फ़ोटो: बृजेंद्र दुबे
पानी के टैंकर के इंतज़ार में बैठे भैंसोड़ बलाय पहाड़ गांव के लोग। यहां अभी तक जल जीवन मिशन का पानी नहीं पहुंचा है।

मिर्ज़ापुर के गांवों में पहुंची जल जीवन मिशन पाइपलाइन, पर क्यों नहीं थम रहे डायरिया के मामले?

मिर्ज़ापुर ज़िले के हज़ारों गांवों में जल जीवन मिशन के तहत पानी पहुंच चुका है, पर अनियमित आपूर्ति और रखरखाव, प्रदूषित जल स्रोतों पर निर्भरता और जागरूकता की कमी के चलते अब भी कई गांवों में डायरिया फैलने के मामले सामने आ रहे हैं।
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विंध्याचल की पहाड़ियों में उत्तर प्रदेश के पूर्वी कोने पर बसा मिर्ज़ापुर ज़िला, देश की सांस्कृतिक राजधानी बनारस से करीब 67 किलोमीटर की दूरी पर है। साल 2011 में हुई आखिरी जनगणना के मुताबिक, चार तहसीलों में बटे इस ज़िले की जनसंख्या 2,496,970 है। साल 2006 में पंचायती राज मंत्रालय ने इसे देश के 250 सबसे पिछड़े ज़िलों में जगह दी थी। अब भी यह उत्तर प्रदेश के उन 34 ज़िलों में शामिल है जिसे पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि कार्यक्रम के तहत आर्थिक मदद दी जा रही है। केंद्रीय भूमिजल बोर्ड के 2019 के डेटा के मुताबिक ज़िले में मानसून से पहले औसतन 10.95 मीटर और मानसून के बाद 8.08 मीटर पर भूजल मिल जाता है। जबकि, ज़िले के निकालने योग्य भूजल को भूजल स्तर के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है, जिसमें से 71.41% सुरक्षित, 16.16% मध्यम-संकटग्रस्त, 10.27% संकटग्रस्त, 2.16% अति-दोहित है।

ज़िले के भूजल में मौजूद प्रदूषकों की बात करें, तो एनवायर्नमेंटल अर्थ साइंस जर्नल में 2015 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक ज़िले के 37.7% ट्यूबवैलों के पानी में आर्सेनक का स्तर, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वीकृत 10 mg/l की सीमा से अधिक पाया गया। कुल 15.5% ट्यूबवैलों में यह सीमा 50 mg/l से अधिक थी। 

ग्रामीण भारत के सभी घरों में व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 15 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने महात्वाकांक्षी परियोजना जल जीवन मिशन (जेजेएम) की शुरुआत की। मिशन वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, “यह कार्यक्रम जल स्रोतों की स्थिरता के उपायों को भी लागू करेगा, जैसे कि ग्रे वाटर प्रबंधन, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन के माध्यम से पुनर्भरण और पुन: उपयोग। जल जीवन मिशन जल के प्रति सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित होगा और इसमें मिशन के प्रमुख घटकों के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार शामिल होगा। जल जीवन मिशन जल के लिए एक जन आंदोलन बनाने का लक्ष्य रखता है, जिससे यह सभी की प्राथमिकता बन सके।”

जुलाई 28, 2025 तक मिर्ज़ापुर के 3,55,207 में से 3,49,332 यानी 98.35 घरों में नल लगाए जा चुके हैं। इसके बावजूद पिछले कई सालों से मिर्ज़ापुर के गांवों से डायरिया जैसी जल जनित बीमारी के मामले लगातार सामने आ रहे है। इंडिया वाटर पोर्टल ने जब इनका कारण जानने की कोशिश की, तो मालूम हुआ कि सिर्फ पाइपलाइन बिछा देना स्वच्छ पेयजल की ज़रूरत को पूरा नहीं करता। आपूर्ति तंत्र का रखरखाव, लोगों में स्वच्छता को लेकर जागरूकता, पानी पहुंचाने लिए बिजली की आपूर्ति और जवाबदेही के बिना हर घर पानी पहुंचाने का यह सपना अधूरा ही है।

जेजेएम आपूर्ति का पानी दिखाते हुए मृतक हौसिला प्रसाद के बेटे अजीत। डैशबोर्ड के मुताबिक आखिरी जांच में पानी को पीने के लिए असुरक्षित पाया गया है।
जेजेएम आपूर्ति का पानी दिखाते हुए मृतक हौसिला प्रसाद के बेटे अजीत। डैशबोर्ड के मुताबिक आखिरी जांच में पानी को पीने के लिए असुरक्षित पाया गया है।फ़ोटो: बृजेंद्र दुबे

