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भूकम्पों के प्रति हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता

भूकंप के खतरों से हिमालयी क्षेत्र की सुरक्षा पर सवाल। तिब्बत में आए 7.1 तीव्रता के भूकम्प ने क्षेत्र की संवेदनशीलता को उजागर किया। जानें भूकम्प से बचाव के उपाय और सरकार के प्रयास।
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भूकंप की परिभाषा - 

भूकंप-पृथ्वी की सतह के नीचे (भूगर्भ में) चट्टानों के खिसकने और टूटने के कारण अचानक पैदा होने वाले कम्पनों को भूकंप कहते हैं। पृथ्वी के गर्भ में चट्टानों के टूटने के स्थान को भूकम्प का केन्द्र (Hypocenter या Focus) कहते है। इसी भूकम्प केन्द्र से ऊर्जा, तरंगों के रूप में चारों ओर फैलती है।

भूकम्प के केन्द्र को पृथ्वी के केन्द्र से जोड़ने वाली रेखा जिस स्थान पर पृथ्वी की सतह को काटती है उसे भूकम्प का अभिकेन्द्र (Epicentre) कहते है। पृथ्वी की सतह पर यह स्थान भूकम्प के केन्द्र से सबसे कम दूरी पर होता है। इसलिए भूकम्प की तीव्रता अक्सर अभिकेन्द्र पर सबसे अधिक होती है। भूकम्प का परिमाण रिएक्टर पैमाने व भूकम्प की तीव्रता मापने के लिए मैकराली पैमाना का प्रयोग किया जाता है

भूमिका

पिछले कुछ वर्षों में भारत और उसके आस-पास के क्षेत्रों में भूकम्प की घटनाओं में वृद्धि ने चिंताओं को गहरा दिया है। नए वर्ष की शुरुआत में तिब्बत के शिगात्से क्षेत्र में आए 7.1 तीव्रता के भूकंप ने भारत सहित हिमालयी क्षेत्र की भूकम्पीय संवेदनशीलता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। यह घटना न केवल भौगोलिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी एक बड़ी चेतावनी है। हिमालय के भीतर और इसके आसपास हाल ही में आए भूकम्पों ने यह साबित कर दिया है कि इस क्षेत्र में बड़ी आपदाएं कभी भी हो सकती हैं।

हिमालयी क्षेत्र : भूकम्प के लिए संवेदनशील क्यों ?

हिमालय का निर्माण भारतीय और यूरेशियाई टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से हुआ था। लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले भारतीय प्लेट उत्तर की ओर बढ़ी और यूरेशियाई प्लेट से टकराई, जिससे हिमालय पर्वत श्रृंखला बनी। यह प्रक्रिया अभी भी जारी है और दोनों प्लेटों के बीच की टक्कर से निरन्तर भूगर्भीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा जब अचानक मुक्त होती है, तो भूकंप का कारण बनती है। हिमालय क्षेत्र को दुनिया का सबसे युवा और संवेदनशील पर्वत माना जाता है। यहाँ भूगर्भीय गतिविधियाँ अत्यधिक सक्रिय हैं। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष यूरेशियाई प्लेट की ओर लगभग 5 सेमी खिसकती है, जिससे भूगर्भीय तनाव बढ़ता रहता है। इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में ऊर्जा जमा हो चुकी है, जिसे 'सेस्मिक गैप' कहा जाता है। यह सेस्मिक गैप एक बड़े भूकम्प की सम्भावना को बल देता है। इसके अलावा, हिमालयी क्षेत्र में खनन, जलविद्युत परियोजनाएं और अव्यवस्थित निर्माण गतिविधियाँ भी भूकम्प की तीव्रता और आवृत्ति को बढ़ाती हैं। पहाड़ों की संवेदनशील संरचना के कारण यहाँ की भूगर्भीय हलचलें और अधिक खतरनाक हो जाती है। 

हिमालयी क्षेत्र में भूकम्प का इतिहास और वर्तमान स्थिति -

हिमालयी क्षेत्र ने इतिहास में कई बड़े और विनाशकारी भूकम्पों का सामना किया है। कुछ प्रमुख भूकम्प निम्नलिखित हैं-

