जल सुरक्षा सूचकांक में आगे बढ़ा भारत, भूजल ने बढ़ाई चिंता; आसान भाषा में समझें AWDO 2025
एक समय था जब गर्मी के मौसम में ही भारत में पानी की किल्लत इतनी बढ़ जाती थी कि तमाम इलाकों में टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता था, यही नहीं महाराष्ट्र व गुजरात के कुछ इलाकों में तो ट्रेनों से तक पानी पहुंचाने का कार्य किया गया है। बीते कुछ वर्षों में स्थिति थोड़ी सुधरी है। भारत सरकार की जल संबंधी योजनाएं अब जमीन पर असर दिखाने लगी हैं। यही कारण है कि एशियन वॉटर डेवलपमेंट आउटलुक 2025 की रिपोर्ट में भारत जल सुरक्षा सूचकांक में आगे बढ़ा है। जी हां, वॉटर सिक्योरिटी इंडेक्स में भारत की रैंक में सुधार देखा गया है, लेकिन भूजल की बढ़ती समस्या चिंता का विषय है।
हाल ही में एशियन डेवलपमेंट बैंक ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट एशियन वॉटर डेवलपमेंट आउटलुक 2025 जारी की। 307 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में भारत समेत कई एशियाई देशों में पानी की स्थिति को विभिन्न पैमानों पर दर्शाया गया है। रिपोर्ट में वॉटर सिक्योरिटी यानि जल सुरक्षा, जल निवेश, जल सुरक्षा के प्रभाव और सतत विकास लक्ष्य के तहत जल सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए जल शासन पर चर्चा की गई है।
क्या है एशियन वॉटर डेवलपमेंट आउटलुक 2025?
एशियन वॉटर डेवलपमेंट आउटलुक 2025 (Asian Water Development Outlook 2025) एशियाई विकास बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट है जो एशिया–प्रशांत के 50 देशों और क्षेत्रों को कवर करती है। यह रिपोर्ट जल की स्थिति को आँकड़ों, सूचकांकों और नीतिगत विश्लेषण के जरिए सामने रखती है। यह रिपोर्ट केवल यह नहीं बताती है कि किस देश के पास कितना पानी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि किस देश का जल प्रबंधन कितना टिकाऊ है, कहां जोखिम बढ़ रहा है और भविष्य में संकट कितना गहरा हो सकता है। AWDO की एडीबी की प्रमुख रिपोर्ट श्रृंखला है, जो 2007 से प्रकाशित हो रही है। AWDO 2025 इसका पाँचवाँ संस्करण है, जिसे दिसंबर 2025 में जारी किया गया।
क्या है नेशनल वॉटर सिक्योरिटी इंडेक्स?
दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में नेशनल वॉटर सिक्योरिटी इंडेक्स को अलग-अलग प्रकार से मापा जाता है। बात अगर भारत की करें तो चूंकि यह एशिया प्रांत का एक हिस्सा है, इसलिए हम आपको एशियन वॉटर डेवलपमेंट की रिपोर्ट के आधार पर इसकी परिभाषा बता रहे हैं।
दरअसल AWDO जल सुरक्षा को 5 प्रमुख आयामों (Key Dimensions) में मापती है। इसके आधार जल के दोहन को माना जाता है। जिन पॉंच आयामों में इसकी माप की जाती है वो इस प्रकार हैं:
ग्रामीण घरेलू जल सुरक्षा
आर्थिक जल सुरक्षा (कृषि, ऊर्जा, उद्योग)
