समुद्र तल बढ़ने और जमीन धंसने के कारण भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से लेकर अमेरिका के मायामी तक दुनिया के कई शहर सागर में डूबने के खतरे का सामाना कर रहे हैं।
समुद्र तल बढ़ने और जमीन धंसने के कारण भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से लेकर अमेरिका के मायामी तक दुनिया के कई शहर सागर में डूबने के खतरे का सामाना कर रहे हैं। स्रोत : needpix.com

भूजल दोहन के कारण धंस रहे हैं मुंबई से मायामी तक के तटीय शहर

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ने और भूजल व अन्य संसाधनों के अनियोजित दोहन के कारण ज़मीन के धंसने के दोहरे खतरे का सामना कर रहे हैं समुद्र किनारे बसे शहर।
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भारत के मुंबई, कोलकाता, और चेन्नई जैसे महानगरों समेत दुनियाभर में समुद्र किनारे बसे शहर समुद्र का जलस्तर बढ़ने और जमीन के धंसने के दोहरे खतरे का सामना कर रहे हैं। इस संयुक्त प्रभाव को सापेक्ष समुद्र-स्तर वृद्धि (Relative Sea-Level Rise–RSLR) कहा जाता है, जो इन शहरों को तेज़ी से डूबने के कगार पर ला रहा है। 

सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (एनटीयू) के शोध ‘सी-लेवल राइज फ्रॉम लैंड सब्सिडेंस इन मेजर कोस्टल सिटीज’ के अनुसार, साल 2014 से 2020 के दौरान दुनिया के 24 तटीय शहर हर साल कम से कम 1 सेंटीमीटर तक धंस रहे हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जलस्तर का बढ़ना अब एक वैश्विक संकट के रूप में स्वीकार किया जा चुका है। हालांकि, तटीय शहरों के सामने एक और बड़े खतरे की पहचाना हुई है। यह खतरा है भू-धंसाव यानी ज़मीन के धंसने का। तटीय शहरों के डूबने के खतरे को अकसर केवल समुद्र में जलस्तर बढ़ने से जोड़कर देखा जाता है। 

हालांकि, जिस तरह एक तरफ समुद्र का स्तर ऊपर उठ रहा है और दूसरी तरफ भू-धंसाव से ज़मीन नीचे जा रही है, इन दोनों का संयुक्त प्रभाव तटीय शहरों को सापेक्ष समुद्र-स्तर वृद्धि के जोखिम में डाल रहा है। माना जा रहा है कि 2050 तक कई शहर बार-बार बाढ़ का सामना करेंगे।

एनटीयू ने एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका के 48 तटीय शहरों में भू-धंसाव का अध्ययन किया। इन शहरों में लगभग 7.6 करोड़ लोग रहते हैं। इन 48 में से 44 शहरों में भू-धंसाव की दर वैश्विक औसत (3.7 मिमी/वर्ष) से ज़्यादा पाई गई है। एशिया के जकार्ता और मनीला सहित कई शहरों में तो यह दर 16 मिमी/वर्ष तक रिकॉर्ड की गई है। यह स्थिति बाढ़ या खारे पानी के ज़मीन में घुसने जैसी पर्यावरणीय समस्याओं को और भी गंभीर बना रही है।

क्यों धंस रही है ज़मीन

एनटीयू के अध्ययन के मुताबिक भूजल का अत्यधिक दोहन शहरों के धंसने और अंततः डूबने का एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा, ज़मीन के नीचे से तेल या गैस आदि निकाले जाने के कारण भी वह खाली होकर नीचे बैठने लगती है। एशिया के जकार्ता और हो ची मिन्ह सिटी जैसे कई तेज़ी से बढ़ते शहरों में भारी निर्माण कार्य और लगातार भूजल दोहन से भी ज़मीन और तेज़ी से धंस रही है।

