पर्यावरणविद सोनम वांगचुक लद्दाख भवन के सामने प्रदर्शन के दौरान
पर्यावरणविद सोनम वांगचुक लद्दाख भवन के सामने प्रदर्शन के दौरान

लद्दाख व हिमालय की सुरक्षा को लेकर पर्यावरणविद सोनम वांगचुक के साथ चले कदमों की आहट दिल्ली तक

हिमालय के हितों को बचाने एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर सोनम वांगचुक लेह से दिल्ली को पैदल यात्रा पर हैं। लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में बाकी हिमालय क्षेत्रों को पांचवीं अनुसूची में लाने के लिए बड़ी सादगी के साथ लंबी यात्रा जारी है। शालीन स्वभाव के धनी सोनम वांगचुक को लोगों का बहुत ज्यादा प्यार मिल रहा है। 
4 min read

हिमालय के हितों को बचाने एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर सोनम वांगचुक लेह से दिल्ली को पैदल यात्रा पर हैं। पर्यावरणविद सोनम वांगचुक ने लद्दाख और हिमालय के संरक्षण के लिए लेह से चंडीगढ़ तक 850 किलोमीटर की पदयात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य लद्दाख के लोगों के हितों की रक्षा लोकतंत्र की बहाली और छठी अनुसूची के सुरक्षा उपायों पर ध्यान आकर्षित करना है। लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में बाकी हिमालय क्षेत्रों को पांचवीं अनुसूची में लाने के लिए बड़ी सादगी के साथ लंबी यात्रा जारी हैं। शालीन स्वभाव के धनी सोनम वांगचुक को लोगों का बहुत ज्यादा प्यार मिल रहा है। जगह-जगह उनका विभिन्न संगठनों समाजसेवियों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। सोनम वांगचुक कहते हैं कि साल 2020 में केंद्र सरकार के द्वारा लद्दाख को कई तरह की सुविधा देने की बात कही गई थी, लेकिन आज वह सब मुद्दे ठंडे बस्ते में पड़ गए हैं। ऐसे में लेह से लेकर दिल्ली की जो पदयात्रा शुरू की गई है। वह इन्हीं सभी मुद्दों के लिए है। ताकि लद्दाख को उसका वास्तविक हक मिल सके। 

पर्यावरणविद सोनम वांगचुक का कहना है कि आज लद्दाख में अफसरशाही हावी है और हिमालय को बचाने की दिशा में भी कोई काम नहीं हो रहा है। विकास के नाम पर लेवल विनाश हो रहा है। ऐसे में उनकी मांग है कि लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा दिया जाए और जो जो मुद्दे अपेक्स बॉडी के द्वारा उठाए गए हैं। उन सभी मुद्दों पर भी सरकार के द्वारा जल्द गौर किया जाए। 

यह बात बिल्कुल सही है हिमालय पूरे उत्तर भारत को पानी उपलब्ध करवाता है और साफ हवा भी हिमालय से मिलती है। ऐसे में किसी भी कीमत पर हिमालय का शोषण नहीं होना चाहिए। हिमालय में अगर विकास करना है तो पहले इसके प्रबंधन के बारे में भी सोचना होगा। ताकि उचित तरीके से हिमालय में विकास हो और इससे हिमालय के पर्यावरण पर भी कोई बुरा असर ना पड़े। 

सोनम वांगचुक की पैदल यात्रा लेह से लेकर दिल्ली की पदयात्रा 2 अक्तूबर को समाप्त की जाएगी और इस पदयात्रा में जिस तरह से हिमालय क्षेत्र के लोगों का समर्थन मिल रहा है। उससे लगता है कि अब लोग हिमालय के संरक्षण के प्रति गंभीर हो रहे हैं। जिसके आने वाले दिनों में अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। 

ऐसे में दिल्ली में सरकार के समक्ष हिमालय पर्यावरण के मुद्दों को लेकर भी विशेष रूप से चर्चा की जाएगी। पदयात्रा में जुड़े जनसमूह ने 20 सितंबर को मंडी जिला में प्रवेश किया और आगे चलते हुए यह कारवां बढ़ता ही जा रहा हैं। छठी अनुसूची का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त जिलों और स्वायत्त प्रदेशों के रूप में प्रशासित किया जाएगा। छठी अनुसूची के प्रावधान के तहत, राज्य के राज्यपाल को स्वायत्त जिलों और स्वायत्त प्रदेशों की प्रशासनिक इकाइयों के रूप में क्षेत्र या क्षेत्रों को निर्धारित करने का अधिकार है। 

