भोपाल गैस त्रासदी: दशकों बाद भी जारी है जहर का कहर
त्रासदी की पृष्ठभूमि: एक रात जो सदियों का ज़हर छोड़ गई
2-3 दिसंबर 1984 की रात, यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) की फैक्ट्री में स्टोर किए गए मिथाइल आइसोसायनेट (MIC) गैस टैंक में पानी के रिसाव से एक भीषण रासायनिक प्रतिक्रिया हुई। इसके परिणामस्वरूप लगभग 40 टन MIC गैस, और उसके साथ हाइड्रोजन सायनाइड सहित अन्य जहरीली गैसें वातावरण में फैल गईं।
इस गैस रिसाव से अनुमानतः 3,000 से 5,000 लोगों की तत्काल मौत हो गई और कुल मृतकों की संख्या 15,000 से 20,000 तक मानी जाती है। लगभग 5 लाख लोग प्रभावित हुए, जिन्हें आंखों में जलन, सांस की तकलीफ और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हुईं।
यूनियन कार्बाइड, एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी थी, जो ‘सेविन’ नामक कीटनाशक बनाती थी। MIC इसका एक मध्यवर्ती रसायन था। फैक्ट्री के बंद होने के बाद भी साइट को ठीक से साफ नहीं किया गया, और जहरीले अपशिष्ट वहीं छोड़े गए, जिससे जमीन और पानी में ज़हर फैलता रहा।
भूजल प्रदूषण: हवा से ज़्यादा घातक ज़मीन के नीचे का ज़हर
हालांकि यह दुर्घटना एक गैस रिसाव के रूप में हुई थी, लेकिन इसके प्रभाव वायुमंडल तक सीमित नहीं थे। ग्रीनपीस और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) जैसे संगठनों द्वारा किए गए अध्ययनों ने पाया है कि यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में अवैध रूप से डंप किए गए जहरीले रसायनों ने भूजल को गंभीर रूप से प्रदूषित कर दिया।
1989 में यूनियन कार्बाइड के आंतरिक लैब परीक्षणों में फैक्ट्री के पास की मिट्टी और पानी मछलियों के लिए विषैला पाया गया।
1999 में ग्रीनपीस की रिपोर्ट ने 12 कैंसरकारी रसायनों की पुष्टि की।
2009 में CSE ने पाया कि फैक्ट्री से 3 किमी दूर तक भूजल में कीटनाशकों का स्तर 40 गुना अधिक था।
2012 में IITR की रिपोर्ट में फैक्ट्री के आसपास के 22 मोहल्लों के भूजल में भारी धातुएं और विषैले पदार्थ पाए गए।
2018 की रिपोर्ट में 20 और कॉलोनियों के भूजल में भी ज़हर की पुष्टि हुई।
हाल ही में, 1 जनवरी 2025 को, भारतीय अधिकारियों ने भोपाल गैस त्रासदी के स्थल से 377 टन जहरीले अपशिष्ट को पिथमपुर के एक निपटान सुविधा में स्थानांतरित कर दिया, जहां इसे 3 से 9 महीनों में नष्ट किया जाएगा। यह कदम मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर उठाया गया था, जिसने 3 दिसंबर 2024 (त्रासदी की 40वीं वर्षगांठ) को साइट की सफाई का आदेश दिया था। हालांकि, कार्यकर्ताओं ने इसे अपर्याप्त बताया है, क्योंकि इससे केवल 1% से भी कम अपशिष्ट हटाया गया है, और 11 लाख टन से अधिक प्रदूषित मिट्टी और भूजल अभी भी खतरनाक बनी हुई है। अधिकारियों का दावा है कि निपटान प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि जलाव से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट को भराव में दफनाया जाएगा, जिससे पानी का प्रदूषण फिर से शुरू हो सकता है।
स्वास्थ्य प्रभाव: समुदाय की पीड़ा
भूजल प्रदूषण का सबसे बड़ा प्रभाव स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य पर पड़ा है। प्रदूषित पानी के उपयोग से कैंसर, गुर्दे की बीमारियां, त्वचा रोग, और जन्मजात विकृतियां जैसी गंभीर समस्याएं सामने आई हैं। एक 2023 के अध्ययन में पाया गया कि 1985 में जन्मे पुरुष, जो गैस रिसाव के समय गर्भ में थे और तब से उसी क्षेत्र में रह रहे हैं, उनमें कैंसर का खतरा अन्य लोगों की तुलना में 27 गुना अधिक है। संभावना ट्रस्ट क्लिनिक की 2018 की रिपोर्ट ने भी गैस प्रभावित क्षेत्रों में कैंसर से होने वाली मौतों की दर को दोगुना पाया।
बच्चे, बुजुर्ग, और गर्भवती महिलाएं इस प्रदूषण की सबसे ज्यादा शिकार हैं, जिनमें जन्मजात विकारों और विकासात्मक विलंब के मामले बढ़े हैं। एक अप्रकाशित 2016 का ICMR अध्ययन पाया कि गैस-प्रभावित माताओं के 1,048 बच्चों में 9% को जन्मजात विसंगतियां थीं, जबकि अप्रभावित माताओं के 1,247 बच्चों में यह दर केवल 1.3% थी। अमनेस्टी इंटरनेशनल की 2024 की रिपोर्ट ने उल्लेख किया है कि त्रासदी ने तीन पीढ़ियों पर असर डाला है, जिसमें जन्मजात विकार और प्रजनन स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव शामिल हैं। हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार, MIC एक्सपोजर से फुफ्फुसीय फाइब्रोसिस, क्रोनिक रीनल फेल्योर, विजन और श्वसन समस्याएं, और तीन पीढ़ियों में जन्मजात विकार देखे गए हैं, जिसमें प्रारंभिक तीन दिनों में 8,000 मौतें और कुल 22,000 से अधिक मौतें हुईं, जबकि 5 लाख से अधिक लोग आजीवन अपंग हो गए।
