नैनीताल भू-स्खलन: विशेष सिविल अधिकारी की रिपोर्ट
शेर-का-डांडा पहाड़ी के 18 सितंबर, 1880 के भू-स्खलन के बाद इस क्षेत्र में तैनात विशेष सिविल अधिकारी मिस्टर एच. सी. कोनीबीयरे, ( ई.एस.क्यू.सी. एस.) ने 11 अक्टूबर, 1880 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध के सचिव को भू-स्खलन के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी। इस रिपोर्ट का हिन्दी भावार्थ निम्न प्रकार थाः-
नैनीताल दिनाँक 11 अक्टूबर 1880,
प्रेषक- एच. सी. कोनीबीयरे, (ई. एस. क्यू.)
सी.एस. ऑन स्पेशल डयूटी,
सेवा में,
सचिव, सूबा, उ.प्र. एवं अवध सरकार,
महोदय,
शासन आदेश सं. 2983/ (सामान्य विभाग) दिनांक 5 अक्टूबर, का आज्ञा पालन करते हुए यह मेरे लिए सम्मान का विषय है कि मैं 'नैनीताल भू-स्खलन की वृतान्त सूचना आपके विचारार्थ प्रस्तुत करूं। इस भयानक त्रासदी का ब्योरा, लेखा-जोखा अनेक विभागों द्वारा इंजीनियरिंग कमेटी के अध्यक्ष भू-गर्भ सर्वेक्षण के श्रीमान ओल्डहम व दो सैन्य जाँच समिति द्वारा तैयार व प्रस्तुत किया गया है। यह वृत्तांत अपने को केवल सामान्य तथ्यों तक सीमित रखेगा व खास टिप्पणी एवं पेशेवर बिन्दुओं से परहेज करेगा। संलग्न अधिकारी सूची, यद्यपि लेखक ने जिन स्थानों व व्यक्तियों के चिर परिचित हैं और उनका उल्लेख किया है, वह स्वयं भू-स्खलन के समय अनुपस्थित थे।
- इस घोर विपत्ति के घटनास्थल का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है। नैनीताल, देवी नैना की पहाड़ी, झील, पानी की आयाताकार सी चादर है, जो चारों तरफ जंगल से पूर्ण पर्वतीय श्रृंखला से घिरा है। यद्यपि अनियमित रेखाकृति इस झील के चार मुख्य किनारे हैं और साधारणतया समझने के लिए समानान्तर चतुर्भुज जो उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक फैली है। हालांकि इसके आयाम असंगत हैं पर इसकी आकृति एकदम भिन्न है। इस कथन से कि इसकी परिक्रमा या परिभ्रमण करीब ढाई मील की है और चारों तरफ से पहाडिया जो इसकी घेराबंदी करती है, वह पानी की सतह से आकस्मिक 800 से 2000 फीट ऊँची है।
- झील के उत्तर-पश्चिम पर्वतीय किनारों पर छोटा मैदान वाला स्थान है। जिसका उपयोग अनेक मौज और मन बहलाव क्रीडा के लिए होता है। इसलिए उसे सही रूप में पुकारा जाता है क्रीडा का संक्षिप्त-संग्रहण या सारांश।इसी क्रीडा मैदान के इर्द-गिर्द कुछ भवनों का समूह है। जिसमें से चार भवनों का मुख्यतः वर्णन करना है। झील के छोर पर सभाकक्ष (असेम्बली रुम्स) है, जिसमें एक ही छत के अन्दर एक पुस्तकालय, एक नाचघर व एक नाट्यशाला है। इससे आगे उत्तर में सरपट सुरई का कुंज है, जिसकी लाल जड़े जोर से झील में जमी हैं, वह देवी नैना के मंदिर को छाया दे रहा है। मंदिर के पश्चिम भीतरी ओर मैसर्स बेल एण्ड सन्स की एक दुकान है, जहाँ पर कभी रिक्यूट कोर्ट हुआ करता था, उसी पुराने व सुविधाजनक नमूने में जो पूरे भारत में आम है, इससे आगे पश्चिम में सार्वजनिक उद्यान के नाम चर्चित स्थान पर एक भवन था 'आडनरी रूम ऑफ द वॉलिंटियर्स' ।
- इन भवनों की उत्तर की दिशा की तरफ तथा झील के उत्तर में पहाड़ी की ढाल से आगे आकर जो चोटी मिलती है, उसका नाम है आल्मा। शुरु में इस पहाड़ी की ढाल गोल चिकने कंकड़ों का किनारा है और अलग-अलग किस्म के पत्थर, चट्टान है तथा किसी भी किनारे की तरफ सामान्यतः कोई उतार-चढ़ाव नहीं है। पर कुछ सौ गज की ऊपरी चढ़ाई के बाद हम पहाडी के किनारे पर पहुँचते हैं, जिसके कोण का झुकाव 350 या 400 उठता है। इस घातक त्रासदी से पहले जो पहाड़ी के कोणों में अंतर दो हिस्सों आरोहण का था, जो पहाड़ की ढाल भू-स्खलन से प्रभावित हुई, उसमें न कोई हरियाली थी और न ही कोई इमारत। पर पहाड़ी की छोर पर कुछ वनस्पति और थोड़ी इमारतें थीं। ये इमारतें विक्टोरिया होटल का ही हिस्सा थीं।
- इस पूरे इलाके का वर्णन साफ-साफ (ए) नक्शे व (बी) चित्र से दर्शाया गया है।
