अफगानिस्तान से दिल्ली तक भूकम्प बड़ी तबाही का सिग्नल तो नहीं!
दिल्ली -एनसीआर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान सहित उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों में 3 अक्टूबर के बाद से बार-बार भूकम्प के झटके महसूस किए जा रहे हैं। 3 अक्टूबर की दोपहर को तो भूकम्प के जोरदार झटके महसूस किए गए थे, जिसका केन्द्र नेपाल के बझांग जिले में था। उत्तर भारत में उस दौरान लगातार दो बार धरती कांपी थी। हालांकि भारत में भूकम्प के उन झटकों से जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ था लेकिन केवल 26 मिनट में ही नेपाल से लेकर दिल्ली तक दो बार लगे भूकम्प के जोरदार झटकों से हर कोई कांप गया था।
नेपाल में तो केवल 40 मिनट के भीतर 4 बार भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे और वहां बझांग जिले में तो भूकम्प ने काफी तबाही मचाई थी, जहां पहाड़ों के करीब सैंकड़ों मकान जमींदोज हो गए थे। उसके बाद 8 अक्टूबर को अफगानिस्तान में आए विनाशकारी भूकम्प ने तो देखते ही देखते हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। अफगानिस्तान में भूकम्प के उन तीव्र झटकों के कारण कई गांव तो पूरी तरह नष्ट हो गए थे और हजारों परिवार तबाह हो गए थे। अफगानिस्तान में जून 2022 में पक्तिका प्रांत में आए 6.1 तीव्रता के भूकम्प के कारण भी करीब एक हजार लोग मारे गए थे। फरवरी 2023 में तुर्किये में आए भूकम्प की विनाशकारी तस्वीरें भी अब तक लोगों के जहन में जिंदा हैं, जिसमें न केवल हजारों लोगों की जान चली गई थी बल्कि 7.8 तीव्रता के उस भूकम्प ने तुर्किये की जमीन को करीब 3 मीटर खिसका भी दिया था। यही कारण है कि उत्तर भारत में भी बार-बार लग रहे भूकम्प के झटके लोगों में चिंता पैदा कर रहे हैं। दरअसल भूकम्प के बार-बार लग रहे झटकों के बाद लोगों के मन में यही सवाल उमड़ रहे हैं कि कहीं अफगानिस्तान से उत्तर भारत तक लगते भूकम्प के झटके किसी बड़ी तबाही का सिग्नल तो नहीं हैं।
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के एक शोध में बताया जा चुका है कि हिमालय की तलहटी में धरती को चीर देने वाले भूकम्प आ चुके हैं। शोध के मुताबिक हरिद्वार के निकट लालढ़ांग में 1344 तथा 1505 में तो 8 से ज्यादा तीव्रता के भूकम्प आने के संकेत मिले हैं, जिनसे एक इलाके में तो जमीन 13 मीटर ऊपर उठ गई थी तथा रामनगर, टनकपुर और नेपाल तक जमीन पर करीब दो सौ किलोमीटर लंबी दरार भी पड़ गई थी। जाहिर है कि तब असंख्य लोग उन विनाशकारी भूकम्पों की भेंट भी चढ़े होंगे। वैसे 9.1 तीव्रता का अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकम्प 11 मार्च 2011 को जापान में आया था, जिसने न केवल बहुत बड़ी संख्या में लोगों की जान ली थी बल्कि धरती की धुरी को भी 4 से 10 इंच तक खिसका दिया था। हालांकि तीव्रता के लिहाज से 9.5 तीव्रता का अभी तक का सबसे खतरनाक भकम्प 22 मई 1960 को चिली में आया था, जिसके कारण आई सुनामी से दक्षिणी चिली, हवाई द्वीप, जापान, फिलीपींस, पूर्वी न्यूजीलैंड, दक्षिण-पूर्व आस्ट्रेलिया सहित कई देशों में भयानक तबाही मची थी और हजारों लोगों की मौत हुई थी।
