बांग्लादेशी विस्थापितों का पुनर्वासघर है भारत (Photo-Norad)
बांग्लादेशी विस्थापितों का पुनर्वासघर है भारत (Photo-Norad)

बांग्लादेशी विस्थापितों का पुनर्वासघर है भारत

बांग्लादेशियों में बाढ़ तथा शाकाहारी भोजन का भी भारत जैसा सम्मान नहीं है। शायद इसलिए प्रकृति के मूल स्वरूप को मानवता का पोषक मानने में भारतीय दृष्टि से भी भिन्‍नता है। फिर भी आहार-विहार, आचार-विचार, रहन-सहन इस सब में बहुत दूरी नहीं है। इसलिए बांग्लादेशी भी यूरोप में जाकर अपने को भारतीय बोलते हैं।
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बांग्लादेश में मेरा कई बार जाना हुआ है। जब भी गया तब नैतिकता, न्याय की विश्वशांति जलयात्रा के लिए ही गया। यह देश भारतखंड (हिन्दुकुश) का एक हिस्सा था। अभी भी है। इस देश और भारत में बहुत जुड़ाव सा दिखता है। इसमें उत्तर पूर्वी राज्यों तथा बंगाल से आना-जाना आज भी है, जबकि कांटेदार बाड़ लग गई है। लोगों का आना-जाना जब यह पूरा भारतवर्ष ही था, तब जैसा तो नहीं है; लेकिन आने-जाने वाले आज भी वैसे ही आ-जा रहे हैं।

मेरी यात्रा का उद्देश्य तो न्याय, नैतिकता, विश्व शांति जलयात्रा में विस्थापन का कारण और पुनर्वास जानना-समझना ही था। मैंने वह अच्छे से समझा। बांग्लादेशी बहिनें, भाइयों की अपेक्षा, अधिक जोर-जोर से चिल्‍लाकर बोल रही थीं कि, हमारे बड़े भाई भारत ने हमारे साथ अन्याय किया है। गंगा के जल की जब हमें जरूरत होती है, तब हमें कम मिलता है। जब जरूरत नहीं होती है, तब वह सारा पानी हमारे देश को डुबाने के लिए आने देता है। हम बाढ़ में डूब जाते हैं। हमारे यहां बाढ़ का कहर हमें रुला देता है, मार देता है। यह रोते हुए बोलती है। विश्व जलमंच वर्ष 2001 हेग में, 2003 क्वाटो (जापान), 2006 मैक्सिको, 2009 टर्की, 2012 मार्से, 2015 साउथ कोरिया, 2018 ब्राजील में बराबर वही एक ही बात बोलते सुना, ऐसा ही 2006 से अगस्त में स्टॉकहॉम स्वीडन के विश्वजल सप्ताह में भी इन्हें इसी प्रकार हर वर्ष यही बोलते सुना है। यह इनका अपना एक ही आलाप है। भारत हमें सुखाता और डुबाता है।

मैंने स्वयं फरक्का जाकर समझा है। हमारे फरक्का बैराज के रिकोर्ड भी देखे। मेरी बहिन की बात में बहुत सच्चाई नहीं है। हां गंगा जी के कारण बांग्लादेश बाढ़ग्रस्त बनता है। वैसी ही बाढ़ भारत में भी बढ़ रही है। गंगा भू-कटाव के कारण भारत की भूमि कटकर,  बांग्लादेश की तरफ भूमि को बढ़ा रही है। यह सब हमारी ही फरक्का बैराज के डिजाइन की खराबी के कारण हुआ है। हमारी भूल-गलती हम ही भुगत रहे हैं। हमनें आज तक अपनी इस भूल को और भारत की बाढ़ को कभी किसी के सामने नहीं गाया है। लेकिन बांग्लादेश हर विश्वमंच पर अपनी बाढ़ और सुखाड़ का दर्द रोता ही रहता है। मैं इसे हमेशा सुनता हूं। प्यार भरा जबाब भी देता हूं। लेकिन बांग्लादेश अपने को छोटा भाई कहकर, वही बोलता रहता है।

भारत के नदी जोड़ पर तो इन्होंने बड़ा बवाल खड़ा किया था। ये कहते हैं कि, भारत का नदी जोड़ तो बांग्लादेश को खत्म करने के लिए किया जा रहा है। जैसे चीन ने भारत के ऊपर अरुणाचल प्रदेश में बड़े बांध बनाकर हाइड्रोजन बम्ब बनाया है, वैसे ही अब भारत नदी जोड़ से हमारे देश को मिटा देगा।” यह बात बांग्लादेश प्रतिनिधि सदैव बोलते हैं। जबकि मैं स्वयं ही नदी जोड़ को भारत तोड़ षड्यंत्र कहता रहा हूं। लेकिन बांग्लादेशियों को इससे भी संतोष नहीं है। फिर भी वे बांग्लादेश को बाढ़ग्रस्त भारत बनाता है, यही बोलते रहते हैं।

बांग्लादेश में सुखाड़-पेयजल-सिंचाई-उद्योग आदि का गंभीर संकट है। यहां का फसल चक्र भी अब वर्षा चक्र से अलग बन गया है। यहां की खेती बाजारू ही बन गई है। बाजारू खेती ने इस देश में जलवायु परिवर्तन संकट को गहरा किया है। यहां पर प्रदूषण का स्तर भी बहुत तेजी से बढ़ा है।

