सूखे की मार से पसरता पलायन

सूखे की मार से पसरता पलायन

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तपती दोपहरी में सराय काले खाँ बस अड्डा, बुन्देलखण्ड से आने वाले किसानों के लिये नया आशियाना बना हुआ है। यहाँ कई परिवार एक साथ काम की तलाश में बुन्देलखण्ड के गाँव-देहात से आ बसे हैं। बुन्देलखण्ड में सूखे के चलते लाखों की संख्या में किसान लगातार पलायन कर रहे हैं और काम के जुगाड़ में फिलहाल सराय काले खाँ के फ्लाईओवर के नीचे ही ये परिवार दिन गुजार रहे हैं। यहीं चूल्हे पर खाना बनता है और यहीं अंगोछा ओढ़ कर नींद पूरी की जाती है।

इन परिवारों में बड़ी तादाद में महिलाएँ और बच्चे हैं, यहाँ तकरीबन 500 से ज्यादा लोग मौजूद हैं। यहाँ आये किसानों को काम के लिये भी दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। कभी तो आसानी से काम मिल जाता है तो कभी 2-2 दिन तक काम के लिये भटकना पड़ता है। हालात इतने बुरे हैं कि कई बार काम के बदले मजूरी भी पूरी नहीं मिलती।

कुलपहाड़ से आये मंगेश बताते हैं कि उनके परिवार में 7 लोग यहाँ उनके साथ पिछले 6 दिनों से फुटपाथ पर सो रहे हैं, रोज काम नहीं मिलने की वजह से कभी-कभी माँगकर भी खाना पड़ता है। वहीं महोबा के रामकिशन का दुख ये है कि जिस समस्या से बचने के लिये वो दिल्ली आये हैं, वो यहाँ भी उनका पीछा नहीं छोड़ रही है, न तो यहाँ पीने का पानी मिल रहा है और न ही रोजगार। अगर यहाँ पानी मिल जाये तो हम यहीं रह जाएँगे

फ्लाई ओवर के नीचे 6 दिनों से रह रही कुसुम कहती हैं, “यहाँ न तो पीने का पानी है और न ही बच्चे सुरक्षित हैं, ऊपर से जितना राशन पानी वो अपने साथ लाये थे वो भी अब खत्म होने की कगार पर है। पिछले 6 दिनों में हमें कई बार ये जगह छोड़ने के लिये भी कई लोग बोल चुके हैं, ऐसे में समझ नहीं आता कि हम अपने बच्चों को लेकर कहाँ जाएँ। यहाँ सामान भी चोरी होने का खतरा बन रहता है।”

बुन्देलखण्ड में सूखे के चलते अब तक लगभग 62 लाख किसान दिल्ली, गुजरात, पंजाब जैसे शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं, लेकिन भूख-प्यास का मर्म अब भी उन्हें अकेला नहीं छोड़ रहा है। वहीं किसानों के पलायन पर दिये गए तर्क से कुछ किसान मानते हैं कि नदियों को आपस में जोड़ने के बजाय यहाँ परम्परागत सिंचाई संसाधनों को बढ़ावा देने की जरूरत है, तभी पलायन और दैवीय आपदायों से छुटकारा मिल सकता है।

यहाँ ग्राम और कृषि आधारित आजीविका की आवश्यकता है, ताकि पलायन रोका जा सके, छोटे किसान मनरेगा पर भी सवाल खड़ा करते हैं। अवरोध दूर करना है और हर चेहरे को खुशी लौटानी है, तो उद्योग और खेती में सन्तुलन बनाइए। प्रकृति और मानव निर्मित ढाँचों में सन्तुलन बनाइए। आर्थिक विकास को समग्र विकास के करीब ले आइए, यही समाधान है।

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