शहरी बाढ़
शहरी बाढ़

बढ़ते शहर से भी बढ़ रही है बाढ़

बारिश होती है तो देश के बड़े–बड़े शहर त्राहिमाम कर उठते हैं। जलभराव से शहरों की सड़कें ताल–तलैया बन जाती हैं। आखिर‚ क्यों हो रही है यह समस्याॽ पानी के संवर्धन और निकास पर क्या किया जाएॽ दीपिंदर कपूर‚ डायरेक्टर‚ वाटर प्रोग्राम‚ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट‚ दिल्ली से अनिरुद्ध गौड़‚ वरिष्ठ पत्रकार ने बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंशः
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■ शहरों में हल्की बारिश भी होती है तो शहरों में जलभराव की समस्या का सामना क्यों करना पड़ जाता है?

देश के बड़े और छोटे शहरों में कोई बेहतर जल प्रबंधन की व्यवस्था नहीं है। बारिश के दिनों में इससे एक तो हम पानी का संरक्षण नहीं कर पाते हैं, दूसरा जलभराव और बाढ़ की समस्या खड़ी रहती है। जमीनी हकीकत तो यह है कि इस पर कोई ध्यान नहीं है कि पानी का संरक्षण कहां और कैसे किया जाए। दिल्ली की ही बात ले लीजिए, आईआईटी ने करोड़ों खर्च कर कई वर्ष में दिल्ली के ड्रेनेज मास्टर प्लान में सिर्फ यही बताया है कि कहां-कहां पानी एकत्रित होता है। जबकि बात यह है कि एकत्रित बारिश के पानी का प्रबंधन देखना है। बारिश के पानी का प्रबंधन वहीं करना होगा जहां बारिश हो रही है। आम तौर पर देखा गया है कि बारिश कहीं और जगह होती है, और वाढ या जलभराव की समस्या कहीं और होती है। अगर औसत से ज्यादा बारिश हो जाएगी तो पानी तो खड़ा होगा ही। यह सोचने की बात है कि जहां बारिश हो रही है वहां हम क्या कर रहे हैं। ड्रेनेज मास्टर प्लान यह नहीं बताता है कि पानी को कैसे ड्रेन करें। शहरों में जमीन की योजना होती है, पानी की योजना नहीं होती है। जमीन किसको बिकेगी, क्या रेट होगा? कहां कमर्शियल एरिया होगा? सड़क कहां बनेगी? लेकिन नाली कहां बनेगी? पानी कहां जाएगा? इसकी कोई योजना नहीं है। वतौर उदाहरण दिल्ली के संगम विहार का पानी महरौली-बदरपुर रोड़ से आता है, उसको संगम विहार के पीछे जो अरावली वाला एरिया है, वहां ले जाना चाहिए। इससे यह न तो दक्षिणपुरी में जलभराव होगा और न ही पानी व्यर्थ होगा। अभी दोनों बातें हो रही हैं। दक्षिणपुरी में बेसमेंट में पानी भर रहा है और हर साल लोगों का नुकसान हो रहा है। इससे पानी का संरक्षण और भूजल रिचार्ज भी नहीं हो रहा।

■ क्या शहरों के नियोजन में बड़ी कमी है? या विभागों में आपसी समन्वय की कमी है?

ड्रेनेज का सिद्धांत है कि जिसकी सड़क, उसकी नाली लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। हम ड्रेनेज को ऐसे देखते हैं कि सड़क पर पानी नहीं खड़ा होना चाहिए। यह आम वात है कि रास्ते साफ होने चाहिए। फिर पानी आ कहां से आ रहा है, जा कहां रहा है, और उसे कहां जाना चाहिए? इस पर लोगों को कोई चिंता नहीं है। दिल्ली में न ही दिल्ली सरकार और न ही केंद्र सरकार ने संवर्धन और निकास पर बड़ी योजना बनाई है। हम सिर्फ पानी के निकास में लगे हुए हैं। शहरों में कोई भी कारगर ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाया गया है। कोई भी कालोनी बनती है नालियां तो बना देते हैं, लेकिन यह नहीं निश्चित रहता कि नाली कहां जाएगी। किस वड़े ड्रेनेज में जाएगी। देश के सभी शहरों में ड्रेनेज का इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है। हम सिर्फ उम्मीद करते हैं ज्यादा पानी हुआ तो पानी को जमीन सोख लेगी। जब ज्यादा बारिश होती है तो लोग सीवर की पाइप को तोड़कर उसमें से पानी को निकाल देते हैं। जबकि देखना जरूरी है कि पानी ज्यादा हुआ तो कहां जाएगा?