टंकी की सफाई नहीं होती, जांच में पानी निकला असुरक्षित


मिर्ज़ापुर ज़िले के कोन ब्लॉक के लखनपुर (चिल्ह) में बीते 26 जून को लोगों को अचानक उल्टी और दस्त की शिकायत होने लगी। अगली सुबह तक गांव के लगभग चालीस घर डायरिया की चपेट में आ गए और 55 वर्ष के हौसिला प्रसाद यादव की मृत्यु हो गई। ग्रामीणों के मुताबिक सभी लोग जल निगम की टंकी से आने वाला वाला दूषित पानी पीकर बीमार पड़े थे।

मृतक हौसिला प्रसाद के पुत्र अजीत कुमार यादव ने बताया, “टंकी से कभी-कभी पानी आता है। अभी पानी आ रहा था, तो हमने वही पानी पिया। दूषित पानी पीने से मेरे परिवार के चार लोग बीमार हो गए थे और मेरे पिता जी की मृत्यु हो गई। उनकी मौत के अगले दिन गांव का दौरा करने आई टीम ने पीने के पानी की जाँच के लिए टंकी के बजाय हैंडपंप से सैंपल लिया।”

इस बारे में मिर्ज़ापुर जनपद के अपर जिलाधिकारी, भू-राजस्व, देवेंद्र प्रताप बताते हैं," स्वास्थ्य विभाग, जल निगम और जिला प्रशासन की संयुक्त टीम ने लखनपुर गांव का निरीक्षण किया है। लखनपुर गांव में पानी की टंकी से लखनपुर और सोनबरसा गांव में पानी की सप्लाई होती है। लखनपुर गांव में 40 परिवार डायरिया की चपेट में थे। पानी का सप्लाई 26 जून की सुबह ही बंद कर दी गई थी। टंकी और बीमार परिवारों के घरों से पानी के नमूने जांच के लिए भेज दिए गए हैं। जल निगम को पाइप के लीकेज चेक करने के लिए निर्देशित किया गया है। आपूर्ति करने वाली कंपनी के दोषी पाए जाने पर उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”

जेजेएम डैशबोर्ड के मुताबिक 31 जनवरी 2024 से गांव के सभी घरों को पानी मिल रहा है। अब तक कुल 11 बार पानी की जांच हुई है, जिसमें से 3 बार सैंपल को असुरक्षित पाया गया है। आखिरी जांच 30 जून को हुई, जिसमें पानी को पीने के लिए असुरक्षित पाया गया।

अजीत को पानी समिति के बारे में जानकारी नहीं है। वे बताते हैं, “समूह की महिलाएं लगभग 6 महीने पहले बैनर पोस्टर लेकर जांच करने आई थी, उसके बाद से कोई नहीं आया। मेरे पिता के मौत के बाद गांव में बनी टंकी का साफ सफाई किया गया। उसके पहले कभी साफ-सफाई नहीं होती थी।”

गांव के प्रधान जटा शंकर यादव, जो जेजेएम डेशबोर्ड के मुताबिक गांव की दो सदस्यीय विलेज वाटर एंड सेनिटेशन समीति (पानी समीति) के अध्यक्ष हैं, बताते है, “गांव में बनी जल निगम की टंकी की सफाई नहीं होती। हम प्रधानों के हाथ में टंकी नहीं है। इसकी देखभाल का ज़िम्मा प्राइवेट कंपनी पर है। हौसिला प्रसाद की मौत के बाद गांव में पानी की सप्लाई बंद कर दी गई है। पानी कब चालू होगा हमें जानकारी नहीं है। पानी के रख रखाव के लिए ग्राम पंचायत अधिकारी ने समिति बनाई है, गांव के 7-8 महिला पुरुष समिति में हैं, लेकिन कुछ होता नहीं। पानी की जांच के लिए महिलाएं टेस्टिंग करती हैं, लेकिन हमसे हस्ताक्षर नहीं करवाया जाता।”

मिर्ज़ापुर जनपद में स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, साल 2022 में कुल 19 गांवों में डायरिया फैला था। जिसमें कुल 330 लोग बीमार पड़े थे। साल 2023 में कुल 7 जगहों पर डायरिया फैला था, जिसमें 123 लोग बीमार पड़े थे। साल 2024 में कुल 10 जगहों पर डायरिया फैल था और कुल 192 लोग बीमार पड़े थे। साल 2025 में अब तक कुल 3 जगह डायरिया फैल चुका है और 67 लोग बीमार हुए है। पिछले 4 वर्षों में सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल 1 मौत हुई है। जबकि ज़मीन पर स्थिति अलग दिखती है। कई गांवों में डायरिया से मौतेंं हुई हैं, जिनका ज़िक्र सरकारी आंकड़ों में नहीं है।

