सुरक्षित पेयजल का अधिकार
सुरक्षित पेयजल का अधिकार

जल का अधिकार क्यों आवश्यक है ? (भाग 2)

जल के अधिकार का तात्पर्य जल पर अधिकार नहीं है। जल का अधिकार प्राथमिक मानवीय आवश्यकताओं के लिए आवश्यक जल की मात्रा पर केन्द्रित है, जबकि जल पर अधिकार किसी विशेष प्रयोजन के लिए जल के उपयोग अथवा जल की उपलब्धता से सम्बन्धित होता है।
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जल जीवन मिशन की वर्तमान स्थिति एवं उद्देश्य 

जल जीवन मिशन (ग्रामीण): 

इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक ग्रामीण भारत के सभी घरों को व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त जल उपलब्ध कराना है। 

जल जीवन मिशन (शहरी): 

यह जल जीवन मिशन (ग्रामीण) का पूरक है और इसे भारत के सभी 4,378 सांविधिक शहरों में कार्यात्मक नलों के माध्यम से जल की आपूर्ति का सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने के लिये अभिकल्पित किया गया है। 

यह 500 अमृत शहरों में अन्य फोकस क्षेत्र के रूप में सीवेज प्रबंधन का कवरेज प्रदान करने का भी लक्ष्य रखता है। 

जल जीवन मिशन प्रदर्शनः 

गोवा, तेलंगाना और हरियाणा ने सभी घरों में 100 प्रतिशत नल कनेक्टिविटी का लक्ष्य हासिल कर लिया है। पांडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव जैसे केंद्र शासित प्रदेशों ने भी अपने राज्यों के 100 प्रतिशत घरों में नल जल कनेक्शन प्रदान कर दिये हैं। 

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट : 

सरकार के महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन के आंकलन के लिये केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग 62 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास अपने परिसर के भीतर पूरी तरह कार्यात्मक नल जल कनेक्शन द्वारा प्रति व्यक्ति प्रति दिन कम से कम 55 लीटर जल क्षमता उपलब्ध है। यद्यपि रिपोर्ट में क्लोरीन संदूषण की एक संबंधित समस्या का भी उल्लेख किया गया है। हालाँकि जल के 93 प्रतिशत नमूने जीवाणु संबंधी संदूषण से कथित रूप से मुक्त थे तथापि अधिकांश आँगनवाड़ी केंद्रों और स्कूलों में अवशिष्ट क्लोरीन की मात्रा अनुमेय सीमा से अधिक पाई गई।

भारत में जल संसाधनों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ 

भूजल संसाधन का गिरता स्तरः 

तीव्र शहरीकरण से प्रेरित अनियंत्रित भूजल निकासी के कारण इस मूल्यवान संसाधन में गिरावट आई है। उत्तर- पश्चिमी भारत के अधिकांश भागों में अब भूजल जमीनी स्तर से 100 मीटर तक नीचे चला गया है। वर्तमान निकासी दर के जारी रहने पर भविष्य में भूजल स्तर 200-300 मीटर तक नीचे जा सकता है। जलभृतों से जल के निरन्तर कम होने के कारण वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भूमि अचानक या धीरे-धीरे नीचे धंस सकती है जिसे भूमि अवतलन के रूप में जाना जाता है।

बढ़ता जल प्रदूषण 

घरेलू, औद्योगिक और खनन अपशिष्ट की एक बड़ी मात्रा को जल निकायों में बहाया जाता है, जिससे जलजनित रोगों और कुपोषण का खतरा उत्पन्न हो सकता है। ये फूड वेब और विशेष रूप से जलीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण जल प्रणाली में अनियमितताएँ 

तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण वर्षा पद्धति में परिवर्तन आ रहा है, समुद्री स्तर में वृद्धि हो रही है और तापमान वर्षा जल में वृद्धि के साथ वाष्पीकरण की प्रक्रिया तीव्र हो रही है जिससे बादल अधिक भारी हो रहे हैं। बादलों के अधिक भार के कारण वायु उन्हें उड़ाने में असमर्थ हो जाती है, जिससे महासागरों के ऊपर ही अधिक वर्षा देखी जाती है और वर्षा-आश्रित क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनती है। कई स्थानों पर बादल फटने की घटनाओं से होने वाली अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ या फ्लैश फ्लड की भी घटनाएं उत्पन्न होती हैं। 

कुशल अपशिष्ट जल प्रबंधन का अभाव 

भारत में जल संसाधनों की कम आपूर्ति के साथ ही अक्षम अपशिष्ट जल प्रबंधन, जल का इष्टतम आर्थिक उपयोग कर सकने की क्षमता को पंगु बना रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा मार्च 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की वर्तमान जल उपचार क्षमता 27.3 प्रतिशत और सीवेज उपचार क्षमता 18.6 प्रतिशत है। अधिकांश सीवेज उपचार संयंत्र अधिकतम क्षमता पर कार्य नहीं कर रहे हैं और वे निर्धारित मानकों के अनुरूप भी नहीं हैं।