वैश्विक और भारतीय परिप्रेक्ष्य

कम ऊँचाई, अत्यधिक जनसंख्या, और अव्यवस्थित शहरीकरण के चलते ये शहर सापेक्ष समुद्र-स्तर वृद्धि (RSLR) के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। साल 2014–2020 के आंकड़ों के आधार पर सबसे अधिक प्रभावित कुछ शहरों के  उदाहरण इस प्रकार हैं:

  • जकार्ता, इंडोनेशिया: यह शहर तेज़ी से धंस रहा है। यहां औसतन 10–15 मिमी/वर्ष भू-धंसाव की दर देखने को मिली है। भूजल के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण भू-धंसाव की दर अत्यंत तीव्र हो गई है, जिसने इसे समुद्र-स्तर से नीचे ला दिया है। नतीजतन, सामान्य ज्वार में भी यहां सड़कें और घर डूब जाते हैं, जिससे रोज़मर्रा का जीवन बाधित होता है।

  • तियानजिन, चीन: उत्तर-पूर्वी चीन के तियानजिन में सबसे अधिक भूस्खलन के मामले देखे गए हैं। यहां भू-धंसाव की दर औसतन 10–15 मिमी/वर्ष है। इस सदी में तेज़ी से हुआ औद्योगिक और बुनियादी ढांचे का विकास इसका मुख्य कारण है। शहर के सबसे ज़्यादा प्रभावित हिस्से साल 2014 से 2020 के बीच हर साल 16.2 मिमी. तक धंसे हैं।

  • बैंकॉक, थाईलैंड: यहाँ भू-धंसाव की दर औसतन 10 मिमी/वर्ष पाई गई है। भू-धंसाव के कारण मामूली समुद्री वृद्धि भी बाढ़ के खतरे और असर को बढ़ा देती है। तूफानी लहरें अब शहर के अंदर तक आती हैं, जिससे इमारतों और जान-माल को नुकसान होता है।

  • हो ची मिन्ह सिटी, वियतनाम: मेकॉन्ग डेल्टा में बसे इस शहर में भू-धंसाव की औसत दर 16.2 मिमी/वर्ष है। यहाँ समुद्री खारा पानी धँसती ज़मीन में घुस रहा है, जिसके परिणामस्वरूप पीने के पानी और खेती पर असर पड़ रहा है। नतीजतन, यहां बाढ़ के अलावा खाद्य सुरक्षा का खतरा भी बढ़ा है।

  • न्यू ऑरलियन्स, उत्तरी अमेरिका: यह शहर पहले से ही समुद्र-स्तर से नीचे है और भू-धंसाव का सामना कर रहा है। यहां भू-धंसाव की औसत दर 6–8 मिमी/वर्ष पाई गई है। यह शहर तूफान और बारिश के पानी को बाहर निकालने के लिए पंपिंग सिस्टम पर निर्भर है। सुपरस्टॉर्म कैटरीना जैसी आपदाओं के दौरान देखा गया कि भू-धंसाव और बढ़ते पानी के संयुक्त प्रभाव से ये सिस्टम यहां फेल हो रहे हैं।

  • मायामी, फ्लोरिडा: इस शहर की चूना पत्थर वाली ज़मीन भू-धंसाव की प्रवृत्ति के चलते बहुत नाज़ुक है। कुछ स्थानों पर यहां भू-धंसाव की दर 1–2 मिमी/वर्ष तक पाई गई है। यहां ज़मीन समुद्री पानी को सोख लेती है, जिससे खारा पानी शहर में अंदर तक आ जाता है। यदि RSLR के कारण समुद्र का स्तर 20 सेमी बढ़ता है, तो 2050 तक सालाना बाढ़ से शहर को $1 ट्रिलियन का नुकसान हो सकता है।

  • न्यूयॉर्क सिटी: यहां लोअर मैनहट्टन जैसे निचले इलाके भू-धंसाव और समुद्र-स्तर वृद्धि के दोहरे खतरे में हैं। यहां भू-धंसाव की दर औसतन 2 मिमी/वर्ष तक पाई गई है। सुपरस्टॉर्म सैंडी के दौरान यहां देखा गया कि छोटी लहर भी बड़ा विनाश कर सकती है। गार्जियन (2025) की रिपोर्ट के मुताबिक, 1.5°C तापमान बढ़ने पर भी, भू-धंसाव के साथ कारण इन शहरों सुरक्षा टूट सकती है और करोड़ों लोग विस्थापित हो सकते हैं।