भारत में स्वास्थ्य, जल और स्वच्छता पर आधारित संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल यहां 377 लाख लोग जल-जनित बीमारियों का सामना करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनिया भर में हर साल डायरिया से 10 लाख जानें जाती हैं। साल 2017 में WHO ने अनुमान लगाया था कि पर्यावरण में बदलाव जल-जनित डायरिया के मामलों में 94% तक कमी ला सकते हैं। इन बदलावों में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता और स्वच्छता का बेहतर स्तर शामिल है। हालांकि, साइंस जर्नल स्प्रिंगर ओपन पर मौजूद एक रिसर्च के मुताबिक स्वच्छ पानी की उपलब्धता, स्वच्छता, हाथ धोने और घरेलू पानी का उपचार और सुरक्षित भंडारण करने से डायरिया के मामलों में क्रमश: 25%, 32%, 45% और 39% की कमी लाई जा सकती है।

पिछले पांच सालों में डायरिया के मामले और जेजेएम की स्थिति:

शीतलगढ़ पटेहरा खुर्द की फूलपत्ती देवी, जिनकी सास की मृत्यु गांव की टंकी का गंदा पानी से हुई। इस गांव में जल जीवन मिशन का पानी आता है, पर इसे गंदा पानी मान कर उसका इस्तेमाल नहीं किया जाता।
शीतलगढ़ पटेहरा खुर्द की फूलपत्ती देवी, जिनकी सास की मृत्यु गांव की टंकी का गंदा पानी से हुई। इस गांव में जल जीवन मिशन का पानी आता है, पर इसे गंदा पानी मान कर उसका इस्तेमाल नहीं किया जाता।फ़ोटो: बृजेंद्र दुबे

साल 2024, शीतलगढ़ पटेहरा खुर्द: जेजेएम के पानी पर लोगों को भरोसा नहीं

20 अगस्त 2024 को गांव में दो बुज़ुर्ग महिलाओं की मौत हुई। पूनम (30) बताती हैं, “मौसम की पहली बारिश के बाद ही डायरिया फैल गया। मेरी दादी समेत गांव में लगभग छप्पन लोग बीमार थे। डायरिया की वजह से मेरी दादी प्रभावती (80) और एक और बुज़ुर्ग महिला झन्नू देवी (70) की मौत हो गई।” 

उन्होंने बताया कि उनकी आदिवासी बस्ती में लोगों ने टंकी का पानी पिया था, जिसमें बोरवैल का पानी आता है। यह टंकी जल जीवन मिशन के अंतर्गत नहीं आती। दूसरी मृतक झन्नू देवी की बहू फूलपत्ती देवी (45) बताती हैं, “मेरी सास को भी डायरिया हो गया था। इलाज के लिए हम उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, मड़िहान ले गए, जहां प्राथमिक इलाज के बाद उन्हें मंडलीय चिकित्सालय रेफर कर दिया गया। वहां इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई।” वे बताती हैं कि गांव में जेजेएम का पानी पीने के लिए इस्तेमाल नहीं होता क्योंकि उसमें बांध का पानी आता है।

हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि भले ही जल जीवन मिशन के तहत बांध के पानी की ही आपूर्ति की जाती है लेकिन जाँच की सभी आवश्यक प्रक्रियाएँ पूरी होने के बाद ही उस पानी को आम जनजीवन के लिए छोड़ा जाता है। लेकिन जागरूकता और जानकारी की कमी होने के कारण लोग इस पानी का उपयोग पीने के लिए नहीं करते हैं।

जेजेएम डैशबोर्ड के मुताबिक गांव को कनेक्शन मार्च 2024 में दिए गए और तब से तीन बार पानी की जांच हुई है, जिसके नतीजे सुरक्षित रहे हैं।

पानी समिति बनाई गई है जिसमें 13 लोग शामिल हैं। समूह की महिलाएं पानी की जांच करती हैं या नहीं उसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। गांव में पानी रोज़ नहीं आता, जब आता है, तो 70% आबादी के पास ही पहुंच पाता है। अपनी ग्राम सभा में हमने पिछले 5 वर्षों में 6 हैंडपंप लगाए हैं। पीने के पानी की हमारे गांव में काफी समस्या है।