सर्वाधिक जानलेवा भूकम्प चीन में 1556 में आया था, जिसमें 8.3 लाख लोगों की मौत हुई थी। भूकम्प के झटकों से बार-बार धरती कांपने को लेकर फिलहाल दुनियाभर के भूगर्भ शास्त्रियों तथा भूकम्प विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय धरती की टेक्टोनिक प्लेटें खिसक रही हैं और उन्हीं के कारण इतने भूकम्प आ रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक कई बार जब दो टेक्टोनिक प्लेटों के बीच में बनी गैस या प्रेशर रिलीज होता है, तब भी भूकम्प के झटके आते हैं और गर्मियों में ये स्थिति ज्यादा देखने को मिलती है। कुछ समय पूर्व ऐसी रिपोर्ट भी सामने आई थी कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट हिमालयन टेक्टोनिक प्लेट की तरफ खिसक रही है, जिसके कारण भी भूकम्प के ज्यादा झटके महसूस किए जा रहे हैं। हिमालय में बड़े भूकम्प की आशंका जताते हुए वैज्ञानिक कुछ समय पहले यह भी कह चुके हैं कि हिमालय पर्वत श्रृंखला में सिलसिलेवार भूकम्पों के साथ कभी भी बड़ा भूकम्प आ सकता है, जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ या उससे भी ज्यादा हो सकती है। इतनी ज्यादा तीव्रता के भूकम्प से खासकर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भारी तबाही मच सकती है। जहां तक भारत में भूकम्प के खतरों की बात है तो नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी (एनसीएस) द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया जा चुका है कि 20 भारतीय शहरों तथा कस्बों में भूकम्प का खतरा सर्वाधिक है, जिनमें दिल्ली सहित नौ राज्यों की राजधानियां भी शामिल हैं। हिमालयी पर्वत श्रृंखला क्षेत्र को दुनिया में भूकम्प को लेकर सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है और एनसीएस के एक अध्ययन के अनुसार भूकम्प के लिहाज से सर्वाधिक संवदेनशील शहर इसी क्षेत्र में बसे हैं।
राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में जमीन के नीचे दिल्ली-मुरादाबाद फाल्ट लाइन, मथुरा फाल्ट लाइन तथा सोहना फाल्ट लाइन मौजूद है और जहां फाल्ट लाइन होती है, भूकम्प का अधिकेन्द्र वहीं पर बनता है। बड़े भूकम्प फाल्ट लाइन के किनारे ही आते हैं और केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरी हिमालयन बेल्ट को भूकम्प से ज्यादा खतरा है। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (एनसीएस) के पूर्व प्रमुख डा. एके शुक्ला के मुताबिक उत्तर भारत में हिमालयी बेल्ट से ज्यादा खतरा है, जहां 8 की तीव्रता वाले भूकम्प आने की क्षमता है। हालांकि ज्यादा तीव्रता का बड़ा भूकम्प आने की संभावनाओं के बारे में वैज्ञानिकों का यही कहना है कि इसका कोई सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है कि यह कब आ सकता है। दरअसल भूकम्प के सटीक पूर्वानुमान का अब तक न कोई उपकरण है और न ही कोई मैकेनिज्म। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के वैज्ञानिक हालांकि बार-बार धरती के कांपने को लेकर अध्ययन कर रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि इसके कारणों में भू-जल का गिरता स्तर भी एक प्रमुख वजह सामने आ रही है जबकि अन्य कारण भी तलाशे जा रहे हैं।