बांग्लादेशी भी जल की कमी और अधिकता से विस्थापित हो रहे हैं। यहां के विस्थापन का असर भारत के शहरों से अधिक गांवों पर है। शहरों में तो केवल घरेलू, रसोई बर्तन सफाई के काम में वहां के महिला-पुरुष हैं। गांवों में खेती के काम के लिए बड़ी संख्या में  बांग्लादेशी मजदूर जगह-जगह दिख जाते हैं। बांग्लादेश बनने के वक्‍त जो वहां से विस्थापित होकर आए थे, उनको भारत में भूमि आदि देकर पुनर्वास कर दिया गया था। लेकिन वे लोग आज भी भारत आ रहे हैं। उनका आना-जाना कागजी व बेकागजी दोनों तरह का है।

बांग्लादेशी जनसंख्या का दबाव भारत में बहुत ज्यादा तनाव पैदा नहीं कर रहा, क्योंकि वहां के लोग संगठित होकर कुछ ज्यादा बिगाड़ नहीं करते। छुट-पुट चोरी आदि में जरूर शामिल रहते हैं। इसके कारण जहां-तहां तनाव भी होते हैं। लेकिन यह तनाव अब यूरोप के देशों व शहरों की अपेक्षा कम इसलिए है, क्योंकि भारतीय धीरज से सभी कुछ धारण करके निभा लेता है। भारत में मूलतः अहिंसा की आस्था अभी भी बची है। उसी से भारत के विस्थापन दबाव को धारण करेगा।

भारतीय, बांग्लादेशियों को ‘जलवायु परिवर्तन शरणार्थी’ कहकर नहीं बोलते, उनके साथ मजदूर-मालिक जैसा इंसानी रिश्ता ही रहता है। यूरोप के मूल निवासी अफ्रीका-एशिया से जाने वालों को दूसरी श्रेणी का घटिया प्राणी मानते हैं। भारतवासी बांग्लादेशियों को अपना भाई-बहिन मानकर ही व्यवहार करता है। वह भारत को बड़ा भाई मानता है। लेकिन यह रिश्ता कितना लम्बा चलेगा; मालूम नहीं! इस पर बहुत सवाल अलग-अलग विचारधाराओं के लोग उठा रहे हैं, इसी कारण भारत में पिछले दिनों एक कानून के विरोध में लम्बे समय तक आंदोलन भी चला।

भारत का अपना ही जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। इसलिए अब और अधिक जनसंख्या बढ़ना इस देश की धारक क्षमता से अधिक होगा। इसलिए तनाव की तरफ यह देश भी आगे बढ़ सकता है। वही तनाव, विश्वयुद्ध के लिए सामग्री की तैयारी करने वाला होगा। अतः अब विस्थापन और पुनर्वास की नीति भारत को सोच-समझकर ठीक से बनाने की जरूरत है, तभी भारत बांग्लादेश के रिश्ते स्वस्थ बने रहेंगे।

बांग्लादेश का जलवायु परिवर्तन संकट भविष्य में विस्थापन को बढ़ायेगा ही। वह विस्थापन भारत व यूरोप में कितना-कितना होगा, इसका जबाब साफ है। भारत में बांग्लादेशियों के लिए आना अभी भी बहुत आसान है। बहुत मेहनत करने के बाद भी यूरोप जाना संभव नहीं है। इसलिए बांग्लादेश के लोग बिना किसी ठेकेदार की मदद के सीधे भारत पहुंच जाते हैं।

मैं, जब बांग्लादेश का विस्थापन देखता हूं, तो वहां का जलसंकट मुझे सबसे पहले ध्यान में आता है। वहां पर्याप्त जल होते हुए भी अपर्याप्त है। उसका सबसे बड़ा कारण एक ही है-

“बांग्लादेश में जल का कुप्रबंधन”। यहां की बाढ़-सुखाड़ कम है। मानव निर्मित अधिक है। ग्रामीण बैंक, स्वयं सहायता समूहों ने ग्रामीण समृद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों को दिशा में कोई बड़ा काम नहीं किया। दूसरी तरफ मजदूरों में बचत करने के व्यवहार ने दुनिया में काफी नाम कमाया है। लेकिन प्रकृति के साथ ऐसा व्यवहार करने का काम नहीं हुआ। वहां जिस प्रकार मुद्रा को बचत करके जीवन में उपयोगी माना गया, उससे पहले प्रकृति को बचाकर, मानवता का पोषक नहीं माना, जबकि प्रकृति ही मानवता का निर्माण करती है। उसकी पोषक भी है। इसलिए मानव को प्रकृति का शिक्षण-रक्षण-पोषण करना चाहिए। मुझे यह दर्शन बांग्लादेश में नहीं हुआ। जबकि यह भारतीय व्यवहार में, भारत भूमि पर आज भी दृष्टिगत हो जाता है। मुझे बांग्लादेशियों में भी इसके दर्शन मिलने की संभावना थी, लेकिन वह नहीं मिला।

बांग्लादेशियों में बाढ़ तथा शाकाहारी भोजन का भी भारत जैसा सम्मान नहीं है। शायद इसलिए प्रकृति के मूल स्वरूप को मानवता का पोषक मानने में भारतीय दृष्टि से भी भिन्‍नता है। फिर भी आहार-विहार, आचार-विचार, रहन-सहन इस सब में बहुत दूरी नहीं है। इसलिए बांग्लादेशी भी यूरोप में जाकर अपने को भारतीय बोलते हैं। बांग्लादेश में आज भी भारत का सम्मान है। बना रहे तो बढ़ेगा। यही प्यार बढ़ाने का आधार बना रहेगा।

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