क्या यमुनोत्री में केदारनाथ जैसी बाढ़ सम्भव है
विगत दशकों में वर्षा ऋतु में दोनों क्षेत्रों केदारनाथ एवं यमुनोत्री में अतिवृष्टि की अनेक घटनाएं भारी वर्षापात के रूप में हो चुकी हैं। 18-19 अगस्त 1998 को केदार घाटी में मन्दाकिनी नदी की सहायक नदियों जैसे मद्यमहेश्वर तथा कालीगंगा में हुई भारी वर्षा से सक्रिय हुए भस्खलनों में 100 से अधिक जानें गई थीं तथा 16 जुलाई, 2001 के भारी वर्षापात से मन्दाकिनी घाटी में गौरीकुण्ड से लगभग 15 किमी डाउनस्ट्रीम में स्थित फाटा गांव में हुए भूस्खलन में जानमाल की हानि तथा 16-17 जून 2013 को केदारनाथ- गौरीकुण्ड क्षेत्र में हुए भारी वर्षापात और बाढ़ से बड़ी संख्या में जान-माल की क्षति जैसी आपदाकारी घटनाएं केदारनाथ क्षेत्र में अतिवृष्टि के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
हमारे देश की 'देश के हिमालयी राज्य उत्तराखंड के उत्तरी क्षेत्र में यमुना नदी के किनारे बसा है प्रसिद्ध तीर्थ स्थल यमुनोत्री यमुना नदी को अपने उद्गम के इस क्षेत्र में कालिन्दी के नाम से जाना जाता है। करन्ट साइन्स जर्नल के वर्ष 2013 के अंक 105 (11) में प्रकाशित केदारनाथ आपदा से सीख विषयक शोध पत्र में उत्तराखण्ड के जिन प्रमुख तीर्थ स्थलों के नदी की तरफ के ढलानों को त्वरित बाढ़ (फ्लैश फ्लड) की दृष्टि से संवेदनशील बताया गया है उनमें यमुनोत्री धाम भी है, कुछ ऐसा ही ब्योरा वर्ष 2017 में जर्मनी से प्रकाशित 'आसपेक्टस ऑफ अर्थ एन्वायरॉन्मेंट' नामक पुस्तक में शोधकर्ताओं द्वारा दिया गया है।
यमुना नदी की बाढ़ यमुनोत्री तथा इस धाम के 6 किमी लम्बे पैदल और खच्चरों के दुर्गम रास्ते के शुरुआती गांव जानकी चट्टी और रास्ते में पड़ने वाले एक पड़ाव राम मंदिर में कुछ इस तरह का विध्वंस कर सकती है, जैसे वर्ष 2013 के 16-17 जून को मन्दाकिनी नदी की विनाशकारी बाढ़ ने केदारनाथ धाम में तथा केदारनाथ के 14 किमी लम्बे पैदल मार्ग के शुरुआती गांव गौरीकुण्ड तथा रास्ते पड़ने वाले रामबाढ़ा में किया था ।
जानकी चट्टी-यमुनोत्री की यह भौगोलिक स्थिति काफी कुछ गौरी कुण्ड-केदारनाथ से मिलती जुलती है। वर्ष 2007 में प्रकाशित पुस्तक हाइड्रोलॉजी एण्ड वाटर रिर्सोसेज ऑफ इण्डिया अंक 57 में यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री हिमनद को बताया गया है। समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिन्द पर्वत पर स्थित चम्पासार ग्लेशियर को भी यमुना नदी का उद्गम बताया गया है (स्रोत : http// wikipedia.org/wiki/yamunotri) कुछ ऐसा ही परिदृश्य केदारनाथ में भी है जो कि चोराबारी हिमनद से निकलने वाली मन्दाकिनी नदी के किनारे स्थित है। दिसम्बर 2016 में आई. जे. ए. आर.एस.जी.आई.एस. अंक 3 (2) में प्रकाशित एक शोध पत्र में यमुनोत्री एवं केदारनाथ के गूगल उपग्रहीय चित्रों के तुलनात्मक विश्लेषण से इन दोनों क्षेत्रों की कई भौगोलिक, स्थलाकृतिक तथा भूआकृतिक समानताओं तथा बाढ़ की संभावनाओं और मानवीय गतिविधियों के कारण घातकता (वलनिरेबिलिटी) में हो रही बढ़ोतरी से परिणामी जोखिम (रिस्क) के परिदृश्य सृजित किये गये।
