंधन कार्यालय का आधुनिकीकरण

1.65

आपदा प्रबंधन योजना

0.03

(राशि करोड़ में)


बाढ़ प्रभावित जिलों में मोटर बोट की खरीद


राज्य के 28 जिलों को बाढ़ प्रभावित माना गया है। इन जिलों में जब भी बढ़ आती है, तब बचाव कार्य में तकनीकी बाधाएं आती हैं। ये बाधाएं बचाव कार्य में लगे लोगों के प्रशिक्षित नहीं होने, स्थानीय स्तर पर संसाधन की कमी तथा जनता में जागरूकता अभाव के रुप में होती हैं। चूंकि बिहार प्राकृतिक आपदा प्रभावित राज्य है और यहां का बहुत बड़ा इलाका, यहां की बहुत बड़ी आबादी इससे प्रभावित होती है। इसलिए राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन विभाग के जरिए उन परिस्थियों को कम करने की कोशिश की है, जो जान-माल को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।

जब भी प्राकृतिक आपदा आती है, जान-माल के बचाने को लेकर खूब हो-हल्ला होता है, लेकिन अंतत: प्रकृति के आगे हम लाचार होते हैं। इस स्थिति में बदलाव जरूरी है।इसी के तहत बाढ़ के दौरान बचाव और राहत कार्य के उद्देश्य से मोटर नौकाओं और अन्य सामान की खरीद के लिए सरकार ने वार्षिक योजना में राशि का प्रावधान किया है। चालू वित्त वर्ष में इसके लिए 3 लाख रुपए का प्रावधान किया गया। खरीद का जिम्मा जल संसाधन विभाग को सौंपा गया। हालांकि अदालत में लंबित कुछ विवादों के कारण जल संसाधन विभाग वांछित संख्या में मोटर नौकाओं की खरीद नहीं कर सका।

वर्ष 2012 में सोन नदी का जल अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाने के कारण रोहतास, अरवल और औरंगाबाद जिलों को भी बाढ़ की समस्या का सामाना करना पड़ा था। इसलिए सरकार ने राज्य के बाढ़ वाले 28 जिलों के अलावा इन तीन जिलों के लिए भी मोटर नौकाओं की खरीद करने का प्रस्ताव बनाया है।

राज्य आपदा रिस्पांस फोर्स


प्राकृतिक आपदा की स्थिति में प्रभावी रूप से सेवा देने और आपदा प्रबंधन के अन्य कार्यों को बेहतर तरीके से करने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2009-10 में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एसडीआरएफ) की स्थापना का निर्णय लिया। इसमें आपदा प्रबंधन के तंत्र को मजबूत किया जाना है।

प्राकृतिक आपदा में कमी के लिए सरकार ने इंजीनियर, आर्किटेक्ट, पुलिस, होमगार्ड, राजमिस्त्री, समाज के लोगों और अन्य हितरक्षकों को इससे बचने और निबटने का प्रशिक्षण देने की योजना बनाई है। इसके लिए 17 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इस स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स को समर्पित, सभी तरह की सुविधाओं से सुसज्जित और प्रशिक्षित सदस्यों से लैस करने की योजना है। इस तरह की व्यवस्था उन राज्यों के पास है, जो हर साल प्राकृतिक आपदा दो-चार होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी व्यवस्था है, जिसे नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स कहा जाता है। इसी राष्ट्रीय आपदा रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) की तर्ज पर ही राज्य के प्राकृतिक आपदा रिस्पांस फोर्स गठित करने तथा उसी प्रकार की सेवा इससे लेने की सरकार की योजना है। इस पर चालू वित्त वर्ष में 16 करोड़ रुपए खर्च करने की सरकार ने योजना बनाई। इस राशि का कितना इस्तेमाल हुआ और किस रूप में इस्तेमाल हुआ, यह आपको जानना चाहिए। चूंकि इस विभाग का संबंध आपात स्थिति में लोगों की जान बचाने और उन परिस्थितियों को रोकने से है। इसलिए इसकी एक-एक गतिविधि पर जनता की पैनी नजर होनी चाहिए।

वेयर हाउस का निर्माण


यह वेयर हाउस आपदा के समय में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव सामग्री को सुरक्षित रखने के लिए उपयोग किया जाता है। यह योजना भी 2009-10 में बनाई गई। इसके तहत कई गोदाम भी बनाए जाने थे। चालू वित्त वर्ष में इस योजना के लिए सरकार ने 50 लाख रुपए देने की व्यवस्था की थी। राज्य में इस योजना का प्रगति की जानकारी आप ले सकते हैं। विभाग से आप इसके बारे में विधिवत रूप से पूछ सकते हैं।

इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर की स्थापना


जब भी प्राकृतिक आपदा आती है, तो जान-माल को बचाने को लेकर खूब हो-हल्ला होता है, लेकिन इस सच के बाद भी कि प्रकृति के आगे हम लाचार होते हैं, हम उसकी आपदा के प्रभाव को कम कर सकते हैं। इसके लिए इमरजेंसी सर्विस सिस्टम की जरूरत है। खासकर बिहार जैसे राज्य, जहां हर साल बाढ़ आती है। हर साल सुखाड़ से किसान प्रभावित होते हैं और राज्य की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। इसलिए यहां ज्यादा संवेदनशील सिस्टम की जरूरत है, जो त्वरित प्रभावित लोगों को सुरक्षा और सेवा दे सके। इसी के तहत राज्य में प्राकृतिक आपदा के दौरान प्रभावी रूप से बचाव कार्य और बेहतर समन्वय के लिए इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर (इओसी) बनाने की सरकार ने योजना बनाई है। यह सेंटर राज्य के सभी 38 जिलों में स्थापित किए जाने थे। इसके लिए वार्षिक योजना में बजट का भी प्रावधान किया गया है। चालू वित्त वर्ष में इसके लिए सरकार ने 8.45 करोड़ रुपए की व्यवस्था की है।

लाइफ जैकेट, महाजाल, टेंट आदि की खरीद


बाढ़ के दौरान प्रभावी रूप से बचाव कार्य के लिए सरकार ने संसाधनों को विकसित करने का निर्णय लिया। इसके तहत उन उपकरणों की खरीद की जानी है, जो बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने में लगे दल को मदद कर सकते हैं। इसके तहत लाइफ जैकेट, महाजाल, टेंट तथा अन्य ऐसे सामानों की खरीद की जानी है। इसके लिए चालू वित्त वर्ष में 2 करोड़ रुपए खर्च करने का आपदा प्रबंधन का लक्ष्य है।

संचार उपकरणों की खरीद व रख-रखाव


प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अक्सर संचार सेवाएं ठप हो जाती हैं, जिससे बचाव कार्य प्रभावित होता है। सरकार और निजी क्षेत्र आपदा प्रभावित लोगों तक केवल इसलिए नहीं पहुंच पाते या उन तक बचाव के साधन नहीं पहुंचा पाते हैं कि उनके बीच संचार की सुविधा नहीं रह जाती है। इसलिए सरकार ने आपदा प्रबंधन के तहत पिछले सालों में बड़े पैमाने पर ऐसे उपकरणों की खरीद की है, जो वैकल्पिक संचार साधन के रूप में आपात स्थिति में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। आपदा राहत कार्य संपन्न होने के बाद इन उपकरणों का रख-रखाव बड़ी जिम्मेवारी है। इन उपकरणों में सेटेलाइट फोन, जीपीएस उपकरण, वॉकी-टॉकी आदि शामिल हैं। इन उपकरणों के रख-रखाव पर होने वाले खर्च के लिए सरकार ने इस साल 2 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना


प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने का सबसे सटीक उपाय आपदा पूर्व चेतावनी है। जिस इलाके में प्राकृतिक आपदा की आशंका है, उस क्षेत्र में, आपदा के आने के समय उसके प्रभाव तथा प्रभाव वाले दूसरे इलाकों आदि के बारे में पहले से सूचना मिलने पर बचाव का कार्य ज्यादा आसान हो जाता है। पिछले सप्ताह बंगाल की खाड़ी से उठे पाइलीन से ओडिशा और आंध्र प्रदेश के समुद्री तट के इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों को केवल इस लिए बचाया जा सकता कि पाइलिन के आने और उसके प्रभाव आदि के बारे में सटीक सूचना हमें पहले ही मिल गई थी। पाइलिन का प्रभाव जिन दूसरे इलाकों में हुआ, वहां भी पहले से इसके प्रभाव से बचाव के उपाय किए गए।

बिहार में हर साल बाढ़ आती है। इसलिए सरकार ने इससे होने वाले नुकसान को कम करने तथा लोगों को ज्यादा-से-ज्यादा बचाने के उद्देश्य से आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना की योजना बनाई। चालू वित्त वर्ष में इस पर 50 लाख रुपए खर्च किए जाने हैं।

आपदा कम करने के लिए प्रशिक्षण


प्राकृतिक आपदा में कमी के लिए सरकार ने इंजीनियर, आर्किटेक्ट, पुलिस, होमगार्ड, राजमिस्त्री, समाज के लोगों और अन्य हितरक्षकों को इससे बचने और निबटने का प्रशिक्षण देने की योजना बनाई है। इसके लिए 17 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

