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संकट नहीं है सूखा : सूखे से मुकाबला

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आंखें आसमान पर टिकी हैं, तेज धूप में चमकता साफ नीला आसमान! कहीं कोई काला-घना बादल दिख जाए इसी उम्मीद में आषाढ़ निकल गया। सावन में छींटे भी नहीं पड़े। भादों में दो दिन पानी बरसा तो, लेकिन गर्मी से बेहाल धरती पर बूंदे गिरीं और भाप बन गईं। अब....? अब क्या होगा....? यह सवाल हमारे देश में लगभग हर तीसरे साल खड़ा हो जाता है। देश के 13 राज्यों के 135 जिलों की कोई दो करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि प्रत्येक दस साल में चार बार पानी के लिए त्राहि-त्राहि करती है।

भारत की अर्थ-व्यवस्था का आधार खेती-किसानी है। हमारी लगभग तीन-चौथाई खेती बारिश के भरोसे है। जिस साल बादल कम बरसे, आम-आदमी के जीवन का पहिया जैसे पटरी से नीचे उतर जाता है। एक बार गाड़ी नीचे उतरी तो उसे अपनी पुरानी गति पाने में कई-कई साल लग जाते हैं। मौसम विज्ञान के मुताबिक किसी इलाके की औसत बारिश से यदि 19 फीसदी से भी कम हो तो इसे ‘अनावृष्टि’ कहते हैं। लेकिन जब बारिश इतनी कम हो कि उसकी माप औसत बारिश से 19 फीसदी से भी नीचे रह जाए तो इसको ‘सूखे’ के हालात कहते हैं।

कहने को तो सूखा एक प्राकृतिक संकट है, लेकिन आज विकास के नाम पर इंसान ने भी बहुत कुछ ऐसा किया है जो कम बारिश के लिए जिम्मेदार है। राजस्थान के रेगिस्तान और कच्छ के रण गवाह हैं कि पानी की कमी इंसान के जीवन के रंगों को मुरझा नहीं सकती है। वहां सदियों से, पीढ़ियों से बेहद कम बारिश होती है। इसके बावजूद वहां लोगों की बस्तियां हैं, उन लोगों का बहुरंगी लोक-रंग है। वे कम पानी में जीवन जीना और पानी की हर बूंद को सहेजना जानते हैं।

जिन इलाकों में अच्छी बारिश होती है वहां के लोग बेशकीमती पानी की कीमत नहीं जान पाते हैं। जिस साल वहां कुछ कम पानी बरसता है तो वे बेहाल हो जाते हैं। सूखे के दौर में पीने के पानी का संकट, अन्न का अभाव और मवेशियों के लिए चारे की कमी सिर उठाने लगती है। फसलें बर्बाद हो जाती हैं। कुपोषण, बीमारी जीवन में आई अनिश्चितता के कारण मानसिक परेशानियां इस त्रासदी को भयावह बना देते हैं।

सूखा बेरोजगारी साथ ले कर आता है। ऐसे में लोग काम की तलाश में अपने घर-गांव से दूर पलायन करते हैं। छोटा किसान अगली फसल की तैयारी के लिए सूदखोरों की गिरफ्त में फंस जाता है। यह ऐसा दुष्चक्र होता है, जिससे बाहर निकलना बेहद कठिन है।

तो क्या सूखे से बचा जा सकता है? आज हमारा विज्ञान प्रकृति पर नियंत्रण के भले ही बड़े-बड़े दावे करे, लेकिन एक छोटी-सी प्राकृतिक आपदा के सामने हम बौने साबित होते हैं। हम ना तो बारिश को बुला सकते हैं, ना ही उसकी दिशा बदल सकते हैं। ऐसे में इस संकट का सहजता से सामना करने का एकमात्र रास्ता है- सावधानी और प्रबंधन।

सावधानी

हर बूंद को बचाना

पेड़ लगाना

खेती-किसानी

प्रबंधन

सूखा-पूर्व तैयारी

सूखे के दौरान प्रबंधन

जनजीवन को सामान्य बनाने हेतु कदम

‘कम पानी में भी बेहतरीन जीवन जिया जा सकता है’’
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