रामधनी कोल, ग्राम प्रधान, शीतलगढ़ पटेहरा खुर्द

शीतलगढ़ पटेहरा खुर्द में जल जीवन मिशन का पानी आने के बावजूद बोरवैल और हैंडपंप का पानी इस्तेमाल किया जाता है।
शीतलगढ़ पटेहरा खुर्द में जल जीवन मिशन का पानी आने के बावजूद बोरवैल और हैंडपंप का पानी इस्तेमाल किया जाता है।फ़ोटो: बृजेंद्र दुबे

साल 2023, कन्हईपुर गांव: महिलाएं नहीं करतीं पानी की जांच

दो साल पहले साल अगस्त 2023 में पटेहरा ब्लॉक के ही कन्हईपुर गांव में डायरिया से दर्जनों लोग बीमार हुए। गांव के नकटी मजरे में विजय शंकर (27) की मौत डायरिया के कारण हो गई। विजय की मां फुलदेई (45) बताती हैं, “17 अगस्त को पानी पीते ही उसके पेट में तेज दर्द होने लगा और फिर उल्टी और दस्त शुरू हो गया। पहले हमने झाड़-फूंक करवाया लेकिन आराम नहीं मिला तो इलाज के लिए अस्पताल पहुँचे। वहां इलाज के दौरान ही मेरे बेटे की मौत हो गई। गांव के दर्जनों लोग बीमार हो गए थे, सबने हैंडपंप का पानी पिया था।” उन्होंने बताया कि उनके बेटे की मौत के बाद डॉक्टर और ब्लॉक के कर्मचारी इलाज और साफ सफाई के लिए गांव आए।

मुख्य गांव में जल जीवन मिशन परियोजना की पाइप लाइन और नल हैं, पर 20 घरों की आबादी वाले इस मजरे में पाइपलाइन नहीं बिछाई गई है।

पटेहरा ब्लॉक के कन्हईपुर गांव की ग्राम प्रधान शांति देवी बताती हैं," गांव में पानी समिति में कुल 9 लोग हैं। स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पानी की जांच नहीं करतीं।” जेजेएम डैशबोर्ड के मुताबिक गांव के सभी घरों में नल लगाने का काम दिसंबर 2023 में पूरा हो गया था और अब तक तीन बार पानी के सैंपल की जांच हो चुकी है और तीनों बार पानी को सुरक्षित पाया गया। शांति देवी के मुताबिक बीती 20 जून को पहली बार पानी की टंकी की सफाई की गई थी। 


साल 2022, नौगवां: जब पानी ही नहीं आता, तो जांच कैसे होगी

ज़िले के हलिया ब्लॉक के नौगंवा गांव में 15 जुलाई 2022 को दस वर्षीय विनय और नौ वर्ष के राहुल की मृत्यु डायरिया के कारण हो गई। दोनों ने कुएँ का पानी पिया था। इस इलाक़े में जल जीवन मिशन के तहत पानी की पाइप बिछाई गई है, लेकिन लोगों का कहना था कि घटना के महीने भर से ज़्यादा समय से पानी बंद था।

मृतक विनय के पिता नन्हकऊ (40) बताते हैं, “जल जीवन मिशन का नल गांव के हर घर में लगा हुआ है लेकिन उसमें पानी नहीं आता है। गांव में एक ही हैंडपंप है। पीने के पानी के लिए हमारा पूरा गांव उसी एक हैंडपंप पर निर्भर है, जिसकी वजह से कई लोगों को साफ पानी मिल ही नहीं पाता है। इसलिए हम गांव के बाहर वाले कुएँ से पीने के लिए पानी लाते हैं। स्कूल से आने के बाद मेरे बच्चों ने उसी कुएँ का पानी पी लिया। कुएँ के पानी में कीड़े थे, जिससे वे बीमार पड़े और आख़िरकार मेरे बच्चे विनय की मौत हो गई।”

पानी की जांच के बारे में पूछने पर नन्हकऊ बताया कि इस बारे में उन्हें कुछ भी मालूम नहीं है। 

गांव में जल जीवन मिशन का पानी कभी आता है, तो कभी महीने भर बंद रहता है। बस्ती में सभी जगह नल का कनेक्शन कर दिया गया है। लेकिन पानी नहीं आता तो ग्रामीण कुएं से पानी पीते हैं। दो-तीन बार तहसील में प्रार्थना पत्र देकर शिकायत भी किया हूं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। पानी समीति के बारे में हमें पता नहीं है।

