क्यों सम्भव नहीं भूकम्प की भविष्यवाणी (Why not possible to predict Earthquakes)
क्या भूकम्प के बारे में ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकता है? नेपाल में आए भूकम्प के बाद यह सवाल पूछा जा रहा है। मान लीजिए कि अभी हम भविष्यवाणी की स्थिति में नहीं हैं, तो क्या भविष्य में भी ‘उपयोगी’ अनुमान लगाने लायक हैं? पीछे हुए भूकम्प के आधार पर यह लम्बे समय बाद होने वाले भूकम्प का पूर्वानुमान कतई सम्भव है। इस भरोसे का कोई कारण नहीं है कि धरती का वह क्षेत्र अगले हजारों सालों में पहले की अपेक्षा बिल्कुल भिन्न तरीके से व्यवहार करने लगेगा।
भूकम्पविज्ञानी पिछले 40 सालों के दौरान वैश्विक स्तर पर हुए भूकम्प के डेटा रिकार्डिंग स्टेशन से ले सकते हैं। बड़े भूकम्प होने के कुछ ही घण्टों के भीतर उसके केन्द्र के बारे, उसकी तीव्रता, उसकी गहराई, भूगर्भीय परतों में टूटन जिसके चलते धरती में कम्पन हुआ और उसकी गति की दिशा आदि के अनुमान मिल जाते हैं। नेपाल में जो हुआ, वह अतीत में हुए भूकम्प के बारे में डेटा पाने के अकेले ऐतिहासिक रिकॉर्ड ही एकमात्र स्रोत नहीं है। लेकिन ये रिकॉर्ड आधे-अधूरे होते हैं, यहाँ तक चीन-ईरान जैसे भूकम्प पीड़ित देश में भी जहाँ प्राकृतिक आपदाओं के साक्ष्य हैं। अन्य साक्ष्य उपलब्ध हैं, जिनमें मानव-निर्मित या प्राकृतिक संरचना के समंजन के मापन और तिथि-निर्धारण (भूकम्प के कारण होने वाली गतिविधियों) का सटीक काल निर्धारण किया जा सकता है, मसलन किले की दीवारें या फिर किसी नगर का। चीन की दीवार में आई टूटन का साक्ष्य भी इसी तरीके से जुटाया जाता रहा है।
भूकम्प विज्ञानी ज्ञात और संदेहास्पद सक्रिय फॉल्टों के लिए भी खाइयाँ खोदते रहे हैं। इस क्रम में भूकम्प के प्रभाव में आए चट्टानों और तलछट को ढूँढ निकाल सकते हैं। इन परिघटनाओं का भी काल निर्धारण किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, पौधों के रेडियोकार्बन विश्लेषण के जरिये पता चलता है कि फॉल्ट से वे भी प्रभावित होते हैं। पीड़ित क्षेत्रों के आकार और भूकम्प की अवस्था को मिला कर सैकड़ों या हजारों साल तक होने वाले भूकम्प के तरीकों को समझना सम्भव है।
वैज्ञानिक इन सूचनाओं का उपयोग भविष्य में होने वाली घटनाओं को समझने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में करते हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि दो भूकम्पों के बीच (कुछ अन्तराल पर) की उस अवधि के बाद परतें नहीं खिसकतीं। न ही बाद के भूकम्प उस भू-भाग के फॉल्ट को अनिवार्यत: तोड़-फोड़ ही करते हैं। एक भूकम्प से निकलने वाला दबाव अपने फॉल्ट के साथ-साथ सीमावर्ती क्षेत्र में बहुत ज्यादा दाब पैदा कर सकता है, उसके कारण उस भू-भाग में भूकम्प की सम्भावना बढ़ जाती है। यह मूल परिघटना के ठीक तुरन्त बाद हो सकता है, जो भूकम्प बाद होने वाले कम्पन के विवरण देता है। नेपाल में भूकम्प की पहली बड़ी घटना के बाद ऑफ्टर शॉक्स हुए, जिनकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.9 थी। ऐसे और भूकम्पन हो सकते हैं।