- जो ढांचे पहाड़ी के किनारे होते वह पानी के हमले में नष्ट होने की कगार में होते हैं और झील के इस तट पर कोई उसके विपरीत की तरह बचाव नहीं है। यहाँ की चट्टानें मिट्टी व परतदार पत्थर की बनी हैं व चूना पत्थर के पत्थरों से जमी हैं। परतदार पत्थर द्विखंडित कर फटी हैं तथा उसमें अनेक जोड़ हैं, जो टूटने पर आसानी से महीन टुकड़ों में खंडित हो जायेंगी। इसकी सतह बहुत ही मुद्धी-तुड़ी व भुरी-भुरी मिट्टी व पत्थरों के क्षतिग्रस्त टुकड़ों से निर्मित हैं, जो वनस्पति के अभाव से जल-कटान से सुरक्षित नही है।` मूसलाधार वर्षा में वह पहाड़ी की सतह को आसानी से फाड़कर नये पहाड़ी दर्रे बना देगी या बड़ी चट्टानों को निगल जाएगी। पर यदि कोई चट्टान कमी पहाड़ी से नीचे को सरक जाती है, वह अपनी राह में बिना घास वाली जमीन में अपनी निशानी बनाते जाती है। इससे पहाड़ी में नुकसान न्यूनतम होता है। पर वर्तमान केस में पूरी पहाड़ी की सतह, परतदार पत्थर, चट्टाने, गोल कंकड़ व मिट्टी एक साथ खिसक कर ढह गई व उसने एक विकराल / भयानक रूप ले लिया। इसकी वजह शायद वर्षों से बरसाती स्रोतों ने पहाड़ी की ऊपरी सतह के बुनियाद को धंसा कर भुरा-भुरा दिया था। इसको मानने का एक कारण यह भी है कि जिस समय भू-स्खलन हुआ, चट्टानों के बीच से बहुत भारी मात्रा में पानी रिस रहा था। एकदम भू-स्खलन के बाद उधड़ी हुई पहाड़ी से अनेक जलधारा फूट गई थी और वह सब नजर आ रही थी।
- इन परिस्थितियों को देखते हुए भू-स्खलन होने का खतरा पहले से ही नजर आ रहा था। 'रिएन अराईब क्यू पिमप्रेयू' कहावत कोई चुटकुला नहीं, जिससे इस अभाग्य को सहारा मिलता है। सन् 1860 के करीब मेजर गार्सटिन ने लिखा था कि होटल विक्टोरिया असुरक्षित है। सन् 1866 में एक भू-स्खलन हुआ था जिसमें दर्रे व धारा की उत्पत्ति हुई थी। जीवन्त स्मृति में यह पहली दुर्घटना है। जिससे आल्मा की पहाड़ी की सतह में रगड़ जो बाँज के पेड़ों, जंगली नील व फर्न से ढकी थी, इसके बाद एक दशक से ज्यादा कोई बड़ी घटना नहीं हुई। पर पिछले साल (1879) एक बड़े भू-स्खलन ने इसी दर्रे का सिर काफी बड़ा कर दिया था। पिछले वर्ष भी डॉ. वालकर पहाड़ी के नीचे वाली भूमि का क्रय-विक्रय रोकने में सफल रहे। इस घोर विपत्ति वाले स्थल पर भवन निर्माण की स्वीकृति का प्रमाण इससे मिलता है कि पहले और बाद में इस स्थान पर कोई भवन नहीं था। यह भी स्मरण रहे कि विक्टोरिया होटल पहाड़ी के नीचे किनारे पर था।
- उक्त वर्तमान वर्ष में डॉ. वालकर की पैनी दृष्टि ने उनको चौकन्ना होकर पड़ोस में उनकी अधिकृत सम्पत्ति में ध्यान से देखा कि पहाड़ी की ऊपरी परत कम से कम 6 इंच धंस गयी थी। वह दरार वहाँ शुरु हुई थी, जो ऊँची सड़क (मार्ग) जिसका नाम था अपर-माल. उनके तथा मुख्य अभियंता द्वारा चेतावनी दी गयी। इस पर नगर पालिका द्वारा गठित कमेटी ने तय किया कि पहाड़ी दर्रे को प्लास्टर से मजबूत कर दिया जाय। पहाडी के सरकने का पूर्व अनुमान तो था, पर इस विशाल आकार का होगा, इसका पूर्व अनुमान तो किसी को नहीं था और इसके लिए जो उपाय किए थे, वो नाकाफी थे। इस बात की भी शंका है कि आखिरी घड़ी में जो उपाय व कदम उठाए, वह पूर्व ज्ञान कौशल, धन या मेहनत भी इस त्रासदी को नहीं रोक सकते थे।
- पहले दो कारणों का वर्णन है, जिसकी वजह से हादसा हुआ। यह माना जाता है कि वह घातक तारीख 18 सितंबर, जब भूकम्प ने पूरी पहाड़ी को हिला दिया। उसी दिन सुबह 10 बजे श्रीमान फ्लीडवुड विलियम्स ने असेम्बली रुम्स में शरीर को ऐंठने वाली उत्तेजना कर जी मचलने वाली सनसनी महसूस की। उन्होंने पाया कि झील का रंग अजीब-सा हरा खड़िया मिट्टी जैसा गाढ़ा हो गया है, जो कभी मात्र मिट्टी वाले पानी से नहीं होता है। केवल भूकम्प आने के बाद ही होता है, उसी दिन भूकम्प के झटके अलग-अलग घण्टों में महसूस किए गए, जिसकी पुष्टि मेजर ब्यम, मिस्टर हेल्ड्रनस इत्यादि ने की है। सैद्धान्तिक रूप से यह माना जा सकता है कि पहाड़ी के टीले पर भवन निर्माण के लिए ताजी खुदाई ने पहाड़ी की ऊपरी परत को जल से लबालब कर दिया था और पानी ही इस भीषण तबाही के लिए जिम्मेदार था।
- तबाही के दो दिन पहले से ऐसा लगा कि सचमुच में आसमान ने अपनी खिड़की खोल दी है। दोपहर, गुरुवार 16 सितंबर को वर्षा शुरु हुई। 17 सितंबर, की रात तक वह लगातार बरसती रही। स्वर्गीय मिस्टर नॉड के गौण माप उपकरण यंत्र बड़ी तेजी से 9 इंच माप रहा था। अधिकारिक तौर पर वर्षा 40 घण्टों में यानी शनिवार 18 सितंबर की सुबह तक 20 इंच से 25 इंच बरस चुकी थी। वर्षा 18 सितंबर को दिन भर बरसती रही। भू-स्खलन होने तक और उसके बाद भी 24 घण्टे लगातार होती रही। शनिवार प्रभात होने से पहले भूरे रंग के जल प्रवाह, भयानक आवाज के साथ पहाड़ी के नीचे को बह रहे थे।