शिव सागर पाल, प्रधान पति, ग्राम नौगवां

महिलाओं द्वारा पानी की जांच के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, “जब हमारे गांव में पानी ही नहीं चालू है तो जांच कहां से होगी। महिलाओं को जांच किट और ट्रेनिंग मिला है लेकिन जांच कोई नहीं करता।” उन्हें पानी समिति के गठन के बारे में जानकारी नहीं है, जबकि जेजेएम डैशबोर्ड के मुताबिक समीति बनी हुई है। डैशबोर्ड के मुताबिक अब तक 13 बार सैंपल की जांच हो चुकी है और हर बार पानी को सुरक्षित पाया गया है। डैशबोर्ड पर मौजूद सर्टिफिकेट में तारीख नहीं दी गई है कि गांव में आपूर्ति कब से चालू हुई।

ददरा गांव की शिवानी देवी, जिनकी तीन वर्षीय बेटी और 70 वर्षीय सास की मृत्यु हैंडपंप का पानी पीने से हो गई। नीचे की ओर दाएं कोने में हैंडपंप का गंदा पानी। जेजेएम का पानी न आने पर अब भी लोग हैंडपंप का यही पानी इस्तेमाल करते हैं।
ददरा गांव की शिवानी देवी, जिनकी तीन वर्षीय बेटी और 70 वर्षीय सास की मृत्यु हैंडपंप का पानी पीने से हो गई। नीचे की ओर दाएं कोने में हैंडपंप का गंदा पानी। जेजेएम का पानी न आने पर अब भी लोग हैंडपंप का यही पानी इस्तेमाल करते हैं।फ़ोटो: बृजेंद्र दुबे

साल 2021, ददरा गांव: कभी-कभी आता है पानी, जांच के मुताबिक असुरक्षित


राजगढ़ ब्लॉक के ददरा गांव में 22 जून, 2021 को एक ही परिवार में दादी-पोती की मौत डायरिया के कारण हो गई। अपनी तीन वर्षीय बेटी आसमा को याद करते हुए उसकी माँ शिवानी (30) भावुक हो जाती हैं। बड़ी मुश्किल से वे अपनी बेटी का नाम ले पाती हैं। उनकी बेटी आसमा और सास भागेसरा देवी (70), दोनों की मौत हैंडपंप के पानी की वजह से हुई। "मेरी बेटी आसमा की मौत हैंडपंप का दूषित पानी पीने से हुई है। इतने छोटे बच्चे को कैसे पाला था, तकलीफ नहीं होगी?  गंदा पानी पीने से डायरिया पूरे गांव में फैल गया था। हर घर से लोग बीमार पड़े थे।”

चार साल पहले तक ददरा गांव में पीने के पानी के लिए हैंडपंप ही एकमात्र सहारा था, क्योंकि जल जीवन मिशन की टोंटियां पहुंची नहीं थीं। पूरे गांव में हैंडपंप भी एक ही था, जिससे पानी की कमी बनी रहती थी। हालांकि, अब गांव में जल जीवन मिशन की पाइप लाइन पहुंच चुकी है और पानी की आपूर्ति भी हो रही है। लेकिन महीन में ऐसे भी दिन होते हैं जब टोंटी सूखी रहती है। ऐसे में, लोगों को अब भी पानी के लिए उसी हैंडपंप और गांव के अंतिम छोर पर लगे बोरवेल का सहारा लेना पड़ता है।

गांव के प्रधान रमेश कुमार यादव बताते हैं, "गांव में पानी की जांच के लिए कोई नहीं आता है। महिलाओं को ट्रेनिंग दिया गया है लेकिन जांच कभी नहीं होती। गांव में पानी दो-तीन दिन आता है फिर बंद हो जाता है। जल निगम से पानी की सप्लाई बाधित होने का कारण पूछने पर बताया जा सकता है कि एक साथ सभी गांवों में पानी की सप्लाई नहीं हो पाती है।”

जेजेएम डैशबोर्ड के मुताबिक गांव में पानी समीति है, जिसके सदस्य ग्राम प्रधान रमेश कुमार यादव भी हैं। इस गांव के प्रमाण पत्र के मुताबिक सभी घरों में नल लग चुके हैं, पर तारीख का कोई ज़िक्र नहीं है। यहां पानी की कुल नौ बार जांच हुई है, जिसमें से दो बार पानी को असुरक्षित पाया गया है। आखिरी जांच 24 जून को हुई और पानी की स्थिति अभी असुरक्षित ही है।

इस गांव की कुसुम शिव आजीविका स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं और उन्हें पानी की जांच की ट्रेनिंग दी गई है।