• 1803 का गढ़वाल भूकम्प-7-8 तीव्रता के इस भूकम्प ने गढ़वाल क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तबाही मचाई। उस समय के साधन सीमित होने के कारण राहत और पुनर्वास कार्य मुश्किल हो गए थे। 

• 1905 का कांगड़ा भूकम्प-7-8 तीव्रता का यह भूकम्प हिमाचल प्रदेश में हुआ और लगभग 20,000 लोगों की जान गई। यह घटना क्षेत्र की भूकम्पीय संवेदन-शीलता को उजागर करती है।

• 1934 का नेपाल-बिहार भूकम्प-8-0 तीव्रता के इस भूकम्प ने नेपाल और बिहार में अपार जन-धन का नुकसान किया। इसमें हजारों इमारतें ध्वस्त हो गई और 10,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई

• 1950 का असम-तिब्बत भूकम्प-8-6 तीव्रता का यह भूकम्प, जिसे 'ग्रेट असम भूकम्प' भी कहा जाता है, हिमालयी क्षेत्र में अब तक का सबसे तीव्र भूकम्प था। इसने असम और तिब्बत में भारी तबाही मचाई। 

हाल के दशकों में उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और नेपाल के आस-पास के क्षेत्रों में बड़े भूकम्प नहीं आए हैं। हालाँकि, यह 'सेस्मिक गैप' चिंताजनक है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस गैप में बड़ी मात्रा में भूगर्भीय ऊर्जा संचित हो चुकी है, जो भविष्य में 8-0 या अधिक तीव्रता का विनाशकारी भूकम्प ला सकती है। छोटे झटकों और भूकम्पीय गतिविधियों की आवृत्ति भी इस क्षेत्र में बढ़ रही है, जो एक गम्भीर संकेत है। 

हाल के भूकम्पीय आँकड़े

हाल के भूकम्पीय आँकड़े बताते हैं कि जनवरी 2025 के पहले सप्ताह में भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में भूकम्पों की गतिविधि में बढ़ोतरी देखी गई है। राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र के अनुसार, सिक्किम में दर्जनों भूकम्पों की घटनाएं दर्ज की गई। इसके साथ ही मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी छोटे-बड़े भूकम्प महसूस किए गए। ये भूकम्प मुख्यतः पश्चिमी नेपाल के अल्मोड़ा फॉल्ट और अन्य भ्रंश रेखाओं के सक्रिय होने के कारण हुए हैं। 

भूकम्प की रोकथाम के लिए सरकार के प्रयास

भूकम्पीय जोनिंग मानचित्र और अद्यतन भवन संहिता यह सुनिश्चित करती है कि शहरी क्षेत्रों में, विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में, नए निर्माण भूकम्प रोधी मानकों का पालन करें। भारतीय मानक ब्यूरो, आवास और शहरी विकास निगम और आवास और शहरी कार्य मंत्रालय इस दिशा में काम करते हैं। बड़े भूकम्प की स्थिति में आपदा राहत और प्रतिक्रिया योजनाओं के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं -

• राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडी-आरएफ)-एनडीआरएफ एक विशेष एजेंसी है, जो भूकम्प के दौरान तलाशी और बचाव अभियान चलाने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित है और बड़े भूकम्प आने की घटनाओं के बाद तैनात की जाती है। 

• राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एसडीएमए) - प्रत्येक राज्य में एक एसडीएमए होता है, जो आपदा प्रबंधन योजनाओं को बनाने और लागू करने के लिए जिम्मेदार होता है, जिसमें विशिष्ट भूकम्प प्रावधान शामिल होते हैं और स्थानीय प्रतिक्रिया प्रयासों का समन्वय होता है। 

आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएं-सरकार ने व्यापक आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएं विकसित की हैं, जो आपदा के दौरान विभिन्न एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों तय करती है, तथा समन्वित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करती है। 