- विक्टोरिया होटल के मालिक कैप्टन हैरिस, सुबह के साढ़े पाँच बजे से जल प्रवाह के रास्ते को पलटने के कार्य की कोशिश में लग गए थे। जिससे उनके होटल को खतरा पैदा हो गया था। करीब 10 बजे सबसे बड़ा वृक्ष जिसकी जड़ें जल कटाव से धरती से बाहर निकल आई थी, होटल के पीछे बने सर्वेन्ट क्वाटर में गिर गया। इससे कुछ इमारत दब गई और पेड नीचे को लुढकता रहा और होटल के तीन कमरों की दीवारों को क्षतिग्रस्त करके रुका। मलबे के नीचे दबे थे-एक यूरोपियन बालक, श्रीमती फ्रांसेस की भारतीय नर्स जो इस समय होटल में रुके थे। कैप्टन हैरिस ने इसकी सूचना तुरंत मिस्टर लेनार्ड टेलर, मजिस्ट्रियल चार्ज ऑफ द स्टेशन को दी। मिस्टर लेनार्ड टेलर साथ में इंजीनियर मिस्टर पी. मौर्गन करीब 4 पुलिसवाले और एक दर्जन लद्दाखी मजदूर तुरन्त उस स्थान पर पहुँचे। उनका पहला प्रयास था मलबे में दबे श्रीमती फ्रांसेस के बच्चे को बचाने का। इसी बीच होटल में ठहरे यात्री व उनके नौकरों ने होटल खाली करना शुरु कर दिया था। होटल के नौकर, जिनकी संख्या 25 थी, ने कैप्टन हैरिस के निजी निवास में शरण ली। वह इमारत जो बाद में भू-स्खलन से आधी साफ हो गई थी, केवल कैप्टन टेलर और रैव. ए. रॉविन्सन, जिनके साथ चार चाकर रुके थे।
- एक छोटे हादसे का वर्णन किया गया इसे 'फस्ट स्लिप' कहा गया, इस भू-स्खलन ने 20 से 30 नेटिव के आउट हाउस को खंडहर कर दिया। वह विशाल वृक्ष अपने साथ टनों के हिसाब से मलबा, मिट्टी, चट्टान भी लेकर आया। पर कैप्टन हैरिस व उनके रिश्तेदार मिस्टर चैपमैन के बयान के अनुसार यह इतना बड़ा हादसा नहीं था, जिसे भू-स्खलन कहा जाय। केवल 4 नेटिव को ही पुनर्वास किया गया था।
- दुर्भाग्यवश जो तोड़-फोड़ हुई थी, वह चेतावनी केवल एक ही चेतावनी नहीं थी। जल्दबाजी में जो मलबा हटाया गया, उसमें मिलिट्री डिपो से सहायता व राय ली गई। परिणाम स्वरूप सैनिकों का एक दस्ता, जिसमें 110 या 120 अंग्रेज सैनिक थे, उनका नेतृत्व कैप्टन बॉल्डरस्टन, लेफ्टिनेन्ट सुलिवन और सेकिंड लेफ्टिनेंट हॉल्केट और कारमिकबेल कर रहे थे। एक स्वयं सेवक रॉबिन्सन भी राहत कार्य में आया था। इस राहत कार्य में अनेक आम नागरिक पहले या बाद में जुड़े थे। मिस्टर नॉड पुलिस से और सर्जन मेजर हन्ना और जो लोग उपस्थित थे, वे इस प्रकार थे - मै. ट्रेकर एण्ड सी., मौर्गन, क्लर्क पुलिस आफिस, एक रेलवे कर्मचारी जिनका नाम था जे. स्लीव व उसके तीन भाई, जिन्होंने बढ़-चढ़ कर राहत कार्य में हिस्सा लिया। जब पहला व्यक्ति दब गया था। अब जब यह लोग राहत कार्य में जुटे हुए थे, दूसरी चेतावनी आई, जिसे नजर अंदाज कर दिया गया। एक इंजीनियर जो वहाँ होटल से पानी के नाले को मोड़ने के लिए टैम्परेरी मौजूद थे। वह अपने स्मरण में लिखते है पानी की धारा ने नई राह काट कर धरती से पहाड़ी के आधार को काट दिया था। एक समय, जीता-जागता धरती का प्रवाह हमारे पास से गुजरा और उस धारा में मिल गया, जो पहाड़ी के नीचे बह रही थी। यह मेरे ज्ञान के अनुसार भू-स्खलन था'।
- सैनिक/मजदूर करीब रात डेढ बजे तक विक्टोरिया पर राहत कार्य करते रहे उस समय तक ज्यादातर शव मलबे से निकाल लिए गए थे ज़्यादातर थके हुए राहत कर्मियों को वापस बैरिक भेजने का आदेश दे दिया गया था। पर सारे आफिसर्स उनके साथ करीब एक दर्जन एन.सी.ओ और सैनिक राहत कार्य में लगे रहे। झील के किनारे मिस्टर बेल की दुकान है, वह भी तेज प्रवाह से खतरे की जद में आ गई थी। पानी के तेज प्रवाह की राह को मोडने के लिये मिस्टर डब्ल्यू बेल, उनका कर्मी मिस्टर नाईट, सार्जेंट इंस्पेक्टर ऑफ़ वालंटियर एम. सी. इवान व कई अनेक ने घण्टों तक मशक्कत की। जब भोजन अवकाश के लिए वह वापस अपनी दुकान में आए, उन्होंने पाया कैप्टन हैरिस, श्रीमती मोस, जे. ड्रीयू, छोटा सा बालक जिसका नाम ग्रे था, नन्ही बालिका, श्रीमती नाईट और करीब 29 नेटिव नौकर शरण लिए हुए थे। भुनभुनाहट के साथ अस्पष्ट अफवाहें उड़ रही थी कि 40 भारतीय दर्जी इमारत में दब कर मर गए हैं। पर सच्चाई यह थी कि होटल में 15 दर्जी थे। जब होटल में पानी आने लगा, सबको इमारत खाली करने का आदेश घण्टों पहले दे दिया गया था।