राज्यपाल के पास एक नया स्वायत्त जिला/क्षेत्र बनाने या किसी स्वायत्त जिले या स्वायत्त क्षेत्र के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र या नाम को बदलने की शक्ति है। पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र, वर्तमान में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना राज्य शामिल है। 5वीं और 6वीं अनुसूची के अंतर्गत मूल बहस यह है कि 5वीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर सभी अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय आबादी के हितों की रक्षा करती है। हालांकि, छठी अनुसूची में 5वीं अनुसूची में शामिल न किए गए अनुसूचित क्षेत्र शामिल हैं। इसका मतलब है कि छठी अनुसूची असम, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय के अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय आबादी के हितों की रक्षा करती है। 

5वीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले अनुसूचित क्षेत्रों में, राज्य के राज्यपाल के पास आदिवासी आबादी की सुरक्षा के लिए विशेष अधिकार और जिम्मेदारियां होती हैं। जिम्मेदारियों में राज्य सरकार के लिए विधानमंडल के कृत्यों के प्रभाव को प्रतिबंधित करने के आदेश जारी करना शामिल है। जबकि छठीं अनुसूची उन क्षेत्रों को कवर करती है जो स्वशासन पर निर्भर हैं। 

आदिवासी समुदायों को स्वयं अपनी स्थितियों पर महत्वपूर्ण नियंत्रण दिया गया है, जिसमें सामाजिक और बुनियादी ढांचे के विकास के संबंध में कानून बनाने और केंद्र सरकार से धन प्राप्त करने की स्वायत्तता भी शामिल है। 

हिमालय की कठिनाइयों के बारे में वही जानता है जो पहाड़ों में अपना जीवन बसर कर रहा हैं। बालीवुड अभिनेता व फिल्मकार आमिर खान की ब्लाकबस्टर फिल्म थ्री इडियेटस के रैंचो का किरदार लेह के इंजीनियर, पर्यावरणविद सोनम वांगचुक से प्रभावित है। असली रैंचो पूरी ताकत के साथ केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के हक हकूक की लड़ाई लड़ रहे हैं। 

लद्दाख को राज्य का दर्जा देने व संवैधानिक सुरक्षा की मांग को लेकर सोनम वांगचुक ने अपने जमीनी आंदोलन से देश-दुनिया का ध्यान खींचा हैं। अपनी मांगों को लेकर उन्होंने लेह एपेक्स बाडी के समर्थन से पहले 66 दिन की भूख हड़ताल की, वहीं अब लद्दाख से दिल्ली की पैदल यात्रा पर हैं। सोनम वांगचुक शीत मरुस्थल लद्दाख में शिक्षा प्रणाली को भी सुधारने का काम कर रहे हैं। वर्षों से बच्चों को पढ़ाकर उनका भविष्य संवार रहे हैं। उनके तराशे गए बच्चे आगे जाकर खूब नाम कमा रहे हैं। 

हिमालय को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे सोनम वांगचुक के साथ कारवां जुड़ता जा रहा है, लेकिन इस बात की भी अब देश में चर्चा होने लगी है कि मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान, असली रैंचो सोमन वांगचुक से प्रेरित किरदार को बड़े परदे पर निभा कर वाहवाही के साथ धन की बरसात भी हुई। यहीं नहीं कौन बनेगा करोड़पति में पहुंच कर जहां देश दुनियां के सामने लद्दाख की बात सामने रखने का मौका मिला, वहीं स्वालों के जवाब देकर पैसा भी कमाया। हिमालय के लोग भी अब प्राकृतिक आपदा से बहुत सबक ले चुके है। लेह से दिल्ली पदयात्रा का भरपूर समर्थन और उनका पुरा सहयोग कर रही है। जनसमूह उमड़ता देख अब यह लगता है कि सोनम वांगचुक के साथ चले कदमों की आहट अब दिल्ली पहुंच चुकी है।

लेखक संपर्क - मेघ सिंह कश्यप, भुंतर, कुल्लु, हिमाचल प्रदेश

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org