चांदबर गांव में पानी का इंतजार करती महिलाएं और बच्चे
चांदबर गांव में पानी का इंतजार करती महिलाएं और बच्चे

मध्यप्रदेश: लोगों की पहुंच से दूर क्यों हो रहा जल,  कैसे होगा जल संकट हल

देश का हदय प्रदेश कहा जाने वाला मध्यप्रदेश जल संकट से जूझ रहा है। प्रदेश में बुन्देलखंड क्षेत्र की पहचान अब सूखे के रूप में हो रही है। बुन्देलखंड का अहम हिस्सा सागर जिला पहाड़ी इलाके के रूप में विद्यमान है। सागर जिले में पानी का संकट बहुत तेजी से बढ़ रहा है। सागर के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों की नदियां, कुएं और तालाब सूखते जा रहे हैं। जिससे जिले के कई गाँव में पानी की समस्या गंभीर रूप से मंडरा रही है। 
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जल धरती पर जीवन का आधार है। एक कहावत है कि, जल है तो कल है। यह कहावत दशकों से हमारे जिहन में समायी है। मगर, वास्तव में जल है तो हमारा आज है। यदि जल नहीं होगा तो कल का सवाल ही पैदा नहीं होगा। आज हम जल को उसी तरह तरसने लगे जैसे मछली तरसती है। जल संकट आज दुनियां का एक विकराल सवाल बना गया। जिसका हल समूची दुनियाँ तलाश रही है।

ऐसे ही हमारे देश भारत के कई राज्यों में जल संकट के हालात दिन-बा-दिन बढ़ते जा रहे हैं। देश का हदय प्रदेश कहा जाने वाला मध्यप्रदेश जल संकट से जूझ रहा है। प्रदेश में बुन्देलखंड क्षेत्र की पहचान अब सूखे के रूप में हो रही है। बुन्देलखंड का अहम हिस्सा सागर जिला पहाड़ी इलाके के रूप में विद्यमान है। सागर जिले में पानी का संकट बहुत तेजी से बढ़ रहा है। सागर के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों की नदियां, कुएं और तालाब सूखते जा रहे हैं। जिससे जिले के कई गाँव में पानी की समस्या गंभीर रूप से मंडरा रही है। 

बुन्देलखंड में पानी का संकट कितना भयंकर है? यह जाने के लिए हमने सागर जिले के कुछ गाँव में पड़ताल की। पहले हम पहुंचे बेलई माफी गाँव। इस गाँव की जनसंख्या करीब 1000 है। 

जल संकट पर क्या कहते हैं बेलई माफी गाँव के लोग

जब गांव में हमने कुछ लोगों से संवाद किया, तब सतोष कुर्मी कहते हैं कि, ‘पानी की स्थिति बहुत खराब है पानी लेने एक किलोमीटर दूर खेत में जाना पड़ता है। मुझे सुबह शाम पानी भरने के लिए ही घर वालों ने रखा है।, आगे हल्ले कहते हैं कि, ‘पानी को लेकर हमारा तीन घंटे समय लगता है। पानी भरने के चलते में दूसरा काम नहीं कर पा रहा हूँ। लगभग पाँच माह से हमारे यहाँ पानी पाइप की छोटी लाइन बिछी हुई हैं, लेकिन, पानी अब तक आया नहीं है। हमारे गाँव में पानी की बड़ी टंकी भी नहीं हैं। हमें 60 फुट गहरे कुआँ से पानी खीचना पड़ता हैं। कुएं से पानी खीचने के लिए करीब 2 किलोग्राम की रस्सी लग जाती है। इतने गहरे कुएं से 50 लीटर पानी ही खीचने में हाथ लाल होते हुए दर्द करने लगते हैं।, 

आगे कुछ लोग कहते हैं कि, ‘पानी की समस्या हमने कई बार सरपंच से लेकर विधायक तक सामने रखी है। मगर, हुआ कुछ भी नहीं। आज गाँव में छोटे बच्चे से लेकर महिलाओं और पुरुषों सब को पानी भरना पड़ता है।, 

55 वर्षीय लक्ष्मण अहिरवार बयां करते हैं कि, ‘मैंने जब से होश संभारा हैं, तब से गाँव में पानी की समस्या देखता आ रहा हूँ। सोचता था कभी हमारे दिन बदलेगें। पानी हमारे घर आने लगेगा। मगर पानी की समस्या बढ़ती जा रही हैं। गर्मी में तो पानी की समस्या होती ही है मगर जब बरसात आती है, तब खेत में पानी लेने जाते तो पैर मिट्टी में धंस जाते हैं। पानी से भीगते और मिट्टी में धँसते पैरों में जख्म हो जाते हैं। यह जख्म पानी लाने का संघर्ष और बढ़ा देते हैं।, 