त्वरित बाढ़ संवेदनशीलता एवं घातकता की स्थिति
एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर में वर्ष 2002 में आयोजित जियोडायनेमिक्स एण्ड एन्वायरॉन्मेन्ट संबंधी राष्ट्रीय सेमिनार में प्रस्तुत यमुना घाटी में भूस्खलन विषयक शोधपत्र के अनुसार ऊपरी यमुना घाटी के सतह मण्डल में बड़े पैमाने पर होने वाली हलचलें इस क्षेत्र को सक्रिय विवर्तनिकी (एक्टिव टेक्टोनिक्स) तथा उच्च भूकम्पीय सक्रियता का क्षेत्र बनाती हैं।
भूगर्भीय हलचलों को यदि इस क्षेत्र में उच्च ढलानों, कमजोर चट्टानों तथा वर्षापात के सम्भावित प्रभावों के साथ संयुग्मित कर विश्लेषित किया जाये तो ये सभी तथ्य इस क्षेत्र में बड़े भूस्खलनों की सम्भावनाओं को दर्शाति हैं। ऊपरी यमुना घाटी के इस क्षेत्र में यमुनोत्री, राममन्दिर तथा जानकी चट्टी अवस्थित है। यमुना नदी को यमुनोत्री मन्दिर के अपस्ट्रीम में अवरुद्ध कर सकने की क्षमता वाले भूस्खलन क्षेत्र वैज्ञानिकों द्वारा यहाँ पूर्व में भी देखे जा चुके हैं। शोधकर्ताओं द्वारा वर्ष 2012 में करन्ट साइंस जर्नल के अंक 102 (6) में प्रकाशित धरासू-यमुनोत्री में मानवजनित भूस्खलन विषयक शोधपत्र में भी इस क्षेत्र के भूस्खलनों का जिक्र किया गया है।
भविष्य में इस क्षेत्र में अत्यधिक वर्षांपात अथवा भूकम्प के प्रभाव से बड़े भूस्खलनों के सक्रिय होने की दशा में यमुना (कालिन्दी) नदी पर प्राकृतिक झील का निर्माण हो सकता है। कुछ घंटों या कुछ दिनों बाद ऐसी झील के फटने की सम्भावना त्वरित बाढ़ (फ़्लैश फ्लड) की दृष्टि से अति संवेदनशील ऊपरी यमुना (कालिन्दी) घाटी में स्थित यमुनोत्री, राम मन्दिर, सीता की वाटिका तथा जानकी चट्टी के आवादी क्षेत्रों के जोखिम को कई गुना बढ़ा देती है।
केदारनाथ त्रासदी के पार्वतिकीय नियंत्रण (आरोग्राफिक कंट्रोल) के बारे में दिसम्बर 2013 में करन्ट साइन्स जर्नल 105(11) में प्रकाशित शोध पत्र के आधार पर कहा जा सकता है कि यमुनोत्री भी केदारनाथ क्षेत्र जैसे पार्वतिकीय क्षेत्र ( ओरोग्राफिक रीजन) का हिस्सा होने के कारण अत्यधिक वर्षापात सम्भावित है तथा दोनों क्षेत्रों में काफी कुछ पार्वतिकीय समानताएं हैं। बिल्डिंग मैटीरियल टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउन्सिल (बी. एम.टी.पी.सी.) की वर्ष 2005 में सृजित एटलस में यमुनोत्री क्षेत्र को अति उच्च भूकम्प क्षति संभावित जोखिम क्षेत्र (अर्थक्वेक वैरी हाई डैमेज रिस्क जोन) में दर्शाया गया है, जिससे नाजुक ढलानों वाले इस क्षेत्र में भूकम्प जनित भूस्खलनों की सम्भावना को बल मिलता है। यमुनोत्री मन्दिर के ऊपरी ढलानों के भूअभियांत्रिकी (जियोटेक्निकल) तकनीकों से किये गये उपचार से कालिन्द पर्वत से चट्टानों के गिरने की घटनाओं पर कुछ हद तक अस्थायी रूप से अंकुश लगा है, परन्तु इस क्षेत्र में भारी वर्षापात बादल फटने या बड़े भूकम्प जैसी किसी आपदा की दशा में ऊपर की ओर स्थित कालिन्द पर्वत के भूस्खलन प्रवृत ढलानों से चट्टानों के गिरने की घटनाओं की पुनरावृत्ति सम्भव है।
