चीतों के शिकार नहीं कर पाने से बढ़ी चिंता
कूनो नेशनल पार्क के बाड़े से खुले जंगल में छोड़े गए दो नर चीतों अग्नि और वायु के शिकार न करने से पार्क प्रबंधन ने चिंता जताई है। इधर विशेषज्ञ यह आशंका जता रहे हैं कि लंबे समय तक बाड़ों में कैद रखने और भोजन उपलब्ध कराए जाने से चीतों में आलस्य की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो उनके सेहत के लिए ठीक नहीं कही जा सकती। बता दें कि बरसात के दिनों में चीतों की ताबड़तोड़ मौत की घटनाओं के बाद खुले जंगल से चीतों को फिर बाड़े में कैद कर दिया गया था । पिछले दिनों दो नर चीतों को खुले जंगल में फिर छोड़ा गया है।
कूनो नेशनल पार्क के अधिकारियों के अनुसार दोनों चीते दौड़ लगाते 'देखे जा रहे हैं लेकिन उनके शिकार करने के अभी कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। इससे थोड़ी चिंता जरूर है लेकिन यह भी एक तथ्य है कि चीता भूख लगने पर ही शिकार करते हैं। और ताजा मांस ही खाना पसंद करते हैं। पिछले दिनों खुले जंगल में छोड़ने से पहले चीतों को मांस दिया जाता था।
चीतों की देखरेख कर रहे पशु चिकित्सक का कहना है कि चीते 48 घंटे बिना शिकार किए रह सकते हैं, लेकिन तीन दिन में तो शिकार कर लेना चाहिए था। चीतों के शिकार करने पर चीता ट्रेकिंग टीम विशेष निगरानी रख रही है। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि पहले भी कूनो नेशनल पार्क में शिकार नहीं कर पाए। सभी चीतों का संकट होने की बात सामने आई थी। इसकी पुष्टि भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने भी की थी। भोपाल में हाल ही में हुई बैठक में भी अधिकारियों का मानना था कि कूनो में पर्याप्त चीतल या हिरन होने पर ही जंगल में चीतों को छोड़ा जाना ठीक रहेगा।
अभी दो चीते खुले जंगल में छोडे गए वह अभी तक चीतों के सामने प्रे-बेस (भोजन) को खुले जंगल में छोड़ा जाएगा तो उनके सामने भी संकट बढ़ेगा । पहले जो चीते कूनो पार्क से बाहर जा रहे थे, उनके भी भोजन की तलाश में ही बाहर जाने के आशंका जताई गई थी ।
पार्क प्रबंधन के मुताबिक, कूनो में चीतों के मुख्य भोजन के लिहाज से प्रति वर्ग किलोमीटर 27 चीतलों की जरूरत है जबकि यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में 'महज 18 ही चीतल हैं। कूनो नेशनल, पार्क में 9000 चीतल और 800 चिंकारा हैं। 200 से 250 फोरहार्न एंटीलोप हैं। 1000 हाकिंग डियर हैं। तीन से चार हजार काले हिरण हैं। दो से 2500 नील गाय हैं। एक हजार सांभर हैं, इस तरह से कुल मिलाकर 18000 से अधिक वन्यजीव हैं, जो चीते के सर्वाइवल के लिए प्रेबेस बन सकते हैं। यानी उनके लिए भोजन का कोई संकट नहीं है।
पार्वती-कालीसिंध - चंबल लिंक परियोजना को लेकर मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच जल्द ही हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। राजस्थान में भजन लाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा सरकार के कार्यभार संभालने के साथ ही इस परियोजना पर तेजी से काम आगे बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। जलशक्ति मंत्रालय में नदियों को जोड़ने की परियोजना पर क्रियान्वयन के लिए बनी विशेष समिति की बैठक में अब तक हुई प्रगति की समीक्षा की गई। यह समिति की 21वीं बैठक थी, जो इस लिहाज से भी अहम