भूजल के अत्‍यधिक दोहन के कारण ज़मीन धंसने और ग्‍लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्र का जलस्‍तर बढ़ने के के कारण तटीय शहर दोहरे खतरे का सामना कर रहे हैं।
भूजल के अत्‍यधिक दोहन के कारण ज़मीन धंसने और ग्‍लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्र का जलस्‍तर बढ़ने के के कारण तटीय शहर दोहरे खतरे का सामना कर रहे हैं। स्रोत : IWP

भारत के प्रभावित शहर

भारत की लंबी तट रेखा और तटीय शहरों में अधिक जनसंख्या घनत्व उन्हें जलवायु संकट के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।2014–2020 के आंकड़ों के आधार पर भारतीय शहरों की स्थिति इस प्रकार है -

  • मुंबई: यहां भू-धंसाव की औसत दर 2–8 मिमी/वर्ष तक है। नतीजतन, मानसून और ऊंचे ज्वार के दौरान शहर में अक्सर पानी भर जाता है और कुछ इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है। लगभग 62 लाख लोग इससे प्रभावित होते हैं।। 

  • चेन्नई: बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित चेन्नई में तटीय कटाव और चक्रवात बढ़े हैं। शहरीकरण और मैंग्रोवों के कटने से प्राकृतिक सुरक्षा कमज़ोर हुई है और भू-धंसाव के कारण आपदाओं के प्रति संवेदनशील बढ़ी है। यहां भू-धंसाव की औसत दर 5–7 मिमी/वर्ष पाई गई है। 

  • सूरत: तापी नदी के मुहाने पर बसा सूरत समुद्र में आने वाले तूफानों और ज्वार-भाटों से अक्सर प्रभावित होता है। भू-धंसाव के कारण यहां निचले इलाकों में पानी भरने की आशंका बढ़ी है, जिससे विस्थापन का खतरा पैदा हुआ है। यहां भू-धंसाव की औसत दर 4–6 मिमी/वर्ष पाई गई है।

  • कोच्चि, मंगलौर, विशाखापत्तनम, तिरुवनंतपुरम: ये शहर भी बढ़ते भू-धंसाव और समुद्री जोखिम का सामना कर रहे हैं। यहां भू-धंसाव की औसत दर 2–4मिमी/वर्ष पाई गई है। मौजूदा रुझान जारी रहा तो 2050 तक इनके कुछ हिस्से भू-धंसाव के कारण डूब सकते हैं। खासकर, कोच्चि की नहरें और कम ऊंचाई इसे और भी संवेदनशील बनाती है।

गौरतलब है कि, यह समस्या केवल तटीय क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। उत्तराखंड का जोशीमठ एक तटीय शहर न होने के बावजूद भू-धंसाव से बेतरह प्रभावित है। अस्थिर भूवैज्ञानिक संरचनाओं और अनियोजित निर्माण ने यहाँ ज़मीन धंसने की समस्या को गंभीर बना दिया है। नतीजतन, इमारतों में दरारें आ रही हैं और लोगों को विस्थापित होना पड़ रहा है। 

इन शहरों ने सफलता के साथ किया चुनौती का सामना:

भू-धंसाव और समुद्र-स्तर वृद्धि के दोहरे खतरे से निपटने में कुछ वैश्विक शहरों ने समय रहते प्रभावी कदम उठाए हैं। 

  • सबसे सफल उदाहरण जापान की राजधानी टोक्यो है, जहाँ 1960 के दशक तक हर साल ज़मीन 10 सेमी तक धंस रही थी। लेकिन 1970 में सरकार ने पंप द्वारा भूजल दोहन पर कड़े प्रतिबंध लगाए। परिणामस्वरूप, अब कुछ इलाकों में धंसाव की गति लगभग शून्य हो गई है। 