साल 2023 में पानी की जांच दो बार किए थे। लेकिन जांच के बाद रिपोर्ट पोर्टल पर नहीं अपडेट हुआ। मानदेय भी नहीं मिलता इसके बाद से हम लोगों ने जांच करना बंद कर दिया। समूह में कुल पांच महिलाएं हैं जो जांच करती हैं। ददरा गांव के आदिवासी बस्ती का पानी खराब है हम लोगों ने जांच किया था पानी लाल आता है।

कुसुम, पानी की जांच के लिए प्रशिक्षित महिला

क्या कहते हैं क्षेत्रीय चिकित्सक

इलाक़े के चिकित्सा प्रभारी डॉ अभिषेक जायसवाल ने आईडब्ल्यूपी को बताया, “2024 में जब शीतलगढ़ पटेहरा गांव में डायरिया फैला तब मैं ही वहां का प्रभारी था। लोग अचानक ही बीमार पड़ने लगे। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए चिकित्सा अधिकारियों ने गांव में ही कैंप लगा लिया। जाँच से पता चला कि डायरिया फैलने का मुख्य कारण टंकी का पानी था। दरअसल गर्मियों मे जल स्तर कम था, तो बोरवैल से पानी नहीं आ रहा था। जब बारिश हुई, तो पानी आने लगा। इस बीच पानी की टंकी में गंदगी जमा हो गई थी और जब बोरवैल से दोबारा पानी आया तो उसी गंदी टंकी में जमा होने लगा। बिना सफ़ाई के दूषित पानी नलों से लोगों के घरों तक पहुंचने लगा, नतीजतन लोग बीमार पड़ने लगे।”

डॉ जायसवाल ने आगे कहा, “बीमारी का कारण पता लगाने में हमें एक सप्ताह का समय लग गया। पता लगते ही हमने उस टंकी सफ़ाई करवाई, उसमें दवा और ब्लीचिंग पाउडर डाला गया तब जाकर पानी साफ़ हुआ। लेकिन पूछताछ के बाद यह भी पता चला कि पटेहरा जैसे इलाक़ों में डायरिया फैलने के तीन कारण हैं। पहला, लोग छोटी मछलियों का सेवन करते हैं। वे उन्हें एक दिन लाते हैं और कई दिन तक रखते हैं। सही भंडारण न होने से कई बार मछलियां खराब हो जाती हैं। दूसरे, कुछ लोग पका हुआ खाना ख़राब या बासी हो जाने पर भी खा लेते हैं और तीसरा सबसे प्रमुख कारण दूषित पानी का सेवन है।

टैंकर से पानी भरते भैंसोड़ बलाय पहाड़ गांव के लोग। यह टैंकर गांव की प्रधान चंद्रकली के पति उपलब्ध कराते हैं। वे कहते हैं कि टैंकर लाने में जितना खर्च होता है, सरकार उन्हें उससे बहुत कम पैसा देती है।
टैंकर से पानी भरते भैंसोड़ बलाय पहाड़ गांव के लोग। यह टैंकर गांव की प्रधान चंद्रकली के पति उपलब्ध कराते हैं। वे कहते हैं कि टैंकर लाने में जितना खर्च होता है, सरकार उन्हें उससे बहुत कम पैसा देती है।फ़ोटो: बृजेंद्र दुबे

जल आपूर्ति के लिए नहीं है बिजली

पटेहरा ब्लॉक में जल आपूर्ति की देखभाल करने वाले सुपरवाइजर कौशल तिवारी बताते हैं कि बिजली की समस्या से पानी नहीं पहुंच पा रहा है। “अक्सर बिजली नहीं आती और गांव में तीन दिन से लेकर पांच दिन तक पानी की सप्लाई बाधित हो जाती है,” वे कहते हैं। उनके मुताबिक टंकी के साफ सफाई और पानी की जांच हमेशा की जाती है। 

पटेहरा ब्लॉक के खंतरा गांव में बनी पानी की टंकी का पानी डायरिया प्रभावित गांवों में भी जाता है। यहां के पंप ऑपरेटर बाबू नंदन बताते हैं,"जब बिजली रहती है तब हम मशीन से पानी की सप्लाई चालू करते हैं बिजली नहीं रहने पर मशीन नहीं चल पाता है। इस हफ्ते में चार दिन बिजली नहीं थी, चार दिन के बाद आज से पानी की सप्लाई चालू हुई है। एक टंकी से लगभग 12 गांव में पानी की सप्लाई होती है। एक साथ सभी गांव में पानी की सप्लाई नहीं दे पाते हैं। एक साथ सप्लाई चालू करने पर गांव की आखिरी छोर तक पानी नहीं पहुंच पाता है, जिसकी वजह से एक-एक गांव में पानी की सप्लाई देनी पड़ती है। पानी सबको बराबर मिले इसके लिए वाल्व को अपडेट करना पड़ता है।”

