बिजली की रोशनी से जगमगाया नैनीताल
1920 में जल विद्युत परियोजना का काम प्रारंभ हो गया। पहले साल इस काम में 4,13,948 रुपये खर्च हुए। नगर पालिका ने 1650 रुपये खर्च कर मनोरा के संक्रामक अस्पताल तक पानी की लाइन डाली। तीन हजार रुपये की लागत से खुर्पाताल तक पानी की लाइन बिछा दी गई। इस साल वाटर वर्क्स को चलाने के लिए नगर पालिका के कोयले का भण्डार समाप्ति की ओर था गोदाम में सिर्फ 24 टन कोयला बचा था। नगर में पानी की आपूर्ति बाधित होने का खतरा पैदा हो गया। इस स्थिति से बचने के लिए रेलवे को फौरन कोयले की आपूर्ति करने तथा काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर कोयला उतरते ही उसे नैनीताल के वाटर वर्क्स के गोदाम तक सेना द्वारा पहुँचाने के लिए सेना के उच्चाधिकारियों को पत्र भेजे गए।
1920 में नगर पालिका को नगर में जलापूर्ति की व्यवस्थाओं में 80,219 रुपये खर्च करने पड़े। इसके सापेक्ष नगर पालिका को पानी के मद में 64,317 रुपये की आय हुई। उसे 15,102 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। इसके बावजूद नगर पालिका ने पानी की शुद्धता एवं गुणवत्ता के साथ किसी किस्म का कोई समझौता नहीं किया। इस वर्ष नगर पालिका ने पानी की गुणवत्ता की जाँच में 916 रुपये व्यय किए। उस दौर में अल्मोड़ा, हल्द्वानी समेत कई नगरों के पानी की गुणवत्ता की जाँच भी नैनीताल की जाँच प्रयोगशाला में ही की जाती थी।
उस दौरान नगर में बहुत से लोग अस्वास्थ्यकर वातावरण में रह रहे थे। भारतीय अधिकारियों और सैलानियों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ता था। भारतीय पर्यटक, भारतीय होटलों में ही ठहरते थे। भारतीय होटलों का वातावरण स्वास्थ्यकर नहीं था। 1920 में नगर पालिका के अध्यक्ष को एक भारतीय सैलानी ने शिकायत की कि पर्यटक सीजन के दिनों एक भारतीय होटल ने सिर्फ एक छोटे से असुविधापूर्ण कमरे का एक दिन का आठ रुपये किराया वसूला । अध्यक्ष ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया। उन्होंने ज्यादा किराया वसूलना होटल के लाइसेंस की शर्तों के विरुद्ध बताया और इसे गंभीर अपराध की संज्ञा दी नैनीताल में भारतीय सैलानियों की सुविधा के लिए एक अच्छे भारतीय होटल की सख्त आवश्यकता अनुभव की गई।
20 अक्टूबर, 1920 को डॉ. फोटोग्राफर ने नगर स्वास्थ्य अधिकारी का पदभार ग्रहण किया। इसी दरम्यान दुर्गापुर में स्टाफ क्वॉर्टर और नैनीताल में तीन विद्युत सब स्टेशनों का काम भी प्रारंभ हो गया। टांकी में पालिका की टोल चौकी बनकर तैयार हो गई थी । नगर पालिका के सचिव ने नगर में पालिका की जमीन एवं संपत्तियों का सत्यापन किया। इस दौरान नैनीताल में एक रुपये में चार से दूध मिलता था।
01 नवंबर 1920 में भारतीय सेना पुनः उत्तर, पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिणी कमाण्ड में विभक्त हुई। नैनीताल को सेना के पूर्वी कमाण्ड ग्रीष्मकालीन मुख्यालय तथा लखनऊ को शीत कालीन मुख्यालय बनाया गया। जाडों के दिनों पूर्वी कमांड का मुख्यालय लखनऊ चला जाता था। ग्रीष्मकालीन राजधानी एवं सेना के कमांड के नैनीताल आने से गर्मियों के दिनों में यहां भीड़-भाड़ एकाएक बढ़ जाया करती थी।
