कहाँ है बुन्देलखण्ड का पानी

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पेयजल के मामले में सबसे गम्भीर स्थिति सागर जिले में पाई गई, जहाँ 50 प्रतिशत गाँवों के लोग पेयजल हेतु कुओं पर निर्भर हैं और 7 प्रतिशत लोग तालाब का पानी पी रहे हैं। जबकि छतरपुर जिले में कुएँ पर निर्भर परिवारों की संख्या 19 प्रतिशत और तालाब पर 9 प्रतिशत परिवार निर्भर है। इसी तरह टीकमगढ़ जिले में हैण्डपम्प पर निर्भर 85 प्रतिशत गाँवों के साथ ही 10 प्रतिशत कुओं और 5 प्रतिशत गाँव तालाब या नदी-नालों पर निर्भर है। सूखा की परिस्थिति में बुन्देलखण्ड में प्यास बुझाना मुश्किल हो गया है। यहाँ ज्यादातर गाँवों में पेयजल स्रोत या तो सूखा चुके हैं या उनसे बहुत कम पानी मिल रहा है। इस दशा में लोगों को गाँव के दूर खेतों में बने कुओं से पीने का पानी लाना पड़ रहा है। लोग साइकिल, बैल गाड़ी से पानी ला रहे हैं। ज्यादातर गाँवों के ट्यूबवेल और हैण्डपम्प सूखा चुके हैं। कुएँ बहुत पहले ही जवाब दे चुकेहैं। भूजल की स्थिति बद-से-बदतर हो चुकी है।

बताया जाता है कि बुन्देलखण्ड में कई स्थानों पर भूजल स्तर रोजाना 3-6 इंच गिर रहा है। कहीं-कहीं तो जल स्तर 400 फीट से भी नीचे पहुँच चुका है।

सूखे और गिरते भूजल स्तर के कारण गाँवों के कई हैण्डपम्प बन्द हो गए हैं या उनमें बहुत कम पानी आता है। पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री रामपाल यादव ने लोकसभा के पिछले सत्र में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि केन्द्र और राज्यसरकारें इस स्थिति से निपटने के लिये संयुक्त रूप से प्रयास कर रही हैं। केन्द्र ने राज्य सरकारों को निर्देश जारी किये हैं। सभी जलापूर्ति प्रणालियों को सुधारा जा रहा है और टैंकरों से पानी उपलब्ध कराया गया है।

भूजल की पर्याप्तता वाले क्षेत्रों में निजी कुओं और बोरवेल को किराए पर लिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सूखा प्रभावित राज्यों को 2172.43 करोड़ रुपए जारी किये गए हैं। राज्यों से यह भी कहा गया है कि वे स्थिति में सुधार के लिये किये गए उपायों पर दैनिक रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेजे। संसद में यह बात स्पष्ट की गई कि मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के छह जिलों के 1578 गाँव पेयजल की कमी का सामना कर रहे हैं।

बुन्देलखण्ड में पेयजल की स्थिति के सन्दर्भ में प्रस्तुत अध्ययन के अन्तर्गत छतरपुर, सागर एवं टीकमगढ़ जिले के 66 गाँवों में लोगों से चर्चा की गई, ग्राम पंचायतों से जानकारियाँ एकत्र की गईं और गाँवों का अवलोकन किया गया। इस प्रक्रिया से सामने आये तथ्यों के अनुसार वर्तमान में बुन्देलखण्ड के लोग पेयजल के लिये तीन प्रकार के जलस्रोतों पर निर्भर हैं, एक हैण्डपम्प, दूसरा कुएँ और तीसरा तालाब व नदी-नाले।

स्पष्ट है कि कुएँ, तालाब और नदी-नालों का पीने के लिये सुरक्षित नहीं है, क्योंकि उसमें कई प्रकार की अस्वच्छता या गन्दगी पाई जाती है। इसके बावजूद बुन्देलखण्ड के लोग पेयजल के इन असुरक्षित स्रोतों का पानी पीने को विवश हैं।

प्रस्तुत अध्ययन से सामने आये तथ्यों के अनुसार बुन्देलखण्ड के 70 प्रतिशत गाँवों के लोग पेयजल हेतु हैण्डपम्प पर निर्भर हैं, वहीं 30 प्रतिशत गाँवों के लोग कुएँ, तालाब और नदी नालों का पानी पीने को मजबूर है। इनमें 23 प्रतिशत गाँवों के लोग कुएँ और 7 प्रतिशत गाँव के लोग नदी-नाले व तालाब पर निर्भर हैं।

पेयजल के मामले में सबसे गम्भीर स्थिति सागर जिले में पाई गई, जहाँ 50 प्रतिशत गाँवों के लोग पेयजल हेतु कुओं पर निर्भर हैं और 7 प्रतिशत लोग तालाब का पानी पी रहे हैं। जबकि छतरपुर जिले में कुएँ पर निर्भर परिवारों की संख्या 19 प्रतिशत और तालाब पर 9 प्रतिशत परिवार निर्भर है। इसी तरह टीकमगढ़ जिले में हैण्डपम्प पर निर्भर 85 प्रतिशत गाँवों के साथ ही 10 प्रतिशत कुओं और 5 प्रतिशत गाँव तालाब या नदी-नालों पर निर्भर है।

यदि हम गाँवों के साथ ही पेयजल स्रोतों पर आबादी की निर्भरता का आकलन करें तो स्थिति लगभग एक जैसी दिखाई देती है। सर्वेक्षित गाँवों की कुल आबादी का 72 प्रतिशत हिस्सा हैण्डपम्प पर निर्भर है, वहीं 21 प्रतिशत कुओं पर और 7 प्रतिशत आबादी तालाब व नदी-नाले के पानी पर निर्भर है। इस तरह हम देखते हैं कि अस्वच्छ पेयजल पर कुल मिलाकर 28 प्रतिशत आबादी निर्भर है। हालांकि अध्ययन के दौरान 6 गाँवों में नल-जल योजना पाई गई, किन्तु एक भी गाँव में नल-जल योजना चालू हालत में नहीं थी।

जैसा कि ऊपर उल्लेखित है, 70 प्रतिशत गाँवों के लोग पेयजल के लिये मुख्य रूप से हैण्डपम्प पर निर्भर है। इस सन्दर्भ में यह देखना होगा कि क्या इन गाँवों में हैण्डपम्प पर्याप्त पानी दे पा रहे हैं और एक हैण्डपम्प पर कितनी आबादी निर्भर है। अध्ययन से सामने आये तथ्यों के अनुसार 37 प्रतिशत गाँवों में 150 आबादी एक हैण्डपम्प पर निर्भर है। जबकि 17 प्रतिशत गाँवों में 300 की आबादी पर एक हैण्डपम्प है। 13 प्रतिशत गाँव ऐसे पाये गए जहाँ 500 से 700 की आबादी पर एक हैण्डपम्प मौजूद है। 2 प्रतिशत गाँवों में तो 1000 या उससे अधिक आबादी हैण्डपम्प पर निर्भर है।

इस तरह हम देखते हैं कि बुदेलखण्ड के जलस्रोतों पर आबादी का इतना दबाव है कि उनसे पानी प्राप्त करने के लिये लोगों को घंटों लग जाते हैं। कई हैण्डपम्प एवं कुओं में तो 1-2 घंटे में पानी खत्म हो जाता है तथा 3-4 घंटे इन्तजार के बाद पानी एकत्र होता है। पानी का संकट उन महिलाओं के लिये ज्यादा संघर्षपूर्ण है, जिन्हें कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। प्रस्तुत अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ज्यादातर महिलाओं को पानी लाने के लिये 1-3 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

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