विगत दशकों में वर्षा ऋतु में दोनों क्षेत्रों केदारनाथ एवं यमुनोत्री में अतिवृष्टि की अनेक घटनाएं भारी वर्षापात के रूप में हो चुकी हैं 18-19 अगस्त 1998 को केदार घाटी में मन्दाकिनी नदी की सहायक नदियों जैसे मद्यमहेश्वर तथा कालीगंगा में हुई भारी वर्षा से सक्रिय हुए भूस्खलनों में 100 से अधिक जानें गई थीं तथा 16 जुलाई, 2001 के भारी वर्षापात से मन्दाकिनी घाटी में गौरीकुण्ड से लगभग 15 किमी डाउनस्ट्रीम में स्थित फाटा गांव में हुए भूस्खलन में जानमाल की हानि तथा 16-17 जून 2013 को केदारनाथ- गौरीकुण्ड क्षेत्र में हुए मारी वर्षापात और बाढ़ से बड़ी संख्या में जान-माल की क्षति जैसी आपदाकारी घटनाएं केदारनाथ क्षेत्र में अतिवृष्टि के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
वर्ष 2019 में केदारनाथ की भारी बाढ़ के समय यमुनोत्री में भी बाढ़ की स्थिति थी जिसमें यमुना नदी का बहाव मार्ग भी थोड़ा सा परिवर्तित हुआ तथा इससे यमुनोत्री मन्दिर परिसर की नदी की तरफ की दीवार तथा रेलिंग को भी आंशिक क्षति पहुंची थी (स्रोत: www.dailymail.co.uke & www.tribuneindia.com/2014) इंडियन लैंडस्लाइड्स जर्नल के अंक 6(2) में वर्ष 2013 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार वर्ष 2015 की वर्षा ऋतु में यमुनोत्री मन्दिर परिसर के समीप मलबे का प्रवाह (डेब्रिस फ्लो) तथा पहाड़ी ढलान के नदी से लगे हिस्से का कटान हो रहा था।
ऊपरी यमुना नदी घाटी में भारी वर्षापात की घटनाओं का महत्वपूर्ण उदाहरण जानकी चट्टी से लगभग 18 किमी डाउनस्ट्रीम में यमुना नदी के बायें तट पर स्थित सायना चट्टी भूस्खलन है, जिसका प्रमुखता से दिखायी देने वाला कीप (फनल) के आकार का लम्बा भाग ( इलोन्गेटेड लोब) सामान्यतः अतिवृष्टि से सक्रिय हुए भूस्खलन का सूचक माना जाता है। सायना चट्ट भूस्खलन अतिवृष्टि के कारण हुआ है या इसका कोई अन्य कारण है, यह जानने के लिए इस क्षेत्र के विगत वर्षों के वर्षापात के सटीक आंकड़ों का विश्लेषण आवश्यक है। यद्यपि स्थानीय लोगों के अनुसार सायना चट्टी के इस विशालकाय भूस्खलन की घटना कुछ वर्ष पूर्व भारी वर्षापात में हुई थीं। बीते वर्षों में हुई भारी वर्षापात की ऐसी घटनाएं निकट भविष्य में भी ऊपरी यमुना घाटी में विशेष रूप से वर्षा ऋतु में भारी वर्षापात की पुनरावृत्तिकी सम्भावनाओं को जीवंत रखती हैं। ऐसी दशा में यमुनोत्री जानकी चट्टी तथा डाउनस्ट्रीम सायना चट्टी, खरादी तथा गंगानी में भी अतिवृष्टि के परिणामस्वरूप अचानक त्वरित बाढ़ (फ्लैश फ्लड) की सम्भावनाओं को बल मिलता है। इनका एक और कारण यह भी है कि यमुनोत्री यात्रा मार्ग के कई पड़ाव यमुना नदी की निचली वेदिकाओं (लोअर टैरेसेज) या नदी से सटे पुराने