सूखा और भूख का सवाल

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बुन्देलखण्ड में कुल 13 जिले हैं जिनमें से 7 उत्तर प्रदेश में आते हैं जबकि 6 मध्य प्रदेश में आते हैं। 2011 के जनगणना के मुताबिक बुन्देलखण्ड की कुल आबादी 1 करोड़ 80 लाख है जिसमें से करीब 79 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और इनमें एक तिहाई से ज्यादा घर ऐसे हैं जो गरीबी रेखा से नीचे आते हैं। बुन्देलखण्ड में पिछले 8 महीनों की दयनीय स्थिति के सन्दर्भ में हुए एक अध्ययन के अनुसार यहाँ भुखमरी और कुपोषण की स्थिति निर्मित हो गई है। क्या बुन्देलखण्ड में भूखा के सिवाय कुछ भी नहीं है? इस सवाल का उत्तर तलाशने पर हम पाते हैं कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र में कभी संसाधनों का अभाव नहीं रहा। यहाँ मौजूद खनिज और वन सरकार की आय के महत्त्वपूर्ण साधन रहे हैं। लेकिन इन साधनों का उपयोग मानव विकास के लिये नहीं किया गया। नतीजतन बुन्देलखण्ड में भूख का सवाल खड़ा हो गया है।

यह कहा जाता है कि सूखा और अकाल अवर्षा या पानी की कमी से पैदा होता है। किन्तु यदि किसी क्षेत्र के संसाधनों का मानव जीवन के हित में बेहतर उपयोग एवं प्रबन्धन किया जाये तो वह अवर्षा और पानी की कमी को आसानी से सहन कर सकता है।

पिछले करीब 5000 सालों से यहाँ का पन्ना क्षेत्र हीरा के उत्पादन के लिये विश्व विख्यात है। यहाँ 40000 कैरेट हीरा निकाला जा चुका है और 1400000 कैरेट के भण्डार शेष बचे हैं। पन्ना में वार्षिक उत्पादन 26000 कैरेट हीरा है, जिससे 2 करोड़ रुपए की रायल्टी प्रदेश सरकार को प्राप्त होती है।

सरकार अब यहाँ हिनौता, मझगवाँ तथा छतरपुर के अंगोर नामक स्थान पर हीरा की सम्भावना तलाशने में जुटी है, जबकि इसी क्षेत्र के हजारों लोग भूख से संघर्ष करने को विवश है। हीरा के साथ ही महंगे ग्रेनाइट के पत्थर भी कई लोगों की आय के साधन बने हुए हैं। वन सम्पदा के मामले में भी बुन्देलखण्ड पीछे नहीं रहा। यहाँ के पन्ना, दमोह और सागर में मौजूद 32 प्रतिशत जंगल में सागौर तथा शीशम की कीमती लकड़ी उपलब्ध है। खैर की लकड़ी से कत्था। उद्योग चल रहा है।

खजुराहों जैसे पर्यटन स्थल पूरी दुनिया में विख्यात है। इतनी सम्पन्नता के बावजूद बुन्देलखण्ड के लोग बेहद गरीबी में जीवन जीने को विवश हैं। पिछले कुछ सालों से लगातार पड़ रहे सूखे और अकाल ने यहाँ के लोगों के सामने भरण-पोषण का संकट खड़ा कर दिया है और भरपूर सम्पदा वाले इस क्षेत्र के लोग रोजगार की तलाश में दर-दर भटकने को विवश हैं।

बुन्देलखण्ड में कुल 13 जिले हैं जिनमें से 7 उत्तर प्रदेश में आते हैं जबकि 6 मध्य प्रदेश में आते हैं। 2011 के जनगणना के मुताबिक बुन्देलखण्ड की कुल आबादी 1 करोड़ 80 लाख है जिसमें से करीब 79 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों मेंरहती है और इनमें एक तिहाई से ज्यादा घर ऐसे हैं जो गरीबी रेखा से नीचे आते हैं। बुन्देलखण्ड में पिछले 8 महीनों की दयनीय स्थिति के सन्दर्भ में हुए एक अध्ययन के अनुसार यहाँ भुखमरी और कुपोषण की स्थिति निर्मित हो गई है।

इसके अनुसार पिछले 8 महीने में 53 प्रतिशत गरीब परिवारों को दाल तक खाने को नहीं मिली। 69 प्रतिशत गरीब लोगों ने दूध नहीं पिया है। बुन्देलखण्ड में हर पाँचवाँ परिवार हफ्ते में कम-से-कम एक दिन भूखा सोता है। 17 फीसदी परिवारों ने घास की रोटी खाने की बात कबूली है। इस सर्वे के मुताबिक मार्च के बाद से अब तक 40 फीसदी परिवारों ने अपने पशु बेच दिये हैं। जबकि 27 फीसदी ने जमीन बेच दी है या फिर रुपयों के लिये गिरवी रख दी है।

बुन्देलखण्ड के सन्दर्भ में दूसरी बड़ी महत्त्वपूर्ण घटना राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकार को अप्रैल माह में जारी नोटिस है, जिसमें आयोग ने मीडिया की खबरों के आधार पर संज्ञान लेते हुए दोनों राज्य सरकारों के मुख्य सचिव से पूछा है कि लोग महज आलू या नमक के सहारे रोटी खाकर स्वस्थ कैसे रह सकते हैं। सरकार उनके बारे में क्या उपाय कर रही है।

मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार यूपी के बुन्देलखण्ड के 59 प्रतिशत गाँवों में 10 से ज्यादा परिवारों को दो समय का भोजन नहीं मिलता। यही आँकड़ा एमपी में 35 प्रतिशत गाँवों का है। इस सन्दर्भ में प्रस्तुत अध्ययन के माध्यम से यहाँ की खाद्य सुरक्षा की स्थिति का गहराई से आकलन किया गया। प्रस्तुत अध्ययन में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सागर, छतरपुर एवं टीकमगढ़ जिलों 66 गाँवों में लोगों के साथ सीधा संवाद करते हुए खाद्य सुरक्षा से सम्बन्धित कई जानकारियाँ हासिल की गई।

इस प्रक्रिया में यह तथ्य सामने आता है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के 29 प्रतिशत परिवार आज खाद्य सुरक्षा के संकट से जूझ रहे हैं। यह वे परिवार है, जिनके खेतों में अनाज की कोई उपज नहीं हुई। पिछले खरीफ के मौसम में बीज के लिये उधार लिये गए रुपयों पर आज भी लगातार ब्याज बढ़ता जा रहा है। गाँव और उसके आसपास रोजगार के कोई अवसर उपलब्ध नहीं हैं। इस दशा में बाहर जाकर रोजगार तलाशना ही एकमात्र विकल्प बचा है। जो लोग किसी कारण बाहर नहीं जा सके, उनके लिये दो वक्त की रोटी कमाना मुश्किल हो गया है।

प्रस्तुत अध्ययन से यह बात सामने आई है कि 4 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं, जो दिन में दो समय खाना नहीं खा पाते। वे सिर्फ एक वक्त खाना खाकर अपना जीवन गुजार रहे हैं।

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