आगे गौतम बोलते हैं कि, ‘गाँव में 7-8 पानी के गढ्डे हैं। मगर पानी किसी में नहीं हैं। गाँव में पानी की लाइन जब डाली गई थी, तब दो हौदी जैसी छोटी टंकी बनाई गईं थी, मगर वह सूखी पड़ी हैं। आगे गौतम सहित कुछ लोग दावा करते हुए कहते हैं कि, नहाने-धोने और मवेशियों को पिलाने के हम तालाब से पानी लाते हैं। तालाब इतनी दूर है कि, 500 से ज्यादा पाइप के गिनडे लग जाते हैं।, 

जल संकट से किस तरह जूझ रहा चांदबर गाँव

बेलई माफी गाँव को पीछे छोड़ते हुए हम आगे निकलते हैं, तब पहुँचते हैं चांदबर गाँव। इस गाँव में हमें पानी भरती दिखती हैं एक महिला। महिला हमें नाम नहीं बताती है। लेकिन, यह बताती हैं कि, ‘गाँव में एक ही नल है, जिससे पानी निकल रहा है। यदि यह नल बंद हो जाता है, तब पानी का अकाल आ जाता है। इस नल पर दिन-रात भीड़ पड़ी रहती है। लोग सुबह 4 बजे से रात के 2 बजे तक पानी भरते हैं।, 

भागवत चौधरी एक छात्र हैं, उन्होंने इस वर्ष 10 कक्षा की परीक्षा दी है। वह बताते हैं कि, ‘गाँव की आबादी 1200 है। गाँव की प्यास बुझाने वाल एकमात्र नल जब बंद हो जाता है, तब गाँव वालों को 2 किलोमीटर दूर खेतों में पानी लेने जाना पड़ता है।, आगे आशिक चौधरी जिक्र करते हैं कि, ‘हम खेतों के आलवा दूसरे गाँव ग्वारी पानी लेने जाते हैं, तब हमें शर्मिंदगी का शिकार होना पड़ता है। दूसरे गाँव में हमें सबसे बाद में पानी भरने मिलता है। कभी-कभी तो ग्वारी गाँव के लोग हमें खाली बर्तन लिए बिना पानी के ही भागा देते हैं।, 

गाँव का एक अन्य व्यक्ति बताता है कि, ‘गाँव में एक कुआँ हैं, जो सूखा पड़ा रहता है। हमारा गाँव पानी पीने के लिए जिस नल पर निर्भर है, जब वह नल बिगड़ जाता है, तब गाँव वाले चन्दा जुटाकर नल सुधरवाते हैं।, 

हिल्गन ग्रामवासियों की जल संकट पर क्या है प्रतिक्रियाएं

आगे हम अपने पैरों की दिशा मोड़ते हुए, हिलगन गाँव की ओर निकलते हैं। गाँव पहुँचने पर हमारी मुलाकात कुछ महिलाओं से होती है। जिनमें कमला पानी की परेशानी पर कहती हैं कि, ‘गाँव में बाँध तो है। बाँध से नहाने-धोने के पानी की परेशानी नहीं है। लेकिन, गाँव पीने के पानी की समस्या बहुत बिकट है। यहाँ 2 से 2.5 किलोमीटर दूर पानी लेने जाना पड़ता है। सुबह से पीने का पानी भरते-भरते 12 बज जाते हैं। कभी-कभी पीने का पानी हमारी मजदूरी छूटा देता है।, 

आगे कुसमरानी बोलती हैं कि, ‘पानी कि समस्या हमें सोने नहीं देती है। हमें केवल पानी के लिए रात 3-4 बजे से उठना पड़ता है। गाँव में पहले सड़क के किनारे कई नल हुआ करते थे, जिनसे थोड़ा बहुत पानी मिलता था। अब टू लाइन रोड बनने से बहुत से नल उखाड़ दिए गए हैं। अब हम दूर-दराज के कुओं से पानी सिर पर ढो कर लाना पड़ता है। जब पानी एक कुएं में नहीं मिलता, तब हम दूसरे कुएं को जाते हैं। पता नहीं कब पानी की परेशानी मिटेगी या यूं ही पानी के लिए तड़पते रहेगें।, 

आगे गाँव में अंदर की ओर हम जाते हैं, तब हमें एक चबूतरे पर नरेन्द्र बैठे दिखाई देते हैं। जब हम उनसे पानी के मुद्दे पर गुफ्तगू करते हैं तब वह कहते हैं, ‘एक समय पानी गाँव के पास हुआ करता था। मगर, अब पानी  गाँव से कोशों दूर चल गया है। आज शहरों के मुकाबले गाँव में पानी की समस्या गहराती जा रही है। गर्मी के दिनों में मवेशियों को पानी पिलाने, नहलाने के लिए भयाभय संकट आ जाता है। वहीं, गर्मियों के दिनों में पेड़-पौधों को भी पानी नहीं दे पाते। यहाँ तक की शौच के लिए भी पानी की दिक्कत होती है। एक उम्मीद हमें गाँव में पानी की बड़ी टंकी से थी, लेकिन, पानी की टंकी सालों से सूखी पड़ी है।, 

