जल, अर्थव्यवस्था और उद्योग

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दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, बंगलुरु या कोई भी दूसरा बड़ा शहर हो पानी की बोतलों का कारोबार जमकर फल-फूल रहा है। कुछ दशक पहले तक बोतलबंद पानी का इस्तेमाल एक छोटा और अमीर कहलाने वाला तबका ही करता था या विदेश से आने वाले सैलानी पानी की बोतलें माँगते थे लेकिन अब शहरों में ही नहीं देहातों में भी सफर के दौरान या दुकानों पर पानी की बोतलें बहुत आराम से मिल जाती हैं

मानसून की बेरुखी के बीच भीषण सूखे से जूझते महाराष्ट्र के लातूर में इस साल जब पानी से भरी ट्रेन भेजने की नौबत आ गई तो हर किसी को पानी की अहमियत महसूस हुई और यह चर्चा भी जोर पकड़ गई कि पानी का संकट इतना गहरा रहा है। जब इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के मैच महाराष्ट्र से बाहर कराने का आदेश अदालत से आया तो पानी को लेकर और भी हो हल्ला मचा। लेकिन इस बीच किसी का भी ध्यान इस बात पर नहीं गया कि बिजली बनाने वाली सरकारी कम्पनी एनटीपीसी को इसी साल मार्च में पश्चिम बंगाल के फरक्का में अपनी पाँच इकाइयाँ केवल इसीलिये बंद करनी पड़ी थीं क्योंकि उन तक पानी नहीं पहुँच रहा था। महाराष्ट्र के बीड़ जिले में महाराष्ट्र स्टेट पॉवर कॉर्पोरेशन (महाजेनको) का परली बिजली संयंत्र तो पिछले साल जून में ही बंद हो गया था। यह संयंत्र पिछले कई साल से गर्मियों में बंद रहता है और इसकी वजह पानी की किल्लत ही होती है। दक्षिण में कर्नाटक पावर कॉर्पोरेशन का रायचूर संयंत्र भी हाल ही में बंद हुआ। इनमें से सभी संयंत्र पानी की किल्लत के कारण बंद किये गये, जबकि जिन इलाकों में ये हैं, वहाँ पानी का गंभीर संकट नहीं है।

उदाहरण केवल बिजली के उद्योग से ही नहीं है। बम्बई उच्च न्यायालय ने अप्रैल में ही महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया था कि शराब बनाने वाले संयंत्रों को पानी की आपूर्ति में 60 फीसदी कटौती कर दी जाए। यह आदेश 10 मई से लागू होकर 27 जून तक चलना था। कर्नाटक में मंगलूर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड ने भी पानी नहीं मिलने के कारण मई में अपने तीसरे चरण की इकायों को बंद कर दिया। मंगलूर केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स को भी उसी की तर्ज पर अपनी यूरिया बनाने वाली इकाई बंद करनी पड़ी। कर्नाटक में इस्तेमाल होने वाला 80 फीसदी उर्वरक इसी इकाई से आता है। सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को पानी की मनाही होने के बाद गुजरात में अपना दहेज संयंत्र बंद करना पड़ा और जून के दूसरे हफ्ते में ग्रासिम इंडस्ट्रीज ने भी मध्य प्रदेश के नागदा में लुगदी और रेशे बनाने का अपना कारखाना बंद करने का ऐलान कर दिया।

अर्थजगत की प्यास

बोतलबंद पानी

वाटर प्युरिफायर

प्रदूषित जल शोधन

जल परिवहन

पानी निगलने वाले उद्योग

लेखक परिचय

लेखक आर्थिक दैनिक समाचार पत्र बिजनेस स्टैंडर्ड में डिप्टी एडिटर हैं। इससे पूर्व संवाद समिति ‘यूनीवार्ता’ में काम कर चुके हैं। गुरु जांभेश्वर विश्वविद्यालय और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सम्बद्ध मीडिया संस्थानों में अध्यापन कर चुके हैं। ईमेलः rishabhakrishna@gmail.com

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