शहरी जल सुरक्षा
पर्यावरणीय जल सुरक्षा (नदियाँ, आर्द्रभूमियाँ, भूजल)
जल-संबंधी आपदा सुरक्षा (बाढ़, सूखा, तूफान)
हर आयाम को 20 अंकों में आँका जाता है और कुल मिलाकर 100 अंकों का एक सूचकांक बनता है, जिसे नेशनल वाटर सिक्योरिटी इंडेक्स कहते हैं।
जल सुरक्षा सूचकांक में आगे बढ़ा भारत
AWDO 2025 की रिपोर्ट के अनुसार 2025 में भारत जल सुरक्षा सूचकांक में आगे बढ़ा है। हालांकि इसका श्रेय भारत सरकार की जल जीवन मिशन और अटल भूजल योजना समेत उन सभी योजनाओं को जाता है, जो लोगों को स्वच्छ जल मुहैया कराने के लिए चलायी जा रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार भारत को जल के मामले में भले ही “संकटग्रस्त देश” के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन यह वो देश है जिसने बीते एक दशक में जल सुरक्षा के तमाम मोर्चों पर उल्लेखनीय प्रगति की है। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल पहुंचाने के मामले में।
इसी रिपोर्ट में भारत के लिए सबसे कड़ी चेतावनियाँ भी दर्ज की गई हैं। वो चेतावनियॉं भूजल के अनियंत्रित दोहन, शहरी बाढ़, प्रदूषित नदियों और जलवायु जोखिम को लेकर हैं। जहाँ एक तरफ़ उपलब्धियों की चमक है, वहीं दूसरी तरफ़ ऐसे जोखिम, जो अगर आज न संभाले गए, तो आने वाले वर्षों में कहीं बड़े संकट का रूप ले सकते हैं।
भारत की बड़ी उपलब्धि: ग्रामीण जल सुरक्षा में ऐतिहासिक सुधार
AWDO 2025 के अनुसार, भारत की सबसे बड़ी सफलता ग्रामीण घरेलू जल सुरक्षा (Key Dimension 1) में रही है।
वर्ष 2020 में भारत इस आयाम में सबसे निचले स्तर ‘नैसेंट (Nascent)’ श्रेणी में था
वर्ष 2025 में भारत इस श्रेणी से बाहर निकल आया
यहां करोड़ों लोगों को अत्यधिक जल असुरक्षा से राहत मिली
ग्रामीण घरों तक नल से जल पहुंचाया गया
पाइप्ड वाटर सप्लाई का विस्तार हुआ
बुनियादी WASH ढांचे में भारी निवेश हुआ
रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि: एशिया–प्रशांत क्षेत्र में जल सुरक्षा सुधार में भारत की भूमिका निर्णायक रही है।
जल जीवन मिशन की भूमिका
दरअसल इस सुधार के पीछे सबसे बड़ा हाथ केंद्र सरकार की योजना जल जीवन मिशन का है। जल जीवन मिशन की शुरुआत 15 अगस्त 2019 को की गई। अगस्त 2019 तक भारत के ग्रामीण इलाकों में कुल 3.23 करोड़ घर थे जहां नल से पानी की सुविधा थी। 22 दिसंबर 2025 तक यह संख्या 15,76,81,268 हो गई है। यानि कि बीते छह वर्ष में भारत सरकार 12.54 करोड़ घरों तक नल से पानी पहुंचाने में सफल हुई है।
AWDO 2025 की रिपोर्ट इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति + लक्षित निवेश + बड़े पैमाने पर क्रियान्वयन का बेहतरीन उदाहरण मानती है।
भारत बनाम चीन: कहाँ भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया?