है, क्योंकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच केन- बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर हाल में तेज प्रगति हुई है। खासकर मध्य प्रदेश में पर्यावरण मंजूरियों के लिहाज से लगभग सभी बाधाएं पूरी हो गई हैं। केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बैठक में केन-बेतवा लिंक परियोजना में हुई उल्लेखनीय प्रगति का जिक्र करते हुए कहा कि पानी देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों में से एक है और जल संसाधनों का विकास तथा प्रबंधन केंद्र सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में शामिल है। पानी की उपलब्धता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नदियों को जोड़ना बहुत जरूरी है। केन- बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पूरे बुंदेलखंड के लिए वरदान साबित होगा।
अधिकारियों के अनुसार, पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजना के लिए मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच पूरी तरह सहमतिबनचुकी है और अब दोनों राज्यों में नई सरकारे इससे संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर करने जा रही हैं।डायनासोर के अंडों को कुलदेवता समझ करते रहे पूजा म.प्र. में धार जिले के बाग क्षेत्र स्थित पाडल्या गांव में पिछले दिनों खोदाई में मिले गोलाकार पत्थरों की ग्रामीणों ने कुल देवता मानकर पूजा शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद विशेषज्ञों को यह बात पता चली तो उन्होंने मौके पर जाकर जांच की। जांच में पता चला कि ग्रामीण जिसे कुल देवता मानकर पूज रहे हैं, वह डायनासोर की टिटानो-सौरन प्रजाति के जीवाश्म हैं।
यहां खेतों से खोदाई के दौरान निकली गोलाकार संरचनाओं को ग्रामीणों ने चमत्कार माना और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वर्षों से अलग-अलग देवी-देवताओं के नाम से इनकी पूजा करने लगे। पाडल्या में भिल्लड़ बाबा का मंदिर बनाया और पटेलपुरा में भी इन्हें विराजित किया। वहां श्रद्धा के साथ हार-फूल, नारियल, टीका व तिलक लगाकर पूजते रहे । बता दें कि विज्ञानियों ने यहां विभिन्न क्षेत्रों में डायनासोर के अंडों के 256 जीवाश्म करीब 17 वर्ष पहले प्राप्त किए थे। ग्राम पाडल्या में ही डायनासोर फासिल्स जीवाश्म पार्क बनाया गया है। इस बीच विज्ञानियों को सूचना मिली कि कुछ और जीवाश्म गांव में मौजूद हैं जिनकी ग्रामीण पूजा करते हैं। इसके बाद इन जीवाश्मों की पुनः खोज शुरू की गई। पिछले दिनों बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आफ पैलियो साइंस (बीएसआइपी) लखनऊ के विशेषज्ञ और मध्य प्रदेश वन विभाग के अधिकारी यहां पहुंचे। उन्होंने गांवों के भ्रमण के दौरान गोलाकार पत्थरनुमा आकृति - विश्लेषण शुरू किया, जिन्हें पूजा जाता था। विशेषज्ञों ने पाया कि यह ग्रामीणों कुलदेवता नहीं है, बल्कि डायनासोर जीवाश्म अंडे हैं। इसके बाद विशेषज्ञो ग्रामीणों को इसकी असलियत के बारे में जागरूक करना शुरू किया। बीएसआड के निदेशक एमजी ठक्कर ने बताया कि हम धार जिले को यूनेस्को द्वारा ग्लोबल जियो पार्क के रूप में मान्यता दिलाने की योज बना रहे हैं। हम सभी जीवाश्मों और विरासत स्थलों को संरक्षित करने प्रयास करेंगे ।
पाडल्या के वेस्ता मंडलोई बताया कि गोल पत्थर को विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग नाम देकर देवता जैसे पूजा जाता रहा। भिल्लड़ बाबा पर तो ल बलि तक देते रहे। यहां मुर्गा और बकरे बलि की प्रथा थी। पटेलपुरा में गोवंश के रक्षक के रूप में इन्हें पूजा जाता रहा। पाडल्या के अलावा झाबा, अखाड़ा, जामन्यापुरा, घोड़ा, टकारी आदि गांव में इस तरह से पूजा की गई।
दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है, लेकिन विश्व में जितना भी स्वच्छ जल उपलब्ध है उसका महज चार प्रतिशत ही यहां पाया जाता है। जो पानी है भी उसका केवल 60 प्रतिशत इस्तेमाल होता है। इन स्थितियों में शहरों में निर्बाध पानी की आपूर्ति बड़ी चुनौती है। इससे निपटने के लिए आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने अगले कुछ दशकों तक की जरूरत को ध्यान में रखते हुए दिशा- निर्देशों को नए सिरे से तैयार किया है, जो शहरों की समस्त आबादी को 24 घंटे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। 1999 के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर इस विषय को सतह पर लाया गया है, क्योंकि तेजी से और अक्सर बेलगाम तरीके से हो रहे शहरीकरण में पानी की उपलब्धता को लेकर विशेषज्ञों ने अपनी चिंताएं भी व्यक्त की हैं।
हर स्तर पर पानी की आपूर्ति मीटर प्रणाली के जरिये ही होनी चाहिए इस मैनुअल में जितना जोर पानी के संसाधनों के संरक्षण, उसके उपयोग की दक्षता बढ़ाने पर दिया गया है, उतना ही जोर इस पर भी दिया गया है कि हर स्तर पर पानी की आपूर्ति मीटर प्रणाली के जरिये ही होनी चाहिए। मैनुअल के अनुसार शहरी क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति अमृत योजना के जरिये बहुत सुधरी है। 90 प्रतिशत से अधिक शहरी इलाके पाइप्ड वाटर सप्लाई के दायरे में आ गए हैं, लेकिन यह आपूर्ति निर्बाध नहीं है।
ज्यादातर जगहों पर इसकी अवधि दो से छह घंटे की है और कई ऐसे इलाके भी हैं जहां पानी इससे भी कम अवधि के लिए व उपलब्ध हो पाता है। यह छिटपुट आपूर्ति कई समस्याओं को जन्म देती है। जैसे जब पानी की आपूर्ति न हो रही हो तब इसके वितरण नेटवर्क में जल के प्रदूषित होने का सबसे अधिक खतरा होता है। इसके साथ ही रुक-रुक कर होने वाली आपूर्ति बड़े पैमाने पर गैर राजस्व जल यानी वह पानी जिसकी कोई कीमत नहीं हासिल हो पाती, को जन्म देती है। इसका साफ मतलब है कि पानी या तो बर्बाद हो जाता है या फिर उसका कोई हिसाब-किताब नहीं होता। जिससे राजस्व का भी नुकसान होता है।
मैनुअल के अनुसार इन मसलों के समाधान के लिए नीतिगत परिवर्तन की जरूरत है। परंपरागत केंद्रीकृत योजनाओं की जगह विकेंद्रीकृत नजरिया अपनाना होगा। आपरेशन जोन (ओजेड) और डिस्ट्रिक्ट मीटर्ड एरिया (डीएमए) के विचारों को अमल में लाना होगा।आपरेशन जोन यानी नेटवर्क का सबसे अंदरूनी इलाका और डीएमए यानी जिले जैसी इकाई में पानी का संपूर्ण प्रबंधन।पानी की आपूर्ति के लिए जोन तथा डिस्ट्रिक्ट मीटर्ड एरिया, को भारतीय मानक ब्यूरो ने भी परिभाषित किया है और इनके संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह परिवर्तन या रूपांतरण शहरी क्षेत्रों में सभी निवासियों के लिए भरोसेमंद और सभी की पहुंच वाली जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बहुत जरूरी है।
स्रोत :-
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