और संकरे बाढ़ क्षेत्र पर बसे हैं, जिनकी बाढ़ के लिए अति उच्च संवेदनशीलता है। वर्तमान में यमुना नदी के तट के कटान का प्रभाव किसी न किसी रूप में यमुनोत्री मन्दिर परिसर पर भी पड़ रहा है और नदी कटान के प्रभाव को कम करने के लिए वायरक्रेट तथा सीमेन्ट के बड़े-बड़े ब्लॉक मन्दिर परिसर के नदी से लगने वाले छोर की ओर रखे गये हैं। वास्तव में यमुनोत्री मन्दिर एक चार-पांच मन्जिलें ऐसे भवन की तरह है जिसका निर्माण यमुना (कालिन्दी) नदी के निचले टैरेस या पुराने बाढ़ क्षेत्र पर हुआ है और जो भारी बाढ़ आने की स्थिति में दुबारा प्रभावित हो सकता है। सन् 1820 ई. में जेम्स बेली फ्रेजर द्वारा सृजित यमुनोत्री के छायाचित्र में किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं था, परन्तु हाल ही के कुछ वर्षों में यमुनोत्री में हुए निर्माण कार्यों ने इस प्रमुख तीर्थ स्थल की मानव निर्माण रहित तीर्थ स्थल से अनियोजित निर्माण वाले तीर्थ स्थल में परिवर्तित कर दिया है।
केदारनाथ तथा यमुनोत्री दोनों ही उच्च हिमालय में मुख्य केन्द्रीय प्रणोद अर्थात् मेन सेन्ट्रल थ्रस्ट (एम.सी.टी.) के समीप बसे हैं जो कि उच्च हिमालय को निम्न हिमालय से अलग करता है। इसके अतिरिक्त इन दोनों ही क्षेत्रों की चट्टानेंभूगतिकीय के लिहाज से (जियोडायनैमिकली) अस्थिर हैं तथा इनमें भूगर्भीय हलचलें होती रहती हैं। केदारनाथ- गौरीकुण्ड तथा यमुनोत्री - जानकी चट्टी दोनों ही क्षेत्रों में भूस्खलनों की अनेकानेक घटनाएं प्रमुखतया चट्टानों के खिसकने, भूस्खलन के मलबे के प्रवाह (डैवरिस फ्लो) तथा जमीन के धंसने के रूप में देखने को मिलती हैं। भूगर्भीय दृष्टि से ऊपरी मंदाकिनी घाटी तथा ऊपरी यमुना घाटी की चट्टानों में बहुत समानता है तथा दोनों ही क्षेत्रों में मुख्य केन्द्रीय प्रणोद (मेन सेन्ट्रल थ्रस्ट ) उच्च ग्रेड की क्रिस्टलीकृत चट्टानों को निम्न ग्रेड की क्रिस्टलीकृत चट्टानों से अलग करता है।
वर्ष 1997 में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के विशेष प्रकाशन 48 ( 2 ) में ऊखीमठ केदारनाथ क्षेत्र में भूस्खलन प्रवृत्त क्षेत्रों के मैपिंग विषयक शोधपत्र, वर्ष 1998 में जर्नल ऑफ जियालॉजिक सोसाइटी ऑफ इण्डिया अंक 51 (5) में उच्च हिमालय में यमुना घाटी में चट्टानों का क्रम भंग रूपान्तरण विषयक शोधपत्र, वर्ष 2002 में जियोडाइनामिक्स एण्ड इन्वायरॉन्मेंट मैनेजमेंट की एच. एन. बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में प्रस्तुत में यमुनोत्री घाटी में भूस्खलन विषयक शोध पत्र तथा वर्ष 2012 में करन्ट साइन्स जर्नल के अंक 102 (6) में प्रकाशित धरासू-यमुनोत्री क्षेत्र में मानवजनित भूस्खलन विषयक शोधपत्रों से परिलक्षित होता है कि केदारनाथ- गौरीकुण्ड तथा यमुनोत्री जानकी चट्टी दोनों ही क्षेत्रों में विवर्तनिकी से (टेक्टोनिकली) नियंत्रित 'ट' आकार की घाटियों से विलग अत्यधिक विच्छेदित पर्वतों के विस्तार तथा अनेक स्थानों पर नाजुक एवं तीव्र ढलान है।