जागरूकता का प्रसार


प्राकृतिक आपदा और उससे होने वाले नुकसान से बचाव का एक सटीक तरीका है जागरूकता और जानकारी का प्रसार। पहले गांव-पंचायत के लोगों के साथ-साथ शहरी क्षेत्र के लोगों में भी प्राकृतिक आपदा से निबटने को लेकर परंपरागत ज्ञान था, जिसे वे बेहतर मानते थे। अब जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, प्रकृति एवं पर्यावरण के खिलाफ निर्माण और मानव व्यवहार हो रहा है, वैसे-वैसे प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएं व उनके प्रभाव क्षेत्र भी बढ़ रहे हैं। इसलिए उनसे बचाव के लिए वैज्ञानिक विधि को अपनाने पर ज्यादा जोर है।

सरकार आने वाले समय की चुनौतियों को ध्यान में रखकर आम आदमी को इस बात के लिए तैयार करने में लगी है कि कैसे इस चुनौती से वे खुद निबट सकें। इसके लिए स्कूली बच्चों, कॉलेज के लड़के लड़कियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा आम लोगों को प्राकृतिक आपदा के खतरे को कम करने के तरीकों के बारे में जागरूक किया जा रहा है। इसके तहत प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, पोस्टर, पर्चे, सेमिनार, कार्यशाला, संगोष्ठी आदि की मदद ली जा रही है।

चालू वित्त वर्ष में सरकार ने इस पर 1 करोड़ रुपया खर्च करने का फैसला किया। राज्य सरकार आपदा प्रबंधन कार्यालय को अत्याधुनिक बनाने पर खर्च कर रही है। इसका मकसद है कि यह कार्यालय अधिक क्षमता के साथ बेहतर काम कर सके। उसके पास सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं और उपकरण हों। चालू वित्त वर्ष में इस पर 1.65 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है।

आपदा प्रबंधन योजना


राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने बिहार सरकार को राज्य आपदा प्रबंधन योजना तैयार करने के लिए धन उपलब्ध कराया है। राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग को योजना तैयार करनी है। अभी यह काम प्रारंभिक चरण में है। इसे अगले वित्त वर्ष तक पूरा होना है। इस योजना को तैयार करने पर 3 लाख रुपए खर्च किए जाने हैं। इस योजना के बनने के बाद राज्य को केंद्र से इस मद में विशेष आर्थिक सहायता मिलने की संभावना है।

प्राकृतिक आपदा और राहत

1.

बाढ़ जैसी स्थिति में प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना।

2.

उनके लिए अस्थाई टेंट आदि की व्यवस्था।

3.

स्वास्थ्य शिविर और एक-एक व्यक्ति की नियमित स्वास्थ्य जांच।

4.

गर्भवती महिलाओं व शिशुओं के लिए विशेष टेंट या शिविर, स्वास्थ्य सेवा व पोषण की व्यवस्था।

5.

ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव एवं संक्रमण को फैलने से रोकने की व्यवस्था।

6.

प्रत्येक प्रभावित परिवार को भोजन का पैकेट व जरूरी कपड़े।

7.

पीने के पानी की व्यवस्था।

8.

पुनर्वास की व्यवस्था।

9.

पशुओं के लिए चारा-पानी।


आपदाओं के प्रभाव

प्राकृतिक आपदाएं अलग-अलग तरह की हैं। उनकी स्वयं की प्रकृति और उनके प्रभाव भी अलग-अलग हैं। कुछ प्राकृतिक आपदाओं के आने का समय पहले से तय होता है। वे इसके लक्षण भी पहले से दिखने लगते हैं। कुछ प्राकृतिक आपदाएं अचानक आती हैं और उनके पहले से सटीक संकेत पाना कठिन होता है। उनका प्रभाव भी ज्यादा होता है। जैसे भूकंप, हिम-स्खलन, भू-स्खलन आदि ऐसी आपदाएं हैं, जो अचानक होते हैं। बाढ़ और चक्रवात की चेतावनी हम पहले से हासिल कर लेते हैं। सूखा लंबे समय तक आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।


आपात स्थिति में करें संपर्क

कंट्रोल रूम, पटना : 0612-2217305

जिज्ञासा कॉल सेंटर : 0612-2233333


पशुधन की भी रक्षा

डिजास्टर मैनेजमेंट में किसानों के पशु भी लाभुक की श्रेणी में आते हैं। राज्य में जब भी बाढ़ या सुखाड़ से गंभीर स्थिति पैदा होती है, तब राज्य सरकार विशेष राहत कार्य शुरू करती है। जैसा कि अभी किया गया है। राज्य के 33 जिलों को सुखाड़ प्रभावित घोषित किया गया है। इन जिलों में राज्य आपदा रिस्पांस फोर्स (एसडीआरएफ) और राष्ट्रीय आपदा रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) दोनों के तहत मिलने वाली राहत का लाभ आदमी और पशुधन दोनों को मिलना है।



Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading