वायु प्रदूषण से हो रहा हार्ट अटैक व स्ट्रोक
वायु प्रदूषण से हो रहा हार्ट अटैक व स्ट्रोक

वायु प्रदूषणः अपर्याप्त साबित हो रहे समाधान के प्रयास

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसतन उम्र 10 साल तक घट रही है। वाहनों से निकलने वाला धुआं और सड़कों पर लगने वाले जाम प्रमुख कारण हैं। सरकार की नीतियां प्रभावी नहीं हो पा रही हैं।
Published on
5 min read

वायु प्रदूषण का क्या है? मसला

दूषित हवा के संपर्क में आने से हर साल लाखों लोग स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और निमोनिया जैसी बीमारियों के कारण असमय ही काल के ग्रास बन जाते हैं। यह प्रदूषण महिलाओं, नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव डालता है। 

चिंताजनक दर से बढ़ रहा वायु प्रदूषण अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। एक शोध के अनुसार वायु प्रदूषण वाले क्षेत्र में रहने वालों की औसत उम्र पांच साल कम हो रही है, जबकि दिल्ली-एनसीआर के लोगों की औसतन उम्र 10 साल तक घट जाती है।

भारत में वायु प्रदूषण

भारत में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण परिवहन क्षेत्र है, जो कुल वायु प्रदूषण में 25 से 30 प्रतिशत का योगदान करता है। जीवाश्म ईंधन से चलने वाले पावर प्लांट, जंगल की आग, उद्योग, निर्माण कार्य, औद्योगीकरण, शहरीकरण और रासायनिक खेती आदि भी जिम्मेदार कारक हैं। 

वायु प्रदूषण का सीधा प्रभाव पर्यटन पर पड़ता है, जो कि विदेशी मुद्रा का एक बड़ा स्रोत है। श्रमिकों के काम करने की क्षमता के कम होने से उत्पादन में गिरावट आती है। स्वास्थ्य व्यय बढ़ जाता है। खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होती है। एक अनुमान के अनुसार केवल वायु प्रदूषण से देश को लगभग 150 अरब डॉलर का नुकसान होता है। 

हवा को शुद्ध करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम जैसी अनेक नीतियां भी बनाई गईं, परंतु गंभीर प्रयासों के अभाव में यह प्रभावशाली साबित नहीं हो सकी हैं। सरकार का ध्यान केवल बड़े शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है। लगता है छोटे शहर और ग्रामीण क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं हैं। सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार को छोटे शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या को हल करना होगा। धीरे-धीरे और क्रमशः सुधार के साथ ही वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। 

दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण 

यह तो भला हो प्रकृति का कि दिसंबर के अंतिम दिनों को दिल्ली-एनसीआर में थोड़ी सी बरसात हो गई, वरना राजधानी क्षेत्र की कोई चार करोड़ आबादी लगभग जहर को सांसों के जरिये अपने शरीर में उतार रही थी। लेकिन जनवरी का महीना बीतते-बीतते दिल्ली-एनसीआर की हवा की गुणवत्ता बेहद गंभीर श्रेणी में होना दर्शाता है कि जिम्मेदार वायु प्रदूषण के असल मर्ज को पकड़ नहीं पा रहे या फिर कोई ईमानदारी से इसका निदान नहीं चाहता।

दिल्ली-एनसीआर के वर्ष की अधिकांश अवधि में अधिकतर इलाकों में एक्यूआई लेवल 300 से अधिक ही रहता है। इस बार तो ठंड शुरू होने से बहुत पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने वायु को जहर होने से रोकने की कार्य योजना मांगी थी। जहरीली हवा यहां के लोगों की जिंदगी के साल काम कर रही है। वह छोटे बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर कर रही है। इससे समाज और सरकार, दोनों पर भारी आर्थिक नुकसान की भी मार पड़ रही है। 

जब दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर रोक नहीं लगाई पा जा रही, तब यह सहज ही समझा जा सकता है कि शेष उत्तर भारत में प्रदूषण रोकने के लिए कुछ ठोस नहीं किया जा रहा होगा। दिल्ली जैसे महानगरों की त्रासदी है कि वे किसी भी समस्या के लिए पड़ोसी को दोषी बताने को तत्पर रहते हैं और अपनी आदतों एवं प्रकृति-हंता कृत्यों को कभी मजबूरी तो कभी हक के साथ स्वीकार नहीं करते। यह बात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फिर से कही है कि दिल्ली के प्रदूषण का मुख्य स्रोत वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन है, जिसका अति सूक्ष्म कण (पीएम) 2.5 में भागीदारी 18.8 प्रतिशत है।

दुर्भाग्य यह है कि सभी जानते हैं कि दिल्ली की हवा को खराब करने में सबसे बड़ी भूमिका वाहनों से निकले धुएं और खासकर सड़कों पर लगने वाले

जाम की है, लेकिन समूचा तंत्र इस विषय में पूरी तरह गैर संवेदनशील है। इसके बावजूद वाहनों के परिचालन में सख्ती के लिए न निवासी तैयार हैं, न वाहन बेचने एवं कर्ज देने वाली वित्तीय संस्थाएं और न ही पेट्रोल-डीजल बेचने वाली लाबी। वाहनों के उत्सर्जन में नाइट्रोजन आक्साइड गैस भी होती है, जिसके कारण वायु प्रदूषण गंभीर होता जाता है। हमें समझना होगा कि वाहन चलने से केवल ईंधन उत्सर्जन ही हवा को जहर नहीं बनाता, बल्कि वाहन में लगी बैटरी से निकलने वाले अम्लीय अदृश्य धुएं और टायरों के सड़क से घर्षण से उत्पन्न बहुत बारीक रबर कण भी कम जानलेवा नहीं होते। पिछले दिनों दिल्ली सरकार ने दफ्तर और स्कूल के समय में बदलाव करने का प्रयोग किया था, लेकिन वह अंतराल महज आधे घंटे का था, लिहाजा उसका कोई असर परिवहन पर नहीं पड़ा। कई बार तो लगता है कि सरकार में बैठे लोग इंसानों की जान बचाने से अधिक अदालतों के सामने अपनी खाल बचाने के लिए गैरजरूरी प्रयोग कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं। 

वायु प्रदूषण के 2 मुख्य कारण क्या हैं?

वायुमंडलीय और मौसम की स्थितियां वायु में प्रदूषण के स्तर पर बड़ा प्रभाव डालती हैं। हवा की गुणवत्ता खराब होने के दो ही बड़े कारण हैं-हाइड्रोकार्बन और धूल। हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन या तो औद्योगिक गतिविधियों से होता है या फिर आटोमोबाइल के धुएं से।

पक्की सड़कों वाले शहर में धूल कण का आगम भी यातायात की हलचल ही है। थोड़ा मौसम नम हुआ, ओस गिरी तो यही दोनों प्रदूषकों का संयोजन अक्सर स्मॉग पैदा कर देता है और वही जानलेवा होता है। जब तापमान गिरता है और ठंडी हवा जमीन को ढक लेती है, तो किसी भी गर्म हवा को इसके ऊपर से गुजरना पड़ता है। इस तरह प्रदूषक कण घनी ठंडी हवा में कहीं फैल नहीं पाते हैं। इस प्रकार धूल और जहरीले कणों वाली हवा पूरे परिवेश को ढक लेती है। चूंकि ठंडी हवा अधिक घनी होती है और धीमी गति से बहती है, इसीलिए दूषित हवा के हमारी सांसों में बस जाने और उसके गंभीर परिणाम होने की आशंका ठंड और ओस के दिनों में सर्वाधिक होती है। यदि विज्ञान के इसी सिद्धांत के मुताबिक दिल्ली में सतर्कता बरती जाए और प्रदूषण नियंत्रण की योजना बने तो इस संकट को काफी कुछ कम किया जा सकता है।

सड़कों पर भीड़ कम करने के लिए खराब वाहनों को सड़क पर आने से रोकने जैसे तात्कालिक उपाय तो ठीक हैं, लेकिन इसके लिए कुछ दूरगामी उपाय भी करने होंगे, जैसे कम महत्वपूर्ण कार्यालयों को दिल्ली-एनसीआर से दूर भेजना होगा। बस स्टैंड की मौजूदा व्यवस्था में सुधार और रिंग रेलवे को मजबूत करना होगा। अलग-अलग सड़कों पर विभिन्न गति वाले वाहनों के प्रवेश पर पाबंदी लगानी होगी। आवासीय इलाकों में बाजार बनाने से रोकना होगा। साथ ही गंभीर दिनों में हर तरह के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि आयोजनों पर रोक लगानी होगा, जो सड़क घेरते हों या जाम पैदा करते हैं।

और अंत में 

प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता हानि का गहरा संबंध है। इन संयुक्त खतरों के सफल नियंत्रण के लिए एक नियोजित रणनीति एवं उससे जुड़े विकल्पों पर मिलकर कार्य करना होगा। इस दिशा में तेजी से कार्य करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों, केंद्र सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मिलकर अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा देना होगा। भारत के विभिन्न शहरों में वायु प्रदूषण एवं अन्य प्रकार के प्रदूषण से होने वाले जोखिम के आंकड़ों के संकलन एवं विश्लेषण के साथ इस दिशा में समाधान के लिए एक्शन प्लान बनाना होगा। समय-समय पर इसकी समीक्षा के लिए एक निगरानी तंत्र भी विकसित करना होगा। छोटे शहरों के प्रदूषण को बड़े शहरों के प्रदूषण से अलग करके नहीं, बल्कि समग्रता के आधार पर किए जाने वाले प्रयासों से ही खतरनाक होती हवा से बचा जा सकता है

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org