उक्त वैज्ञानिक तथ्यों से इन दोनों घाटियों (मन्दाकिनी तथा यमुना) की भूआकृतिक तथा संरचना समानताएं परिलक्षित होती हैं। इतना ही नहीं केदारनाथ गौरीकुण्ड क्षेत्र में मन्दाकिनी नदी तथा यमुनोत्री - जानकी चट्टी क्षेत्र में यमुना (कालिन्दी) नदी हिमनदों से उद्गमित होती हैं। तथा इन दोनों नदियों की ऊपरी घाटियों में गहरे खड्ढ (गोर्जेस) हैं। यमुनोत्री जानकी चट्टी क्षेत्र में सक्रिय भूकम्प विवर्तनिकी (एक्टिव सिस्मोटेक्टोनिक्स) का मुख्य कारण इस क्षेत्र में हुआ सक्रिय विवर्तनिक विरूपण (एक्टिव टेक्टोनिक डिफॉर्मेशन) है। यमुना सिनिस्ट्रल ने शियर नाम का अंश (फाल्ट), यमुनोत्री के 500 - मीटर उत्तर में अवस्थित जल प्रपात, यमुनोत्री के निकट यमुना (कालिन्दी नदी) का एक तीव्र ढलान, रैपिड एवं यमुनोत्री तथा जानकी चट्टी में गर्म पानी के स्रोत एवं ऊपरी यमुना घाटी में ठण्डे पानी के अनेक स्रोत, जानकी चट्टी के सामने यमुना नदी के दूसरी ओर स्थित खरसाली गाँव की ऐसी उत्थित वेदिकाएं (रेन्ड टेरेसेज) जिनके घाटी की ओर के हिस्सों में विकसित अनेक भूस्खलन क्षेत्र ऊपरी यमुना घाटी की सक्रिय विवर्तनिकी (एक्टिव -टेक्टोनिक्स) के कुछ महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं। इसके अतिरिक्त इन दोनों नदी घाटियों में वर्षा ऋतु में भारी वर्षापात होता है। आई. जे. ए. आर. एस.जी.आई.एस. अंक 3 (2) में दिसम्बर, 2016 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार ऊपरी यमुना घाटी तथा केदारनाथ क्षेत्र में मन्दाकिनी घाटी के जल भूविज्ञान (हाइड्रो-जियोलॉजिकल) तथा जल मौसमविज्ञान (हाइड्रो मिटिरियोलॉजिकल) परिदृश्य में कई समानताएं हैं। इतना ही नहीं यमुनोत्री में अपेक्षाकृत काफी संकरी यमुना नदी घाटी के भविष्य में इस क्षेत्र में भारी वर्षापात अथवा भूकम्प की दशा में भूस्खलन से अवरुद्ध होने की सम्भावना केदारनाथ क्षेत्र में मन्दाकिनी नदी घाटी में इस प्रकार के घटनाचक्र से कहीं अधिक प्रतीत होती है। यमुनोत्री तथा अपस्ट्रीम में यमुना (कालिन्दी) नदी की अति संकरी घाटी तथा इसमें भूस्खलनों के प्रवृत्त होने की संभावना इसका प्रमुख कारण हो सकते हैं। ऐसे कुछ कारणों से यमुनोत्री जानकी चट्टी क्षेत्र में केदारनाथ जैसी त्रासदी की सम्भावनाएं भविष्य विद्यमान हैं।
भारी वर्षापात तथा हिमनद झील (ग्लेशियल लेक) के फटने से केदारनाथ में जून 2013 में आयी विध्वंसकारी बाढ़ से कुछ अलग यमुनोत्री क्षेत्र में ऐसी घटना भूस्खलन से बनने वाली किसी झील के फटने से घटित हो सकती है। यमुनोत्री में यमुना (कालिन्दी) नदी घाटी की चौड़ाई केदारनाथ में मन्दाकिनी नदी माटी की चौड़ाई के आधे से भी कम है, इस दृष्टि से अतिवृष्टि तथा बाढ़ की स्थिति में यमुना घाटी बाद के प्रचंड वेग तथा जल राशि की भारी मात्रा की समाहित करने में सक्षम नहीं है। बाढ़ की स्थिति में यमुनोत्री में अति सकरी नदी घाटी बाढ़ के पानी का फैलाव