बिजली की आपूर्ति और परियोजना के तहत पानी की सप्लाई को लेकर आईडब्ल्यूपी ने जल जीवन मिशन ने नोडल अवर अभियंता, जल निगम ग्रामीण, धीरेन्द्र प्रताप से बात की। वे बताते हैं, “अगर दिन में एक या दो घंटे तक बिजली की समस्या रहती है तो हम लोग जनरेटर का उपयोग करते हैं, ताकि पानी की आपूर्ति बाधित न हो। लेकिन कई बार लंबे समय तक बिजली चली जाती है। ऐसा भी समय होता है जब तीन-तीन दिनों तक बिजली नहीं रहती। तब पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती है। हम बिजली विभाग से सलाह-मशवरा कर रहे हैं। हमें अलग से फ़ीडर दिए गये हैं, ऐसे में अगर लगातार बिजली मिलती रहे तो हम बिना किसी समस्या और बाधा के ग्रामीणों तक लगातार पानी की आपूर्ति कर सकेंगे। बिजली की ज्यादातर समस्या गर्मी और ख़राब मौसम में होती है।”

बिजली की समस्या के कारण ज़्यादातर इलाकों में पेय जल का संकट उत्पन्न हो जाता है। इसे लेकर  जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने 10 मार्च 2025 को प्रबंध निदेशक, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, वाराणसी को पत्र लिखकर सतही स्रोत आधारित पेयजल योजनाओं के सुचारू संचालन के लिए विद्युत आपूर्ति के लिए वर्तमान पावर रोस्टर में बदलाव करने की मांग की थी, लेकिन विद्युत विभाग की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है।

साफ पेयजल अब भी है पहुंच से दूर

ज़िले में स्थिति यह है कि किसी भी गांव में जाइए, आपको पाइपलाइन न होने, नलों में पानी न आने या डायरिया जैसी बीमारियां फैलने की समस्या मिल ही जाएगी। मसलन, दस हज़ार आबादी वाले गांव भैंसोड़ बालाय पहाड की आदिवासी बस्ती में रहने वाली श्यामकली (40) बताती हैं, “मिशन वाले नल से पहले दस दिन में एक दिन पानी आता था, अब दो-दो महीनों तक पानी की एक बूँद तक नहीं मिलती।” वे मज़दूरी करने प्रयागराज जाती हैं और हमेशा चिंता में रहती हैं कि घर पर बच्चों को पानी मिला होगा या नहीं।

जिन इलाकों तक पानी नहीं पहुंचता वहां टैंकर से पानी पहुंचाया जाता है। पर इस वैकल्पिक व्यवस्था के प्रदाताओं की भी अपनी अलग शिकायत है। गांव की प्रधान चंद्रकली देवी के पति संतलाल टैंकर से पानी पहुंचाते हैं। वे बताते हैं, “एक टैंकर पानी पहुंचाने में कुल खर्च 600 रूपये आता है। लेकिन सरकार हमें प्रति टैंकर मात्र 385 रुपए ही देती है। गांव वालों को पानी पहुंचाने के लिए हम घाटे में जा रहे हैं।”

उनका कहना है कि योजना का पानी सप्ताह में एक दिन आता है और वह भी गांव में आधे लोगों तक ही पहुंचता है। बाकी लोगों के लिए दिन में पांच टैंकर भेजने पर भी सबको पानी नहीं मिल पाता।

जल निगम के मुख्य अभियंता विशेश्वर प्रसाद ने 25 अप्रैल 2025 को मुख्य अभियंता ग्रामीण को पत्र लिखकर मिशन कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्राम भैसोड़ बलाय पहाड़ के लिए पानी की टंकी, पम्प हाउस और संबंधित कार्य हेतु अतिरिक्त विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) स्वीकृत करने की मांग की है। पर यह सब कब तक हो सकेगा, कहा नहीं जा सकता।

बभनी थपनवा गांव में बोरवैल से पानी लेते ग्रामीण। इस गांव में जल जीवन मिशन की पाइपलाइन बिछ चुकी है, पर अनियमित बिजली आपूर्ति के कारण यहां सप्ताह में एक या दो बार आता है।
बभनी थपनवा गांव में बोरवैल से पानी लेते ग्रामीण। इस गांव में जल जीवन मिशन की पाइपलाइन बिछ चुकी है, पर अनियमित बिजली आपूर्ति के कारण यहां सप्ताह में एक या दो बार आता है।फ़ोटो: बृजेंद्र दुबे