- आर्डनरी रूम में उसके आस-पास मौजूद थे-सार्जेंट एम. सी. इवान, एक भारतीय चपरासी, उसके दो भाई, 4 नौकर जिन्हें कमांडेंट ऑफ द वॉलिटिंयर ने इमारत की पानी से रक्षा करने के लिए भेजा था। पड़ोस के मंदिर की सीमा पर 7 व्यक्ति या इससे ज्यादा इक्ट्ठा हुए थे, जो वेशभूषा से पुजारी लग रहे थे। एक मिस्त्री, जो वहाँ मरम्मत कर रहा था, असेम्बली रुम्स में शरण लिए हुए थे। मेजर और मिसेज मौर्फी, श्रीमती टर्नबॉल, कैप्टन गौदरेज तथा लाइब्रेरिएन प्राइवेट इरानको यह सब यहाँ पैदल चलकर पहुँचे थे तथा इनके साथ झम्पानी नहीं थे, पर कमरों में उनके साथ दो नेटिव चपरासी और चौकीदार का बेटा मौजूद था।
- करीब दो बजने में 20 मिनट बचे, बारिश की तेज आवाज के बीच जोर की पेड़ टूटने की आवाज सुनाई दी। कुछ बाँज के पेड़ पहाड़ी पर विक्टोरिया होटल से 400 फीट ऊपर टूट कर गिर रहे थे। एक या दो चट्टानें टूटकर नीचे को लुढकी। होटल से 'भागो, अपनी जान बचाओ' का शोर सुनाई दिया। उसके अगले पल जोर-शोर की आवाज आई और ऐसा लगा जैसे आसमान फट गया है। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार उसे लगा जैसे किसी को बचाने पर लोग शोर करते, कुछ वैसी थी आवाज। पर जो पहाड़ी के ऊपर और झील के दक्षिण-पूर्व में थे, ये आवाज उन्हें नहीं सुनाई दी। पर इस का मतलब था पहाड़ टूटकर गिर गया था। एक मिनट के अंदर पहाड़ का आखिरी पत्थर झील में छपाका मारकर गिर गया। अनेक बड़ी-बड़ी लहरें झील में उठने लगी। एक बड़े धूल के गुबार ने झील के उत्तर-पश्चिम छोर को छुपा दिया और विक्टोरिया होटल का घटना स्थल नजर से ओझल हो गया। उक्त घटनाक्रम में दो प्रत्यक्षदर्शी की बात मेल नहीं खाती। पर घटना के पास से निरीक्षण करने पर समय और मूड का ध्यान रखना पड़ता है।
- पेश है कुछ सारांश प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों से 'एक जोर की झपट और जोर का धमाका' लिखते हैं रैव डी. डब्ल्यू, थॉमस और होटल विक्टोरिया, बेल की दुकान, असेम्बली रुम्स और इन्सानों की भीड़ एकदम जिन्दा दफन हो गए- मलबे, चट्टानों और झील में। होटल विक्टोरिया टूटने से पहले अपनी बुनियाद सहित कम से कम 100 फीट आगे बढ़ा और भर-भरा कर टूट गया। इसी प्रकार बेल की दुकान भी टूटी। जिस समय भू-स्खलन हुआ, उस समय काफी संख्या में देशवासी व 5 या 6 गोरे सैनिक माल से गुजर रहे थे। उसमें से ज्यादातर मलबे, चट्टानों में जिन्दा दफन हो गए थे। मिस्टर थॉमस आगे लिखते हैं कि विक्टोरिया होटल और मंदिर सीधे झील में समा गए। होटल के कुछ अवशेष जो बचे थे, वह उसके खम्भों के टुकड़े, जो खेल के मैदान में बिखरे हुए थे। मंदिर के अवशेष व उसमें रहने वाले खुदाई में झील के किनारे मिले।
- सब इंजीनियर मिस्टर डब्ल्यू, गिलवर्ट कहते हैं 'मैं बहुत जोर से चौंका, एक जोर की गर्जना की आवाज मेरे पीछे से आई। मैंने पलट के देखा और पाया विक्टोरिया होटल गायब हो चुका था। एक बहुत बड़ी, गहरे रंग की चलती हुए वस्तु उसी जगह से गुजरते हुए बहुत ही कम समय में झील में समा गई। वह अपने साथ बड़े-बड़े वृक्षों को कुचलते हुए जैसे माचिस की तीलियां होती हैं, भी ले गया। फिर कुछ ही क्षणों में बेल की दुकान और असेम्बली रुम्स पर काली आकृति छा गई और अगले क्षण बहुत जोर की गर्जना हुई और उससे झील में बहुत जोर का छपाका हुआ। पहाड़ का एक बड़ा टुकड़ा उससे अलग होकर इतनी तेज रफ्तार से नीचे आया और अपने साथ सब कुछ लेकर झील में समा गया। उसके छपाके से 30 से 40 फीट ऊँची लहरें उठी तथा झील का छोर का हिस्सा उसमें समा गया और कुछ ही पल में सब गायब हो गया। बहुत ही भयानक गर्जना के साथ। मुझे यकीन है यह इतनी तेजी से हुआ कि उतने समय में खुले मैदान में बीस कदम भी नहीं चल पाता'।