नहीं होने देगी, इससे यहाँ नदी जल के स्तर में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है। जानकी चट्टी-यमुनोत्री के पैदल और खच्चर मार्ग के कई हिस्से तथा जानकी चट्टी का एक बड़ा भाग यमुना नदी के अति समीप इसकी निम्न वेदिकाओं (लोअर टेरेसेज) तथा पहाड़ों के निचले ढलानों पर अवस्थित है, जिससे भारी बाढ़ की दशा में इनके उसी प्रकार से पूरी तरह से वह जाने की आशंका है जैसे केदारनाथ क्षेत्र में वर्ष 2015 की मन्दाकिनी नदी की बाढ़ से घटित हुआ था। इतना ही नहीं जानकी चट्टी में यमुना नदी के अति समीप इसके पुराने बाढ़ क्षेत्र (ओल्ड फ्लड प्लेन) पर बनायी गयी वाहन पार्किंग तथा सड़क का निकटवर्ती हिस्सा बाढ़ आपदा की दृष्टि से सर्वोच्च जोखिम सम्भावित है। जानकी चट्टी के डाउनस्ट्रीम में यमुना नदी के दूसरे तट पर उच्च वेदिकाओं (हायर टेरेसेज ) पर स्थित खरसाली गाँव के यमुना नदी की ओर के निम्न ढलानों के भूस्खलन क्षेत्र बाढ़ की दशा में परस्पर एकीकृत होकर और वृहद भी हो सकते हैं, जिससे होने वाले शीर्षोन्मुख अपरदन (हेडवर्ड इरोजन) से खरसाली गांव में भू धंसाव तथा यमुना नदी का बहाव परिवर्तन भी सम्भावित है, यद्यपि खरसाली गाँव की वृहद वेदिकाओं (बाइड टेरेसेज) का पहाड़ की और का क्षेत्र ऐसी किसी बाढ़ से अप्रभावित रहेगा।
आई. जे. ए. आर. एस. जी.आई.एस. अंक 32 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार यमुनोत्री मन्दिर के समीप बाढ़ बचाव के अतिरिक्त संरचनात्मक उपायों (स्ट्रक्चरल मेजर्स) की आवश्यकता है, जबकि जानकी चट्टी में यमुना नदी के दायें तट पर तथा डाउनस्ट्रीम में खरसाली पुल तथा जानकी चट्टी वाहन पार्किंग एवं दूसरे तट पर बसे खरसाली गाँव के समीप नदी के दोनों तटों पर बाढ़ बचाव के संरचनात्मक न्यूनीकरण उपायों (स्ट्रक्चरल मिटीगेशन मेजर्स) की आवश्यकता है, जैसे तारों के जाल से ढक्कर पत्थर की दीवार तथा टोवाल्स का निर्माण। खरसाली हैलीपेड यमुनोत्री क्षेत्र का अन्तिम हैलीपेड है, अतः इस हैलीपेड को जानकीचट्टी से जोड़ने वाले खरसाली पुल की बाढ़ और भूस्खलन से सुरक्षा भी आवश्यक है। इसी प्रकार के उपाय ऋषिकेश-यमुनोत्री राजमार्ग के फूल चट्टी जानकी चट्टी वाले हिस्से में भी किये जाने की आवश्यकता है। यमुनोत्री तथा इसके पैदल मार्ग के एक पड़ाव राम मन्दिर क्षेत्र के सक्रिय ढलान तथा वहां यमुना ( कालिन्दी) नदी के बाढ़ के लिये प्रवृत्त क्षेत्र इस पड़ाव के समीप किसी भी प्रकार के नये निर्माण की सम्भावना को समाप्त कर देते हैं। वास्तव में नये निर्माणों के लिए यहां कोई भी सुरक्षित जगह नहीं बचती है । यमुनोत्री तथा जानकीचट्टी क्षेत्र बहुआपदाओं जैसे भूस्खलन, त्वरित बाढ़ ( फ्लैश फ्लड) तथा भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील है। वर्ष 2004 में यमुनोत्री मन्दिर परिसर में चट्टानें गिरने से जनहानि हुई थी तथा वर्तमान में भी यमुनोत्री धाम भारी वर्षापात की स्थिति में होने वाले सम्भावित