  • चीन के शंघाई शहर में 1960 के दशक में भारी भूजल दोहन के कारण ज़मीन 98 मिमी. प्रति वर्ष तक धंस रही थी। शंघाई प्रशासन ने भूजल निकालने पर नियंत्रण लगाया। साथ ही, ज़मीन के नीचे कृत्रिम रूप से पानी का पुनर्भरण शुरू किया। इन उपायों से भू-धंसाव की गति काफ़ी घट गई।

  • इटली के ऐतिहासिक शहर वेनिस ने भी समय रहते कार्रवाई की। 1930–1973 के दरम्यान 15 सेमी  तक भू-धंसाव हुआ, जिसमें भूजल दोहन का योगदान प्रमुख था। इसे देखते हुए सरकार ने भूजल निकालने पर सख्त प्रतिबंध लगाया। साथ ही, "MOSE Project" नामक एक उन्नत बाढ़ सुरक्षा प्रणाली शुरू की, जिसमें समुद्री जल को नियंत्रित करने के लिए विशालकाय फ्लड बैरियर लगाए गए। इससे भू-धंसाव को रोका गया और बाढ़ के खतरे को काफी हद तक कम किया गया।

  • इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता इस समय दुनिया के सबसे तेज़ी से धंसते शहरों में से एक है। यहां कुछ इलाकों में ज़मीन 26 मिमी प्रति वर्ष की दर से नीचे धंस रही है। सरकार ने साल 2023 से यहां भूजल उपयोग पर सख्ती बढ़ाई है और पाइपलाइन के ज़रिए वैकल्पिक जलापूर्ति को प्राथमिकता दी जा रही है। साथ ही, जकार्ता की स्थिति को देखते हुए एक नई राजधानी "नुसंतारा" का निर्माण भी शुरू किया गया है।

बचाव के उपाय

तटीय शहरों को इस खतरे से बचाने के लिए एक व्यापक योजना ज़रूरी है, जिसमें इन उपायों को शामिल किया जाना चाहिए।

  • भूजल प्रबंधन: जिन इलाकों में ज़मीन धंस रही है, वहाँ भूजल दोहन के लिए सख्त नियम बनने चाहिए। उद्योगों-खेती के लिए सतही जल का इस्तेमाल अनिवार्य किया जाना चाहिए। बारिश के पानी और रीचार्ज पिट्स की मदद से भूजल पुनर्भरण किया जाना चाहिए। पेयजल के लिए भी भूजल पर निर्भरता कम की जानी चाहिए।

  • तटीय सुरक्षा को मज़बूती: मौजूदा तटबंधों को मज़बूत किया जाए और तूफानों से बचाव के लिए नई समुद्री दीवारें या बाढ़ बाधाएं बनाई जाएं। मैंग्रोव वन और वेटलैंड्स जैसे प्राकृतिक सुरक्षा घेरों को बचाना और विकसित करना भी महत्वपूर्ण है। 

  • दूरदर्शी शहरी नियोजन: भू-धंसाव और समुद्र-स्तर वृद्धि के सबसे ज़्यादा जोखिम वाले इलाकों की पहचान करके वहाँ निर्माण पर रोक लगाई जाए। संभव हो, तो बिजली संयंत्रों और अस्पतालों जैसे अहम ढांचों को कम जोखिम वाले इलाकों में ले जाया जाए। स्थानीय लोगों को इन खतरों के लिए जागरूक करके उन्हें बचाव की योजनाओं में शामिल किया जाए, ताकि समाधान ज्यादा टिकाऊ हो सकें।

  • अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भू-धंसाव और समुद्र-स्तर वृद्धि की बेहतर निगरानी के लिए उन्नत डेटा सिस्टम में निवेश हो और डेटा को सभी देशों के साथ साझा किया जाए। भू-धंसाव रोकने और तटीय सुरक्षा के लिए नई तकनीकों और इंजीनियरिंग समाधानों पर लगातार शोध को बढ़ावा देने की भी ज़रूरत है। 

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