इस साल मनोरा के संक्रामक रोग चिकित्सालय में 37 पुनः बुखार पाँच चेचक और दो हैजा पीड़ित लोग भर्ती हुए। जाड़ों में नैनीताल में शीत प्रधान संक्रामक ज्वर फैला। नगर पालिका द्वारा निःशुल्क दवाएं बांटी गई। सभी सुरक्षात्मक उपाय अमल में लाए गए। पालिका के प्रयासों से बीमारी से बढ़िया तरीके से निपट लिया गया। इस साल 672 रुपये खर्च कर 935 लोगों को टीक लगाए गए। 278 बकरियां पकड़ी गई। वन कानून के उल्लंघन के 25 मामले कंपाउण्ड किए गए और 115 रुपये जुर्माना वसूला गया। 1920 में भवाली रोड में श्मशान घाट की जगह तय कर ली गई थी।
1921 में नगर पालिका के चुनाव हुए। इस बार छह सदस्य चुने गए। तब नगर पालिका के सभासदों के छह वर्ग होते थे-पहला- पदेन सदस्य, जिसमें दो भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और एक जिला अभियंता शामिल थे। दूसरा वर्ग था-मनोनीत सदस्यों का। तीसरे वर्ग में थे-सामान्य निर्वाचन प्रक्रिया के तहत जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य। निर्वाचित सदस्यों में भी शुरुआत में तीन वर्ग थे। पहला वर्ग था- प्रोपराईटर्स यानी बड़े भूमि एवं भवनों के स्वामियों के प्रतिनिधि। दूसरा वर्ग था- पेटि होल्डर अर्थात छुट-पुट संपत्तियों के स्वामी और तीसरे वर्ग में आते थे किरायेदार। यानी किरायेदारों का प्रतिनिधि। नगर पालिका के प्रतिनिधित्व में यह वर्गीकरण प्रकारान्तर में सामाजिक और आर्थिक तौर पर सुस्पष्ट विभाजन था।
जनवरी, 1921 में नगर पालिका ने नई भवन उपविधियां लागू की। इस साल एक सितंबर से पालिका ने भवन कर नौ से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया। पानी के कर में भी बढ़ोत्तरी की गई। झम्पानी संचालन के नियम और सख्त बना दिए गए। पालिका ने नगर सुधार योजना के लिए सर्वे कराया। इस काम में छह हजार रुपये खर्च हुए। 2872 रुपये खर्च कर खुर्पाताल पेयजल योजना को दुरुस्त किया गया। नगर की सफाई व्यवस्था में पाँच हजार रुपये व्यय किए गए। एक सितंबर, 1921 को नगर पालिका ने यात्री कर की दरें भी बढ़ा दी थी। 5 सितंबर, की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। 8 अक्टूबर, 1921 को कमेटी की बैठक हुई। कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा कि सरकार को पूर्व की भांति भविष्य मैं भी नगर पालिका की सहायता करनी चाहिए। कमेटी की राय थी कि बगैर सरकार की सहायता के नैनीताल के पहाड़ी क्षेत्रों और बाजार क्षेत्र का विकास और रख-रखाव कर पाना अकेले नगर पालिका के लिए संभव नहीं है।
इसी साल की गर्मियों में नगर के ऊँचाई वाले स्थानों को पीने के पानी की किल्लत झेलनी पड़ी। क्योंकि वाटर वर्क्स की मशीनें पुरानी पड़ चुकी थी। अपनी पूरी क्षमता में चलने के बावजूद ये मशीनें सूखे के मौसम में पानी की पर्याप्त आपूर्ति कर पाने में अक्षम थी। अप्रैल और मई के महीनों में पहाड़ियों की चोटियों में स्थित रिजर्व टैंकों को पानी से भर देने के बावजूद ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पानी नहीं आने की शिकायत बनी रहती थी। नगर पालिका ने पानी की कमी के चलते नए जल संयोजन के लिए प्राप्त प्रार्थना-पत्रों को परीक्षण के लिए सार्वजनिक निर्माण कमेटी के पास भेजना प्रारंभ कर दिया था। गर्मियों के दिनों में नैनीताल आने वाले पर्यटकों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही थी। एक साल के भीतर कोयले के दाम 50 रुपये से बढ़कर 59 रुपये प्रति टन हो गए थे। इस पर भी पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं मिला पा रहा था। पानी की आपूर्ति में नगर पालिका को इस साल 84,586 रुपये व्यय करने पड़े थे। पालिका को इस वर्ष पानी से 61,535 रुपये की आय हुई। 23,051 रुपये के घाटे के बावजूद नगर पालिका ने अपने दायित्वों से मुँह नहीं फेरा। नुकसान को नजरअंदाज कर नगर पालिका नगरवासियों को शुद्ध पीने का पानी उपलब्ध कराती रही। पानी की गुणवत्ता की नियमित जाँच का जिम्मा अब मेजर बट्सन को दे दिया गया था।
इस साल भी भारतीय होटलों की अस्वास्थ्यकर स्थिति तथा ज्यादा किराया वसूलने की शिकायतें आई। नगर पालिका ने तल्लीताल में दो नए भवनों के निर्माण की स्वीकृति दे दी। ताकि भारतीय पर्यटकों को कुछ राहत मिल सके। 1921 में जबकि नैनीताल की आबादी 11,230 थी। यहाँ करीब 550 मकान थे। कहा गया कि नए मकानों के बनने से नालों और सीवर लाइन की वहन क्षमता कम हो गई है। नई सीवर लाइन बिछाने और ग्राण्ड होटल तथा वाई.एम.सी.ए. के पास नए पेल डिपो बनाने का निर्णय लिया गया। दुर्गापुर में पावर हाउस का भवन बनकर तैयार हो गया था। पर रेलवे में हड़ताल हो जाने की वजह से पावर हाउस की मशीनें तथा दूसरे उपकरण यथा समय नहीं पहुँच सके थे।
नगर पालिका ने सितंबर, 1921 में बिजली वितरण का लाइसेंस प्राप्त करने के लिए सरकार को आवेदन-पत्र भेजा। इसी बीच नगर में स्थित 41 सरकारी भवनों में बिजली की वायरिंग के लिए नगर पालिका के पास प्रार्थना-पत्र आ गए थे। नगर पालिका ने भवनों में आंतरिक और वाह्य क्षेत्र में बिजली की वायरिंग के लिए निविदाएं आमंत्रित की। इस कार्य के लिए पालिका ने 'मैसर्स-मैट्रोपोलिटन वर्क्स लिमिटेड की निविदा स्वीकार कर ली। कुछ ही दिनों के बाद इस कंपनी के प्रतिनिधियों ने नैनीताल में अपना शो-रुम खोल लिया। नगर पालिका ने घरों में बिजली के तारों की फिटिंग के लिए 50 हजार तथा बिजली के मीटर खरीदने के लिए 20 हजार, कुल 70 हजार रुपये सात फीसद ब्याज की दर पर सरकार से कर्ज माँगा, पर सरकार ने स्वीकृति नहीं दी। तालाब से धोबीघाट, पशुवध स्थल, राजभवन और पटवाडांगर को पानी की आपूर्ति किए जाने से तालाब का जल स्तर तेजी से घट रहा था। विद्युत उत्पादन के लिए तालाब में एक निश्चित जल स्तर बनाए रखना आवश्यक था। झील में आवश्यक जल स्तर कायम होने तक फिलहाल बिजली की नई वायरिंग रोक दी गई थी। नगर पालिका ने तल्लीताल पोस्ट आफिस के पास विद्युत परियोजना के लिए पानी की आपूर्ति का टैंक बनाया, यहाँ से दो पाइपों द्वारा दुर्गापुर स्थित जल विद्युत संयन्त्र तक पानी पहुँचाया गया। कचहरी, सूखाताल और वाटर वर्क्स में विद्युत सब स्टेशन बनाए गए। आखिरकार नवंबर, 1921 में तालाब के निचले हिस्सों में बिजली के बल्ब जगमगाने लगे थे। 