भूस्खलन से बनने वाली झील के फटने ( लैण्डस्लाइड लेक बस्ट आउटफ्लो) की दशा में आने वाली त्वरित बाढ़ (फ्लैश फ्लड) की दृष्टि से संवेदनशील है । अत्यधिक संधियुक्त, खंडित, जर्जर चट्टानों वाले यमुनोत्री - जानकी चट्टी क्षेत्र के नाजुक ढलान संकरी घाटी से होकर तीव्र ढाल पर अत्यधिक वेग से बहने वाली यमुना (कालिन्दी) नदी की बाढ़ और भारी कटाव के लिये अत्यधिक प्रवत्त (हाइली प्रोन) हैं।
यमुनोत्री - जानकीचट्टी मार्ग के कई हिस्से बाढ़ की दृष्टि से संवेदनशील हैं, इसलिये इस क्षेत्र में यातायात के अपेक्षाकृत सुरक्षित माध्यम के रूप में रोपवे के निर्माण की संभावनायें तलाशे जाने की आवश्यकता है। समीपवर्ती खरसाली गांव में आपातकालीन शरणागाह का निर्माण आपदा प्रबंधन की दृष्टि से उचित होगा तथा इसके अतिरिक्त डाउनस्ट्रीम में स्थित रानाचट्टी गांव में भी आपातकालीन शरणगाह बनाया जा सकता है। खरसाली- जानकीचट्टी के बीच रोपवे निर्माण की संभावना तलाशना इस दृष्टि से आवश्यक प्रतीत होता है चूंकि दोनों स्थानों को जोड़ने वाला सेतु बाढ़ की दृष्टि से संवेदनशील है। यद्यपि यमुनोत्री में केदारनाथ की तुलना में जोखिम के अवयव कम हैं और इसका मुख्य कारण है यमुनोत्री में मात्र एक धर्मशाला और कुछ अस्थायी दुकानों का होना। यमुनोत्री में रात्रि विश्राम के लिए अति सीमित संसाधन होने के कारण अधिकांश तीर्थयात्री जानकी चट्टी से यमुनोत्री यात्रा के दिन ही यमुनोत्री से वापसी कर लेते हैं। जानकीचट्टी -यमुनोत्री मार्ग के मध्य के एक पड़ाव राममंदिर में कुछ छोटे आकार के मंदिर तथा कुछ झोपड़ियाँ हैं। कोई स्थाई भवन न होने से राममंदिर क्षेत्र की घातकता (वलनिरेबिलिटी) में भी अत्यधिक बढ़ोतरी नहीं हुई है, परंतु इस सबके बाद भी यमुनोत्री जाने वाले तीर्थयात्रियों, स्थानीय दुकानदारों, पुजारियों, कुलियों, खच्चर वालों तथा ड्यूटी पर तैनात सरकारी कार्मिकों की दैनिक आवाजाही वालों आबादी का बाढ़ और भूस्खलन आपदा जोखिम (रिस्क) अति उच्च है। यद्यपि इसके विपरीत जानकीचट्टी में अंधाधुंध व्यावसायिक निर्माण विशेषकर होटल, धर्मशाला, लॉज तथा दुकानों एवं पार्किंग आदि के निर्माण से घातकता (वलनिरेबिलिटी) और जोखिम (रिस्क) केदारनाथ के पैदल मार्ग के पहले पड़ाव गौरी कुण्ड के समान ही अति उच्च है। जानकीचट्टी में व्यावसायिक निर्माणों को चिन्हांकित किये जाने तथा यमुनोत्री का व्यावसायिकरण सीमित रखे जाने की नितांत आवश्यकता है। जानकीचट्टी से यमुनोत्री की पैदल यात्रा अलग-अलग छोटे-छोटे समूहों में की जानी चाहिए तथा इसकी मॉनिटरिंग हेतु एक यात्रा मॉनिटरिंग समूह भी सृजित किया जाना आवश्यक है, जिसमें स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स तथा क्विक रिस्पांस टीम के सदस्य भी सम्मिलित हों।
लेख में व्यक्त किये गये विचार एवं सम्भावनाएं लेखक की निजी राय है तथा इनसे किसी संस्थान, केन्द्र, संस्था तथा शोध पत्रिका अथवा जर्नल का मत व्यक्त नहीं होता है।