हाल की घटनाएं: 40 साल बाद भी सफाई अधूरी
1 जनवरी 2025 को, भारतीय अधिकारियों ने भोपाल गैस त्रासदी स्थल से 377 टन जहरीले अपशिष्ट को पिथमपुर स्थित एक निपटान केंद्र में स्थानांतरित किया, जहां इसे 3 से 9 महीनों के भीतर नष्ट किया जाना है। यह कदम मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश के बाद आया, जिसमें 3 दिसंबर 2024 (त्रासदी की 40वीं वर्षगांठ) तक साइट की सफाई करने को कहा गया था।
हालांकि The Guardian और Reuters जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे “प्रतीकात्मक और अपर्याप्त” बताया है। कार्यकर्ताओं के मुताबिक यह सफाई कुल अपशिष्ट का केवल 1% से भी कम है, जबकि करीब 11 लाख टन मिट्टी और पानी अब भी विषाक्त बने हुए हैं।
सरकारी दावे हैं कि यह निपटान पर्यावरण के अनुकूल है, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे उत्पन्न ठोस अपशिष्ट को भूमि भराव में दफनाया जाएगा, जिससे पुनः भूजल प्रदूषण का खतरा है।
वैज्ञानिक जांच और रिपोर्ट
भोपाल के प्रदूषण की गंभीरता को समझने के लिए कई वैज्ञानिक अध्ययन और जांच की गई हैं। IITR की 2012 की रिपोर्ट ने पाया कि फैक्ट्री के आसपास के 22 मोहल्लों के भूजल में उच्च स्तर के भारी धातुओं और अन्य जहरीले पदार्थों की मौजूदगी थी। इसके अलावा, 2018 की एक रिपोर्ट ने 20 और मोहल्लों में प्रदूषण की पुष्टि की। अन्य संगठनों जैसे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) और ग्रीनपीस ने भी इस मुद्दे पर शोध किया। CSE की 2013 की रिपोर्ट ने 15 से अधिक अध्ययनों का विश्लेषण किया, जिसमें नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की रिपोर्टें शामिल थीं। इन रिपोर्टों ने पुष्टि की कि फैक्ट्री के आसपास के क्षेत्रों में मिट्टी और भूजल में व्यापक प्रदूषण है, जो 1969 से 1984 तक कार्बाइड के जहरीले कचरे के डंपिंग के कारण फैला। हाल के अध्ययनों में, 2023 के एक शोध में पाया गया कि 1985 में जन्मे पुरुष, जो गैस रिसाव के समय गर्भ में थे और तब से उसी क्षेत्र में रह रहे हैं, उनमें कैंसर का खतरा अन्य लोगों की तुलना में 27 गुना अधिक है।
स्वास्थ्य संकट: पीढ़ियों की पीड़ा
त्रासदी के तत्काल प्रभावों से आगे बढ़ते हुए, प्रदूषित पानी के इस्तेमाल से अब तक के दशकों में कैंसर, किडनी फेल्योर, त्वचा रोग और जन्मजात विकृतियों के हजारों मामले सामने आए हैं।
2023 के एक अध्ययन में पाया गया कि 1985 में जन्मे और वहीँ पले-बढ़े पुरुषों में कैंसर का खतरा 27 गुना अधिक है।
2018 में संभावना ट्रस्ट की रिपोर्ट में कैंसर मृत्यु दर दोगुनी पाई गई।
ICMR के एक अप्रकाशित 2016 के अध्ययन के अनुसार, गैस-प्रभावित माताओं के बच्चों में 9% को जन्मजात विकृतियां थीं, जबकि अन्य क्षेत्रों में यह दर सिर्फ 1.3% थी।
हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की रिपोर्ट में पाया गया कि MIC एक्सपोजर से तीन पीढ़ियों में जन्मजात दोष, फेफड़ों की फाइब्रोसिस, और श्वसन/दृष्टि संबंधी समस्याएं व्यापक रूप से फैली हैं।
भविष्य का रास्ता
भोपाल त्रासदी से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। व्यापक सफाई, जिसमें प्रदूषित मिट्टी और भूजल की पूर्ण सफाई शामिल है, तत्काल आवश्यक है। प्रभावित समुदायों के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच और चिकित्सा सुविधाएं सुनिश्चित की जानी चाहिए। सभी प्रभावित क्षेत्रों में विश्वसनीय और सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करना भी जरूरी है। यूनियन कार्बाइड, डाउ केमिकल, और भारतीय सरकार को इस त्रासदी के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, और औद्योगिक इकाइयों पर सख्त पर्यावरणीय नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियां न हों।
स्रोतों की सूची (Sources)
The Chemical Engineer: Why Bhopal Remains Toxic 40 Years on
India Today: 40-year-old toxic waste from Bhopal gas tragedy site leaves city for disposal
Amnesty International: Bhopal: 40 Years of Injustice
Harvard T.H. Chan School of Public Health: 40 years after Bhopal toxic gas leak, suffering continues
The Guardian: Removal of waste from site of 1984 Bhopal disaster dismissed as 'farce'
Reuters: Toxic waste from India's 1984 Bhopal gas tragedy site moved for disposal after 40 years
Down To Earth: Toxic waste leaves Bhopal gas tragedy site after 40 years
Times of India: Bhopal: Carbide waste poison groundwater in 29 new colonies