वैसे भारत में बार-बार आ रहे भूकम्पों के अध्ययन के लिए एनसीएस द्वारा इसरो की सहायता से सैटेलाइट इमेजिंग की मदद ली जा रही है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून तथा आईआईटी कानपुर भी दिल्ली तथा उसके आसपास के इलाकों का अध्ययन करते हुए इसमें एनसीएस की मदद कर रहे हैं। भूकम्प के खतरों के मद्देनजर देश को जोन-2 से जोन-5 तक कुल चार भूकम्प जोन में बांटा गया है। जोन-2 सबसे कम भूकम्पीय गतिविधियों वाला जोन है, जिसमें कई राज्यों के कुछ छोटे-छोटे हिस्से आते हैं। जोन-3 में उत्तर प्रदेश के निचले इलाके, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब-गुजरात के कुछ हिस्से, पश्चिम बंगाल का हिस्सा, उत्तरी झारखंड, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, लक्षद्वीप शामिल हैं। जोन-4 में दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड के अलावा हरियाणा-पंजाब के कुछ हिस्से, उत्तर प्रदेश का उत्तरी हिस्सा, जम्मू-कश्मीर, बिहार और पश्चिम बंगाल का कुछ हिस्सा, गुजरात-महाराष्ट्र का पश्चिमी हिस्सा, राजस्थान का सीमाई इलाका, लद्दाख, सिक्किम आते हैं। जोन-5 में सबसे ज्यादा भूकम्पीय गतिविधियों वाले स्थान हैं, जिनमें उत्तराखण्ड का पूर्वी हिस्सा, हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, कश्मीर घाटी का हिस्सा, गुजरात का कच्छ, उत्तरी बिहार, सभी उत्तर-पूर्वी राज्य तथा अंडमान-निकोबार शामिल हैं। माना कि भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समक्ष मनुष्य बेबस है क्योंकि ये आपदाएं प्रायः बगैर किसी चेतावनी के आती हैं, जिससे इनकी मारक क्षमता कई गुना बढ़ जाती है लेकिन जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा इत्यादि कुछ देशों से सबक लेकर हम ऐसे प्रबंध तो कर ही सकते हैं, जिससे भूकम्प आने पर नुकसान की संभावना न्यूनतम रहे। जापान तो ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा भूकम्प आते हैं लेकिन उसने भवन निर्माण और बुनियादी सुविधाओं का ऐसा मजबूत ढ़ांचा विकसित कर लिया है, जिससे वहां भूकम्पों के कारण अब बहुत कम नुकसान होता है। दूसरी ओर हम अभी तक इस मामले में बहुत पीछे हैं।
दरअसल हमारे यहां भूकम्प से बचाव के लिए बने दिशा-निर्देशों की अनदेखी कर अनियोजित तरीके से लगातार बन रही नई इमारतों की बात हो या पुरानी जर्जर इमारतों में रह रहे करोड़ों लोगों की, सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। भूकम्प जैसी प्राकृतिक घटनाएं पृथ्वी की आंतरिक संरचना के कारण भूगर्भ में विशिष्ट स्थानों पर संचयित ऊर्जा के विशेष परिस्थितियों में उत्सर्जित होने से घटती हैं। भूकम्पीय तरंगों के माध्यम से यह ऊर्जा चारों ओर प्रवाहित होती है, जिससे सतह पर बनी इमारतों में कंपन होता है और जब ये इमारतें इस कंपन को झेलने में समर्थ नहीं होती, तभी जान-माल का नुकसान होता है यानी वास्तव में यह नुकसान भूकम्प नहीं झेल पाने वाली इमारतों के कारण होता है। इसीलिए विशेषज्ञों का कहना है कि नई बनने वाली इमारतों को भूकम्परोधी बनाकर तथा पुरानी इमारता में अपेक्षित सुधार कर जान-माल के बड़े नुकसान से बचाया जा सकता है। हालांकि रिक्टर स्केल पर 5 तक की तीव्रता वाले भूकम्प को खतरनाक नहीं माना जाता लेकिन यह भी क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। भूकम्प का केन्द्र अगर नदी का तट हो और वहां भूकम्प रोधी तकनीक के बिना ऊंची इमारतें बनी हों तो ऐसा भूकम्प भी बहुत खतरनाक हो सकता है। अधिकांश भूकम्प विशेषज्ञों का कहना है कि भूकम्प के लिहाज से संवेदनशील - इलाकों में इमारतों को भूकम्प के लिए तैयार करना शुरू कर देना चाहिए ताकि बड़े भूकम्प के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके।
संपर्कः 114, गली नं. 6, गोपाल नगर, एम.डी. मार्ग, नजफगढ़, नई दिल्ली-110043
ईमेल- mediacaregroup@gmail.com नवंबर 2023, देहरादून