- रैव.एन.चेनी जो उस समय भू-स्खलन जहा हुआ, वहाँ पर से 20 गज की दूरी पर को एक जोर की आवाज से चौंक गए. जो लगा कि दबे हुए धमाके से होते हुए कान चीरते हुए रोने की आवाज है। वृक्ष हिलते हुए टूट रहे थे।पहाड़ जैसे फूट गया था। उसका सारा अम्बार नीचे तेजी से तूफान की तरह पहाड़ी की ढाल में अपने पर सब समाते हुए विक्टोरिया होटल की ओर बढ़ा और होटल ऊपर से नहीं दबा, बल्कि वह अपनी बुनियाद से ही उखड़ गया और पहले पीछे को आया और आगे को लुढ़क गया। ऐसा प्रतीत होता है कि होटल की छत नीचे और फर्श ऊपर की तरफ हो गया था। धूल के अम्बार ने बेल की दुकान को तहस-नहस होने का नजारा छुपा दिया था। मैं यह मंजर कभी नहीं भूल सकूंगा। जब परतदार पत्थरों का मलबा जिस गति व बल से होटल के फाटक से होते हुए माल से गुजरते हुए सीधे जोरदार गड़गड़ाहट से झील में समा गया। मेरे अंदाज से इसे बमुश्किल से 8 सेकेंड भी नहीं लगे होंगे।
- मेजर मैकमिलन लिखते हैं 'मैंने जोर के धमाके के साथ सरसराहट की आवाज सुनी, जिसमें कई इंसानी चीखें भी मिश्रित थी। मैं तुरन्त बरामदे की तरफ लपका और क्या देखता हूँ कि विराट मलबा, चट्टान, पत्थरों का सैलाब तेजी से पहाड़ से नीचे लुढ़क कर उफनती लहर की शक्ल में असेम्बली रुम्स (सभाकक्ष) की तरफ बढ़ रहा था। उस मलबे का एक हिस्सा तेजी से इमारत के छोर में टकराया और अचानक से सब कुछ झील में समा गया। मुझे यकीन है उसमें अनेक इंसानी जानें भी समा गई थीं। कर्नल डालमाल्वे कहते हैं यदि आप मेरे लेखन पर गौर करें, मैंने एक विशाल धूल का बादल देखा. एकदम पुराने राजभवन के नीचे, मैं समझ गया था इसका मतलब क्या है। मैं तुरन्त बरामदे की तरफ दौड़ा और उसी समय भू-स्खलन ने होटल विक्टोरिया को निगल लिया। मैं निगल गया शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि होटल तुरन्त ही मलबे में दब गया और नजर से ओझल हो गया। उसका कोई भी हिस्सा नजर नहीं आ रहा था। होटल विक्टोरिया को निगलने के बाद भू-स्खलन फैल गया और चन्द लम्हों में बेल की दुकान में पहुँच गया। ऐसा प्रतीत हुआ कि दुकान आगे-पीछे कुछ पल के लिए झूल रही है और ताश के पत्तों के घर की तरह भरभरा गई। यह मलबा अब सभा कक्ष (असेम्बली रुम्स) की तरफ बढ़ा और कुछ ही क्षण में सभाकक्ष झील में ओझल हो गई। मैंने अनेक व्यक्तियों को होटल विक्टोरिया व उसके नीचे देखा, जिन्हें मलबा निगल गया, पर मैं यह अंतर नहीं कर पाया कि वह कौन थे।
- यदि आंकड़ों से तुलना की जाय तो भू-स्खलन की औसत चौड़ाई 1000 फीट, औसत ऊँचाई 100 फीट और औसत मोटाई 56 फीट और वजन 100 पौंड प्रतिघन फीट था। कर्नल ब्राउनलो का मानना है कि भू-स्खलन में गिरे मलबे, चट्टान पत्थरों का वजन 10,00,000 टन था। यह संख्या सुनने में बहुत ज्यादा लगती है, पर वास्तव में अंदाजा भी नहीं किया जा सकता। पर यही आंकड़ा दूसरी जाँच पड़ताल में श्रीमान रर्बट स्मीटन, (सी.एस.) के द्वारा पाई गई थी। श्रीमान स्मीटन ने गणना की थी कि इस भू-स्खलन ने अपना लक्ष्य साढ़े 11 सेकेंड में तय किया था। भू-स्खलन का वर्णन इस प्रकार किया गया है- वह मलबा, पानी, मिट्टी, चट्टान, नुकीले परतदार पत्थरों से भरा व दलिया जैसा गाढ़ा, उसका फैलाव पंखे की तरह था व उसका प्रवाह ज्वालामुखी के लावा की तरह था। उसका पहला शिकार होटल विक्टोरिया, वहाँ जो बचा वह उसके पूर्वी छोर पर कैप्टन हैरिस के निजी भवन का आधा भाग'। एक सिद्धांत के अनुसार भू-स्खलन ने झील के किनारे को आगे खिसका दिया। श्री थॉमस के अनुसार शायद भू-स्खलन की लंबी यात्रा, जो होटल को अपने साथ बहा ले गई और बेल की दुकान को यकीनन 70 गज से अधिक आगे खिसका के ध्वस्त किया और मंदिर को कुछ कम दूरी में। यह दो इमारतें बह के सभाकक्ष से टकराई और उस खूबसूरत शैरगाह का 3/4 हिस्सा झील में समा गया। आर्डनरी कक्ष भू-स्खलन की पश्चिमी दिशा की तरफ था और उस कक्ष से मिली टूटी-फूटी राइफल से राय बनाई जा सकती है कि त्रासदी कितनी भयावह रही होगी, जिसकी दिशा पश्चिम की तरफ होगी।
- पर जब भू-स्खलन खेल के मैदान के बीच में पहुँचा तो मिट्टी का प्रवाह थम गया। जहाँ पर प्रवाह रुका, वहाँ मलबे के ढेर में इमारतों की वस्तुएं, तोड़ी-मरोड़ी सजावटी सामान व अनेक वस्तुएं बिखरी पड़ी थीं। इनके चारों तरफ चट्टानें, पत्थर, मिट्टी के ढेर पड़े थे, कहीं-कहीं पर बड़ी-बड़ी चट्टानें, टूटे पेड़ या आधे दबे पेड़ थे। श्रीमान किलवर्ट का मानना है कि जो सम्पत्तियों का भू-स्खलन में नुकसान हुआ उनकी कीमत करीब रु. 2,55,000 थी।
- इस त्रासदी में जो जानों का नुकसान हुआ उस विषय को नकारा नहीं जा सकता है। निरीक्षण में पाया गया कि मृतकों व लापता लोगों की संख्या 151 थी। जिनमें 43 अंग्रेज या यूरेशियन थे। विक्टोरिया होटल व उसके आस-पास 30 यूरोपियन मारे गए थे। उसमें आधे से ज्यादा राहत दल के थे। 4 देशवासी पहले भू-स्खलन में मारे गए थे। 25 होटल के कर्मचारी, जिन्होंने कैप्टन हैरिस नैनीताल के निजी आवास में पनाह ली थी, वह भू-स्खलन की भेंट चढ़कर मारे गए जब सैलाब ने कैप्टन हैरिस के आवास का आधा पश्चिमी भाग दबा दिया था जब इस तबाही में श्रीमान टेलर के साथ मौजूद 4 निजी सेवक व देशवासी जया बसला, मजदूर व अर्दली जिनकी संख्या 8 थी. भी मारे गए। इसी क्षेत्र #71 मृतकों की सख्या शायद सबसे ज्यादा थी। यह नुकसान संख्या तथा गुणवत्ता में सबसे अधिक था। इस त्रासदी से नगर को अच्छा सुशासन देने वाले व शिष्ट लोगों से वंचित कर दिया। इस त्रासदी ने असमय ही कुछ लोगों को, जो जोश से भरे व उदार थे, जैसे श्रीमान टेलर, नॉड व मुलविन को मौत के आगोश में ले लिया। इसमें महामहिम की सेवाओं में जो क्षति पहुँची, उसकी पूर्ति समय ही कर पाएगा। वह लोग काफी सौभाग्यशाली हैं, जो होटल छोड़ कर कहीं और शरण लेने गए, इनमें वह भाग्यशाली श्री टेलर के मजदूर भी हैं। जो सर हैनरी रैमजे के साथ झील के तल्ली छोर में चले गए थे। साथ ही आगे यह भी जोड़ना होगा कि मलबे में शवों की तलाश को त्याग दिया गया था. क्योंकि यह भय था कि राहत कर्मियों के लिए भू-स्खलन उनकी कब्रगाह न बन जाए। एक प्रार्थना सभा का आयोजन कर, जिसमें दिवंगत आत्माओं के लिए पढ़ा-सिएल्ड विद इन द आइरन हिल्स' ।
- भू-स्खलन से जो लोग मारे गए थे उनमें मंदिर परिसर में आठ, सभा कक्ष में 8, जिनमें 5 अंग्रेज थे। अर्दली कक्ष में 8, जिसमें एक यूरोपीय था। इस मलबे से जिन शवों को निकाला, वह थे- श्रीमती मोर्फी, कैप्टन गुडरिज और सिपाही फेरेन्स। बेल की दुकान में 36 लोगों ने जान गंवाई। जिनमें 7 यूरोपियन थे। कुछ मारे गए लोग निकालते समय जिंदा थे। श्रीमती ग्रे का पुत्र जिसका शव मलबे में मिला था, उसकी कलई की घड़ी में समय, जो थम गया था, वह पौने दो बता रहा था। इससे भू-स्खलन के समय की पुष्टि होती है। अन्य लोग जिनके शव बरामद हुए वह इस प्रकार हैं, कैप्टन हाइनेस, श्रीमती नाईट का शिशु, श्रीमती डब्ल्यू, बेल, जे. ड्रियू और श्री मौस। यह अभी भी तय नहीं हो पाया कि बीच सड़क मार्ग पर चल रहे कितने राहगीर मारे गए। मार्ग इतना क्षतिग्रस्त हो गया कि उसमें घुड़सवारी नामुमकिन है।
- अचानक पहाड़ी का छोर फूलकर दरक गया व झील में समा गया, इससे तीन और लोग मारे गए। झील में मलबा आने से उफनती लहरों ने मछलियों को किनारे धकेल दिया, जिससे वह फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी तथा नगर की अधिकतर नावों में पानी भर गया था वह बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई थी। अब बड़ी-बड़ी लहरें झील के दक्षिण-पूर्व हिस्से की तरफ बहने लगी। यहाँ पर जो संकरी सड़क थी, वह बाढ़ के पानी से भर गई थी और लेफ्टिनेंट जनरल सर हैनरी रैमजे चंद देशी मजदूरों के साथ बाढ़ से भरे पानी की निकासी में लगे थे। तभी पहली एक बड़ी लहर ने खतरे की घण्टी दी। सर हैनरी रैमजे व अन्य कमर तक डूब गए थे। पर वह सड़क किनारे सुरक्षित पहुँच गए, पर कुछ अंग्रेज सैनिक व देशवासी लगातार हो रही बारिश से झील में बह गए। जिनमें एक अंग्रेज व दो देशवासी मारे गए थे। सैनिक हेस का शव दो दिन बाद कुछ दूरी पर झरने पर मिला।
- सर हैनरी रैमजे व साथी बाल-बाल बच गए। इसी प्रकार ऐसे कई किस्से है कि जहाँ लोग इस सैलाब में बचे। श्री जे. वॉकर मदद करने के लिए जब विक्टोरिया होटल के पास पहुँचे ही थे, भू-स्खलन हो गया। वह मलबे के साथ लुढ़कते गए और उनका शरीर पूरा मलबे में दब गया। जब उन्हें मलबे से निकालकर बचाया गया, संयोग से वह सही सलामत थे। इसी प्रकार श्री ई. माकलियोड, श्री टकर और शील के साथ होटल से निकल रहे थे कि वह सैलाब के चपेट में आ गए। श्री मैकलोड को लकड़ी के तख्ते से सहारा मिला वह सुरक्षित बच गए। लॉस नायक बोनबेल, कैप्टन बाल्डरस्टन के आदेश पर वापस बैरक को लौट रहे थे, जैसे ही विक्टोरिया होटल और बेल की दुकान के बीच की सड़क में पहुँचे थे कि उन्होंने जोर का धमाका सुना और पलक झपकते ही सैलाब उन्हें झील में बहा ले गया। उन्होंने अपनी जान तैर कर बचाई। इसी प्रकार सैलाब सभाकक्ष के एक देशी नौकर को भी बहा कर झील में ले गया था और उसे सुरक्षित निकाल लिया गया था। वह सभाकक्ष की छत में मरम्मत का कार्य देखता था।
- श्री ए. ड्रीयू भय से चौंक गए, जब उन्होंने भयानक आवाज सुनी और बेल की दुकान से बाहर आकर देखा धूल का बड़ा गुबार विक्टोरिया होटल की तरफ बढ़ रहा था। उन्होंने दौड़ कर खेल मैदान को पार कर अपनी जान बचाई। श्री बेल की सहायक श्रीमती नाईट, श्रीमती ग्रे, कुमारी शौ, इमारत के प्रथम तल में थे, जब सैलाब इमारत को बहा कर खेल के मैदान में ले गया। जब दुकान टूटी उसकी छत से वह सुरक्षित बच गए। हालांकि श्रीमती नाईट बुरी तरह से जख्मी हुई और श्रीमती ग्रे का बायां हाथ टूट गया था। प्रथम दृष्टि में उन्हें लगा कि तूफान आ गया है और बज उनसे टकरा गया है। त्रासदी के दिन से किसी भी घायल की मृत्यु नहीं हुई है।
- यह संक्षिप्त में रूपरेखा उन घटनाओं के विवरण की है। जिससे सनसनी फैलाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इससे दुःख और बढ़ेगा। मित्रों को खोने का मतलब इसके लिए राष्ट्र को उत्तरदायी होना है न कि मात्र एक स्थानीय दुर्घटना मानना। अलग-अलग जगह की तुलना कर इस त्रासदी को तोलना गलत ही होगा। समाचार-पत्रों में नैनीताल की तुलना पोम्पी से करनी शुरु कर दी थी। यह घोर विपत्ति उतनी ही भयानक थी, जितनी एक बड़ी रेल दुर्घटना, जिसे नकारा नहीं जा सकता। यह सांत्वना दिलाने के लिए कि इतनी सारी मृतकों की संख्या, जिन्होंने अपना कर्तव्य निभाने में अपनी जिंदगी निःस्वार्थ बलिदान कर दी। शायद ज्यादातर मर्द यह सपना देखते हैं कि वह अपने प्राण इसी तरह न्यौछावार कर दें।
- भू-स्खलन के आतंक से नैनीताल की जनसंख्या में काफी गिरावट आई और यह कोई अप्राकृतिक बात नहीं थी। यह नगर के 40 वर्षों के इतिहास में पहला वाकया था, जब भारी वर्षा ने पहाड़ को जानलेवा बना दिया। भविष्य में सावधानी के लिए इंजीनियरिंग कमेटी ने कुछ भवनों को जो आल्मा पहाड़ी की ढलान में थे और कुछ शेर-का-डांडा में थे, को अति संवेदनशील घोषित किया। 209 अंग्रेजी भवनों में से केवल 4 भवनों को बिना शर्त परित्याग किया गया तथा करीब एक दर्जन भवनों को अतिसंवेदनशील घोषित किया। अब यह प्रश्न शेष था कि भविष्य में नगर की आबादी वाले क्षेत्र में फिर भूस्खलन न आए। इसका उत्तर यह था कि पिछले महीने बहते पानी ने जो गहरे नाले व खाई बना दी थी। खतरनाक तरीके से पहाड़ी पर उससे वहाँ रहने वाले किसी भी व्यक्ति को खतरा नहीं हो सकता था।
- पर यह पूरा क्षेत्र एक कब्रस्तान है' ? यह सत्य है कि नगर के सीमित हिस्सों में कुछ शव अभी भी नुकीली चट्टानों व पत्थरों के नीचे दबे हैं। पर यह तर्क शायद ही लोगों को कब्रगाह के करीब मकान लेने से रोके। रणभूमि के निकट गाँव वीर योद्धाओं के शवों की उपस्थिति से कभी खाली नहीं हुए। इस प्रदेश के प्राचीन नगरों में लोक गीत हैं, जिसे पूर्व के जाने-माने कवि गाते है यह माटी उन वीरों का घर है जो युद्ध में मारे गए। मेरी आँखों के लिए मोक्ष है न कोई इसे प्रमाणित कर इसमें प्रतिबन्ध लगा सकता है क्यूंकि नैनी झील के इर्द-गिर्द वीर एवं श्रेष्ठ लोग समाए। यह सुंदर भूमि का अंतिम सिरा उनका घर है, जो मौत में भी निडर रहे बिना उलाहना के।
18 सितंबर, 1880 के विनाशकारी भू-स्खलन के बाद नैनीताल के विकास की प्रक्रिया रुकी नहीं, बल्कि और तेज हो गई। एक ओर ब्रिटिश सरकार के अधिकारी नैनीताल की पहाड़ियों और तालाब की सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद करने में जुटे थे, वहीं दूसरी ओर यहाँ मनोरंजन और रोमांच के नए साधन तलाशे जा रहे थे। मेरठ के तत्कालीन कमिश्नर मिस्टर फ्लीडवुड विलियम्स ने 1880 में यहाँ सेलिंग की शुरुआत की। फ्लीडवुड विलियम्स ने औकरिज नामक स्थान पर यॉट बनाई। यॉट को एक ट्राली की सहायता से तालाब में उतारा गया। फिर कर्नल हैनरी ने "जैमिनाए" नाम से दो हल वाली नावें बनाकर उन्हें तालाब में तैराया। इसके बाद 'मरे एण्ड कंपनी' ने तीन सेलिंग मंगाई। इनका नाम रखा गया था - कोया' 'डुडल्स' और 'दोरोथी' । कंपनी इन नावों को किराये पर भी उठाती थी।