जल के अधिकार और इसके साथ जुड़े दायित्वों के दृष्टिकोण से भारतीय सन्दर्भ में कार्यवाही के लिए कतिपय क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा सकता है। इस बात को स्वीकार किया जाना आवश्यक है कि जल और स्वच्छता कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे खैरात में बाँटा जाए। जल और स्वच्छता प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है। अतः राज्य को उसे प्रदान करना चाहिए और उसकी सुरक्षा की जानी चाहिए। सरकार द्वारा जनमानस को जल के अधिकार और उसके कारण सरकार पर आए दायित्वों के बारे में जागरूक बनाना होगा।

यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि सभी वर्गों के निवासियों को जल और स्वच्छता की सुविधा मिले। वंचित समुदायों, प्रवासी बसाहटों से दूर रहने वाले समाज के वर्गों की पहचान कर और उनकी आवश्यकताओं पर ध्यान देने से समान वितरण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। विभिन्न स्तरों पर परामर्शकारी मंचों का गठन किए जाने की आवश्यकता है ताकि जल के सम्भरण और संरक्षण के बारे में निर्णय लेने की प्रक्रिया में लोगों को शामिल किया जा सके। इस प्रक्रिया में भाग लेने के लिए लोगों को शक्ति और अधिकार प्रदान करने होंगे। परामर्शकारी प्रक्रियाओं से नागरिकों के जल अधिकार की सुरक्षा के लिए जनहित याचिकाओं का सहारा लेने की जरूरतों में कमी आएगी।

एक ऐसी व्यवस्था विकसित किए जाने की आवश्यकता है जहाँ सरकारी अधिकारियों और जल प्रदाय निकायों को जल और स्वच्छता की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सके। निर्णय लेने की प्रक्रिया के उपयुक्त स्तरों को परिभाषित कर इसे हासिल किया जा सकता है। जल के अधिकार सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं पर अमल करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त राजनीतिक प्राधिकारी को चिन्हित किए जाने से इस कार्य में सहायता मिलेगी। इसका अर्थ है कि संस्थागत प्रबन्ध, वितीय तन्त्र और संचालन के विकल्पों को स्पष्टतः और पारदर्शिता से परिभाषित किया जाएगा। जल की आपूर्ति और स्वच्छता के लिए, जल संसाधनों की सुरक्षा और आर्थिक विकास हेतु इन संसाधनों की दुरुपयोग को रोककर सरकारी नीति में यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि जीवन के लिए जल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। पीने और घरेलू उपयोग के लिए दिए जाने वाले जल के गुणवत्ता पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।

आगे की राह 

विकेंद्रित जल उपयोग जांच 

भारत में एक समर्पित जल उपयोग जांच-तंत्र की आवश्यकता है जो जागरूकता की कमी, आति प्रयोग और जल निकायों के प्रदूषण के कारण, स्थानीय स्तर पर जल वितरण प्रणालियों में जल की क्षति की पहचान करें और उसका उन्मूलन करे।

स्थानीकृत जल संसाधन प्रबंधन

जल जीवन मिशन की भूमिका को दोहरी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। जहां जल संसाधनों की आपूर्ति प्रबंधन और सांवहिनियता-स्थिरता दोनों पर बल दिया जा सके, क्योंकि जल जीवन शब्द स्वयं में जल के जीवन का भी प्रतीक है। मानव के स्वस्थ्य जीवन की कल्पना तभी की जा सकती है जब वह जल के स्वास्थ्य जीवन के साथ सामंजस्य स्थापित करे, इस प्रकार शहरी स्तर पर प्रभावी जल विभाजक प्रबंधन योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है, और सभी घरों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य किया जाना चाहिए। 

जल जीवन मिशन के साथ महिला सशक्तिकरण का सम्मिश्रण करना: 

चूँकि जल की कमी महिलाओं के लिये असमान रूप से अहितकारी है, नल के जल की उपलब्धता और अभिगम्यता सुनिश्चित करने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को अपने बच्चों को समय देने और विकास प्रक्रिया में भाग लेने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, यह मिशन महाराष्ट्र में प्रचलित 'जल पत्नी' की प्रथा को कम करने में सहायता कर सकता है। ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति में 50 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना, इस दिशा में एक स्वागत योग्य कदम है। 

जल संरक्षण क्षेत्र और जल धन अभियानः 

जल पुनर्भरण हेतु समय देने के लिये सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के पुनर्भरण या आगे निकासी पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। इसे शहरों में ऐसे जल संरक्षण क्षेत्र स्थापित कर प्राप्त किया जा सकता है जहाँ शून्य-दोहन की स्थिति निर्मित की जाए। नागरिकों को जल के कुशल उपयोग के बारे में सूचित करने के लिये जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिये, जिसके लिये 'नीर' नामक एक शुभंकर का उपयोग किया जा सकता है। 

सपंर्क करेंः डॉ. दीपक कोहली, 5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ-226 010 उत्तर प्रदेश मो. 9454410037

यह आलेख दो भागों में है

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