■ बारिश के बाद सरकार के सभी दावों की पोल खुल जाती है। सरकार और महानगर निकायों की तैयारियों में कहां कमी रह जाती है?

शहरों का कोई ड्रेनेज सिस्टम ही नहीं है तो पानी ड्रेन के लिए सीवर सिस्टम पर ही निर्भर है। अगर ड्रेनेज सिस्टम, सीवर सिस्टम पर ही निर्भर है तो उस पर निगरानी करने की जरूरत है कि कहां जलभराव हो रहा है, उसे किस तरह सीवर से ही निकालें। महानगर पालिकाएं हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर नालियों की सफाई करती हैं। बारिश होने पर यह मिट्टी फिर नाली में चली जाती है। ऐसा भी नहीं किया जाता कि मिट्टी को निकाल कर कहीं दूर फेंका जाए ताकि नालियां साफ रहें। नालियां ड्रेनेज के साथ भूजल रिचार्ज भी करती हैं। जब ड्रेनेज सिस्टम ही ठीक नहीं है तो दो चीजें करने की जरूरत है। एक तो जिन घनी आबादी वाले क्षेत्रों में जहां पानी की सबसे ज्यादा कमी है वहां पानी का संरक्षण और ग्राउंड वाटर रिचार्ज कैसे कर सकते हैं, इस बारे में सोचना होगा। दूसरी, पानी को सिर्फ निकालने की अपेक्षा पानी के बचाव की महत्वता और संवर्धन की कोशिश होनी चाहिए।

■ सरकार का करोड़ों का बजट है। सरकारें राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप में रह जाती हैं?

जब आपदाएं आती हैं, उस दौरान संस्थाएं आगे आकर कहती हैं कि बताओ हमें क्या काम करना है। धरना प्रदर्शन से कोई हल नहीं होने वाला। आरोप-प्रत्यारोपों की अपेक्षा केंद्र और राज्य की सरकारों और जुड़ी जल आपूर्ति, संरक्षण या ड्रेनेज बोर्ड आदि संस्थाओं को मिल कर काम करने की जरूरत है। राजनीति की अपेक्षा अपने स्तर पर मदद के लिए संस्थाओं को आगे आकर काम करना चाहिए।

■ आम नागरिक जलभराव की समस्या में क्या योगदान दे सकते हैं? - 

जलभराव की समस्या में आम नागरिक बहुत कुछ नहीं कर सकते। लोग नालियों में कूड़ा-करकट न डालें ताकि नालियां बंद न हों। लोगों में जागरूकता की जरूरत है।

■ शहरों में जलभराव की समस्याओं से कैसे निजात मिल सकती है?

शहरों में पानी के समाधान के लिए इंफ्रास्टक्चर की एक बड़ी योजना बनानी चाहिए जो पानी के संवर्धन और निकास, दोनों पर काम करे। बारिश का ज्यादा पानी आने पर उसका संवर्धन करना मुश्किल है क्योंकि जब शहर बढ़ता है तो यह समस्या और भी कठिन हो जाती है। छोटा शहर हो तो वारिश के पानी को पार्कों, खुली जगह और वेटलैंड में ले जाया जा सकता है जिससे जमीनी पानी रिचार्ज हो सकता है। लेकिन बड़े शहरों में तो कहीं खाली जमीन छोड़ी ही नहीं है। इसलिए पानी कहां ले जाओगे। बड़े शहरों में गरीब लोग शहर के बाहर बसते हैं, उनके क्षेत्रों में पानी के स्रोत बनाने होंगे। शहर में जहां पानी संग्रह की क्षमता है, वहां उपयोग करें। ■ 

■ बड़े शहरों में बारिश से कैसे हालात रहते हैं?

दिल्ली की आज तीन बड़ी समस्याएं हैं। एक तो पानी की कमी, गर्मी और यह जलभराव की समस्या है। थोड़ी बारिश से ही दिल्ली पानी पानी हो जाती है। मुंबई में दो तीन महीने इतनी बारिश आती है कि पानी के ड्रेनेज की समस्या है। दिन का पानी रात में भी नहीं निकाल पा रहे। बेंगलुरू इतना बढ़ गया है कि वहां बारिश का पानी तीन तरफ से पानी उतरता है जो शहर में नदी का रूप ले लेता है। चेन्नई में समुद्र होने से कभी जलभराव तो कभी सूखा से पानी की समस्या हो जाती है। अब बड़े शहर इतने बढ़ गए हैं कि अपना ही फ्लड उत्पन्न कर रहे हैं। कंक्रीट बिल्डिंग इंफ्रास्ट्रक्चर इतना बढ़ गया है कि बारिश का पानी जाए तो जाए कहां।

स्रोत - 6 जुलाई 2024, राष्ट्रीय सहारा


 

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