दावे और हकीकत के बीच की गुमशुदा कड़ी: संचालन और रखरखाव नीति 

मिर्ज़ापुर जनपद की ज़िलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने आईडब्ल्यूपी को बताया, “1953.03 करोड़ रुपये की लागत से जनपद के 9 ग्राम समूह में 6 नामित एजेंसियों के ज़रिए परियोजनाएं चल रही है। इनमें से 7 परियोजनाएं पूरी तरह बांध के पानी से आपूर्ति करती हैं, जबकि बाकी 2 के लिए बांध के अलावा भूजल का इस्तेमाल होता है। सभी एजेंसियों की अपनी लैब है। इसके अलावा, 743 ग्राम पंचायत में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी ट्रेनिंग दी गई है और वे अपने किट के माध्यम से पानी की जांच करती हैं।”

हालांकि, इन सारे प्रयासों और उनकी विफलताओं को जो कड़ी जोड़ती है उसकी बात ज़मीन पर होती दिखाई नहीं देती। जेजेएम डैशबोर्ड पर सबकुछ दुरुस्त दिखता है, फिर चाहे वह हर घर पहुंचे नलों की संख्या हो, जल समीतियों के गठन की जानकारी हो या जांच करने वाली महिलाओं के नाम। पर ज़मीन पर लोगों को पता तक नहीं कि उनका नाम इन समीतियों और सूचियों में है, न ही उन्हें यह पता है कि समीति को करना क्या है।

पानी राज्य की अधिकार सूचि में है, जबकि योजना केंद्र की है। ऐसे में केंद्र ने इस योजना को सही तरह लागू करने के लिए राज्यों को एक संचालन और रखरखाव नीति बनाने के लिए दिशा निर्देश जारी किए। इसके आधार पर बनी कुछ राज्यों की नीतियां मिशन की वेबसाइट पर दिखाई देती हैं, पर इनमें उत्तर प्रदेश का नाम नहीं है। हालांकि, इंडिया वाटर पोर्टल को उत्तर प्रदेश का एक नीति दस्तावेज मिला, जिसमें मिशन के संचालन और रखरखाव का ज़िक्र है, पर यह जल समीतियों, पानी की जांच, और समुदाय की हिस्सेदारी पर कोई बात नहीं करता।

कोविड के बाद में विलेज एक्शन प्लान बनना शुरू हुआ। पंचायतों, ठेकेदारों, इंप्लीमेंटेशन सपोर्ट एजेंसी ने जल्दबाज़ी में प्लान बना दिया। नक्शा सही से नहीं बनाया गया सभी गलियों औप पूरे क्षेत्रफल को कवर नहीं किया गया। प्लान के आधार पर ही डीपीआर बनना था। पर प्लान किसी और ने बनाया और डीपीआर किसी और ने। मोटे तौर पर जनसंख्या के आधार पर डीपीआर तैयार कर दिया गया।जब सरकार की तरफ से निर्माण कार्य में तेजी को लेकर दबाव बना तो प्राइवेट कंपनियां अपने तरीके से काम करने लगीं। उन्होने अपने हिसाब से पोर्टल अपडेट कर दिया, जिसकी वजह से डैशबोर्ड पर 100 प्रतिशत काम दिखा रहा है।

जेजेएम पर कार्य कर रहे एक एनजीओ कार्यकर्ता, अपना व संस्था का नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर

ऑपरेशन एंड मेंटिनेस के सवाल पर जल निगम के अधिशाषी अभियंता राजेश कुमार गुप्ता बताते हैं, "जल जीवन मिशन में प्राइवेट कंपनियां काम कर रही हैं, वही कंपनियां 10 वर्षों तक उसे चलाएंगी, मेंटेनेंस की सुविधा देगी। विलेज वॉटर सैनिटेशन मिशन द्वारा हर ग्राम पंचायत में समितियां बनाई गई है, पेयजल के लिए भी एक समिति बनाई गई है, समिति काम गांव में जागरूकता फैलाना है। उनके लिए रजिस्टर बनाया गया है, जिसमें वे अपना काम दर्ज़ करेंगी।”

अधिकारियों की दी गई जानकारी ज़मीन की हकीकत से बिलकुल अलग है। गांवों में पानी ज़रूर पहुंचा है, पर मिर्ज़ापुर की स्थिति बताती है कि संचालन और रखरखाव के अभाव में जल जीवन मिशन अपने उद्देश्यों से कहीं पीछे रह गया है।

बृजेंद्र दुबे ने यह कहानी इंडिया वाटर पोर्टल की पहली क्षेत्रीय पत्रकारिता फैलोशिप के दौरान लिखी है।

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