1921 के आखिर तक तल्लीताल क्षेत्र बिजली की रोशनी से चमकने लगा था।
उस दौर में नगर पालिका अपनी शुद्ध आय का पाँच प्रतिशत हिस्सा बुनियादी शिक्षा में खर्च करती थी। नगर पालिका, नगर में संचालित सभी स्कूलों को सालाना नियमित रूप से अनुदान देती थी। 1921 में आर्य कन्या स्कूल ने नगर पालिका से अब अनुदान लेने से इंकार कर दिया। लाला किशनदास साह कुमइयां ने भविष्य में इस स्कूल को आर्थिक सहायता करने का जिम्मा ले लिया था। उन्होंने अपना निजी मकान भी स्कूल को दान में दे दिया। इस साल डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के आग्रह पर नगर पालिका के दो अप्रशिक्षित अध्यापकों को प्रशिक्षण के लिए टीचर ट्रेनिंग स्कूल भीमताल भेजा गया।
1921 में इम्प्रूमेंट ट्रस्ट बना। 27 अप्रैल और 21 मई को नैनीताल नगर पालिका वन क्षेत्र में कई स्थानों पर भीषण आग लगी। आग ने तालाब के किनारे स्थित वनों को भी अपनी चपेट में ले लिया था। 23 जून से 16 जुलाई, 1921 के मध्य हुई वर्षा से नैना पीक पहाड़ी से बोल्डर लुढ़के जिससे नालों को नुकसान हुआ।
कुमाऊँ लॉज और बैंक हाउस के पास पहाड़ी धंसी। अयारपाटा क्षेत्र में भी नुकसान हुआ। जिला इंजीनियर ने बरसात के दौरान हुई टूट-फूट की मरम्मत में 4228 रुपये खर्च किए। नगर पालिका ने इस साल नगर की पहाड़ियों और बाजार क्षेत्र के सड़क एवं नालों की मरम्मत तथा रख-रखाव के लिए पीडब्ल्यूडी को 30 हजार रुपये दिए। फेरी हॉल में भू-स्खलन हुआ। सरकार ने फेरी हॉल के नालों की मरम्मत के लिए 22 हजार रुपये दिए।
1921 में नगर पालिका के नियमों को तोड़ने के आरोप में 63 लोगों के चालान हुए। जिसमें 22 दूध में मिलावट के मामले थे। पशुवध स्थल नियम के उल्लंघन में तीन, वन कानून के तहत पाँच, भवन उपविधि के दो, सार्वजनिक यातायात नियम तोड़ने के दो और टोल बॉयलाज उल्लंघन में एक व्यक्ति का चालान हुआ। इस साल 746 रुपये खर्च कर पालिका ने 1,129 लोगों को टीके लगाए। 1921 में 110 इंच वर्षा हुई।
2 फरवरी, 1922 को दुर्गादत्त पंत, अध्यक्ष, व्यापार समिति तथा अन्य कई लोगों ने नगर पालिका के अध्यक्ष को एक सामूहिक प्रार्थना-पत्र दिया। पत्र में कहा कि मल्लीताल में कोई धर्मशाला नहीं है। लोग धर्मशाला का निर्माण करना चाहते हैं। पत्र में नयना देवी मंदिर के बगल में धर्मशाला के निर्माण हेतु जमीन देने की माँग की गई। इसके बाद मामले में दुर्गादत्त पंत ने नगर पालिका में अनेक अनुरोध-पत्र दिए। मार्च, 1922 में 48,150 रुपये की लागत से राजभवन में अग्नि सुरक्षा यंत्र लगाए गए। नवंबर, 1922 में राजभवन में 60,011 रुपये खर्च कर सफाई तथा गर्म पानी के उपकरण लगाए गए।
