अर्बन जलसंकट
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बेंगलुरु के केपटाउन हो जाने के खतरे को पहचानिए : दपिंदर कपूर

देश के आईटी हब के रूप में प्रसिद्ध शहर बेंगलुरु में इन दिनों पानी की कमी से हाहाकार मचा है। इस समस्या के कारणों और उनके कुछ उपायों पर नई दिल्ली के पर्यावरणविद एवं ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ में वाटर प्रोग्राम डायरेक्टर, दपिंदर सिंह कपूर से वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध गौड़ की बातचीत के खास अंश
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देश के आईटी हब के रूप में प्रसिद्ध शहर बेंगलुरु में इन दिनों पानी की कमी से हाहाकार मचा है। इस समस्या के कारणों और उनके कुछ उपायों पर नई दिल्ली के पर्यावरणविद एवं ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ में वाटर प्रोग्राम डायरेक्टर, दपिंदर सिंह कपूर से वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध गौड़ की बातचीत के खास अंश

केपटाउन और बेंगलुरु में पानी के संकट के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं? दोनों संकटों में क्या समानताएं दिखती हैं?

केपटाउन और बेंगलुरु की समस्याएं भिन्न हैं। केपटाउन में तीन वर्ष से बारिश नहीं हुई, उनके रिजर्वायर सूख गए। बेंगलुरु के पास तो बड़े-बड़े रिजर्वायर हैं। इतना पानी है कि 25 जून तक पानी की समस्या नहीं है। लेकिन खतरा यह है कि अगर ठीक समय तक मानसून नहीं आया तो तब केपटाउन जैसी समस्या पैदा हो जाएगी। जिम्मेदारी की बात आती है तो करीब 800 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला बेंगलुरु शहर, जो पहले झीलों और बगीचों का शहर था, अब कंक्रीट का शहर बन गया है। बेंगलुरु में अंधाधुंध विकास से पानी की समस्या आ गई है। जो मुख्यत: बिल्डर और रियल एस्टेट एजेंट्स की वजह से है, जबकि जिम्मेदारी तो सरकार की भी है।

माना जाता है कि शहरी क्षेत्र के लोग पानी को फिजूलखर्ची ज्यादा करते हैं? क्या मानना है, आपका इस बारे में?

कई बार हम किसानों को और कई बार शहर वालों को पानी की फिजूलखर्ची के लिए दोष देते हैं। हमारी अर्बन  प्लानिंग में ‘वाटर और सेनिटेशन प्लानिंग’ खराब है, उसमें भी बिल्डरों का हस्तक्षेप रहता है। इसलिए जहां प्लानिंग सही भी होती है, वहां इंप्लीमेंट नहीं होती। बिल्डर को तो जहां सस्ती जमीन मिलती है। नैतिक या अनैतिक तरीके से उस कर कुछ न कुछ रियल एस्टेट बना देते हैं। सेंट्रल बेंगलुरु में तो पाइप वाटर सप्लाई है, लेकिन फैल रहे क्षेत्र में पाइप वाटर सप्लाई नहीं है। वहां लोग बोरवेल पर आश्रित हैं। बेंगलुरु में करीब 35 ऐसी झीले हैं, जिनमें खुदाई से उन्हें पुनरुज्जीवित करने का काम चल रहा है। इनमें करीब 700 वर्ग एकड़ में फैली वेलंदुर झील और करीब 400 वर्ग एकड़ में फैली वर्तुर झील में पांच साल से खुदाई का काम टाइम पर हो जाता तो पानी की किल्लत नहीं होती और भू-जल स्तर काफी रिचार्ज हो सकता था। खतरा इस बात का है कि अगर इस साल 26 जून तक बेंगलुरु में मानसून नहीं आता है, तब बेंगलुरु में केपटाउन जैसी समस्या हो सकती है। 

देश भर में भू-जल का स्तर रसातल में जा रहा है? पानी के लिए हाहाकार मचा है? कैसे सुधरेगी यह समस्या?

जिन शहरों की 10 मिलियन से भी अधिक आबादी है, वहां भू-जल से आपूर्ति को पूरा नहीं कर सकते। भू-जल घटने की समस्या दूर करने के लिए शहरों को अपने बेस्ट वाटर से जमीन के वाटर को रिचार्ज करने की जरूरत है। इसके लिए योजनाएं, कार्यक्रम बनाने पड़ेंगे। हर क्षेत्र के भू-जल की मैपिंग करने की जरूरत है। यह भी देखना है कि  कहां को रिचार्ज करने या निकालने की जरूरत है और कहां नहीं। जल आपूर्ति संस्थानों का दायरा बढ़ाना पड़ेगा, पानी सप्लाई के साथ अब ये भूजल मैपिंग करेंगे। रिचार्ज के लिए इनकी पानी की जिम्मेदारी होगी। अभी तक सिर्फ इंजीनियरिंग सॉल्यूशन ही देख रहे थे। अभी यह भी करना पड़ेगा कि शहर के वेस्ट वाटर को ट्रीटमेंट करके कैसे दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।

सैकड़ों की संख्या में नदी-तालाब, कुएं पाट दिए गए। पानी के पारंपरिक स्रोतों को खत्म कर दिया गया? कैसे वापस लौटेगा ये?

एक धारणा यह भी है कि हमें खत्म हो गए सभी स्रोतों को वापस लाना चाहिए लेकिन जिनको हम ला सकते हैं, उन पर कोशिश की जा सकती है। हम बात कर रहे थे कि भूजल रिचार्ज की जरूरत है, जब अंडरग्राउंड निर्माण करते हैं तो भूमि के नीचे पानी संचय करने की जो कैपेसिटी है, वह खत्म कर देते हैं। यह बड़ा खतरा है जो हमारे बड़े शहरों में चल रहा है। विकास के नाम पर विनाश हो रहा है, उस पर हमें सोचना चाहिए। लोग झीलों के विकास की ब्यूटीफिकेशन की तरह कर रहे हैं। आस-पास पक्का करने से झीलों में पानी नहीं पहुंचता।

धान की खेती में भी ज्यादा पानी लगता है। आखिर, इस बारे में कोई सर्वमान्य हल क्यों नहीं निकाला जा सका है?

धान की कुछ ऐसी किस्में है, जिनसे पानी की बचत होती है। उनमें उत्पादन अच्छा होता है। लेकिन लोग पुराने तरीके से ज्यादा वाफिक हैं। बड़ी बात तो यह है कि लोगों को इससे ध्यान हटाना पड़ेगा और सरकार को अन्य फसलों के दाम अच्छे दिलाने होंगे। धान की जगह उगाई फसलों का एमएसपी बढ़ाना होगा।

पानी बचाने के लिए और बेंगलुरु जैसा संकट देश के सामने न आए, इसके लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ?

सबसे पहले भू-जल संचयन को विकसित करने की जरूरत  है। जमीन के नीचे निर्माण करना बंद करिए। वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर देकर, बारिश के पानी की रोक कर किसी झील में ले जाया जा सकता है। भू-जल रिचार्ज के लिए पॉलिसी और स्कीम बनाएं, इसकी फंडिंग और जानकारी दें, झीलों पर अतिक्रमण बंद करें, शहर का वेस्ट वाटर ट्रीट कर उन्हें पुनः प्रयोग करें और भू-जल को रिचार्ज करें। पानी की खपत में कटौती लगाएं। पानी की कम खपत के साथ घर से बाहर कम पानी निकले। इस पर काम करने की जरूरत है।

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