AWDO 2025 में भारत और चीन दोनों को सबसे अधिक सुधार करने वाले देशों में शामिल किया गया है।
चीन का कुल जल सुरक्षा स्कोर सुधार: +22.6 अंक
भारत का कुल जल सुरक्षा स्कोर सुधार: +15.0 अंक
लेकिन एक महत्वपूर्ण अंतर है:
ग्रामीण जल सुरक्षा में भारत का योगदान एशिया के कुल सुधार में सबसे बड़ा रहा, जबकि चीन की मजबूती अपेक्षाकृत अधिक आर्थिक और शहरी जल प्रबंधन में रही
सरल शब्दों में:
चीन ने सिस्टम और दक्षता पर ज़ोर दिया
भारत ने मानव पहुंच (human access) पर
यह भारत की सामाजिक-कल्याण आधारित जल नीति की पहचान को दर्शाता है।
“पानी का पाइप होना, सुरक्षा नहीं है”
AWDO 2025 की इस रिपोर्ट में एक बेहद अहम चेतावनी दी गई है कि पानी का कनेक्शन होना, जल सुरक्षा की गारंटी नहीं है।
भारत में:
कई ग्रामीण प्रणालियाँ जलवायु के प्रति लचीली नहीं हैं
सूखा या बाढ़ आने पर आपूर्ति बाधित हो जाती है
जल गुणवत्ता (आर्सेनिक, फ्लोराइड, जीवाणु) एक बड़ी समस्या बनी हुई है
रिपोर्ट बताती है कि:
पानी पहुंचाने के लिए नहर, आदि के जरिए इंफ्रास्ट्रक्चर तो बहुत अच्छा बना दिया गया है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संकेतक (जैसे डायरिया से मौत) अपेक्षित स्तर तक नहीं सुधरे हैं
इसका अर्थ है कि भारत को अब फोकस पानी की मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता की ओर ले जाना चाहिए।
भूजल: भारत की सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ा खतरा
AWDO 2025 रिपोर्ट में भारत के लिए भूजल संकट को सबसे गंभीर जोखिम माना गया है। निरंतर बढ़ती बोरवेल की संख्या बेहद चिंताजनक है। यही कारण है कि-
भारत दुनिया के सबसे बड़े भूजल उपभोक्ताओं में शामिल है
कृषि, उद्योग और शहर, तीनों की निर्भरता भूजल पर बढ़ती जा रही है
कृषि क्षेत्र में भूजल दोहन लगभग अनियंत्रित है
भूजल को अब भी निजी संपत्ति की तरह देखा जाता है
भारत में भूजल कानूनों का प्रवर्तन कमजोर है
रिपोर्ट में दी गई चेतावनी:
जब तक भूजल को साझा संसाधन मानकर निजी बोरवेल को प्रबंधित नहीं किया जाएगा, तब तक ग्रामीण और शहरी जल योजनाएँ टिकाऊ नहीं हो पाएंगी।
शहरी भारत: AMRUT के बावजूद बढ़ता जोखिम
Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation (AMRUT) यानि (अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) के तहत 500 शहरों के लगभग 4,900 कस्बों तक जलापूर्ति का कार्य जारी है। इसके तहत जल के न्यायसंगत वितरण, अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग, जल निकायों के मानचित्रण और पेयजल सर्वेक्षण किया जाता है।
26 दिसंबर 2025 तक अमृत मिशन के तहत कुल 151 परियोजनाएँ स्वीकृत की गईं जिनके लिए ₹592.02 करोड़ आवंटित किए गए। इनमें से 145 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं, जिनकी कुल लागत ₹564.53 करोड़ रही। इस योजना के तहत लाखों शहरी घरों तक नल से सुरक्षित पेयजल की पहुँच सुनिश्चित की गई। शहरों में सीवरेज और सेप्टेज प्रबंधन अवसंरचना का विस्तार हुआ। स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज परियोजनाओं से शहरी जलभराव में कमी आई। पार्क, हरित क्षेत्र और खुले स्थान विकसित कर जीवन गुणवत्ता सुधारी।
AWDO 2025 के अनुसार:
बीते वर्षों में शहरी जल आपूर्ति और सीवरेज कवरेज बढ़ा है लेकिन शहरी जल जोखिम उससे कहीं तेज़ी से बढ़ा है
बारिश के दौरान बार-बार शहरों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है
ड्रेनेज और वर्षा जल प्रबंधन उपेक्षित हैं
अनौपचारिक बस्तियाँ सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं
अमृत योजना को लेकर AWDO की रिपोर्ट में कोई विशेष सुझाव नहीं दिया गया है।