और अंत में 

जब हम जल संकट से संबंधित आंकड़ों को देखते हैं, तब यूनिसेफ के मुताबिक, दुनियाँ की आधी आबादी 2025 तक पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में रह रही होगी। 2030 तक भीषण जल संकट के कारण लगभग 700 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं। वहीं, वर्ष 2040 तक, दुनिया भर में लगभग 4 में से 1 बच्चा अत्यधिक उच्च जल तनाव वाले क्षेत्रों में रह रहा होगा।

जब हम वर्ल्ड विज़न का डेटा देखते हैं तब ज्ञात होता है कि, वैश्विक स्तर पर 785 मिलियन लोग की स्वच्छ पेयजल तक पहुँच नहीं है। दुनिया भर में हर दिन गंदे पानी से होने वाले दस्त के कारण 800 बच्चे मौत का शिकार हो जाते हैं। साल 2030 तक भारत की 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। देश में गंभीर जल संकट से सालाना लगभग 200,000 मौतें होती हैं।  भारत में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत है लेकिन जल संसाधन केवल 4 प्रतिशत है। जो इसे सबसे अधिक जल संकट वाले देशों में से एक बनाता है। 2031 के लिए प्रति व्यक्ति औसत जल उपलब्धता 1367 घन मीटर आँकी गई है।  

यदि हम जल संकट के विभिन्न कारणों की तरफ ध्यान दें, तब जल संकट कई कारण समझ आते हैं, जैसे, जनसंख्या वृद्धि, शहरी जल-उपचार में अपर्याप्त और विलंबित निवेश से खराब पानी की गुणवत्ता है। किसानों द्वारा अत्यधिक दोहन के कारण भूजल आपूर्ति में कमी है। बारिश घटना। पारिस्थितिकी तंत्र का नष्ट होना। जल का एकत्रीकरण ना करना। जैसे विभिन्न जल संकट के कारण हैं।

वहीं, जब हम जल संकट के समाधान की ओर रुख़ करते हैं। तब जल संकट के समाधान के कई बिंदु हमारे सामने आते हैं, जैसे कि, पानी की बचत, उपयोगिता और संरक्षण की ओर ध्यान देना। खेती में पानी का सही उपयोग करना। नदी, झरनों और तालाबों के पानी के संरक्षण और गुणवत्ता पर बल पूर्वक ध्यान  देना। पेड़ पौधों को लगाना। जैसे जल संरक्षित करने के विभिन्न पहलू हो सकते हैं।

समाधान के रास्ते

हमने जल संकट के समाधान को लेकर घरों में सब्जियां उगाने को लेकर प्रोत्साहित करने वाली कंपनी ‘वेज रूफ़’ के संस्थापक मिथलेश कुमार सिंह से भी संवाद किया। इस संवाद में वह बताते  हैं कि, ‘पानी की समस्या वैश्विक है। जिस देश ने पानी की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया है उसने उसका परिणाम भुगता है। पानी बचाने से ज्यादा जरूरी है पानी का सही इस्तमाल करना। जैसे उदाहरण के तौर पर जैसे हम छतों और वालकनी पर जो सब्जियां उगाते हैं, उसमें ड्रिप ईरिगेशन (पनि बचाने वाली विधि) का उपयोग करते हैं। इस विधि से जहां 100 प्रतिशत पानी लगना है, वहाँ 25 प्रतिशत पानी लगता है। जिससे 75 प्रतिशत पानी की बचत हो जाती है।, 

मिथलेश आगे सुझाव देते हैं कि, ‘पानी के बचाव और संरक्षण के लिए हमें अपनी जीवन शैली बदलने और जागरूक होने की जरूरत है। पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन के उपयोग के बारे में विशेष रूप से स्कूल में पढ़ाया जाना जरूरी है।, 

आज हमें गंभीरता से यह समझने की दरकार है कि, यदि हम पानी को नहीं बचा पाये, तब अपने आप और प्रकृति को भी नहीं बचा पायेगें। दशकों पहले पानी मुफ्त मिलता था। आज हालत यह कि, एक लीटर पानी की कीमत 20 रुपये है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, आने वाले दिनों में जल संकट की स्थिति और विकट हो सकती है। यदि वर्तमान में हम जल संरक्षण करेगें तो ना केवल खुद को संरक्षित करेगें, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के जीवन को भी संरक्षित करेगें। 

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