पंडित गोविन्द बल्लभ पंत, वकील, लाला परमा साह, मथुरादत्त पाण्डे, वकील, चन्द्र लाल साह, 'रईस', देवी लाल साह 'रईस', मोहन लाल साह एवं शेख अब्दुल कय्यूम की पहल पर 31 जुलाई, 1922 को दि नैनीताल बैंक लिमिटेड' की स्थापना हुई। नैनीताल की सरजमीं में स्थापित होने वाला यह पहला बैंक था। इसी साल नैनीताल क्लब परिसर में 'शैले हॉल' बना। इसे शैले बॉल रूम' कहा जाता था। तत्कालीन पेशेवर नाट्य ग्रुपों की दृष्टि में शैले हॉल उत्तरी भारत का बेहतरीन नाट्य मंच था। उस दौर में यहाँ अंग्रेजी नाटकों का मंचन होता था।
01 सितंबर, 1922 को संपूर्ण नैनीताल में बिजली की नियमित आपूर्ति प्रारंभ हो गई। नैनीताल नगर बिजली की रोशनी में जगमगाने लगा था। इस विद्युत योजना में कुल मिलाकर 22 लाख रुपये खर्च हुए। नगर में स्थित सभी सरकारी एवं गैर सरकारी भवनों एवं घरों में वायरिंग का काम भी नगर पालिका ने खुद ही किया ।
बिजली की इस योजना के संचालन का जिम्मा नगर पालिका के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के पास था। प्रारंभ में बिजली की दर तीन आना प्रति यूनिट तय की गई। नगर पालिका को पहले साल बिजली आपूर्ति करने में 2251 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। इस पर सुझाव आया कि नगर पालिका बिजली को निजी कंपनी को ठेके पर दे दे। पर नगर पालिका ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। नगर पालिका का कहना था कि बिजली की योजना से पालिका के व्यावसायिक हित नहीं जुड़े हैं। नगर पालिका इस बात पर खुश थी कि नैनीताल खुद की बनाई बिजली से रौशन हो गया है।
उस दौर में ज्यादातर स्रोत के पानी की ही आपूर्ति की जाती थी। अगर स्रोत का पानी माँग के अनुसार उपलब्ध नहीं हो, तभी तालाब का पानी फिल्टर और क्लोरिनेट कर पानी की आपूर्ति की जाती थी। 1922 में 125 इंच वर्षा हुई थी। इस वर्ष पुलिस स्टेशन मल्लीताल में दो सब इंस्पेक्टर एक हवलदार एक नायक और 16 सिपाही और तल्लीताल में एक सब इंस्पेक्टर, एक हवलदार और 15 सिपाही तैनात थे।
शुरुआत में सिर्फ भरी हुई मोटर लॉरी को टोल टैक्स देना होता था। फिर सभी चौपहिया वाहनों तथा तीन मन से अधिक सामान पर टोल टैक्स लगा दिया गया। इस वर्ष रात 9 बजे से सुबह चार बजे तक तालाब में मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई। नगर पालिका ने भवन उपविधियों में संशोधन किया। इस वर्ष नया नियम बना कि आग जलाने वाली किसी भी भट्टी की चिमनी 144 वर्ग इंच से छोटी नहीं होगी। खुर्पाताल की चुंगी पार करने के लिए दूध वालों को 20 रुपये सालाना के पास जारी किए गए। इसके बावजूद दूध वाले बिना चुंगी दिए औने-कौने से निकल आते थे। ऐसे चुंगी चोर दूधियों को पकड़ने के लिए बारा पत्थर के पास जाँच टोल चौकी बनाई गई। मार्च, 1923 में 1,19,520 रुपये की लागत से राजकीय स्कूल भवन बना। 1923 तक नैनीताल में आठ पेल डिपो बन चुके थे और एक निर्माणाधीन था।