• सामुदायिक प्रशिक्षण और अभ्यास-नियमित प्रशिक्षण और अनुकरण अभ्यास समुदायों को भूकम्प परिदृश्यों के लिए तैयार करते हैं, स्थानीय क्षमता निर्माण और जागरूकता को बढ़ावा देते हैं। 

राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र (एनसीएस), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) भूकम्प के मापदण्डों का पता लगाने और उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करके राष्ट्रीय और राज्य स्तर के विभिन्न हितधारकों को जानकारी प्रसारित करने के लिए राष्ट्रीय भूकम्पीय नेटवर्क की निगरानी और रखरखाव करता है और एनसीएस-एमओईएस भूकम्प की पूर्व चेतावनी प्रणाली पर उन्नत शोध करता है। 

भूकम्प से होने वाले खतरे

भूकम्प के प्रभाव केवल इमारतों और बुनियादी ढाँचे तक सीमित नहीं है। इसके कई गम्भीर प्रभाव होते हैं-

• मानव जीवन पर प्रभाव-भूकम्प के दौरान सबसे ज्यादा जान-माल का नुकसान होता है। अधिकतर मौतें इमारतों के गिरने से होती हैं। 

• भूस्खलन और बाढ़-हिमालयी क्षेत्र में भूकम्प के बाद भूस्खलन और जलाशयों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है। 

• आर्थिक नुकसान-भूकम्प के कारण सड़कों, पुलों और बिजली परियोजनाओं जैसे बुनियादी ढाँचे को भारी क्षति होती है

• सामाजिक और मानसिक प्रभाव-भूकम्प से प्रभावित लोग लम्बे समय तक मानसिक आघात और सामाजिक अव्यवस्था का सामना करते हैं। 

भूकम्प से बचाव के उपाय

भूकम्प को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इससे होने वाली हानि को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं-

भूकम्परोधी निर्माण भारतीय मानक 1893 के तहत् भूकम्परोधी निर्माण को बढ़ावा दिया गया है। इसके तहत् इमारतों की संरचना इस प्रकार बनाई जाती है कि वे भूकम्प के झटकों को सहन कर सकें। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में निर्माण के दौरान इन मानकों का पालन सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। जापान जैसे देशों ने भूकम्परोधी निर्माण में उत्कृष्टता हासिल की है और भारत को भी इससे सीख लेनी चाहिए। 

जन जागरूकता और प्रशिक्षण-भूकम्प के समय सही प्रतिक्रिया जानने से जान माल का नुकसान कम किया जा सकता है। स्कूलों, कार्यालयों और सामुदायिक केन्द्रों में नियमित रूप से प्रशिक्षण और अभ्यास आयोजित किए जाने चाहिए। 

• भूकम्परोधी किट्स की तैयारी-प्रत्येक परिवार को एक भूकम्परोधी किट तैयार रखनी चाहिए, जिसमें पानी, भोजन, प्राथमिक चिकित्सा सामग्री, टॉर्च और अन्य आवश्यक सामान हो। 

चेतावनी प्रणाली और अनुसंधान-भूकम्प की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए, उपग्रहों और भूकम्पीय नेटवर्क के माध्यम से चेतावनी

प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है।

• पुरानी इमारतों की मरम्मत-पुराने और जर्जर भवन भूकम्प के समय सबसे अधिक जोखिम में होते हैं। उनकी मरम्मत और पुनर्निर्माण जरूरी है। 

तिब्बत के भूकंप से सबक

तिब्बत में हाल ही में आए 7.1 तीव्रता के भूकम्प ने पूरे क्षेत्र को दहशत में डाल दिया। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भूकम्प के प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। तिब्बत में 150 से अधिक आफ्टरशॉक्स ने यह साबित किया है कि भूकम्प केवल एक बार का खतरा नहीं है, बल्कि यह एक श्रृंखला के रूप में भी तबाही मचा सकता है। भारत जैसे देश (जहाँ की आबादी घनी है और निर्माण में भूकम्परोधी तकनीक का अभाव है) को इससे सीख लेनी चाहिए।

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