1880 के दौर में नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की आबादी तेजी से बढ़ रही थी। बढ़ती आबादी के मद्देनजर अंग्रेजों को ऐसे स्कूलों की जरुरत थी, जो यूरोपियन लड़कों को उनके घर इंग्लैंड की तर्ज पर शिक्षित कर सकें। उधर भारत के मैदानी क्षेत्रों में गर्मी से झुलसते यूरोपियन बच्चों और महिलाओं को वक्त गुजारना भारी पड़ रहा था। यूरोप जैसा वातावरण और जलवायु की वजह से यूरोपीय लोगों में भारत के हिल स्टेशनों में रहने की आकांक्षाएं बढ़ रही थीं। इसके मद्देनजर रेव. एन. जी. चैनी और रेव. जे. डब्ल्यू, वॉ ने यूरोपियन एवं एंग्लो इंडियन बच्चों के लिए नैनीताल में 1 अप्रैल, 1880 को 'द बॉयज हाईस्कूल' की नींव रखी। स्कूल में दाखिला लेने के इच्छुक बच्चों की संख्या अधिक हो जाने के कारण एक महीने के भीतर ही स्कूल को आईबी पार्क स्थानांतरित करना पड़ा। कुछ समय बाद इस स्कूल को 'स्टोनले' ले जाया गया। स्टोनले उस समय नैनीताल के सबसे बड़े बंगलों में शामिल था। इस स्कूल कमेटी के चेयरमैन कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर लेफ्टिनेंट जनरल सर हैनरी रैमजे थे। इस बीच नैनीताल की सुरक्षा के बेहतर उपायों की खोज जारी रही। सरकार ने यहाँ की पहाड़ियों की हिफाजत के बारे में सुझाव देने के लिए 25 सितंबर, 1882 को कर्नल फोर्बेस की अध्यक्षता में एक और कमेटी गठित की। इस कमेटी में मेजर गार्सटिन, मिस्टर पिटमैन मिस्टर एफ. एच. एशहर्स्ट, मिस्टर जे. एच. ब्रेसफोर्ड और नगर पालिका के प्रतिनिधि के तौर पर एफ. ई. जी. मैथ्यूज सदस्य थे। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि शेर-का-डांडा में फुलवाड़ी बनाने पर भी प्रतिबन्ध लगाया जाय। भू-स्खलन के बाद सरकार ने शेर-का-डांडा पहाड़ी की सुरक्षा के लिए 1880-81 तथा 1881-82 में बड़ा नाला, पॉपुलर नाला, स्टाफ हाउस एवं एज हिल नाला, सेंट-लू से ग्राण्ट होटल नाला, लेकव्यू नाला तथा मेलविले हॉल के नाले के निर्माण में 2,11,579 रुपये खर्च किए।
इसी साल एफ. ई. जी. मैथ्यूज ने शेर-का-डांडा पहाड़ी की सुरक्षा को लेकर अपनी निजी जाँच रिपोर्ट प्रकाशित की। 1880 में भू-स्खलन में ध्वस्त असेम्बली रुम्स 1882 में दूसरी बार बन कर तैयार हो गया था। इसके निर्माण कार्य में 39,600 रुपये खर्च हुए थे। इसी साल नैनीताल क्लब का नया ब्लॉक भी बनकर तैयार हुआ। 1882 में मल्लीताल में जामा मस्जिद बनी।
1882 में बलियानाले में हो रहे कटाव से कार्ट रोड की हालत का जायजा लेने के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल एफ.एल.एम. ब्राउन तथा मिस्टर रयान ने बलियानाले का व्यापक सर्वे किया। 1883 में नगर पालिका के तत्कालीन सभासद लेफ्टिनेंट कर्नल सी. जे. गार्सटिन ने बलियानाले की सुरक्षा के लिए अनेक सुझाव सुझाए।
18 सितंबर के भू-स्खलन के बाद सरकार साल भर पहले सेंट-लू की पहाड़ी पर बने नए राजभवन की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित थी। ब्रिटिश सरकार को हर हाल में राजभवन की सुरक्षा करनी थी। राजभवन साम्राज्यवादी सत्ता के वैभव और शक्तिशाली सामर्थ्य का प्रतीक था। नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की सरकार ने 17 मार्च, 1883 को जारी एक शासनादेश के जरिए राजभवन की स्थिति की जाँच के लिए मिस्टर एफ. बी. हेन्सलोव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एक जाँच कमेटी बना दी। कमेटी में एफ. बी. हेन्सलोव, जे. एस, ब्रेसफोर्ड और एफ. एच. एशहर्स्ट शामिल थे। कमेटी ने 11 अप्रैल, 1883 को प्राथमिक जाँच रिपोर्ट सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में राजभवन में दरारें आने की बात कही गई। शेर-का-डांडा पहाड़ी के भू-स्खलन से डरी-सहमी सरकार ने 1883 में बलियानाले में भी सुरक्षा उपाय करने प्रारंभ कर दिए। इसी साल जिमखाना बना।