अटल मिशन फॉर रीजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT) भारत सरकार की शहरी योजना है, जिसे 2015 में शुरू किया गया। इसका उद्देश्य शहरों में सुरक्षित पेयजल, सीवरेज, जलनिकासी, हरित क्षेत्र और सार्वजनिक परिवहन सुधारना है। AMRUT 2.0 शहरी जल-सुरक्षा, जल संरक्षण और पुनर्चक्रण पर विशेष जोर देता है। योजना के बारे में विस्तार से पढ़ें।
नदियाँ और पर्यावरण: भारत की सबसे कमजोर कड़ी
AWDO 2025 में कहा गया है कि पर्यावरणीय जल सुरक्षा भारत की सबसे कमजोर कड़ी है। इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
नदियों का प्रवाह बाधित हो रहा है
आर्द्रभूमियाँ खत्म होती जा रही हैं
पर्यावरणीय प्रवाह (Environmental Flows) लागू नहीं हो पा रहे हैं
रिपोर्ट में दी गई चेतावनी:
यदि समय पर ऐक्शन नहीं हुआ, यदि नदियाँ स्वस्थ नहीं रहीं, तो भारत में पेयजल और खाद्य सुरक्षा दोनों खतरे में होंगी।
बाढ़ और सूखा: जोखिम बढ़ा, तैयारी पीछे
AWDO 2025 के अनुसार वर्ष 2013 से 2023 के बीच एशिया में 244 बड़ी बाढ़ आयीं। 104 सूखे की घटनाएं हुईं और 101 बड़े तूफान आये। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। इन प्राकृतिक आपदाओं और पेयजल की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एशिया–प्रशांत को वर्ष 2025–2040 के बीच 250 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष जल और स्वच्छता में निवेश चाहिए। सभी देशों का कुल मिलाकर मौजूदा बजट केवल 40% ज़रूरत ही पूरा कर सकता है।
भारत पर AWDO का कमेंट:
भारत में राहत पर ज़ोर है लेकिन रोकथाम और लचीलेपन (Resilience) पर निवेश कम है।
सिर्फ ज्यादा पैसा नहीं, बल्कि बेहतर खर्च ज़रूरी है।
इंफ्रास्ट्रक्चर में भारत का जवाब नहीं, लेकिन असली परीक्षा अब शुरू
AWDO 2025 में भारत के लिए लिखा गया कि भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह बड़े पैमाने पर जल अवसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) खड़ी कर सकता है। अब असली चुनौती है - पानी की गुणवत्ता, जल शासन और व्यवस्था का दीर्घकालिक टिकाऊपन। आगे लिखा गया है कि भारत में भूजल को नियंत्रित नहीं किया गया, नदियों और पर्यावरण को बचाने के प्रयास जरूरत से कम हुए हैं और शहरों को जलवायु-संवेदनशील नहीं बनाया गया है, जिसके कारण आज की उपलब्धियाँ कल के संकट में बदल सकती हैं।
AWDO 2025 पर क्या कहते हैं पर्यावरणविद
AWDO 2025 की रिपोर्ट में भारत को दिए गए सुझावों पर पर्यावरणविद एवं भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ की पूर्व वैज्ञानिक डॉ. सीमा जावेद ने इंडिया वॉटर पोर्टल से बातचीत में कहा, “पेयजल उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार के कार्य सराहनीय गति से आगे बढ़ रहे हैं। सरकार को जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में पैटर्न में आये बदलावों और उनसे होने वाले नुकसान पर भी ध्यान देना चाहिए। भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और भारतीय महासागर तीनों के तापमान में वृद्धि हो रही है। ऐसे में इन सागरों में कहीं भी अगर चक्रवात उत्पन्न होता है, तो उसकी तीव्रता पहले से अधिक देखी जा रही है। और पृथ्वी के तापमान के पैटर्न को देखते हुए तीव्रता और बढ़ेगी। इसलिए हमारी तैयारी भी उतनी ही तीव्र होनी चाहिए।”
डॉ. सीमा जावेद ने आगे कहा कि तटीय क्षेत्रों में बेतरतीब और अवैधानिक ढंग से जो कंस्ट्रक्शन चल रहे हैं, उन्हें रोकने की जरूरत है। उन्होंने मुंबई का उदाहरण देते हुए बताया कि तमाम तटीय शहरों में संवेदनशील इलाकों में झुग्गियां बनाकर लोग रह रहे हैं। पहले झुग्गियां बनायी जाती हैं और फिर देखते ही देखते दो-मंजिला घर बन जाता है। फिर बिजली-पानी का कनेक्शन मिल जाता है। कुछ ही वर्षों में संवेदनशील इलाकों में पूरी की पूरी बस्ती बन जाती है। जब चक्रवात आदि आता है, तब सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं लोगों को होता है। इसलिए ऐसे कंस्ट्रक्शन को शुरू में ही रोक देना चाहिए।