नैनीताल में बिजली आने के दो साल बाद 1924 में नैनीताल वाटर वर्क्स में पेयजल को पंप करने के लिए लगाए गए भाप संचालित पंपों को अलविदा कह दिया गया। उनके स्थान पर बिजली से चलने वाले पंप लगा दिए गए। तब इन पंपों की प्रति व्यक्ति, प्रति दिन 15 गेलन पानी पंप करने की क्षमता थी। बिजली संचालित पंपों की लागत 3,54,100 रुपये थी। इस साल तालाब के किनारे भी मोटर पंप लगाए गए। इन पंपों की कीमत 7,500 रुपये थी। नगर पालिका ने 28.087 रुपये खर्च कर तल्लीताल मोटर पडाव (बस स्टेशन) को चौड़ा किया।
बोट हाउस क्लब से तल्लीताल तक आठ इंच के स्थान पर बारह इंच की सीवर लाइन डाली गई। 1924 तक चारबास होते हुए लॉरी चला करती थी। उन दिनों प्रति यात्री एक रुपये यात्री कर देना पड़ता था। लोग यात्री कर से बचने के लिए टोल लिमिट पर ही उतर जाते थे, वहाँ से कार्ट रोड का एक मील का शॉर्टकट मार कर नैनीताल पहुँच जाया करते थे। यात्री कर की चोरी रोकने के लिए 1924 में बल्दियाखान में नई लिमिट चौकी बना दी गई। इसी साल संयुक्त मजिस्ट्रेट, नगर पालिका की जन स्वास्थ्य कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए। जबकि जिला इंजीनियर को पालिका की सार्वजनिक निर्माण कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया।
1924 में नगर पालिका ने पालिका उपविधियों में कतिपय संशोधन किए। कुत्ते के दस दिन बाहर रहने की स्थिति में नए सिरे से पंजीकरण कराने का नियम बनाया गया। भवन मानचित्र के तकनीकी परीक्षण के लिए पी.डब्ल्यू.डी. के पास भेजने की व्यवस्था की गई। तालाब में मछली पकड़ने के लाइसेंस फीस को एक रुपये से बढ़ाकर तीन रुपये कर दिया गया। मछली मारने के मचान का किराया दो रुपये प्रतिमाह हो गया। सितंबर के महीने में मछली पकड़ने पर पाबंदी लगा दी गई। बिजली की दर बढ़ाकर आठ आना प्रति यूनिट कर दी गई। देय तिथि से पाँच दिन पहले बिजली के बिल का भुगतान करने पर 25 प्रतिशत की छूट दी जाती थी। बिजली कनेक्शन काटने या जोड़ने का शुल्क एक रुपये था।
नैनीताल में शुद्ध दूध और दुग्ध उत्पादों की समस्या बनी हुई थी। 1924 में 'मैसर्स गोविन एण्ड को' ने नगर पालिका को मनोरा में डेयरी खोलने के लिए लीज में जमीन आवंटित करने हेतु प्रार्थना-पत्र दिया। दुर्गादत्त पंत एवं अन्य लोगों के अनुरोध पर नगर पालिका की सार्वजनिक निर्माण कमेटी ने 18 फरवरी, 1924 की बैठक के प्रस्ताव संख्या-तीन द्वारा नयना देवी मंदिर के बगल में धर्मशाला के निर्माण के लिए एक आना प्रति गज किराये पर जमीन देने की स्वीकृति दे दी। 22 मई, 1924 को डिप्टी कमिश्नर ने पत्र सं. 1967/xxv-134 द्वारा धर्मशाला के लिए 6.02 पोल जमीन 11 रुपये छह आना प्रतिवर्ष किराये पर देने की मंजूरी दे दी। 25 जून, 1924 को नगर पालिका कमेटी ने इस बारे में पुनः प्रस्ताव पास कर धर्मशाला भवन के निर्माण की आज्ञा पर अंतिम मुहर लगा दी। 09 जुलाई, 1924 को सेन्ट जोजफ कॉलेज को तल्लीताल में बोट शेड बनाने के लिए 4.1 पोल तथा 16 सितंबर, 1925 को 0.9 पोल जमीन आवंटित की गई।